लोक के सामाजिक समझौता सिद्धांत का वर्णन कीजिए

लोक का सामाजिक समझौता सिद्धान्त लॉक की राजनीतिक विचारधारा में सर्वप्रथम स्थान उसके सामाजिक समझौता सिद्धान्त का है, जिसका वर्णन उसके विभिन्न चरणों में किया गया गया है

मानव-स्वभाव की व्याख्या - यद्यपि लॉक ने भी शेफ्ट्सबरी के पतन और उसके बाद के दुःखपूर्ण दिनों में एवं अपने देश के निष्कासन का यातनामय जीवन बिताते हुए मानव-स्वभाव के दुष्टतापूर्ण पक्ष का साक्षात्कार किया था, फिर भी उसका हृदय मनुष्यों की स्वाभाविक अच्छाई और दया, आदि गुणों से अधिक प्रभावित था । 

उसके पिता के स्नेहमय व्यवहार और मित्रों की अच्छाई ने उसके हृदय में मानवीय सद्भावना के प्रति निष्ठा उत्पन्न की और उसने स्वयं अपनी आँखों से 1688 ई. में इंग्लैण्ड में शान्तिपूर्ण साधनों के बल पर जो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हुए देखा था, उसने उक्त प्रभाव और निष्ठा को पुष्ट करने का कार्य किया ।

इसी कारण जहाँ हॉब्स ने मनुष्य को स्वार्थी, पाशविक और पतित माना है। लॉक ने उसे सहयोगी तथा सामाजिक माना है। उसके अनुसार मनुष्य स्वभाव से ही एक ऐसा सामाजिक प्राणी है, जो पारस्परिक सहयोग, प्रेम, दया और सद्भाव के आधार पर दूसरे व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध रखते हुए अपना जीवन व्यतीत करता है ।

प्राकृतिक अवस्था - हॉब्स भाँति लॉक ने भी प्राकृतिक अवस्था का चित्रण किया है, क्योंकि लॉक का मनुष्य प्रेम, सहानुभूति, सहयोग एवं दया से पूर्ण प्राणी है, इसलिए प्राकृतिक अवस्था 'प्रत्येक की प्रत्येक के साथ संघर्ष की अवस्था' न होकर शान्ति, सम्पन्नता, सहयोग, समानता तथा स्वतन्त्रता की अवस्था है। 

लॉक ने लिखा है कि, “ यद्यपि प्राकृतिक अवस्था स्वतन्त्रता की अवस्था है, तथापि यह स्वेच्छाचारिता की अवस्था नहीं है। यद्यपि इस अवस्था में मनुष्य को अपने व्यक्तित्व या सम्पत्ति के प्रयोग की अमर्यादित स्वतन्त्रता है, पर उसे तब तक अपने को नष्ट करने की स्वतन्त्रता नहीं है, जब तक कि ऐसा करने की आवश्यकता जीवन बनाये रखने के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य से न हो । "

लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में व्यवस्था भी विद्यमान है, और वह है विवेक द्वारा स्थापित व्यवस्था । लॉक के अनुसार, "विवेक, विवेक को काम में लाने वाली सम्पूर्ण मानवता को यह सिखाता है कि क्योंकि सब मनुष्य समान तथा स्वाधीन हैं। अतः किसी को भी दूसरे के जीवन, स्वास्थ्य, स्वतन्त्रता एवं सम्पत्ति को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। 

इस प्रकार लॉक का तात्पर्य यह है कि मनुष्यों को दूसरों के अधिकारों पर आक्रमण करने और हानि पहुँचाने से रोका जाना चाहिए। सबको उस प्राकृतिक अवस्था को मानना चाहिए, जो शान्ति और सम्पूर्ण मानवता की सुरक्षा चाहती है । 

इस प्रकार की लॉक की प्राकृतिक अवस्था इस विवेक जनित प्राकृतिक नियम पर आधारित है, कि “तुम दूसरों के प्रति वही बर्ताव करो, जिसकी तुम दूसरों से अपने प्रति आशा करते हो" । 

