मद्यपान क्या है - madyapaan kya hai

मद्यपान का तात्पर्य मादक द्रव वस्तुओं के सेवन से है। भारत में लम्बे समय से मादक द्रव वस्तुओं, जैसे- भाँग, गाँजा, अफीम, कोकीन, शराब आदि का सेवन लोगों द्वारा विभिन्न कारणों से किया जाता रहा है। 

आज भी मद्यपान का प्रचलन विभिन्न उत्सवों में होता है। शादी-विवाह में तथा आनन्द प्राप्त करने के लिए भी लोग मद्यपान करते हैं। आधुनिक युग में मद्यपान उच्च लोगों की प्रतिष्ठा का द्योतक बन गया है। 

निम्न से निम्न लोग और उच्च से उच्च लोग आज सभी मद्यपान की समस्या से ग्रसित हैं और दिन-प्रतिदिन यह समस्या बढ़ती ही जा रही है। मद्यपान एक सामाजिक समस्या के रूप में जटिल समाज की देन है। 

आदिम जातियाँ अपने छोटे-छोटे समूह में अनेक सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर मद्यपान किया करती हैं। इसे असामाजिक नहीं माना जाता, परन्तु आज के जटिल समाज में इसने एक सामाजिक समस्या का रूप धारण कर लिया है। 

अत्यधिक मद्यपान के कारण व्यक्ति का अपने प्राथमिक समूह से सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और इस प्रकार उनका व्यवहार असामाजिक हो जाता है। मद्यपान पारिवारिक विघटन का एक प्रमुख कारण है।

सामाजिक विघटन और मद्यपान

सामाजिक विघटन के रूप में मद्यपान निम्नलिखित बातों को प्रकट करता है -

(1) व्यक्ति पर प्राथमिक समूह  के प्रभाव की कमी। 

(2) व्यक्ति पर द्वितीयक समूहों का अधिक प्रभाव । 

उस अवस्था में जबकि अन्य समूहों का प्रभाव व्यक्ति पर अधिक बढ़ता जाता है, पारिवारिक कार्यों से वह उदासीन हो जाता है। 

धार्मिक बन्धन उस पर कम हो जाते हैं तथा वह पड़ौस के सम्बन्धों से दूर हो जाता है। व्यक्ति मद्यपान अपनी भावनाओं की सन्तुष्टि के लिए भी करता है जो उसे अपने परिवार तथा अन्य प्राथमिक समूहों से उपलब्ध नहीं होती। जटिल समाज अनेक प्रकार के सामाजिक और मानसिक तनाव को उत्पन्न करते हैं।

परेशानियाँ, चिन्ता, दुःख व्यक्ति में रोषपूर्ण अवस्थाओं का सृजन करते हैं। ऐसी अवस्था में मद्यपान से व्यक्ति को राहत मिलती है। लेकिन मद्यपान द्वारा व्यक्ति को कृत्रिम उत्तेजना मिलती है। उसमें जो कुछ भी मानसिक परिवर्तन होता है। वह अस्थायी होता है। 

अतः व्यक्ति के स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है। उसे नशा होता है। नशे की हालत में व्यक्ति बौद्धिक विव्रेक खो बैठता है और बहुत से ऐसे काम कर बैठता है जो अनुचित होते हैं। इसी कारण प्रत्येक काल में शासन द्वारा नशीले पदार्थों के सेवन को नियन्त्रित करने का प्रयास किया गया है।

इस प्रकार मद्यपान या मादक द्रव वस्तुओं का सेवन यदि भारत का श्रमिक थकान मिटाने के लिए करता है। तो उच्च लोग आनन्द की प्राप्ति के लिए करते हैं। भारत में अनेक युवक और युवतियाँ, यौन आनन्द और उत्तेजना के लिए मद्यपान करते हैं।

मद्यपान के परिणाम

(1) वैयक्तिक विघटन - व्यक्तिगत कारणों से भी व्यक्ति कभी-कभी शराब पीना आरम्भ कर देता है। धीरे-धीरे शराब सेवन की उसकी आदत पड़ जाती है और शनैः शनैः वह आदी हो जाता है तथा उसकी वृद्धि कम हो जाती है। 

बुद्धि का विकास कम होता है। भले-बुरे का ज्ञान न रह जाने के कारण व्यक्ति न तो समाज का ध्यान रख पाता है और न अपने परिवार के बाल - बच्चों पर ध्यान दे पाता है। 

