दबाव समूह से आप क्या समझते है

लोकतन्त्रीय देशों में राजनीतिक दलों के विकास के साथ-साथ-दबाव अथवा हित-समूहों का विकास होता है। ये चुनाव नहीं लड़ते और राज्य की शक्ति पर अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं। वे तो विभिन्न प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तरीकों से सरकार की नीति को इस प्रकार प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं कि उनके अपने हितों की रक्षा हो सके। 

दबाव समूह से आप क्या समझते है

ये हित आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, नैतिक अथवा अन्य किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। इस प्रकार कोई भी समूह जो शासन पर अधिकार जमाने का प्रयत्न किये बिना विधायकों और प्रशासकों की नीति तथा कार्यों को प्रभावित करता है है वह दबाव समूह कहलाता है। 

दबाव समूह की प्रमुख परिभाषाएँ 

1. मायनर वीनर - हित या दबाव गुटों से हमारा तात्पर्य शासन के ढाँचे के बाहर स्वैच्छिक रूप से संगठित ऐसे गुटों से होता है, जो प्रशासनिक अधिकारियों की नामजदगी और नियुक्ति, विधि निर्माण तथा सार्वजनिक नीति के क्रियान्वयन को प्रभावित करने में प्रयत्नशील रहते हैं। 

2. ऑडीगार्ड – दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है जिनके एक या अनेक सामान्य उद्देश्य एवं स्वार्थ हों और जो घटनाओं के क्रम को, विशेष रूप से सार्वजनिक नीति के निर्माण और शासन को, इसलिए प्रभावित करने का प्रयत्न करें कि उनके अपने हितों की रक्षा एवं वृद्धि हो ।

3. मैकाइवर - दबाव समूह ऐसे संगठित या असंगठित व्यक्तियों का जोड़ है, जो दबाव के दाव-पेंचों का प्रयोग करता है ।”

4. हेनरी ए. टर्नर - “दबाव समूह गैर-राजनीतिक संगठन है, जो सार्वजनिक नीति के चरण को प्रभावित करने का प्रयत्न करता है। "

5. प्रो. मदन गोपाल ने लिखा है दबाव समूह वास्तव में एक ऐसा माध्यम है जिनके द्वारा समान हित वाले व्यक्ति सार्वजनिक मामलों को प्रभावित करने का प्रयत्न करते हैं। 

इस अर्थ में ऐसा कोई समूह जो प्रशासकीय और विधायी दोनों ही प्रकार से राजनीतिक अधिकारियों को सरकार पर नियन्त्रण प्राप्त करे हेतु कोई प्रयत्न किये बिना ही प्रभावित करना चाहता है, वह दबाव समूह कहलायेगा ।

6. अर्ल लाथम के मतानुसार - राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय हित समूह जब सार्वजनिक नीतियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों को अपने हितों की पूर्ति के लिए प्रभावित करते हैं तो वे दबाव समूह कहलाते हैं तथा उनकी गतिविधियों का राजनीतिक महत्व होता है। "

दबाव समूहों के प्रकार

दबाव समूह किसी भी राज्य में, विभिन्न हितों के आधार पर संगठित वे समूह हैं, जिनका उद्देश्य शासन पर दबाव डाल कर अपने हितों का सम्पादन करना है। भारत में भी अनेक दबाव समूह हैं । यह दबाव समूह दबाव की विभिन्न तकनीकों द्वारा शासन को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। 

कुछ दबाव समूह अत्यन्त सशक्त,साधन-सम्पन्न और प्रभावशाली हैं। शासन के लिये इनकी उपेक्षा करना सरल नहीं होता। भारत में दबाव समूहों का वर्गीकरण कई आधार पर किया जा सकता है। 

संगठन की शैली के आधार पर, कार्य पद्धति अथवा तकनीकी के आधार पर, हितों के स्वरूप पर उनकी शक्ति और प्रभावशीलता के आधार पर, परन्तु जटिलता से बचने के लिये भारत में दबाव समूहों का वर्णन हितों के स्वरूप के आधार पर करना ही उपयुक्त रहेगा। 

हित समूहों के आधार पर भारत में मुख्य रूप से निम्नलिखित दबाव समूह हैं1. राजनीतिक दबाव समूह– सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दल दबाव समूह में आता है। व्यक्ति प्रायः सत्ता के लिए, आर्थिक लाभ के लिए राजनीतिक दलों का गठन करते हैं। भारत में राजनीतिक दल का सशक्त राजनीतिक दबाव समूह हो गये हैं ।