लॉक के व्यक्ति प्राकृतिक अवस्था की इस प्राकृतिक व्यवस्था के अनुसार चलते हैं तथा उचित-अनुचित, पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म की स्वाभाविक भावना के अनुसार परस्पर व्यवहार करते हैं। 

“यह प्राकृतिक अवस्था स्वर्ण युग की अवस्था है। " और डनिंग के शब्दों में, “यह पूर्ण सामाजिक अवस्था होने की अपेक्षा केवल पूर्व राजनीतिक अवस्था है।" यह अवस्था परस्पर पारस्परिक संघर्ष की अवस्था नहीं थी। इसमें शान्ति और विवेक का आधिक्य था ।

सामाजिक समझौता- प्राकृतिक अवस्था आदर्श अवश्य है, किन्तु न तो यह व्यावहारिक है और न ही इसमें स्थायी होने की कोई गारण्टी दी जा सकती है। प्राकृतिक अवस्था में व्यक्तियों को कुछ असुविधाएँ हैं और इस अवस्था की कुछ कमियाँ हैं। 

प्राकृतिक अवस्था की पहली कमी यह है कि इसमें कोई सुनिश्चित, प्रकट एवं सर्वमान्य नियम नहीं हैं, जिनके आधार पर उचित-अनुचित का निर्णय हो सके। इस अवस्था की दूसरी कमी यह है कि इसमें कोई प्रकट एवं निष्पक्ष निर्णायक नहीं है। 

प्राकृतिक अवस्था की तीसरी कमी निर्णयों को कार्यान्वित कर सकने वाली शक्ति का अभाव है और ऐसी दशा में निर्णय कार्यान्वित होने से रह जाते हैं। इन असुविधाओं के कारण व्यक्ति प्राकृतिक अवस्था का त्यागकर, समझौते के आधार पर राज्य संस्था की उत्पत्ति करते हैं।

इसके लिए मनुष्यों में दो प्रकार के समझौते होते हैं । यद्यपि लॉक ने स्पष्टतया ऐसे दो समझौतों का उल्लेख नहीं किया है, किन्तु उसके वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि दो समझौते किये गये। पहले समझौते द्वारा प्राकृतिक अवस्था का अन्त कर समाज की स्थापना की गयी। 

पहले समझौते द्वारा मनुष्य यह निश्चित करते हैं कि वे अपने सम्बन्ध में व्यवस्था करने का अधिकार समाज को देते हैं। परिणामस्वरूप अब उस कानून के निर्माण का अधिकार समाज को होगा, जिन्हें वह मनुष्य के वैयक्तिक और सामाजिक हित के लिए उपयोगी समझेगा। 

दूसरे प्रकार का समझौता वह है जो समाज के मनुष्य मिलकर शासक (व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह) से करते हैं तथा जिसके द्वारा राज्य संस्था की उत्पत्ति होती है। यह समझौता एक प्रकार के शासक और शासितों के मध्य है, जिससे समाज के द्वारा शासक को कानून बनाने, उसकी व्याख्या करने और उन्हें मनवाने का अधिकार दिया जाता है।

परन्तु लॉक के सामाजिक समझौते में शासक को अमर्यादित शक्ति प्राप्त नहीं है। शासक की शक्ति पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया है कि उसके द्वारा निर्मित कानून प्राकृतिक नियमों के अनुकूल और अनुरूप होंगे। 

लॉक का कथन है कि, “व्यक्ति अपनी सम्पत्ति की रक्षा के लिए राजनीतिक समाज में प्रवेश करते हैं।” सम्पत्ति के अन्तर्गत जीवन, स्वास्थ्य तथा स्वतन्त्रता भी सम्मिलित है। 

लॉक की धारणा है कि प्राकृतिक अवस्था में व्यक्तियों को जो अधिकार प्राप्त थे, समाज उनकी सुरक्षा सामूहिक रूप से और सामूहिक हितों को ध्यान में रखते हुए करेगा। 

