परिवीक्षा अवधि क्या है - pariveeksha avadhi kya hai

भारत में ब्रिटिश शासनकाल से ही आंशिक रूप से प्रोबेशन प्रणाली का प्रचलन हुआ था। 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी विधान के अन्तर्गत दण्ड विधान में प्रोबेशन प्रणाली का उल्लेख किया गया था।

सन् 1861 में बनाए गए दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुच्छेद 562 में इस बात की व्यवस्था का उल्लेख किया गया है, कि कुछ प्रथम दोषी अपराधियों को दण्ड देने के बजाए उन्हें उनके आचरण, आयु एवं परिस्थिति आदि को दृष्टिगत रखते हुए अच्छे आचरण के प्रोबेशन पर मुक्त किया जाए। 

परिवीक्षा अवधि क्या है

यह व्यवस्था बहुत ही सीमित थी, क्योंकि इसके अन्तर्गत मात्र उन्हीं अपराधियों को प्रोबेशन पर छोड़ा जाता था, जो प्रथम बार अपराध करते थे तथा साधारण अपराध करते थे। 

सन् 1932 में इस दण्ड विधान के इस अनुच्छेद में संशोधन किया गया, जिससे इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक हो गया। संशोधन के पश्चात इस अनुच्छेद के अनुसार किसी भी आयु के अपराधी स्त्री पुरुष को प्रोबेशन पर छोड़ा जा सकता है।

जिसे कि सात वर्ष तक के कारावास की सजा मिली हो। इसके साथ ही 21 वर्ष से कम के अपराधियों पर भी यह प्रणाली लागू होती थी।

जिन्हें कि मृत्युदण्ड या आजन्म कारावास एवं निष्कासन की सजा न मिली हो तथा प्रथम दोषी अपराधी को शान्ति और सद्व्यवहार बनाए रखने का    शर्तनामा भरवाकर जमानत या बिना जमानत पर मुक्त कर सकते हैं। ऐसे प्रोबेशनर को प्रोबेशन काल तक सद्व्यवहार करना पड़ता था तथा शर्तों का पूर्णतः पालन करना होता था । 

यदि अपराधी ऐसा करने में असमर्थ हो जाता था तो उसे न्यायालय द्वारा पुनः दण्डित किया जाता था। इस प्रकार भारत में प्रोबेशन प्रणाली का प्रारम्भ हुआ तथा अनुभव के आधार पर इस बात की आवश्यकता हुई कि प्रोबेशनर की उचित रूप से देखभाल तथा निरीक्षण के लिए कोई उत्तरदायी व्यक्ति या अधिकारी होना चाहिए। 

फलस्वरूप सर्वप्रथम बाल अधिनियम के अन्तर्गत बाल अपराधियों की देखभाल के लिए प्रोबेशन अधिकारी  की नियुक्ति की जानी लगी। इस स्थिति में वयस्क प्रोबेशनर को प्रोबेशन अधिकारी की सेवा से वंचित ही रहना पड़ता था। 

इस कमी को सर्वप्रथम चेन्नई राज्य सरकार ने पूरा किया तथा व्यावहारिक कदम उठाया। सन् 1937 में मद्रास सरकार ने चेन्नई प्रोबेशन अधिनियम  पारित करके सभी प्रोबेशनर्स की देख-रेख के लिए प्रोबेशन अधिकारी की नियुक्ति की गई। इसके पश्चात् सन् 1938 में उत्तर प्रदेश में तथा मुम्बई में प्रोबेशन अधिनियम पारित करके प्रोबेशन प्रणाली लागू की गयी।

आज भारत के विभिन्न राज्यों में प्रोबेशन प्रणाली को लागू किया गया है। भारत के कुछ प्रमुख राज्यों में प्रोबेशन प्रणाली को लागू करने के लिए प्रोबेशन से सम्बन्धित विधान बनाकर विस्तृत व्याख्या करके राज्य में लागू कर अपराधियों का सुधार किया जाता है। 

