प्रोबेशन क्या है - probeshan kya hai

परिवीक्षा या प्रोबेशन के बारे में विस्तृत विवेचन करने से पूर्व इसके वास्तविक अर्थ को समझना अति आवश्यक है। प्रोबेशन की शाब्दिक व्याख्या करें तो स्पष्ट होता है कि यह एक अंग्रेजी भाषा का शब्द है। जिसके लिए हिन्दी में परिवीक्षा शब्द का प्रयोग किया जाता है। 

प्रोबेशन क्या है

प्रोबेशन शब्द लैटिन भाषा के शब्द प्रोबेयर  से बना है।  जिसका अर्थ होता है-परीक्षा लेना  या प्रमाणित करना। इसका प्रयोग परीक्षा लेने की विधि तथा न्यायिक परीक्षा  आदि के लिए भी किया जाता है। यहाँ पर अपराध-निरोध के क्षेत्र में प्रोबेशन का प्रयोग सजा- -मुक्ति या दण्ड के स्थगन के लिए किया जाता है। प्रोबेशन अपराधियों के सुधार की एक प्रक्रिया है।

जिसमें अपराधी को दण्ड के लिए जेल न भेजकर प्रोबेशन पर रखा जाता है। जो कि एक प्रोबेशन अधिकारी के नियन्त्रण में रहता है, जहाँ उसे सुधरने का अवसर प्रदान किया जाता है। 

यदि अपराधी परिवीक्षा काल या प्रोबेशन की अवधि में अपने सद्व्यवहार तथा सदाचरण का प्रमाण नहीं दे पाता तो वह पुनः दण्ड का भागी होता है और उसे कारागार भेज दिया जाता है। इसके विस्तृत तथा व्यापक अर्थ को विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं से भली-भाँति समझा जा सकता है।

प्रोबेशन की परिभाषा – प्रोबेशन को विभिन्न समाज वैज्ञानिकों तथा अपराधशास्त्रियों ने निम्न प्रकार से परिभाषित किया है। 

सर्वश्री इलिएट के अनुसार - प्रोबेशन इस प्रकार, दण्ड देने वाली संस्था से सशर्त मुक्ति प्राप्त होने को कहते हैं, इस विश्वास पर कि अपराधी सद्व्यवहार करेगा।

टैफ्ट के अनुसार - प्रोबेशन किसी अपराध के बारे में लिए जाने वाले किसी अन्तिम निर्णय को कुछ समय के लिए स्थगित करने की प्रक्रिया है। अपराधी को एक अवसर प्रदान किया जाता है, कि वह अपना आचरण सुधार ले तथा अपने को समाज के अनुरूप बनाने का प्रयत्न करे। 

अपराधी न्यायालय की शर्तों के अनुसार किसी प्रोबेशन अधिकारी के मार्गदर्शन तथा संरक्षण में रहता है। अपराधशास्त्री सदरलैण्ड के शब्दों में प्रोबेशन दण्डनीय अपराध की उस समय की अवस्था को कहते हैं। 

जिसमें कि अपराधी के दण्ड को स्थगित कर दिया गया है और जिसमें अपराधी को सद्व्यवहार बनाए रखने की शर्त पर स्वतन्त्रता प्रदान कर दी जाती है। इसके साथ राज्य अपने व्यक्तिगत निरीक्षण के द्वारा अपराधी को सद्व्यवहार बनाए रखने में सहायता प्रदान करने का प्रयत्न करता है। 

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि प्रोबेशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें कि अपराधी को सजा काटने के लिए जेल में न भेजकर उसे न्यायालय द्वारा नियुक्त प्रोबेशन अधिकारी की देख-रेख या मार्गदर्शन तथा संरक्षण में सद्व्यवहार बनाए व स्वयं में सुधार करने के लिए मुक्त छोड़ दिया जाता है। 