व्यक्तिगत परेशानियों से मुकाबला करने से कतराने लगता है। फलस्वरूप वैयक्तिक विघटन होता है। 

(2) पारिवारिक विघटन - व्यक्ति जब शराबी हो जाता है तब उसे केवल मद्य का प्याला ही याद रह जाता है। बाकी सारी जिम्मेदारियाँ प्रायः भूल ही जाता है। अपने नैतिक स्तर से गिर जाता है, तब पारिवारिक तनाव उत्पन्न होता है। 

शराब के प्यालों की धुन से अधिक तंगी के कारण यही तनाव इतना अधिक उग्र रूप धारण कर लेता है कि पति-पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद तक की नौबत आ जाती है। 

इस प्रकार तलाक देने या पति-पत्नी में से किसी एक की आत्महत्या से पारिवारिक विघटन हो जाता । इस प्रकार मद्यपान पारिवारिक विघटन में सहायक होता है।

(3) सामाजिक विघटन - मद्यपान जब व्यक्ति और परिवार को ही विघटित कर देता है, तब समाज उससे अछूता नहीं रह सकता। जिस समाज में विघटित सदस्यों की संख्या निरन्तर बढ़ती जायेगी उस समाज पर सामाजिक जीवन स्वतः असन्तुलित और विघटन की अवस्था में आ जायेगा । 

यही सामाजिक विघटन का कारण है। व्यक्ति का अपने निर्धारित पदों और कार्यों का निर्वाह उत्तरदायित्वपूर्ण रूप से न करना समाज का निर्माण व्यक्तियों द्वारा होता है। जब व्यक्ति और परिवार का विघटन होने लगेगा तो स्वाभाविक है कि उससे निर्मित हर समूह, समुदाय, संस्था विघटन की अवस्था में होंगे।

(4) नैतिकता का ह्रास - मद्यपान करने वालों से नैतिकता की बात कही ही नहीं जा सकती व्यक्ति को शराब बुद्धिहीन या बुद्धि को कमजोर बना देती है। व्यक्ति जब शराब के नशे में होता है तो उसमें यह सोचने की शक्ति नहीं रह जाती कि नैतिकता क्या है। 

सैलविन का कहना है कि ऐसे शराबी डकैती, बलात्कार आदि व्यवहार करते पकड़े गए हैं। शराबी का ही मात्र नैतिक पतन होता, वरन् उसके पूरे परिवार का नैतिक पतन होता है।

(5) आर्थिक पतन - शराबी अपनी शराब के लिये जमीन, मकान, अन्य जायदाद यहाँ तक कि अपने बीबी के गहने तक बेच देता है। शराबियों का आर्थिक जीवन अत्यन्त कष्टमय होता है। बुरी चीजों की लत निरन्तर आर्थिक पतन की ओर व्यक्ति को ले जाती है। 

व्यक्ति पैसे- पैसे के लिए मुँहताज हो दूसरे का मुँह देखने लगता है। इस प्रकार नशा व्यक्ति के आर्थिक जीवन को खोखला कर देता है। पूरा परिवार दर-दर की ठोकरें खाता है। आर्थिक पतन के गड्ढे में पड़कर व्यक्ति यों ही दम तोड़ देता है। 

(6) अपराधों में वृद्धि - मद्यपान के बाद व्यक्ति की मानसिक दशा ठीक नहीं रहती। उसका मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। घातक आक्रमण ही शराबी का अपराध है। अत्यधिक मद्यपान से व्यक्ति का मानसिक सन्तुलन इतना बिगड़ जाता है कि उसे अच्छे-बुरे का ध्यान नहीं रहता। सन्तुलन खो जाने पर व्यक्ति अपराध करता है।

(7) स्वास्थ्य हानि - शराब का सबसे बुरा प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। विशेषकर उस अवस्था में जब उसका सेवन अधिक मात्रा में किया जाय। अधिक मद्यपान से असाध्य रोग, लीवर की खराबी, क्षय रोग भी हो सकते हैं। शराब व्यक्ति को इतना कमजोर बना देती है कि वह बीमारियों से अपनी रक्षा नहीं कर पाता। 

अधिक मद्यपान से केवल शारीरिक रोग ही नहीं मानसिक रोग भी होते हैं। शराबी का मस्तिष्क इतना असन्तुलित हो जाता है कि उसमें निर्णय लेने, आत्मसंयम करने तथा मस्तिष्क को किसी भी काम करने की शक्ति नहीं रह पाती है।