सर्वप्रथम चेन्नई में अपराधी प्रोबेशन अधिनियम पास किया गया तत्पश्चात उत्तर प्रदेश में प्रथम अपराधी प्रोबेशन अधिनियम, 1938  तथा मुम्बई में मुम्बई अपराधी प्रोबेशन अधिनियम 1938 पारित करके प्रोबेशन पर अपराधियों को छोड़कर, प्रोबेशन अधिकारी की देखरेख में रखकर सुधारने की व्यवस्था की गई है। 

चेन्नई, उ. प्र. मुम्बई में ऐसे धयों को प्रोबेशन पर छोड़ा जाता है। जिनकी आयु 11 वर्ष से अधिक न हो तथा 7 वर्ष तक की सजा न्यायालय द्वारा प्रदान की गयी हो । उ.प्र. में भी ऐसे अपराधियों को प्रोबेशन पर छोड़ा जाता है, जो प्रथम बार अपराध किए हों तथा जिन्हें प्राणदण्ड की सजा न दी गई हो। 

प्राणदण्ड, देश निष्कासन तथा आजीवन सजा प्राप्त करने वाले अपराधी को किसी भी प्रान्त में प्रोबेशन पर नहीं छोड़ा जाता। उ.प्र., मुम्बई और चेन्नई की भाँति ही मध्य प्रदेश में भी सन् 1954 ई. में प्रोबेशन अधिनियम पारित करके प्रोबेशन प्रणाली को लागू किया गया। 

सन् 1954 ई. में “The M.P. Prisoner's Release on Probation Act, 1954' के नाम से प्रोबेशन अधिनियम सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में लागू करके ऐसे अपराधी को सशर्त प्रोबेशन पर छोड़ा जाता है, जो अपनी सजा की एक तिहाई अवधि तक या 5 वर्ष तक (जो इनमें से कम हो) की अवधि तक सजा काट चुका हो तथा उसने अच्छा आचरण और सद्व्यवहार बनाए रखा हो। 

उसे सशर्त बाण्ड भरवाकर प्रोबेशन पर मुक्त किया जाता है। मध्य प्रदेश के इस प्रोबेशन अधिनियम में सन 1961 में कुछ संशोधन करके 2 अक्टूबर, 1964 से मध्य प्रदेश सरकार ने सम्पूर्ण प्रदेश में विस्तृत रूप से प्रोबेशन व्यवस्था को लागू कर दिया है।

भारत में सन् 1958 में अपराधी प्रोबेशन अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के अनुसार अपराध की प्रकृति, अपराधी का आचरण तथा व्यवहार, आयु, मानसिक स्थिति तथा स्वास्थ्य आदि के आधार पर न्यायालय को यह अधिकार दिया गया कि वे प्रोबेशन पर अपराधी को छोड़ सकते हैं और यदि वे न चाहें तो नहीं छोड़ सकते। 

किन्तु जो भी अपराधी प्रोबेशन पर छोड़े जायेंगे, वे प्रोबेशन काल तक प्रोबेशन अधिकारी की देखरेख में रहेंगे तथा प्रोबेशन की शर्तों का पूर्णतः पालन करेंगे। अपराधी प्रोबेशन अधिनियम 1958 के खण्ड 14 में प्रोबेशन अधिकारी के कार्यों का उल्लेख है। 

जिसके अनुसार प्रत्येक प्रोबेशन अधिकारी को अपने उत्तरदायित्व को निभाना अनिवार्य होता है। इस अधिनियम के अनुसार मुख्य रूप से प्रोबेशन अधिकारी, प्रोबेशन पर छोड़े गये अपराधी अथवा प्रोबेशनर की सहायता करेगा। 

उसे सुझाव देगा तथा उससे सम्बन्धित अन्य विभिन्न कार्यों को उचित रूप से करते हुए अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों को निभायेगा। इस अधिनियम को अत्यधिक सफलता प्राप्त हो रही है और आज इस प्रणाली को अत्यधिक विकसित किया जा रहा है।

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