प्रोबेशन की अवधि में अपराधी को यदि किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता होती है तो राज्य शासन उसे देने का पूर्ण प्रयास करता है। इतने पर भी यदि अपराधी का व्यवहार नहीं सुधरता या वह पुनः अपराध करता है तो उसे दुगुना दण्ड भोगना पड़ता है। 

इस प्रकार प्रोबेशन के सम्बन्ध में हम कह सकते हैं कि प्रोबेशन अपराध-निरोध तथा अपराधी के सुधार की एक अच्छी प्रणाली है, जिसमें अपराधी के प्रति सहानुभूति रखते हुए दण्ड को स्थगित कर उसे सुधारने तथा समाज के अनुकूल बनने का पूर्ण अवसर प्रदान किया जाता है। "

प्रोबेशन की विशेषताएँ 

(1) प्रोबेशन में अपराधी को दण्ड या सजा नहीं दी जाती है।

(2) यदि अपराधी को न्यायालय द्वारा दण्ड देने का निर्णय हो जाता है, तो उसे कार्यान्वित न करके स्थगित कर दिया जाता है।

(3) प्रोबेशन अवधि यदि अपराधी का आचरण नहीं सुधरता तो उसे दुगुना दण्ड दिया जाता है। 

इसके अतिरिक्त प्रोबेशन के अन्तर्गत निम्नलिखित विशेषताएँ एवं तत्व निहित होते हैं -

(i) प्रोबेशन के अनतर्गत शक्ति का प्रयोग होता है। शक्ति के द्वारा ही अपराधी प्रोबेशन अधिकारी के नियन्त्रण में रहता है।

(ii) सहानुभूति - प्रोबेशन पर छोड़े गए अपराधी व्यक्ति के प्रति सहानुभूति पूर्ण व्यवहार किया जाता है तथा सदैव उसके साथ सद्भावना रखी जाती है।

(iii) निरीक्षण - प्रोबेशन पर छोड़े गए अपराधी का सदैव प्रोबेशन अधिकारी निरीक्षण करता रहता है तथा उसके व्यवहार एवं कार्य पर सदैव नजर रखी जाती है।

(iv) सहयोग एवं सहायता - प्रोबेशन पर छोड़े गए अपराधी के साथ प्रोबेशन अधिकारी सदैव सहयोगात्मक व्यवहार करता है तथा आवश्यकता पड़ने पर राज्य शासन द्वारा अपराधी को सहायता प्रदान की जाती है।

(v) मार्गदर्शन - प्रोबेशन पर रखे गए अपराधी व्यक्ति का सदैव प्रोबेशन अधिकारी मार्गदर्शन करता है, जिससे कि वह अपने आचरण को सुधार सके, और समाज के अनुकूल स्वयं को बनाकर सामाजिक जीवन-यापन कर सकने में समर्थ हो सके।

विशेषताएँ 

प्रोबेशन प्रणाली की निम्नलिखित मुख्य विशेषताएँ हैं

  1. यह एक सुधारात्मक व्यवस्था है, जिसका मूल उद्देश्य अपराधी को सुधारना है, जिससे कि वह पुनः अपराध न करे।
  2. प्रोबेशन की स्थिति, अपराधी को नयायालय द्वारा दण्ड देने की घोषणा करने के बाद से प्रारम्भ होती है तथा दण्ड को स्थगित कर अपराधी को प्रोबेशन पर छोड़ दिया जाता है।
  3. प्रोबेशन में अपराधी को जेल के अन्तर्गत सजा नहीं भोगनी पड़ती, बल्कि सजा से मुक्ति मिल जाती है।
  4. प्रोबेशन की अवधि में अपराधी के सद्व्यवहार करने और आचरण बनाए रखने की पूर्ण आशा की जाती है तथा इसी विश्वास पर उसकी सजा को स्थगित कर उसे प्रोबेशन पर छोड़ दिया जाता है। 
  5. प्रोबेशन की अवधि में प्रोबेशन पर छोड़े गए अपराधी को प्रोबेशन अधिकारी के नियन्त्रण में रहना पड़ता है।  तथा समस्त नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है।