(8) कार्य-कुशलता का हास - मद्यपान से व्यक्ति का स्वास्थ्य निरन्तर गिरता जाता है। मिलों तथा कारखानों के श्रमिक अपनी थकान दूर करने के लिए शराब का सेवन करते हैं।  

परन्तु इससे उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता जाता है। फलतः व्यक्ति काम करने से जी चुराता है। इस प्रकार सुचारू रूप से काम करने में वह अपने को असमर्थ पाता है। 

भारत में मद्यपान और उसकी रोकथाम

प्राचीन समय में ही भारत में मादक पदार्थों के सेवन को अनुचित माना जाता रहा है। जब भारत में औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया तीव्र हुई तो इसके साथ-साथ शराबवृत्ति भी बढ़ती गयी और इसने एक सामाजिक समस्या का रूप धारण कर लिया। 

हिप्पी संस्कृति के प्रभाव के कारण आज नगरों में अनेक युवक एवं युवतियाँ मादक पदार्थों का उपयोग करते हैं। 1972 में 6 करोड़ 19 लाख लीटर, 1977 में 6 करोड़ 80 लाख लीटर, 1981 में 8 करोड़ 90 लाख लीटर तथा 1985 में 11.29 करोड़ लीटर शराब बनायी गयी। 

ये आंकड़े वैध शराब के हैं, अवैध रूप में बनने वाली शराब का अनुमान लगाना कठिन है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में शराब का प्रयोग काफी होता है। अंग्रेजों ने आबकारी कर लगाकर मद्य को आय का एक साधन बनाया और आज तो यह राज्यों की आय के प्रमुख स्रोत से है। 

मद्यनिषेध के लिए समय-समय पर सामाजिक कार्यकर्ताओं की ओर से प्रयत्न किये जाते हैं। महात्मा गांधी ने अपने सत्याग्रह आन्दोलन में मद्य निषेध को प्रमुख स्थान दिया। 1920-21 तथा 1930 में गांधीजी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन में मद्य निषेध एक प्रमुख मुद्रा था। गांधीजी के नेतृत्व में महिलाओं ने शराब की दुकानों पर 'धरने' दिये । 

मद्यपान के निराकरण के उपाय 

विभिन्न प्रकार की मादक वस्तुएँ जो हानिकारक होती हैं। उनके बनाने, विक्रय करने तथा उपयोग करने में वैधानिक नियमों द्वारा रोक लगाना ही मद्यपान निषेध कहलाता है। समस्त प्रकार के नशीले मादक द्रव्यों को औषधि के अतिरिक्त उपयोग करना दण्डनीय होता है। 

भारतवर्ष में मद्य निषेध के सम्बन्ध में अंग्रेजी शासनकाल में भी अनेक प्रयास शासकों का मुख्य उद्देश्य था। कम मद्यपान से अधिक आय प्राप्त करना किन्तु यह नियम सफलता न प्राप्त कर सका और मदिरापान की प्रवृत्ति बढ़ती ही गयी है। 

जो मद्यपान नहीं करते उनके लिये पीने का प्रलोभन न दिया जाय और मद्यपान करते हैं उन्हें निरुत्साहित किया जाय तथा जो कम मात्रा में मद्यपान करते हैं उनके प्रति शासन मौन रहेगा। इस आबकारी नीति को कार्यान्वित करने के लिए मादक वस्तुओं पर अधिक कर लगाया जाय जिससे आय में वृद्धि होगी। 

भारतवर्ष के धार्मिक सम्प्रदायों का भी मद्य निषेध कार्यक्रम में विशिष्ट योगदान रहा है। रामकृष्ण मिशन, आर्य समाज, ब्रह्म समाज ने मद्य निषेध आन्दोलन में भाग लिया था। तत्कालीन समाज ने सरकार से मादक वस्तुएँ तथा शराब के विक्रय प्रतिबन्ध लगाने की बात की है। 

सन् 1930 में गाँधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें गाँधीजी का मद्य निषेध अधिनियम लागू किया गया। स्वतन्त्रता के पश्चात् मद्य निषेध के पक्ष में क्रांतिकारी आन्दोलन प्रारम्भ हुए, क्योंकि काँग्रेस के आदर्शों के अनुरूप सम्पूर्ण भारत में पूर्ण मद्य निषेध की नीति को कार्यान्वित करना चाहती थी। 

