प्रतिनिधि शासन किसे कहते हैं - pratinidhi shasan kya hai

प्रतिनिध्यात्मक शासन-मिल के अनुसार सच्चा प्रजातन्त्र तो वह है जिसमें सभी नागरिक प्रत्यक्ष रीति से शासन कार्य में भाग लें किन्तु यह वर्तमान समय के विशाल राष्ट्रीय राज्यों में सम्भव नहीं है।

प्रतिनिधि शासन किसे कहते हैं

प्रतिनिधि लोकतंत्र, जिसे अप्रत्यक्ष लोकतंत्र के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार का लोकतंत्र है जहां प्रत्यक्ष लोकतंत्र के विपरीत निर्वाचित व्यक्ति लोगों के समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मिल की दृष्टि में सर्वोत्तम शासन अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र अथवा प्रतिनिध्यात्मक शासन ही हो सकता है। प्रतिनिध्यात्मक शासन वह है जिसमें राज्य के सभी या बहुसंख्यक नागरिक समय-समय पर अपने प्रतिनिधियों उनके द्वारा अपनी नियन्त्रण शक्ति का प्रयोग करते हैं ।

प्रतिनिध्यात्मक शासन के सम्बन्ध में मिल ने अपने विचार अपनी इसी नाम की रचना 'प्रतिनिध्यिात्मक शासन पर विचार'  में व्यक्त किये हैं। प्रतिनिध्यात्मक शासन का समर्थन करते हुए भी मिल प्रतिनिध्यात्मक शासन के दोषों, उसकी कमियों और तत्सम्बन्धी समस्याओं से परिचित था। 

प्रतिनिध्यात्मक शासन को एक श्रेष्ठ शासन का रूप दिया जा सके, यह नागरिकों के सर्वांगीण विकास का साधन बन सके, इस बात को दृष्टि में रखते हुए उसने कुछ विचार व्यक्त किये हैं। कुछ सुझाव दिये हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं। 

1. प्रजातन्त्र और दक्षता का समन्वय 

मिल इस बात से परिचित था कि जनप्रतिनिधि सामान्य योग्यता के व्यक्ति होते हैं और उनके द्वारा स्वयं ही अच्छे कानूनों का निर्माण तथा शासन-व्यवस्था का भली-भाँति संचालन नहीं किया जा सकता। अतः मिल ने प्रजातन्त्रीय और प्रशासनिक दक्षता के तत्त्वों का समन्वय करने पर बल दिया है ।

उसके अनुसार विधि - निर्माण का कार्य अधिक योग्यता और अनुभव का कार्य है, इसलिए यह कार्य विधानसभा का न होकर दक्ष और अनुभवी व्यक्तियों की एक छोटी संस्था का होना चाहिए। 

इस संस्था में राजनीतिक दलों के नेता तथा दक्ष सरकारी कर्मचारी हों। विधानसभा का कार्य इस समिति के कार्यों की आलोचना करना तथा अवसर पड़ने पर उन्हें पद से हटाने तक ही सीमित होना चाहिए ।

समाज के लिए नीति-निर्धारण तथा विधियाँ बनाने का कार्य करने हेतु जनता के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त शासन में दक्ष और कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। मिल का सुझाव है कि इन कर्मचारियों की नियुक्ति निर्वाचन के स्थान पर परीक्षा लेकर एक स्वतन्त्र आयोग द्वारा स्थायी रूप से की जानी चाहिए। 

इन कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखने और इन्हें पदच्युत करने का अधिकार विधानसभा को दिया जा सकता है। जनता के प्रतिनिधियों द्वारा कर्मचारी वर्ग को यह बताया जाना चाहिए कि जनता चाहती क्या है और कर्मचारी वर्ग द्वारा उपयुक्त कार्य की सिद्धि के लिए आवश्यक प्रयत्न किये जाने चाहिए। इस प्रकार एक श्रेष्ठ शासन में प्रजातन्त्र और कार्यकुशलता के बीच समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए।

2. अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा

मिल इस बात से परिचित था कि व्यवहार में प्रतिनिध्यात्मक शासन 'सबके द्वारा और सबके लिए' न रहकर बहुमत के निरंकुश शासन में परिणत हो सकता है जिनमें अल्पसंख्यकों के हितों का दमन सम्भव है। 

