मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की विवेचना कीजिए

ऐबेंस्टीन ने ठीक कहा है कि “मिल की स्थायी ख्याति का कारण 'स्वतन्त्रत । पर' उसका निबन्ध है जो कि उसके महत्वपूर्ण ग्रन्थ का नाम है, जो 1859 में प्रकाशित हुआ । उसने भविष्यवाणी की थी उसकी रचनाओं में सम्भवतः यह निबन्ध सबसे अधिक दीर्घजीवी होगा और उसकी यह भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई।

मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचारों की विवेचना कीजिए

मिल ने अपने ग्रन्थ 'स्वतन्त्रता पर' में स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में विचार लिखे बढ़ता जा रहा था। अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख को लेकर शासकीय अधिकार क्षेत्र इतना व्यापक हो चला था कि स्वयं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए ही हैं, उसकी पृष्ठभूमि यह है कि उसके देश इंग्लैण्ड में विभिन्न कारणों से व्यक्ति की स्वतन्त्रता खतरे में पड़ गई थी।

19वीं शताब्दी के मध्य में इंग्लैण्ड का राजनैतिक चिन्तन का मुख्य विषय 'व्यक्तिगत स्वतन्त्रता' हो गया था । हीगल और स्पेन्सर ने इस विचारधारा को और भी तीव्र कर दिया। 

बेन्थम यद्यपि व्यक्तिवाद का समर्थक था, परन्तु उसने 'अधिक से अधिक लोगों का अधिकतम सुख' का सिद्धान्त अपनाकर यह निष्कर्ष निकाला कि विधायिका बहुमत द्वारा व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर नियन्त्रण व हस्तक्षेप कर सकती है। परन्तु मिल इन विचारों से सहमत नहीं था । 

वह इंग्लैण्ड की सरकार के उन कानूनों का विरोधी हो गया था जो व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन कर रहे थे । इन परिस्थितियों में मिल ने 'स्वतन्त्रता का लेख' लिखा जिसमें उसने व्यक्ति और उसकी स्वतन्त्रता पर बल दिया है। 

मिल की 'स्वतन्त्रता' पर यह ग्रन्थ, अंग्रेजी भाषा में स्वतन्त्रता के समर्थन में लिखा जाने वाला महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। बेन्थम के सुधारवादी कार्यों से नागरिकों के जीवन पर शासन का नियन्त्रण.संकट उत्पन्न होने लगा था। 

ऐसे कठिन समय में मिल ने स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए अपनी कलम उठायी । डर्निग ने लिखा है कि "मिल ने विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का मिल्टन जैसे उत्साह और उससे अधिक कुशाग्र बुद्धि से समर्थन किया । 

” मिल ने अपने स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचारों का प्रतिपादन दो दृष्टियों में किया - व्यक्ति तथा समाज । मिल ने व्यक्तिकी स्वतन्त्रता पर दो पहलुओं से विचारकिया।

(1) विचार स्वतन्त्रता - मिल विचारों की स्वतन्त्रता का कट्टर समर्थक था । विचारों के संघर्ष में केवल सत्य की विजय होती है। प्रत्येक व्यक्तिको विचार अभिव्यक्ति की सम्पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। किसी भी विचार का दमन करना सत्य का दमन करना है। 

किसी व्यक्ति का विचार सत्य हो सकता है या मिथ्या या आंशिक रूप से सत्य या आंशिक रूप समें मिथ्या । यदि सही-सही मत को रोक दिया जाये तो समाज सच्चाई जानने से वंचित रह जायेगा। अधिकारी वर्ग का यह दावा गलत है कि वे समाज को हानि पहुँचाने वाले विचारों को रोककर जनता की भलाई कर रहे हैं । 

यदि कोई विचार आंशिक रूप से भी सत्य है तो भी उस पर प्रतिबन्ध नहीं लगाना चाहिए। सत्य के अनेक पक्ष होते हैं । विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने पर ही हम सत्य को पूर्ण रूप से समझ सकते हैं। इस सन्दर्भ में मिल का कथन है, “दस सनकी व्यक्तियों में से नौ निरर्थक बुद्धू हो सकते हैं। 

किन्तु दसवाँ व्यक्ति मानव जाति के लिए इतना लाभदायक हो सकता है जितने अनेक साधारण व्यक्ति मिलकर भी नहीं हो सकते।” मिल ने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि ईसा मसीह और सुकरात को विचार और भाषण की स्वतन्त्रता दी गई होती तो क्या इससे मानव जगत का कल्याण नहीं होता ? 

