हॉब्स के अनुसार मानव स्वभाव

थामस हॉब्स राज्य का अध्ययन मानव-स्वभाव के विश्लेषण में करता है। अरस्तू के विपरीत हॉब्स मानता है कि, “मनुष्य असामाजिक प्राणी है। मानव को वस्तुएँ या तो आकर्षित करती हैं या विकर्षित। आकर्षण को अच्छा और विकर्षण को घृणा कहा जाता है।

हॉब्स के अनुसार मनुष्य की प्रत्येक इच्छा में उसका स्वार्थ निहित है। यद्यपि हॉब्स मानव-स्वभाव में दैवीय लक्षणों की भी बात कहता है, परन्तु प्रधानता उसमें आसुरी लक्षणों की ही है। यदि उसमें दैवीय लक्षण हैं तो केवल इसलिए कि उनसे स्वार्थ सिद्धि में सहायता मिलती है। 

इस प्रकार मनुष्य स्वार्थ सिद्धि में ही लगा रहता है, इसी के लिए वह शक्ति का संचय करता है और निरन्तर संघर्ष करता रहता है। हॉब्स के ही शब्दों में, " हम मानव स्वभाव में संघर्ष के तीन प्रमुख कारण देखते हैं- पहला प्रतिस्पर्द्धा, दूसरा पारस्परिक अविश्वास और तीसरा वैभव । 

प्रतिस्पर्द्धा के कारण वे लाभ के लिए, विश्वास के अभाव के कारण रक्षा के लिए और वैभव प्राप्ति के कारण प्रसिद्धि के लिए परस्पर संघर्ष करते हैं।

हॉब्स के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों की विशेषताएँ 

थॉमस हॉब्स के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों की विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

( 1 ) निजी स्वार्थ - मनुष्य सदैव ही अपने सुख की खोज में रहता है। उसकी इच्छाएँ बढ़ती रहती हैं। एक इच्छा की पूर्ति के पश्चात् दूसरी इच्छा सामने आ जाती है। ये इच्छाएँ उसके जीवन के अन्तिम क्षण तक रहती हैं। विवेक भी त्रुटियों से मुक्त नहीं होता, किन्तु मनुष्य को असीम आन की उपलब्धि होती है। परिस्थितियों के कारण ही उसे अन्य व्यक्तियों के साथ रहना पड़ता है।

(2) अनन्त इच्छाएँ - मनुष्य सदैव ही अपनी शक्ति और यश को बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहता है। इससे संघर्ष उत्पन्न होते हैं। शक्ति संग्रह से उसकी वासना की प्ति नहीं होती। हॉब्स इसका कारण यह बतलाता है कि प्रत्येक मनुष्य के अन्दर कभी : रुकने वाली शक्ति की लालसा होती है। मनुष्य के पास जितनी शक्ति होती है उसको वह आगे बढ़ाने की सोचता रहता है।

(3) सुरक्षा की भावना - मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि चाहता है। इसका कारण है सुरक्षा की भावना । सम्पत्ति तथा शक्तिके विस्तार की दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई आवश्यकता का कारण अस्तित्व की असुरक्षा की आशंका है। 

यदि मनुष्य को यह विश्वास हो जाये कि उसकी सम्पत्ति ज्यों की त्यों बनी रहेगी तो कभी भी उसकी धन संग्रह की प्रवृत्ति को बल नहीं मिलेगा। सुरक्षा की भावना से ही अनन्त इच्छाओं की उत्पत्ति होती है।

( 4 ) भय - हॉब्स मनुष्य को भयभीत रहने वाला प्राणी मानता है। भय, कमजोर और सम्पन्न दोनों को ही परेशान किये रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य की शारीरिक रचना चाहे जिस प्रकार की हो, किन्तु उसे भय अवश्य ही लगता है।

(5) युद्ध तथा संघर्ष - भय के ही कारण मनुष्य निरन्तर शक्ति संग्रह करने के लिए प्रयत्नशील रहता है । निरन्तर शक्ति की कामना प्रतियोगिता को जन्म देती है और प्रतियोगिता की संघर्ष को जन्म देती है। इसलिए हॉब्स व्यक्ति को युद्धप्रिय बतलाता है । 