इसलिए मिल के द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के उपायों पर विचार किया गया और इस सम्बन्ध में वह दो उपाय अपनाने का सुझाव देता है।

1. स्वतन्त्र रूप से निर्वाचित सदस्य - स्वतन्त्र सदस्य किसी दल के सदस्य नहीं होते और मिल के अनुसार उनके उच्च आदर्श होते हैं। ये अपनी स्वतन्त्र प्रवृत्ति के आधार पर विभिन्न वर्गों के बीच सन्तुलन रखते हैं और वर्गहित में विधियाँ नहीं बनने देते। 

साथ ही विभिन्न वर्गों के साथ सहयोग कर वे विधानसभा का ध्यान स्थायी हित के विषयों की ओर आकर्षित करते हैं। इसलिए विधानसभा में स्वतन्त्र सदस्यों के लिए स्थान होना चाहिए और ये सदस्य विश्वविद्यालय या इसी प्रकार के अन्य श्रेष्ठ वर्गों द्वारा निर्वाचित हो सकते हैं। 

2. आनुपातिक प्रतिनिधित्व - मिल इंग्लैण्ड में प्रजातन्त्र के संचालन को देखकर इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि निर्वाचन की बहुमत पद्धति बहुत अधिक अन्यायपूर्ण है। इस पद्धति में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार निर्वाचित हो जाता है और उन व्यक्तियों को कोई प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हो पाता, जिन्होंने पराजित उम्मीदवारों को मत दिया था। 

अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसा होने पर बहुत बड़ा वर्ग प्रतिनिधित्वहीन ही रह जाता है। इस सम्बन्ध में मिल लिखते हैं कि विद्यमान शासन सभी व्यक्तियों का समान रूप से प्रतिनिधित्व करने वाला शासन नहीं है, वरन् यह तो केवल बहुसंख्यकों का प्रतिनिधि शासन है। 

एक वास्तविक लोकतन्त्र में प्रत्येक वर्ग की उसकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिए । ” मिल ने अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की आवश्यकता अनुभव की और व्यवस्थापिका में अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सके, इसके लिए उसने ‘हेयर प्रणाली  या 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली' का समर्थन किया। 

मिल के अनुसार आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति ही एकमात्र ऐसी पद्धति है जिसके आधार पर अल्पसंख्यकों को उनकी संख्या के अनुपात में विधानसभा में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो सकता है ।

3. मताधिकार के लिए आवश्यक योग्यताएँ 

मिल प्रतिनिध्यात्मक शासन का समर्थन करता है और वह स्त्रियों सहित सभी व्यक्तियों को मताधिकार प्रदान करने के पक्ष में है। लेकिन उसका विचार है कि मतदाताओं को कुछ योग्यताएँ प्राप्त होनी ही चाहिए। 

सर्वप्रथम, वह मतदाताओं की शैक्षणिक योग्यता पर बल देता है और कहता है कि जो व्यक्ति साधारण रूप से पढ़ने, लिखने और गणित के प्रश्न करने की योग्यता नहीं रखते, उन्हें मताधिकार कैसे दिया जा सकता है। 

मिल का कथन है कि, "मैं इस बात को नितान्त अनुचित मानता हूँ कि कोई व्यक्ति लिखने-पढ़ने की योग्यता प्राप्त करने के पूर्व ही मतदान में भाग ले । 

मताधिकार को सार्वभौम बनाने के पूर्व सभी को शिक्षा प्रदान करना नितान्त आवश्यक है। इस सम्बन्ध में उसका सुझाव है कि राज्य के द्वारा निःशुल्क या बहुत ही कम शुल्क पर जिसे निर्धन व्यक्ति भी वहन कर सके, शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

शैक्षणिक योग्यता के साथ मिल मतदाताओं की सम्पत्ति विषयक योग्यता पर भी बल देता है। उसका विचार है कि वे व्यक्ति जिनके पास सम्पत्ति होती है, सम्पत्तिहीन व्यक्तियों की तुलना में अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से आचरण करते हैं। सम्पत्ति विहीन व्यक्ति राज्य की सम्पत्ति की उचित रूप से रक्षा नहीं कर पाते। 

