मुद्रास्फीति किसे कहते हैं?

मुद्रास्फीति किसे कहते हैं

मुद्रास्फीति का अर्थ मुद्रा- प्रसार दो शब्दों से मिलकर बना है - मुद्रा तथा 'प्रसार'। 'प्रसार' का अर्थ है 'फैलाव' अथवा 'वृद्धि', अतः मुद्रा-प्रसार का शाब्दिक अर्थ हुआ 'मुद्रा की मात्रा में वृद्धि'। लेकिन मुद्रा की मात्रा में प्रत्येक वृद्धि को मुद्रा प्रसार अथवा मुद्रास्फीति की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। मुद्रा की मात्रा में केवल वही वृद्धि प्रसार कहलाती है।  जिसके कारण मूल्यों में वृद्धि होती है [यदि मुद्रा की मात्रा में वृद्धि के कारण मूल्य-स्तर में वृद्धि होती है, तो उस स्थिति को मुद्रा प्रसार अथवा मुद्रास्फीति कहा जा सकता है

मुद्रास्फीति की परिभाषा 

मुद्रा-स्फीति की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नांकित हैं -

1. केमरर के अनुसार - मुद्रा - स्फीति वह दशा है, जिसमें किये जाने वाले व्यापार की तुलना में चलन तथा जमा की गई मुद्रा की मात्रा अधिक होती है।

2. क्राउथर के अनुसार - मुद्रा- स्फीति वह दशा है, जिसमें मुद्रा का मूल्य गिरता रहता है अर्थात् वस्तुओं की कीमतें बढ़ती रहती हैं। 

3. प्रो. पीगू अनुसार - मुद्रा स्फीति उस समय होती है, जब मौद्रिक आय जो कि उत्पादन के साधनों को किया गया भुगतान है, उनके द्वारा किये गये उत्पादन की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही हो ।' '3

4. बेबस्टर शब्दकोष के अनुसार - मुद्रा स्फीति वह दशा है, जब वस्तुओं की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप मूल्य- स्तर में निरन्तर एवं महत्वपूर्ण वृद्धि होती है।

5. प्रो. पॉल इंजिंग के अनुसार - मुद्रा स्फीति क्रयशक्ति की विस्तारशील प्रवृत्ति है, जो मूल्य - स्तर में वृद्धि करती है तथा स्वयं भी उसके प्रभाव को बढ़ाती है। 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि 'मुद्रा स्फीति वह दशा है जब वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में तेजी से वृद्धि हो और मुद्रा के मूल्य में भी उसी तेजी से कमी आती है।'

मुद्रा-स्फीति के लक्षण 

(i) जब देश में मौद्रिक आय बढ़ रही हो, लेकिन राष्ट्रीय उत्पादन की मात्रा यथा स्थिर रहती है। 

(ii) जब मौद्रिक आय में वृद्धि हो रही हो, लेकिन राष्ट्रीय उत्पादन की मात्रा घट रही हो। 

(iii) जब मौद्रिक आय एवं उत्पादन की मात्रा दोनों बढ़ रही हो, लेकिन मौद्रिक आय में वृद्धि का अनुपात उत्पादन में वृद्धि के अनुपात की तुलना में अधिक हो। 

(iv) जब मौद्रिक आय स्थिर हो, लेकिन उत्पादन की मात्रा घट रही हो। 

(v) जब मौद्रिक आय एवं उत्पादन दोनों में कमी हो रही हो, लेकिन उत्पादन में कमी का अनुपात, मौद्रिक आय में कमी के अनुपात की तुलना में अधिक हो।

मुद्रास्फीति के प्रकार 

मुद्रा स्फीति के विभिन्न प्रकार अथवा स्वरूप निम्नांकित हैं -

1. माँग प्रेरित स्फीति - जब अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति उनकी माँग की तुलना में कम होती जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य बहुत तेज गति से बढ़ते हैं, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य बहुत तेज गति से बढ़ते हैं। तब उसे माँग प्रेरित स्फीति कहा जाता है। 