ईसा को सूली पर इसलिए चढ़ा दिया गया कि उनके विचार परम्परागत विचारों से मेल नहीं खाते थे। सुकरात को भी सही विचार व्यक्त करने के लिए शासकों द्वारा जहर पिलाया गया। परन्तु क्या यह सही नहीं है कि इनकी हत्या से समस्त मानव जाति की ही अधिक हानि हुई । 

मिल का विचार था कि स्वतन्त्रता के लिए सबसे बड़ा खतरा सरकार की ओर से न होकर बहुमत की ओर से होता है। मिल बहुमत को सदैव ठीक नहीं मानता । मिल का विचार है कि किसी भी रूप में अल्पमत का दमन नहीं होना चाहिए। सर्वश्रेष्ठ सरकार को भी सबसे बुरी सरकार से अधिक अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता । 

(2) कार्य की स्वतन्त्रता - मिल की दृष्टि में कार्य करने की स्वतन्त्रता में व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रकट होता है और उसकी आत्म-उन्नति का मार्ग खुल जाता है। व्यक्तित्व विकास के लिए केवल विचारों की स्वतन्त्रता ही पर्याप्त नहीं होती, बल्कि कार्य की स्वतन्त्रता भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। 

विचारों की स्वतन्त्रता तो निरपेक्ष रूप में प्राप्त हो सकती है, किन्तु कार्य की स्वतन्त्रता का रूप केवल सापेक्षिक है। कार्य की स्वतन्त्रता को मिल दो भागों में विभाजित करता है

(क) स्व-विषयक – इस क्षेत्र में मिल उन कार्यों का विवेचन करता है जिनका सम्बन्ध व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन से होता है। उदाहरण के लिए सोना, पहनना, खाना तथा आचार-विचार आदि कार्य इसके अन्तर्गत आते हैं। इनके सम्बन्ध में मिल व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता बनाने के पक्ष में है। 

यदि कोई व्यक्ति अपने यहाँ जुआ खेलता है अथवा शराब पीता है और यदि उसके इन कार्यों का प्रभाव समाज पर नहीं होता तो व्यक्ति को इन कार्यों को करने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति फैशन अथवा रहने के लिए निजी तरीके अपनाता है तो उसमें राज्य का अथवा अन्य व्यक्तियों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए ।

(ख) पर - विषयक - इस क्षेत्र में व्यक्ति के वे कार्य आते हैं, जिनका प्रभाव अन्य व्यक्तियों पर पड़ता है। इस सन्दर्भ में व्यक्ति के लिए मिल सीमित स्वतन्त्रता का समर्थन करता है। इस क्षेत्र में वह व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं देता। 

राज्य को अथवा अन्य व्यक्तियों को हस्तक्षेप करने की आज्ञा देता है। राज्य निम्नलिखित बातों में हस्तक्षेप कर सकता है

  1. यदि व्यक्ति स्वतन्त्रता का अनुचित प्रयोग करता है। 
  2. स्वतन्त्रता के अनुचित प्रयोग से वह कर्तव्य से विमुख हो जाता है। 
  3. संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिए भी व्यक्ति को अपनी स्वतन्त्रता का कुछ अंश त्यागने के लिए विवश किया जा सकता है। 

मिल की स्वतन्त्रता के मूलभूत लक्षण

मिल ने व्यक्ति और समाज दोनों के हितों को ध्यान में रखकर जो स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार प्रकट किये हैं, उनकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) मिल की स्वतन्त्रता सम्बन्धी धारणा समाज की व्यक्तिवादी धारणा है । 

(2) यद्यपि मिल व्यक्ति और समाज दोनों की स्वतन्त्रता की बात करता है, फिर भी यह स्पष्ट है कि जैसा कि हरमॉन ने कहा है कि “मिल ने व्यक्ति पर इतना अधिक बल दिया है कि हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उसने समाज की अपेक्षा व्यक्ति को अधिक महत्व दिया है।”

(3) मिल स्वतन्त्रता की व्याख्या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से करता है 

(4) मिल रूढ़िवाद का विरोधी था, इसलिए उसने व्यक्तित्व के विकास में बाधक सामाजिक कानूनों, प्रथाओं और रूढ़ियों आदि को अनुचित बताया है।

(5) मिल द्वारा प्रतिपादित स्वतन्त्रता केवल निषेधात्मक ही नहीं है, सकारात्मक भी है क्योंकि वह व्यक्ति की आत्मरक्षा व उसे दूसरों की हानि करने से बचाने के लिए राज्य को व्यक्तियों की स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप करने का भी अधिकार देता है। ।