4. बहुल या गुणात्मक मतदान 

मिल अनुभव करता है कि सभी व्यक्तियों के मत का मूल्य समान नहीं होता और अज्ञानी, मूर्ख तथा उदासीन प्रवृत्ति के व्यक्तियों की तुलना में बुद्धिमान, शिक्षित तथा उच्च गुणों वाले व्यक्तियों को मताधिकार की अधिक शक्ति प्राप्त होनी चाहिए ।

कम शिक्षित और मूर्ख व्यक्ति देश के सार्वजनिक जीवन पर हावी न हो जायें इसके लिए मिल उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को एक से अधिक मत देने की बात का प्रतिपादन करता है। 

किन व्यक्तियों को अधिक मत प्राप्त होने चाहिए, यह स्पष्ट करने के लिए . उसके द्वारा नागरिकों को वर्गीकृत किया गया है और इस वर्गीकरण का आधार मानसिक, सांस्कृतिक और नैतिक गुण है। मिल अपनी इस पद्धति को 'गुणात्मक मतदान' के नाम से पुकारता है।

5. खुला या सार्वजनिक मतदान 

मिल गुप्त मतदान का विरोध करते हुए खुले या सार्वजनिक मतदान को उचित समझता है। उसके मतानुसार मत देने का अधिकार एक पवित्र अधिकार है जिसका प्रयोग बुद्धिमत्ता, समझ और ईमानदारी के साथ सार्वजनिक रूप में किया जाना चाहिए। 

इस अधिकार के प्रयोग में गोपनीयता रखना गुप-चुप किये जाने वाले अनुचित एवं अनैतिक कार्य के समान है। मिल के समान प्रो. ट्रीश्चे ने भी गुप्त मतदान को 'कुत्सित चाल' कहा है।

6. महिला मताधिकार 

महिलाओं के मताधिकार का समर्थन करने की दिशा में मिल के द्वारा ब्रिटिश संसद के बाहर और भीतर दोनों स्थानों पर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया । सम्भवतया उसके द्वारा यह कार्य अपनी मित्र और पत्नी श्रीमती टेलर के प्रभाव के कारण किया गया ।

मिल के जीवनकाल में विक्टोरिया के युग का मध्यान्तर चल रहा था। इस काल में महिलाओं को उच्च शिक्षा एवं उच्च पदों से वंचित रखा जा रहा था और सार्वजनिक जीवन में भी उनका प्रवेश निषिद्ध था। महिलाओं के लिए कोई द्वार खुला था तो केवल विवाहित जीवन बिताने का । 

जब कभी उनकी दशा सुधारने के लिए कोई आन्दोलन किया जाता, विरोधी हमेशा महिलाओं की अयोग्यता का आश्रय लेकर उस आन्दोलन को समाप्त कर देते थे। मिल ने बताया कि महिलाओं का पिछड़ापन किसी भी प्रकार उनकी बौद्धिक प्रतिभा की कमी का परिणाम नहीं है, वरन् यह उनकी सदियों की दासता का परिणाम है। 

यदि दासता के बन्धन से महिलाओं को मुक्त कर दिया जाय और उन्हें पुरुषों के समान ही उन्नति और विकास के अवसर दिये जायें तो कोई कारण नहीं कि वे पुरुषों के समान ही सिद्ध न हो सकें।

7. प्रतिनिधि के सम्बन्ध में धारणा 

संसद में प्रतिनिधि के स्थान या स्थिति के सम्बन्ध में मिल के विचार बर्क के समान हैं। वह प्रतिनिधि को जनता का प्रत्यायुक्त मात्र ही नहीं मानता। उसके अनुसार प्रतिनिधि तो एक स्वतन्त्र पथ-प्रदर्शक होता है, जिसके द्वारा स्थानीय हितों के स्थान पर राष्ट्रीय हितों के अनुसार कार्य किया जाना चाहिए। 

यदि उसे अधिक महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर विजय प्राप्त करने के लिए किन्हीं छोटी-छोटी समस्याओं पर अपने विचारों को छोड़कर समझौता करना पड़े, तो उसके द्वारा निर्भीकता के साथ ऐसा किया जाना चाहिए ।

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