प्रोबेशन के गुण, लाभ और इसकी उपयोगिता एवं महत्त्व

अपराध-निरोध की दिशा में प्रोबेशन प्रणाली एक अत्यन्त उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण प्रणाली सिद्ध हुई है। इसके द्वारा जहाँ अपराधी में सुधार होता है। वहाँ समाज में एक तो अपराध कम होता है, दूसरे अपराधी व्यक्ति को जेल से मुक्ति मिलती है तथा जेल के नारकीय जीवन से छुटकारा मिल जाता है। 

श्री सदरलैण्ड ने प्रोबेशन की उपयोगिता के सम्बन्ध में लिखा है कि प्रोबेशन का उद्देश्य प्रोबेशनर को दृष्टिकोण को परिवर्तित करना है। 

इसकी सबसे बड़ी उपयोगिता और महत्त्व इस बात में है कि इसके द्वारा प्रोबेशनर या प्रोबेशन पर छोड़े गए अपराधी में स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास की भावना को जाग्रत करके उसकी अपराधी मनोवृत्ति को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया जाता है। 

जिससे कि अपराधी व्यक्ति सद्व्यवहार करने लगता है तथा अपराध के प्रति उसके मन में घृणा उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार प्रोबेशन के द्वारा एक अपराधी व्यक्ति पुनः सामान्य सामाजिक जीवन-यापन करने के योग्य बन जाता है और दण्ड से बच जाता है।

4 अपराधियों को दण्ड भोगने के लिए जेल में रहना पड़ता है। जेल एक ऐसी दूषित व्यवस्था है जो अपराधी को समाज से पूर्णतः पृथक् कर देती है और जब अपराधी अपनी सजा काटकर जेल से मुक्ति पाता है तो समाज उसे उपेक्षा की दृष्टि से देखता है तथा उसके साथ उस प्रकार का सामाजिक व्यवहार समाज में नहीं किया जाता है।  

जैसाकि समाज के अन्य सदस्यों के साथ किया जाता है। ऐसी स्थिति में वह समाज के साथ सामंजस्य और अनुकूलन नहीं कर पाता, फलस्वरूप वह पुनः अपराधी व्यवहार की ओर अग्रसर होता है और अपराध करता है। 

प्रोबेशन प्रणाली इन दोषों को दूर करती है तथा अपराधी को जेल के दूषित वातावरण से बचाकर उसे स्वयं के परिवार तथा समाज में रखकर सु का पूर्ण अवसर प्रदान करती है। 

घर परिवार में रहने से मानसिक संतोष मिलता है जो अपराधी के व्यक्त्वि में आश्चर्यजनक परिवर्तन ला देता है और वह अपराधी व्यवहार से घृणा करने लगता है। इस सन्दर्भ में प्रोबेशन की उपयोगिता और महत्त्व को दृष्टि में रखते हुए श्री होमर कमिंग्स का कथन है कि प्रोबेशन अनुशासन और चिकित्सा की एक विधि है। 

यदि प्रोबेशनर का सावधानी पूर्वक चयन किया जाये तथा बुद्धिमता और समझदारी के साथ निरीक्षण कार्य किया जाए, तो हम अपराधियों के पुनर्वास कार्य में चमत्कार दिखला सकते हैं।

अतएव स्पष्ट है कि अपराधी सुधार और अपराध निरोध की दिशा में प्रोबेशन प्रणाली की अत्यधिक उपयोगिता और महत्त्व है। इसके अनेक सामाजिक लाभ होते हैं, जिसे निम्न प्रकार से भली-भाँति समझा जा सकता है

(1) प्रोबेशन प्रणाली दूषित कारागार व्यवस्था से अपराधी को दूर रखती है तथा उसके स्वयं के घर, परिवार एवं समाज में रखकर सुधरने का सुअवसर प्रदान करती है। 

