मौखिक भाषा की प्रकृति' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
संस्कृत की 'भाष्' धातु का अर्थ होता है - बोलना अथवा कहना । भाष शब्द से ही भाषा शब्द का विकास हुआ है। भाषा का प्रयोग हम तभी करते हैं, जब हमें भावों एवं विचारों की अभिव्यंजना करनी होती।
भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चारित होती है। मुख विवर, मुख, नासिका, ओष्ठ्य आदि को वाग्भाग कहते हैं । सम्पूर्ण वाग्भाग का प्रयोग भाषा के उच्चारण में किया जाता है ।
संकेत एवं इशारों के माध्यम से भी मनुष्य यदाकदा अपने मनोभावों को व्यक्त करता है किन्तु भाषा वैज्ञानिकों ने इसे भाषा नहीं माना है।
वाग्भागों का प्रयोग करते हुए मुख से जो ध्वनि उत्पन्न होती है उसे ही भाषा का वास्तविक रूप माना गया है। डॉ. बाबूराम सक्सेना द्वारा भाषा को इस प्रकार परिभाषित किया गया है -
भाषा वह है जो बोली जाती है जो विशिष्ट समुदाय में बोली जाती है, जो मनुष्य और उसके समाज के भीतर की ऐसी कड़ी है जो निरन्तर आगे जुड़ती रहती है।