मुद्रा संकुचन क्या है?

मुद्रा संकुचन का अर्थ - मुद्रा संकुचन के अन्तर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें गिरती जाती हैं और मुद्रा का मूल्य निरन्तर बढ़ता जाता है । यद्यपि मुद्रा संकुचन का सम्बन्ध वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में गिरावट से है, फिर भी कीमतों की प्रत्येक गिरावट को मुद्रा संकुचन नहीं कहते हैं। 

जैसे, तेजी काल में व्यापार चक्र की घटना के अन्तर्गत समृद्धि काल के पश्चात् कीमतों में जो गिरावट आती है, उसे ही मुद्रा संकुचन नहीं कहते हैं बल्कि इसे विस्फीति कहते हैं। इसका कारण यह है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में कमी आने से अर्थव्यवस्था में न तो बेरोजगारी उत्पन्न होती हे और न ही उत्पादन एवं रोजगार में कमी आती है।  

अतः वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में केवल उसी गिरावट को मुद्रा संकुचन कहा जायेगा, जिससे अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी फैले तथा कुल उत्पादन में कमी हो । दूसरे शब्दों में— 'मुद्रा संकुचन वह स्थिति है जिसके अन्तर्गत वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आने से बेरोजगारी उत्पन्न होती है तथा अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों की आय में कमी आती है।

मुद्रा संकुचन की परिभाषाएँ - मुद्रा संकुचन की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित हैं- 

1. क्राउथर के अनुसार - मुद्रा संकुचन वह स्थिति होती है जिसमें मुद्रा का मूल्य बढ़ता है अर्थात् कीमतें नीचे गिरती हैं। 

2. कॉलबोर्न के अनुसार - अनैच्छिक बेरोजगारी मुद्रा संकुचन की कसौटी होती है।  

प्रो. पॉल ऐजिंग के अनुसार - मुद्रा संकुचन असन्तुलन की वह स्थिति है जिसमें क्रयशक्ति का सन्तुलन गिरते कीमत  हुए स्तर का नहीं, बल्कि उसका परिणाम भी होता है।

4. प्रो. सैम्युलसन के अनुसार - मुद्रा संकुचन से तात्पर्य ऐसे समय से है, जब अधिकांश मूल्य और लागतें गिर रही होती हैं। 

5. प्रो. पीगू के अनुसार - मुद्रा संकुचन कीमत गिरने की वह अवस्था है जबकि वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन मौद्रिक आय की तुलना में तेजी से बढ़ता है। 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि मुद्रा संकुचन की दशा में मुद्रा की पूर्ति उत्पादन की तुलना में कम हो जाती है, जिससे कीमतों में निरन्तर कमी होती है और जिसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

प्रो. पीगू के अनुसार - कीमतों की प्रत्येक गिरावट मुद्रा संकुचन नहीं है। बल्कि निम्न पाँच दशाओं के अन्तर्गत कीमतों में गिरावट से ही मुद्रा संकुचन का जन्म होता है-

(i) जब मौद्रिक आय घट जाती है। किन्तु उत्पादन की मात्रा यथा स्थिर रहती है।

(ii) जब उत्पादन में वृद्धि होती है। किन्तु मौद्रिक आय में कोई परिवर्तन नहीं होता। 

(iii) जब मौद्रिक आय तथा उत्पादन दोनों घटते हैं। किन्तु मौद्रिक आय अपेक्षाकृत अधिक तेजी से घटती है। 

(iv) जब मौद्रिक आय तथा उत्पादन दोनों में वृद्धि होती है। किन्तु उत्पादन अधिक तेजी से बढ़ता है। 

(v) जब मौद्रिक आय घटती है, किन्तु उत्पादन बढ़ता है। 

मुद्रा संकुचन के कारण

मुद्रा संकुचन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं -

1. मुद्रा की मात्रा में कमी - जब सरकार मुद्रा की मात्रा में कमी करती है, तो मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कभी-कभी मुद्रा की मात्रा के यथा स्थिर रहने पर वस्तुओं व सेवाओं की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है, जिससे मुद्रा संकुचन की दशा उत्पन्न हो जाती है। इसका कारण यह है कि विनिमय के लिए वस्तुओं व सेवाओं की मात्रा में वृद्धि होने पर मुद्रा की क्रयशक्ति बढ़ जाती है तथा कीमत स्तर में कमी आने लगती है।

2. बैंक दर में वृद्धि - जब देश का केन्द्रीय बैंक, बैंक दर में वृद्धि कर देता है, तब इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक भी अपनी ब्याज दर में वृद्धि कर देते हैं, जिससे देश में साख की मात्रा में कमी हो जाती है। साख में कमी का भी वही प्रभाव होता है जो मुद्रा की मात्रा में कमी का होता है अर्थात् वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में कमी होने लगती है तथा मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है

3. खुले बाजार की क्रियाएँ - खुले बाजार की क्रियाओं से तात्पर्य केन्द्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों को बेचने से है। जब ये प्रतिभूतियाँ बेची जाती हैं तो चलन में मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है। साथ ही बैंकों में जमा राशि भी कम हो जाती है, क्योंकि लोग जमा राशि बैंकों से निकालकर प्रतिभूतियों का भुगतान करते हैं। इससे बैंकों की साख सृजन शक्ति कम हो जाती है और साख का संकुचन हो जाता है।

4. केन्द्रीय बैंक की अन्य साख नियन्त्रण नीतियाँ - केन्द्रीय बैंक साख मुद्रा पर नियन्त्रण करने के लिए कुछ अन्य उपाय भी अपनाता है, जैसे - नकद कोषों के अनुपात में परिवर्तन, साख की राशनिंग, प्रत्यक्ष कार्यवाही आदि। परिणामस्वरूप साख मुद्रा की मात्रा कम हो जाती है तथा मुद्रा संकुचन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

5. करारोपण तथा सार्वजनिक ऋण सम्बन्धी नीति - जब सरकार जनता पर अत्यधिक कर लगाती है या ऐच्छिक एवं अनिवार्य ऋण लेती है तब देश में मुद्रा संकुचन की दशा उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि इन दोनों नीतियों के कारण देश में मुद्रा की पूर्ति में कमी हो जाती है।

6. उत्पादन या पूर्ति में वृद्धि - कभी-कभी मुद्रा की मात्रा तो स्थिर रहती है, लेकिन वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि हो जाती है, तब मुद्रा संकुचन का जन्म हो जाता है। इसका कारण यह है कि देश में विनिमय योग्य वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे कीमतें गिरने लगती हैं और मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है।

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