जिससे वह समाज द्वारा उपेक्षित नहीं हो पाता। इस सम्बन्ध में सदरलैण्ड का कथन है कि प्रोबेशन नीति के अन्तर्गत अपराधी को उन अवस्थाओं के साथ अनुकूलन करने के लिए आवश्यक सहायता मिलती है, जिसके परिणामस्वरूप वह उन अवस्थाओं के साथ संघर्ष कर सकता है, जो अपराध की जन्मदायिनी होती हैं। 

(2) प्रोबेशन प्रणाली के द्वारा अपराधी के व्यवहार में स्थायी सुधार करके उसे सामाजिक और वैयक्तिक प्रगति का अवसर प्रदान किया जाता है। 

यह कार्य प्रोबेशन प्रणाली के अन्तर्गत अपराधी की देख-रेख करके तथा दण्ड के भय से मुक्ति कराके सद्भावना पूर्ण किया जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत सहानुभूतिपूर्ण सुधारवादी प्रयत्न अत्यधिक किया जाता है। जिससे सबसे बड़ा सामाजिक लाभ यह होता है कि अपराधी समाज में पुनः अपराधी व्यवहार नहीं करता है।

(3) प्रत्येक समाज में अपराधी को समाज पर बोझ समझा जाता है तथा समाज द्वारा उसकी उपेक्षा की जाती है। प्रोबेशन प्रणाली इस धारणा का अन्त करती है तथा अपराधी को समाज के एक उपयोगी अंग या इकाई के रूप में प्रस्तुत करती है। 

प्रोबेशन प्रणाली के अन्तर्गत प्रोबेशन पर छूटा हुआ अपराधी समाज में एक समान्य सदस्य की भाँति रहता है, सामाजिक, आर्थिक तथा उत्पादनात्मक कार्यों में सक्रिय भाग लेता है और समाज के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। 

आर्थिक कार्यों में संलग्न होकर अपना तथा परिवार का भरण-पोषण करता है। इस प्रकार प्रोबेशन के अन्तर्गत अपराधी समाज के ऊपर भार न होकर एक उपयोगी अंग बन जाता है।

(4) प्रोबेशन प्रणाली के द्वारा सामान्य या साधारण अपराधी को गम्भीर तथा जघन्य अपराधी बनने से बचाया जाता है और अपराध तथा अपराधियों को कम करके समाज की रक्षा की जाती है। ऐसा इसलिए सम्भव होता है; क्योंकि प्रोबेशन प्रणाली में अपराधी को जेल जाने का मौका नहीं दिया जाता। 

फलस्वरूप वे जेल के दूषित वातावरण तथा गम्भीर और जघन्य अपराधियों के प्रभाव से प्रभावित नहीं हो पाते, बल्कि उनमें तथा उनके व्यवहार में सुधार ही होता है। जिससे वे पुनः नहीं करते हैं।

(5) प्रोबेशन प्रणाली समाज के अनेक परिवारों को बर्बाद होने से बचाती है; क्योंकि इस प्रणाली के अन्तर्गत अपराधी विभिन्न प्रकार के कार्य करके अपना तथा अपने परिवार के आश्रितों का भरण-पोषण कर सकता है। धनोपार्जन उसके परिवार के आर्थिक विकास में सहयोग दे सकता है। 

जबकि जेल व्यवस्था में उसे परिवार तथा समाज से पृथक् कारागार की दीवारों के अन्तर्गत बन्द खा जाता है, फलस्वरूप उसके आश्रितों को दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं और परिवार की बर्बादी होती है। अतएव स्पष्ट है कि प्रोबेशन प्रणाली के द्वारा अपराधी तथा उसके परिवार के लोगों को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।

(6) अपराध - निरोध तथा अपराधी-सुधार के क्षेत्र में कार्यरत सुधारात्मक संस्थाओं तथा जेल व्यवस्था से प्रोबेशन प्रणाली सस्ती होती है, क्योंकि जेल के अन्तर्गत प्रति अपराधी कम-से-कम 430 रुपया प्रतिवर्ष व्यय होते हैं, जबकि प्रोबेशन प्रणाली में इसका 1/10 भाग ही व्यय होता है। 