(6) मिल ने स्वतन्त्रता पर जो विचार रखे हैं यद्यपि वे उपयोगितावाद के आधार पर रखे, परन्तु वास्तविकता यह है कि उसके विचार उपयोगितावाद का अतिक्रमण करते हैं, 

उपयोगितावाद का मूल सिद्धान्त है अधिक से अधिक व्यक्तियों का अधिकतम सुख, परन्तु मिल स्वतन्त्रता की रक्षा सम्पूर्ण मानव जाति के विरुद्ध भी चाहता था। हारमॉन ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि “मिल स्वतन्त्रता को केवल सुख प्राप्ति का साधन न मानकर, उसको स्वयं साध्य भी मानता था।

(7) मिल ने पिछड़े हुए राष्ट्रों के लोगों के लिए स्वतन्त्रता न देने की ही बात कही. है, ऐसे अपरिपक्व लोगों के हित के लिए वह राजतन्त्र की बात करता है । 

(8) मिल व्यक्तिकी स्वतन्त्रता में उससे विवेक के साथ भावना को भी महत्व देता है। आलोचना

आलोचकों ने मिल के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचारों की आलोचना निम्नलिखित आधारों पर की है

(1) खोखली स्वतन्त्रता और काल्पनिक व्यक्ति - बारकर ने ठीक कहा है कि “मिल खोखली स्वतन्त्रता और काल्पनिक व्यक्तिका मसीहा है।" बारकर आगे कहता है कि "मिल, उसकी बचत के लिए काफी गुंजाइश छोड़ देने पर भी हमें खोखली स्वतंत्रता और काल्पनिक व्यक्ति का ही मसीहा लगता है। 

व्यक्ति के अधिकारों के सम्बन्ध में उसके पास कोई दर्शन नहीं था। वह समाज की कोई ऐसी पूर्ण कल्पना नहीं कर पाया जिसमें 'राज्य' और 'व्यक्ति' का मिथ्या अन्तर अपने आप लुप्त हो जाये।

(2) मनुष्य सदैव अपने हितों का सर्वोत्तम निर्णायक नहीं है - मिल की यह धारणा गलत है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर और मस्तिष्क के ऊपर सम्प्रभु होता है और वह अपने हित का निर्णायक भी होता है। व्यवहार में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। आज के विषम एवं जटिल जीवन में उसकी नैतिक एवं बौद्धिक आवश्यकताओं का समाज ही सर्वोत्तम निर्णायक हो सकता है।

(3) मानवीय कार्यों को दो भागों में बाँटना अनुचित है-मिल मानवीय कार्यों को दो भागों में बाँटता है- स्वयं से सम्बन्धित तथा अन्य व्यक्तियों से सम्बन्धित । सेबाइन ने इस विभाजन को बहुत ही बचकाना कार्य कहा है, व्यवहार में ऐसा विभाजन सम्भव नहीं । 

कोई भी कार्य ऐसा नहीं होता जिसका प्रभाव अपने तक सीमित रहता है। जुए अथवा शराब का प्रयोग यदि घर के अन्दर भी किया जाये, किन्तु फिर भी उसका प्रभाव व्यक्तिऔर परिवार के व्यापक हितों पर पड़ता है। जुए ने ही तो महाभारत को जन्म दिया। ऐसी स्थिति में समाज कैसे शान्त रह सकता है।

(4) मिल की स्वतन्त्रता सम्बन्धी धारणा गलत है- मिल यह नहीं बतलाता कि मूल रूप में स्वतन्त्रता का विचार क्या है और इसके लिए राज्य की ओर से कौन-कौन सी परिस्थितियाँ उपलब्ध होनी चाहिए। मिल ने स्वतन्त्रता की प्रस्तुति जिस रूप में की है उसका स्वरूप सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। 

आलोचकों का कहना है कि मिल के पास स्वतन्त्रता का विचार तो है किन्तु स्वतन्त्रता का कोई ठोस दर्शन नहीं है। मिल का यह कहना गलत है कि प्रतिबन्धविहीन स्थिति ही वास्तविक स्वतन्त्रता है।

(5) सनकी व्यक्तियों को भी स्वतन्त्रता देने से मानव सभ्यता समाप्त हो जायेगी - मिल यह भूल जाता है कि सनकियों और झक्कियों का मस्तिष्क विकृत होता है। उनका सनकीपन चारित्रिक निर्बलता का परिणाम है जिसकी उपेक्षा करना ही उपयोगी है।

Related Posts