हमारे देश में धार्मिक, साम्प्रदायिक, प्रान्तीय आदि आधार पर राजनीतिक दलों का गठन किया जाता है। हमारे देश में मुख्य रूप से जनता पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और लोकदल आदि राजनीतिक दल हैं। कांग्रेस के बाद भारतीय जनता पार्टी ही महत्वपूर्ण राजनीतिक दल है। 

दोनों दल के अन्दर कई गुटवाद पैदा हो गये हैं। पार्टियों के अन्दर कई गुट समूह या दबाव समूह बन गये हैं। पार्टियाँ स्वयं भी दबाव समूह और इनके अन्दर भी दबाव समूह हैं।

एक बात यह भी है कि आधुनिक राजनीति के कुछ विद्वान राजनीतिक दलों को दबाव समूह नहीं मानते हैं उनका कथन है कि दबाव समूह स्वयं सत्ता अपने हाथ में नहीं लेते हैं। 

वे सरकार पर दबाव डालने का प्रयास करते रहते हैं। प्रकाश शास्त्री के शब्दों में - राजनीतिक दल और दबाव समूह के मध्य एक कठोर विभाजित रेखा खींचना सरल नहीं है। बहुदलीय पद्धति वाले देशों में यह और अधिक कठिन होता है।

2. वित्तीय दबाव समूह – मनुष्य का सबसे प्रमुख हित आर्थिक है। आर्थिक हितों की रक्षा के लिए ये कई प्रकार के दबाव समूह बनाते हैं। वित्तीय हितों की रक्षा के लिये श्रमिक एवं व्यावसायिक संगठन बनाते हैं। 

भारत में अनेक प्रकार के व्यावसायिक संगठन होते हैं। इन आर्थिक संस्थाओं का उद्देश्य अपने सदस्यों के धन सम्बन्धी हितों के लिये सरकार पर दबाव डालना है। पूँजीपतियों का वर्ग हमेशा शासन तन्त्र को प्रभावित करता है। 

बड़े उद्योगपतियों और पूँजीपतियों का हित और श्रमिक संगठनों के हित समूह भारत में क्रियाशील हैं। बड़े-बड़े मंत्री, संसद सदस्य, ऑफीसर, सम्पादक आदि इनके इशारे पर व्यवहार करते हैं। यद्यपि श्रमिक संगठनों की शक्ति बहुत अधिक होती है इसलिए ये भी सरकार पर दबाव रखते हैं। इनका मुख्य हथियार हड़ताल, घेराव, अनशन आदि हैं।

3. साम्प्रदायिक दबाव समूह – हमारे देश में कई धर्म, जाति, भाषा, प्रान्त इनको मानने वाले लोग हैं। हमारे समाज में कई प्रकार की उपासनायें होती हैं। हमारे देश का बहुसंख्यक वर्ग अशिक्षित और रूढ़िवादी है। साम्प्रदायिक भावनाएँ अत्यन्त प्रबल हैं। 

प्रत्येक सम्प्रदाय के हित होते हैं। वे इन हितों को पूरा करने के लिए संस्थाओं का गठन करते हैं, जैसे आर्य प्रतिनिधि सभा, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्ध समिति, यूनाइटेड चर्च, उत्तरी इण्डिया आदि साम्प्रदायिक संस्थाएँ हैं। 

ये शासन पर प्रभाव डालती हैं। कुछ सम्प्रदायों ने अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए राजनीतिक दलों का गठन किया है। ये राजनीतिक दल सम्प्रदायों के आधार पर गुटों का निर्माण करके सरकार पर दबाव डालते हैं।

4. प्रान्तीय दबाव समूह–प्रान्तीयता के आधार पर भारत में दबाव समूहों का संगठन किया गया है। दबाव समूह राजकीय, केन्द्रीय स्तर तक अपना प्रभाव रखते हैं। दबाव समूह प्रशासकीय स्तर पर भी कार्य करते हैं। 

किसी प्रान्त में खुलने वाला उद्योग दबाव समूह के कारण अन्य प्रान्त में खुल जाता है। प्रान्तीय दबाव भारतीय राजनीति को प्रभावित करते हैं।

5. भाषा पर आधारित दबाव समूह - भारत में भाषाई दबाव समूह बहुत शक्तिशाली है। हम अपनी मातृभाषा से प्रेम और अन्य भाषा से बहुत ही नफरत करते हैं। भाषा के आधार पर दंगे होते हैं और बड़े आकार के राजनीति समूह बन जाते हैं। 