इस प्रकार यह एक कम खर्चीली प्रणाली है जो राज्य सरकार के व्यय को अपराध के क्षेत्र में कम करती है । इस बची हुई राशि को राज्य अन्य कल्याणकारी कार्यों में व्यय कर सकता है। अतएव इसे हम कल्याणकारी व्यवस्था भी कह सकते हैं।

प्रोबेशन प्रणाली के द्वारा होने वाले उपरोक्त सामाजिक लाभ के अतिरिक्त प्रोबेशन पर छोड़े गए अपराधी या प्रोबेशन को भी इस प्रणाली के द्वारा कुछ निश्चित लाभ इस प्रकार प्राप्त होते हैं - 

  • प्रोबेशन पर छूटा हुआ अपराधी अपने परिवार, पड़ोस तथा मित्र समूह में अपराधी के रूप में उपेक्षित नहीं हो पाता और न ही मस्तिष्क में अपराधी के रूप में अपनी छाप छोड़ता है। उसके सामाजिक पद और प्रतिष्ठिा पर भी काई आँच नहीं आ पाती।
  • अपराधी अपने समाज तथा परिवार से पृथक् नहीं हो पाता, बल्कि उसे सबके साथ रहने का अवसर प्राप्त होता है, जिससे उसे आन्तरिक आत्म-सन्तोष प्राप्त होता है, जो उसके सुधरने के लिए अत्यन्त सहायक होता है।
  • प्रोबेशन पर छूटे हुए अपराधी के परिवार में रहने से परिवार के सदस्यों को भी बड़ा सन्तोष रहता है तथा वह अपने पारिवारिक उत्तरदायित्व को भी निभा सकता है तथा सदस्यों के स्नेहपूर्ण सम्बन्धों में आबद्ध रहता है।
  • प्रोबेशन पर छूटा हुआ अपराधी धनार्जन कर सकता है। रोजगार या नौकरी कर सकता है। अतएव उसमें क्षतिपूर्ण की क्षमता हो जाती है और वह क्षतिपूर्ति कर देता है।
  • प्रोबेशन प्रणाली में अपराधी को सुधारने में समुदाय, परिवार पड़ोस आदि का पूर्ण सहयोग रहता है। परिवार, पड़ोस और मित्र समूह के लोग उसे सुधारने के लिए सहानुभूतिपूर्ण सुझाव देते हैं तथा विभिन्न प्रकार से उसकी सहायता करते हैं। जिससे कि अपराधी सुधरकर सामाजिक जीवन-यापन कर सके और पुनः अपराध न करे -
  • प्रोबेशन पर छूटे हुए अपराधी को समाज में अपराधी की संज्ञा नहीं दी जाती और न ही उसकी उपेक्षा की जाती है। अतएव वह सामाजिक कलंक से भी बच जाता है।
  • प्रोबेशन को दण्ड नहीं समझा जाता, बल्कि यह अपराधी को सुधारने का एक तरीका होता है । अतएव अपराधी की मनोवृत्ति में परिवर्तन हो जाता है और वह सद्व्यवहार करने लगता है तथा आचरण को बनाए रखता है।
  • प्रोबेशन काल में प्रोबेशनर को सुधार के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ और सहायता प्रदान की जाती हैं, अपराधी का सही मार्गदर्शन किया जाता है तथा उसे अपराधी नहीं बनने दिया जाता। वर्तमान समय में छोटे-बड़े सभी अपराधियों को प्रोबेशन पर रखा जाता है और उनका निरीक्षण  किया जाता है।  

जिससे कि उनमें अपराधी प्रवृत्ति न पनप सके और उसका पूर्णतः सुधार हो सके। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक तथा वैयक्तिक दोनों ही दृष्टिकोणों से प्रोबेशन प्रणाली अत्यधिक उपयोगी, लाभदायी तथा महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि आज विश्व के अधिकांश राष्ट्रों में अपराध - निरोध की दिशा में प्रोबेशन प्रणाली को अपनाया जा रहा है।

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