(1) मद्य निषेध को द्वितीय पंचवर्षीय योजना के विकास का एक प्रमुख अंग माना जाए।

(2) अप्रैल 1958 तक सम्पूर्ण राष्ट्र में मद्य निषेध की घोषणा कर दी जाय तथा इस कार्य हेतु प्रत्येक राज्य में एक केन्द्रीय समिति की स्थापना की जानी चाहिये।

(3) वर्ष 1955-56 के समाप्त होने के पूर्व ही केंन्द्रीय तथा राज्य सरकारों को यह घोषणा कर देनी चाहिए कि मद्य निषेध राष्ट्रीय नीति है।

(4) जिन राज्यों में मद्य निषेध का प्रारम्भ हुआ हो उन राज्यों में अप्रैल 1956 से समस्त सार्वजनिक स्थानों तथा मनोरंजन गृहों में सामाजिक और धार्मिक उत्सव तक में ही मदिरा का सेवन न करने दिया जाय।

(5) पूर्ण मद्य निषेध के लिए निम्न कार्यों को किया जाये ग्राम और नगरों में मदिरा की दुकान कम कर दी जाय।

(6) अप्रैल 1956 से समस्त नशीली मादक वस्तुओं से सम्बन्धित प्रचार-प्रसार, विज्ञापन और आकर्षण बन्द होना चाहिए।

(7) शासकीय सेवा के नियमों में यह निर्धारित कर दिया जाय कि शासकीय कर्मचारी मद्यपान नहीं कर सकते।

(8) पूर्ण मद्य निषेध नीति के अन्तर्गत स्वास्थ्य की दृष्टि से भी किसी को रुग्णीकृत पत्र न दिया जाय।

(9) मद्य निषेध को कार्यान्वित करने के लिए शिक्षणात्मक तथा वैज्ञानिक उपायों द्वारा जनता को जाग्रत करना चाहिए तथा राज्य के नशा निषेध बोर्ड की स्थापना की जानी चाहिए। 

(10) मादक वस्तुएँ शराब, अफीम, गाँजा, चरस आदि की दुकानों की संख्या को कम किया जाय।

(11) मद्यपान सम्बन्धी विज्ञापनों को बन्द करना।

(12) सार्वजनिक स्थानों, होटल, क्लब आदि में रोक लगाना।

(13) नई शराबों की दुकानें नहीं खोलना।

(14) शासकीय कर्मचारियों को सार्वजनिक संस्थाओं, स्थानों अथवा ड्यूटी समय में मद्यपान को अपराध मानना।

(15) वाहन चालकों तथा पायलेटों आदि के मद्यपान करने पर उनके लाइसेन्स रद्द करना। 

(16) विभिन्न क्षेत्रों में वेतन के दिन शराब की ब्रिकी बन्द करना।

(17) विद्यालय, धार्मिक स्थल, श्रमिक बस्ती तथा आबादी क्षेत्रों में शराब की दुकानें बन्द करना।

(18) उद्योगों, सिंचाई संस्थाओं से शराब की दुकानें दूर करना।

(19) नशे के विरुद्ध प्रचार करना।

(20) मद्य से सम्बन्धित अपराधियों को प्रभावशाली ढंग से पकड़ने हेतु पुलिस बल की व्यवस्था करना। 

(21) मद्यपान उत्पादन क्षमता बढ़ाने की अनुमति न देना।

(22) सार्वजनिक ख्याति प्राप्त नेता मद्यपान के विरुद्ध प्रचार कर अपने व्यक्तिगत आचरण से उदाहरण स्थापित करें।

इसका हल शासकीय और कानूनी प्रयत्नों से नहीं, बल्कि इसका समाधान परिवार, समुदाय, ऐच्छिक संगठनों, चिकित्सा विभाग तथा कल्याणकारी संगठनों के संयुक्त प्रयास से ही सम्भव है ।

मद्यपान के कारण

यहाँ प्रश्न उठता है कि शराब की अनेक बुराइयों के प्रति लोगों को सचेत किया जाता है फिर भी वे इसकी ओर इतना अधिक आकर्षित क्यों हैं ? वे कौन-से कारण हैं जो लोगों को शराब पीने को प्रेरित करते हैं ? हम यहाँ मद्यपान के विभिन्न कारणों का संक्षेप में उल्लेख करेंगे

