ग्रामीण और नगरीय समाज में अन्तर - gramin aur nagari samaj mein antar

ग्रामीण एवं नगरीय समाज में अन्तर करना एक कठिन कार्य है। 'गाँव' और 'नगर' के समाज की तुलना करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि ऐसी कोई सार्वभौम परिभाषा नहीं है। जिससे गाँव और नगर में स्पष्ट अन्तर किया जा सके। हर एक गाँव में नगर के कुछ तत्व और शहर में गाँव के कुछ तत्व पाये जाते हैं। 

मैकाइवर और पेज ठीक ही लिखा है कि “परन्तु दोनों के बीच बतलाने के लिए कोई स्पष्ट विभाजन नहीं है कि कहाँ नगर समाप्त होता है और कहाँ गाँव प्रारम्भ होता है। परन्तु इन कठिनाइयों के होते हुए भी गाँव और नगर के समाज में अग्रलिखित भेद किये जा सकते हैं-

 परिभाषा के आधार पर अन्तर 

1. ग्रामीण समुदाय - मैरिल के अनुसार - ग्रामीण समुदायों के अन्तर्गत ऐसी संस्थाओं और परिवारों का संकलन होता है जो एक सामान्य केन्द्र के चारों ओर संगठित होते हैं तथा कुछ सामान्य हितों और कार्यों में भाग लेते हैं।

2. नगरीय समुदाय - किंग्सले डेविस के अनुसार - नगर एक ऐसा समुदाय है जो सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विभिन्नताओं से मुक्त होता है तथा कृत्रिमता, व्यक्तिवादिता, प्रतिस्पर्द्धा तथा घनी आबादी के कारण नियन्त्रण के औपचारिक साधनों के द्वारा संगठित रहता है। 

सामाजिक संगठन के आधार पर अन्तर 

ग्रामीण एवं नगरीय समाज की सामाजिक संरचना एवं संगठन में प्रमुख अन्तर निम्नवत् हैं

1. परिवार की संरचना एवं महत्व में अन्तर - परिवार सामाजिक संगठन की एक महत्वपूर्ण इकाई है। ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित होने के कारण वहाँ संयुक्त परिवार की बहुलता पायी जाती है। परिवार का मुखिया ही सर्वोपरि है। 

ग्रामीण समाज में परिवार ही व्यक्ति के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्रियाओं का निर्धारण एवं उन पर नियन्त्रण करता है, जबकि नगरीय समाज में औद्योगिक अर्थव्यवस्था एवं पश्चिमी सभ्यता तथा संस्कृति के परिणामस्वरूप व्यक्तिवादिता की प्रवृत्ति बढ़ी है। 

जिनका कि परिणाम एकाकी परिवारों की बहुलता है। नगरीय समाज में व्यक्ति परिवार से उतना प्रभावित नहीं होता जितना परिवार व्यक्ति से प्रभावित होता है । अतः नगरीय समाजों में परिवार का महत्व अपेक्षाकृत कम होता है।

2. विवाह सम्बन्धी अन्तर - ग्रामीण परिवारों में विवाह एक धार्मिक संस्कार एवं पवित्र तथा अटूट बन्धन है, जबकि नगरीय समाज में विवाह एक धार्मिक तथा अटूट बन्धन न होकर एक सामाजिक समझौता होता है जिसे विवाह-विच्छेद द्वारा कभी भी तोड़ा जा सकता है।

3.स्त्रियों की स्थिति में अन्तर - ग्रामीण एवं नगरीय समाजों की स्त्रियों की स्थिति में पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है ग्रामीण समाज की स्त्रियों पर अनेकानेक प्रतिबन्ध लगे होते हैं। प्रायः उन्हें न तो पारिवारिक निर्णयों में अपनी सहमति या असहमति बनाने का अधिकार होता है और न ही उनके अपने निजी मामले में उनकी सहमति होना आवश्यक माना जाता है।  

यहाँ तक कि लड़की की शादी सम्बन्धी फैसले भी परिवार के अन्य सदस्य करते हैं। स्त्रियों की शिक्षा सम्बन्धी प्रतिबन्ध, पर्दा - प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों ने और भी ग्रामीण स्त्रियों की स्थिति को शोचनीय बना दिया है। 

वहीं इसके विपरीत नगरीय समाज में स्त्रियाँ प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के न सिर्फ बराबर आयी हैं बल्कि कुछ क्षेत्रों में तो पुरुषों से आगे निकल रही हैं या यों कहें नगरीय समाज में स्त्रियाँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रही हैं, परिणामस्वरूप उनकी स्थिति में सुधार हुआ है। 

4. सामाजिक स्तरीकरण में अन्तर - ग्रामीण समाजों में सामाजिक स्तरीकरण का प्रमुख आधार जाति संरचना होती है जिसके कि कारण व्यक्ति की सामाजिक परिस्थिति का निर्धारण उसके परिवार एवं जाति के आधार पर होता है। 

जाति पर आधारित होने के कारण ग्रामीण समाजों में बन्द स्तरीकरण की व्यवस्था पायी जाती है जबकि इसके विपरीत नगरीय समाजों में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसकी अर्जित स्थिति के कारण होती है। जिसे कि वह आर्थिक क्रियाओं के माध्यम से प्राप्त करता है जिसके परिणामस्वरूप नगरीय समाजों में मुक्त स्तरीकरण की अवस्था पायी जाती है।