इस प्रकार सरकार व्यक्तियों के जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति की रक्षा की गारण्टी लेती है। इस समझौते में यह भी निश्चय किया जाता है कि यदि प्रभुसत्ताधारी समझौते की शर्तों का उल्लंघन करे और सार्वजनिक हित के विरुद्ध शासन करे, तो मनुष्यों को अधिकार होगा कि वे उससे अथवा उस व्यक्ति से राजशक्ति छीन लें और दूसरे ऐसे व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह दे दें, जो समझौते की शर्तों के अनुकूल सार्वजनिक हित में शासन करे । समूह को

लॉक के सामाजिक समझौते की विशेषताएँ - लॉक द्वारा प्रतिपादित सामाजिक समझौते की कुछ विशेषताओं का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है

(1) लॉक के सिद्धान्त के अन्तर्गत दो प्रकार के समझौते होते हैं। पहले समझौते द्वारा तो एक राजनीतिक समाज की स्थापना की गयी है और दूसरे समझौते द्वारा शासक व शासित के मध्य शर्तें निश्चित करते हुए सरकार की स्थापना की गयी है ।

(2) समझौते के परिणामस्वरूप नागरिकों के द्वारा अपनी प्राकृतिक अवस्था के अधिकारों का त्याग कर दिया जाता है, किन्तु अधिकारों का यह त्याग इस शर्त पर किया जाता है कि समाज उनकी सुरक्षा सामूहिक रूप से और सामूहिक हित का ध्यान रखते हुए करेगा ।

(3) समझौते के आधार पर जिस राज्य संस्था का निर्माण होता है, वह मानवीय अनुमति और सहमति का परिणाम है।

(4) लॉक के सिद्धान्त में शासक भी समझौते का एक पक्ष है । अतः समझौते की शर्ते उस पर अनिवार्यतः लागू होती हैं और उसके लिए समझौते का पालन आवश्यक होता है। इस प्रकार लॉक एक निरंकुश राजतन्त्र नहीं, वरन् मर्यादित राजतन्त्र की स्थापना के पक्ष में है।

(5) लॉक के सिद्धान्त में राज्य और शासन के अन्तर को स्वीकार किया गया है और वह शक्ति-विभाजन के सिद्धान्त का समर्थन करता है ।

(6) क्योंकि शासक अथवा सरकार की स्थापना मनुष्यों के समझौते और सहमति पर आधारित होती है। अतः यदि सरकार निश्चित लक्ष्य को पूर्ण करने की दिशा में कार्य न करे, तो शासक की नियुक्ति करने वाली जनता को उसे पदच्युत करने का अधिकार है। 

दूसरे शब्दों में, लॉक के समझौते के अनुसार हॉब्स के मत के विरुद्ध जनता को शासक अथवा सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार प्राप्त है। जैसा कि लॉक ने कहा है, 

"समाज को सदा एक ऐसी शक्ति प्राप्त रहती है कि वह अपने को किसी के भी कुप्रयत्नों और कुचेष्टाओं से बचा सके, जो प्रजा के जीवन, स्वतन्त्रता या सम्पत्ति के विरुद्ध कुप्रयत्न और कुचेष्टाएँ करने की मूर्खता अथवा नीचता करे भी कोई उन्हें दासता की दिशा में ले जाने का प्रयत्न करे, 

उन्हें सदा यह अधिकार होगा कि वह अपने को उससे मुक्त कर सकें, जो आत्मरक्षा के उस मौलिक, पवित्र एवं अपरिवर्तनीय नियम पर आक्रमण करते हैं, जिनके हेतु वे समाज में सम्मिलित हुए "जब कभी थे।”

समझौते की उपर्युक्त विशेषताओं से स्पष्ट है कि लॉक ने अपने सिद्धान्त के आधार पर एक ऐसे समाज का समर्थन किया है जिसमें वास्तविक एवं अन्तिम शक्ति अर्थात् सम्प्रभुता समष्टि रूप से समाज में निहित होती है। 

सरकार का चाहे कोई भी स्वरूप क्यों न हो वह समाज की इच्छा की अभिव्यक्ति का एक ऐसा साधन मात्र होती है, जिसे समाज जब चाहे बदल सकता है।

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