(1) शराब एक दवा के रूप में - ग्रामीण लोग शराब का प्रयोग एक दवा के रूप में करते हैं। यह एक उत्तेजक और पौष्टिक पदार्थ माना जाता है। सर्दी के प्रभाव को खत्म करने, सर्प विष को दूर करने, प्रमेह, मलेरिया और अनेक अन्य बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

(2) अज्ञानता के कारण - कुछ लोगों में एक गलत धारणा फैली हुई है कि शराब शक्ति प्रदान करती है। अतः लोग काम पर जाने से पूर्व शराब पीते हैं।

(3) आर्थिक परिस्थितियाँ - धनवानों की तुलना में गरीब लोग शराब का अधिक सेवन करते हैं क्योंकि वे जिन परिस्थितियों में रहते और काम करते हैं। उसके दुःख को भुलाने के लिए वे साधारणतः शराब का सहारा लेते हैं। दिवाला निकल जाने एवं आर्थिक संकट के समय भी व्यक्ति शराब पीने लगता है।

(4) फैशन - शराब का प्रयोग दिनों-दिन एक फैशन बनता जा रहा है। कुछ लोग उत्सवों के अवसर पर या मेहमानों या मित्रों का साथ देने के लिए शराब का प्रयोग करते हैं। 

(5) वंशानुगत स्नायुविक कमजोरी  - कुछ व्यक्तियों में जन्म से ही स्नायुविक कमजोरियाँ होती हैं। वे अपने को समाज में रहने के अयोग्य समझते हैं। सामाजिक जीवन से छुटकारा पाने की मनोवृत्ति के कारण वे शराब का प्रयोग करने लगते हैं।

(6) मित्रता एवं आमोद-प्रमोद - डॉक्टर काल्विन का मत है कि शराब का प्रयोग मित्रता निभाने के लिए किया जाता है । जर्मन लोगों की मान्यता है कि मित्रता, मजाक और प्रमोद जिसे वे 'जरमटलिचकेट' कहते हैं, के लिए शराब पी जाती है। प्रफुल्लता और मौज-मस्ती के लिए भी शराब पी जाती है।

(7) आपत्ति के कारण - डॉक्टर बोंगर का मत है कि व्यक्ति आपत्तियों एवं चिन्ताओं से छुटकारा पाने के लिए शराब का प्रयोग करता है। इसलिए ही शराब को 'संकट का पेय' कहते हैं।

(8) सामाजिक अपर्याप्तता - मित्रों में संघर्ष, पति-पत्नी में तनाव, तलाक, मनमुटाव, प्रेम में असफलता, अधिक काम और वातावरण में अचानक परिवर्तन आदि के कारण व्यक्ति अपने आपको दुःखी एवं इन परिस्थितियों से मुकाबला करने में असमर्थता महसूस करता है। ऐसी स्थिति में वह शराब का प्रयोग प्रारम्भ कर देता है।

(9) व्यवसाय और व्यापार - व्यापारी अपना सौदा तय करने के दौरान भी शराब पीते हैं। व्यापार में सफल होने या लाभ कमाने की खुशी में भी शराब का प्रयोग किया जाता है। इलियट व मैरिल कहते हैं कि मुख्यतः औद्योगिक क्रान्ति के उपरान्त अनेक व्यक्तियों के लिए शराब 'संकट पेय' बन गयी है। 

काम के लम्बे घण्टे, अपर्याप्त भोजन, आर्थिक अस्थिरता, काम का भारी बोझ, आवास की बुरी स्थिति, अज्ञानता आदि के कारण बहुत से लोग इस संकट पेय के शिकार बनते हैं। 

(10) गन्दी बस्ती और मनोरंजन के अभाव के कारण - सेमुअल स्माइल्स एवं लैडी वैल ने इंग्लैण्ड में शराब और गन्दी बस्ती के सह-सम्बन्ध का अध्ययन किया। 

इन अध्ययनों में यह पाया गया है कि गन्दी बस्तियों और अनुचित निवास के कारण लोग अधिक शराब पीते थे जिससे कि वे अपने दुःखपूर्ण निवास को भुला सकें। मनोरंजन के अन्य सस्ते और उपयुक्त साधनों के अभाव में बोतल ही व्यक्ति को मनोरंजन प्रदान करती है।

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