 सामाजिक नियन्त्रण में अन्तर

सामाजिक नियन्त्रण के आधार पर ग्रामीण एवं नगरीय समाजों में मुख्य रूप से अन्तर पाया जाता है। ग्रामीण सामाजिक नियन्त्रण को स्पष्ट करते हुए बीसन्ज एवं बीसन्ज ने लिखा है कि “ग्रामीण समुदाय में प्रथा राजा है, रीति-रिवाज और रूढ़ियाँ अधिकतर व्यवहार को नियन्त्रित करती हैं। 

दूसरी ओर नगरीय लोगों पर समाज का बहुत कम नियन्त्रण होता है। किंग्सले डेविस के शब्दों में वह (नगरवासी) जब भी चाहे अपरिचितों के सागर में विलीन होकर किसी प्राथमिक समूह के कठोर नियन्त्रण से बच सकता है। परन्तु नगरों में नियन्त्रण के औपचारिक साधन कानून , पुलिस आदि का नियन्त्रण रहता है।

 सामाजिक सम्बन्धों में अन्तर 

ग्रामीण सामाजिक सम्बन्धों की प्रकृति अनौपचारिक वैयक्तिक होती है। गाँव में व्यक्ति का सम्बन्ध प्रायः प्राथमिक समूहों, परिवार, पड़ोस, नातेदारी आदि से होता है जबकि नगरों में व्यक्तियों का सम्बन्ध वैयक्तिक समूहों से होता है। गिस्ट एवं हेलबर्ट के शब्दों में नगर वैयक्तिक सम्बन्धों की अपेक्षा निर्वैयक्ति सम्बन्धों को अधिक प्रोत्साहन देता है।

 सामाजिक अन्तःक्रियाओं में अन्तर 

ग्रामीण सामाजिक सम्बन्ध मुख्यतः वैयक्तिक एवं प्रत्यक्ष होते हैं जोकि सीमित प्रकृति के होते हैं जबकि नगरीय सामाजिक सम्बन्ध प्रायः अवैयक्तिक एवं अप्रत्यक्ष होने के कारण असीमित प्रकृति के होते हैं। नगर श्रम-विभाजन एवं विशेषीकरण के प्रमुख केन्द्र हैं। 

जबकि ग्रामीण समाजों में व्यक्ति प्रत्येक कार्य को थोड़ा- बहुत जानता है। साथ ही गाँव में नगरों की अपेक्षा प्रतिस्पर्द्धा भी कम पायी जाती है। गाँव में संघर्ष की प्रकृति प्रायः प्रत्यक्ष जबकि नगरों में संघर्ष की प्रकृति प्रायः अप्रत्यक्ष पायी जाती हैं। 

सांस्कृतिक भिन्नता कम होने के कारण गाँव में सात्मीकरण की क्रिया बहुत मन्द होती है। सांस्कृतिक भिन्नता कम होने के कारण गाँव में सात्मीकरण की क्रिया बहुत मन्द होती है। नगरों में विभिन्न संस्कृतियों के लोग पाये जाते हैं। अतः वहाँ सात्मीकरण की प्रक्रिया भी तेज होती है।

  आर्थिक जीवन में अन्तर 

ग्रामीण एवं नगरीय समाजों में आर्थिक जीवन में उल्लेखनीय अन्तर पाया जाता है। इस सम्बन्ध में सिम्स ने लिखा है कि जीविकोपार्जन की दो मौलिक रूप से भिन्न रीतियों ने ग्रामीण और नगरीय संसार को अलग कर दिया है।

ग्रामीण समाज की आर्थिक क्रियाएँ मुख्यतः कृषि या कृषि सम्बन्धी कार्यों पर आधारित हैं जबकि नगरीय समाज मुख्यतः उद्योग सम्बन्धी व्यवसायों पर आधारित है। रॉस के शब्दों में ग्रामीण जीवन सुझाव देता है बचाओ। नागरिक जीवन सुझाता है 'खर्च करो।

 सामाजिक गतिशीलता एवं स्थायित्व में अन्तर  

ग्रामीण एवं नगरीय समाज में सामाजिक स्थायित्व एवं गतिशीलता सम्बन्धी अन्तर को स्पष्ट करते हुए सोरोकिन एवं जिम्मरमैन ने लिखा है कि “ग्रामीण समुदाय एक घड़े में शान्त जल के समान है और शहरी समुदाय केतली में उबलते हुए पानी के समान स्थायित्व एक का विशेष लक्षण है, गतिशीलता दूसरे का गुण है।

 सामाजिक दृष्टिकोण में अन्तर 

न्यूमेयर के अनुसार ग्रामीण संस्कृति रूढ़िवादिता की ओर झुकी रहती है। नगरीय के सम्बन्ध में रॉस कहते हैं।  नगर जगन्मित्र होता है जबकि गाँव राष्ट्रवादी और स्वदेशाभिमानी होता है।”नगरों में गाँव की अपेक्षा राजनीति में अधिक दिलचस्पी होती है और अधिक सक्रियता से भाग लिया जाता है।

ग्रामीण जनता भाग्यवादिता पर अधिक विश्वास रखती है जबकि नगरीय जनता कर्मवादिता पर बोगार्ड्स के अनुसार - गाँव के लोग स्पष्ट बोलने वाले, निष्कपट और सत्यनिष्ठ होते हैं, वे नागरिक जीवन के बहुत से पक्षों की कृत्रिमता से घृणा करते हैं।

सांस्कृतिक जीवन में अन्तर 

ग्रामीण समाज में संस्कृति का प्रमुख आधार जाति और पवित्रता है जबकि नगरों में धर्म-निरपेक्षता संस्कृति का प्रमुख आधार है। ग्रामीण समाज में प्रथा एवं परम्पराओं का विशेष महत्व होता है जबकि नगरीय संस्कृति प्रथा एवं परम्पराओं को विशेष महत्व नहीं देती।

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