(6) अहम् की प्रवृत्ति - मनुष्य अपने विवेक के कारण अपने को अन्य व्यक्तियों 'तुलना में अधिक विवेकयुक्त तथा बुद्धिमान समझता है। मनुष्य का स्वभाव ही इस प्रकार का है कि वह इस बात को स्वीकार करने को राजी नहीं होता है कि बहुत से व्यक्ति उससे भी अधिक बुद्धिमान और चतुर होते हैं । 

मनुष्य के अहम् की तुलना उसने शहद की मक्खियों से की है। हॉब्स यह बतलाता है कि मनुष्य इससे भी गया- बीता है क्योंकि मधुमक्खियों में संग्रह करने की आदत तो होती है, किन्तु उनमें शत्रुता और अस्वस्थ प्रतियोगिता नहीं होती। 

मनुष्यों में युद्ध और संघर्ष का मूल कारण यह है कि प्रत्येक मनुष्य यह समझता है कि उसकी तुलना में अन्य सब निम्नतर हैं ।

यद्यपि हॉब्स के विचारों से मानव स्वभाव के बारे में यही निष्कर्ष निकलता है कि मानव में आसुरी लक्षणों की भरमार है, फिर भी हॉब्स ने मानव-स्वभाव में दैवीय लक्षणों वाले दूसरे पहलू को भी उजागर किया है। 

हॉब्स के शब्दों में, “मनुष्य में कुछ ऐसी इच्छाएँ भी होती हैं जो उसे युद्ध के लिए नहीं अपितु शान्ति एवं मैत्री के लिए प्रेरित करती हैं। आराम की इच्छा, ऐन्द्रिक सुख की कामना, मृत्यु का भय, परिश्रम से अर्जित वस्तुओं के भो.. की लालसा मनुष्य को एक शक्ति की आज्ञा मानने के लिए बाध्य कर देती है। "

फिर भी यह सच है कि हॉब्स मानव-स्वभाव में आसुरी लक्षणों की ही प्रधानता • मानता है। जोन्स ने लिखा है कि, "हॉब्स जो बातें कहता है उनमें नहीं, परन्तु जो बातें अस्वीकार करता है उनमें गलत है। 

मानव-दोषों की अतिरंजना करके और उन पर अत्यधिक बल देकर उसने मानव-स्वभाव का मानव द्वेषी चित्र प्रेषित किया है।” हॉब्स के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों की आलोचना

उपरोक्त विशेषताओं के होते हुए भी हॉब्स के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों में अनेक कमियाँ भी विद्यमान हैं जिन्हें संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) त्रुटिपूर्ण मनोविज्ञान - हॉब्स के राजनीतिक दर्शन का मनोवैज्ञानिक आधार त्रुटिपूर्ण है। हॉब्स ने मानव प्रकृति के अधूरे तत्वों को अपने राजनैतिक दर्शन का आधार बनाया। 

हॉब्स यह भूल जाता है कि यदि मनुष्य में स्वार्थ और अहम् है तो उसके साथ-साथ उसमें प्रेम और सहयोग भी है। विकास, संघर्ष के लिए नहीं है, किन्तु सहयोग की कहानी है ।

( 2 ) भय की गलत धारणा - हॉब्स ने भय का आवश्यकता से अधिक गुणगान किया है और मनुष्य को प्रत्येक परिस्थिति में भयभीत रहने वाला प्राणी बतलाया है हॉब्स तो यहाँ तक भी कहता है कि व्यक्ति प्रत्येक कार्य का सम्पादन भय के ही कारण करता है, उसकी यह धारणा असत्य है। 

पाकिस्तान के भूकम्प पीड़ितों को उसके साथ अच्छे सम्बन्ध नहीं होने पर भी भारत ने जो आर्थिक सहायता दी थी तो क्या उसका आधार भय था। इस प्रकार हॉब्स ने मानव प्रवृत्ति का बहुत ही घटिया किस्म का चित्रण किया है।

(3) विरोधाभास पूर्ण-मानव स्वभाव का जो चित्र हॉब्स ने प्रस्तुत किया है वह विरोधाभास युक्त है। एक ओर वह व्यक्ति को दुष्ट और स्वार्थी कहता है और दूसरी ओर ऐसे व्यक्तियों को शक्ति को अपने तक ही सीमित रखने की प्रेरणा देता है। यदि व्यक्ति स्वार्थी है तो उसका कल्याण अपनी शक्तियों को सीमित रखने की अपेक्षा विस्तृत बनाने में होगा।

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