प्रायः जब अर्धविकसित देशों में जनसंख्या तेज गति से बढ़ती है, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग में भी वृद्धि होती है जबकि उत्पादन इस माँग की तुलना में कम गति से बढ़ता है, फलत: मूल्यों में वृद्धि होती है, तो इसे माँग प्रेरित स्फीति कहते हैं।

2. लागत वृद्धि स्फीति - कई बार अनेक कारणों से जैसे- श्रमिकों की मजदूरी, कच्चे माल की कीमत, अधिक करारोपण आदि से वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। कई बार सरकारी योजनाओं में धन तो खर्च हो जाता है, लेकिन उत्पादन बहुत समय बाद तक नहीं होता। इससे मुद्रा की मात्रा बाजार में बढ़ जाती है, जिससे मुद्रास्फीति की दशा उत्पन्न हो जाती हैं।

3. घाटा प्रोत्साहित स्फीति - वर्तमान में प्रजातान्त्रिक सरकारें आर्थिक विकास के लिए भारी मात्रा में व्यय करती हैं। इतनी बड़ी राशि कर एवं सार्वजनिक ऋणों से पूरी करना सम्भव नहीं होता है। अतः सरकार घाटे का बजट बनाती है, जिसमें कुल व्यय अधिक और कुल आय की मात्रा को कम दर्शाया जाता है। सरकार इस घाटे को नये नोट छापकर पूरा करती है। इससे उत्पन्न स्फीति को घाटा प्रोत्साहित स्फीति कहते हैं।

4. उत्पादन जनित स्फीति - जब युद्ध, राजनैतिक अस्थिरता आनावृष्टि से कच्चे माल की कमी हो जाती है जिससे उत्पादन कम होने से कीमतें बढ़ जाती हैं, तो इसे उत्पादन जनित स्फीति कहते हैं। इसी प्रकार, श्रमिकों के द्वारा अधिक मजदूरी की माँग करने पर भी कीमतें बढ़ती हैं। जिससे उत्पादन जनित स्फीति उत्पन्न हो जाती है। 

5. चलन स्फीति - जब मुद्रा की मात्रा में तीव्र वृद्धि के कारण वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में भी तेजी से वृद्धि होती है, तब इसे चलन स्फीति कहते हैं। चलन स्फीति प्रायः केन्द्रीय बैंक द्वारा भारी मात्रा में पत्र- मुद्रा चलन में डालने के कारण उत्पन्न होती है। यह चलन स्फीति मूल्य, प्राकृतिक संकट, आर्थिक विकास आदि समस्याओं से निपटने के लिऐ केन्द्रीय बैंक द्वारा अधिक मात्रा में मुद्रा के निर्गमन के कारण उत्पन्न होती है।

6. साख स्फीति - जब देश की व्यापारिक बैंकें बहुत अधिक मात्रा में उधार देने लगती हैं, तब वस्तुओं की माँग में तीव्र गति से वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप मूल्यों में भी तेजी से वृद्धि होती है। बैंक उधार देते समय साख स्फीति को बढ़ावा देती है। साख स्फीति का मूल कारण ब्याज की दर को कम करना तथा ऋण नीति को अधिक उदार बनाना है। 

7. अवमूल्यन जनित स्फीति - जो देश जान बूझकर मुद्रा का अवमूल्यन करते हैं, वहाँ अवमूल्यन से निर्यात अधिक मात्रा में होने लगता है और देश में वस्तुओं की मात्रा कम हो जाती है जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। इसे अवमूल्यन जनित स्फीति कहते हैं।

8. मजदूरी जनित स्फीति - जब श्रम संघों के दबाव में सरकार एवं निजी उद्यमी मजदूरों की मजदूरी एवं महँगाई भत्ता बढ़ा देती हैं, तब उत्पादन न बढ़ने से कीमतें बढ़ जाती हैं, इसे मजदूरी जनित स्फीति कहते हैं। ध्यान रहे कि इस दशा में श्रमिकों को कुशलता एवं उत्पादकता में कोई वृद्धि नहीं होती है, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन पूर्ववत् अथवा कभी-कभी पहले की तुलना में कम हो जाता है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं।

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