उदाहरण के लिये; यदि किसी राज्य में भाषा के आधार पर कोई निर्माण कार्य करने से इन्कार कर दिया जाये तो स्थिति से शासन को समझौता करना पड़ता है। केन्द्र में तो कई भाषाओं का दबाव समूह है।

6. जातिगत हित समूह - भारतीय संस्कृति की एक विशेषता जातिवाद है। हमारा समाज जातिवाद से भयंकर रूप से ग्रसित है। हमारे देश में इनकी जड़ें बहुत गहरी होती हैं। जातिगत लाभ पाने के लिये शासन में विभिन्न स्तरों पर दबाव समूह का जाल फैल गया है। 

मंत्रियों से लेकर अधिकारियों और छोटे कर्मचारियों की नियुक्ति जाति के आधार पर होती है। सरकार के निर्णयों को ये कई प्रकार से प्रभावित करते हैं। 

जातिवाद दबाव समूह की एक विशेषता यह है कि अनेक बार राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वाकांक्षी लोग जातिगत धारणाओं को उकसाकर दबाव समूह की आसानी से रचना करते हैं । जातिगत धारणायें पूरे समाज पर छा गई। जाति हित की आड़ में व्यक्तिगत हितों की रक्षा के लिये दल संगठित होते हैं।

7. नैतिक दबाव समूह - भारतीय समाज में ऊपरी स्तर पर नैतिकता का ही प्रभाव दिखता है। नैतिकता को राजनीतिक और सामाजिक जीवन का एक अंग माना जाता है। गाँधीजी ने नैतिकता को राजनीतिक में पुनः स्थापित किया। 

गाँधीजी का कहना था कि नैतिकता वगैर राजनीति पाप है। भारतीय सामान्य जीवन आज भी नैतिकता की दुहाई देता है। भारत में शराब बन्दी और गौ हत्या की रोक के लिए नैतिक दबाव समूह बने हैं।

8. परदेशी दबाव समूह–भारत एक महान देश है, यह तीसरे विश्व का सबसे महत्वपूर्ण देश है, अतः हमारे देश में दूसरे देशों के दबाव समूह का होना स्वाभाविक है। भारत में अमेरिका और अरब देशों का दबाव समूह है। भारत में अनेक प्रकार के हित समूह और दबाव समूह हैं। ये सरकार की नीतियों को बनाने में और लागू करने में महत्वपूर्ण दबाव डालते हैं ।

दबाव समूहों का महत्व 


दबाव समूहों के कतिपय दोषों के बावजूद भी उनके महत्व व उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता है। वर्तमान प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में दबाव समूह न केवल वांछनीय है वरन् आवश्यक भी हैं। इतना ही नहीं, साम्यवादी व अधिनायकवादी शासन में भी दबाव समूह सक्रिय रहते हैं। 

प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में तो दबाव समूह 'शासन के निर्माता हैं। ब्रूश एच. मिलन के शब्दों में दबाव समूह अपने सदस्यों की विशुद्ध माँगों को आत्मलीन करते हैं। 

बहुमत के हितों को दृष्टि में रखते हुए उन्हें परिष्कृत करते हैं और अन्तिम रूप से उन्हें समाज में रखने योग्य आकार प्रदान करते हैं।” दबाव समूहों की महत्ता निम्न कारणों से है जो कि उसके कार्य भी हैं

1. दबाव समूह उपयोगी सूचना व आँकड़े एकत्रित करते हैं और प्रचार कार्य भी करते हैं।

2. दबाव समूहों के कारण ही समाज के विभिन्न हितों और वर्गों के बीच संतुलन स्थापित होता है।

3. दबाव समूह स्वस्थ जनमत निर्माण करके लोकतन्त्र में सहयोग करते हैं। 

4. दबाव समूह जनता व प्रशासन के बीच संचार के प्रमुख साधन हैं।

5. दबाव समूह विधि निर्माण में विधायकों की सहायता करते हैं। अतः दबाव गुट विधानमण्डल के पीछे विधान मण्डल कहे जा सकते हैं।

6. दबाव समूह अपने साधनों द्वारा सरकारी निरंकुशता कम करते हैं।

7. वी. ओ. की. के शब्दों में इस प्रकार के संगठित समूह दलीय पद्धति में प्रतिनिधित्व के कार्य को सम्पन्न करते हैं और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की कमी को दूर कर देते हैं।

उपर्युक्त से स्पष्ट है कि प्रजातन्त्र में दबाव समूह आवश्यक एवं उपयोगी है। दबाव समूह जनतन्त्रीय व्यवस्था का ही दूसरा नाम है। अतः इन्हें समाप्त करने के स्थान पर इन्हें सही दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।

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