राजनीति के लेखक राजनीतिक सामाजिक महत्त्व को प्रारम्भ से ही स्वीकार करते हैं, परन्तु कुछ दिनों से इसके महत्त्व में वृद्धि हुई है। खासकर हरबर्ट हाइमैन की 1959 ई. में प्रकाशित पुस्तक 'राजनीतिक समाजीकरण' से इसका क्रमबद्ध अध्ययन किया जाने लगा।
राजनीतिक समाजीकरण क्या है
राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों को राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक तन्त्र के प्रतिकोणों के विश्वास की शिक्षा दी जाती है और इसी के द्वारा व्यक्ति राजनीतिक तन्त्रों की प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। राजनीतिक समाजीकरण राजनीतिक तन्त्रों को सामाजिक तन्त्रों से जोड़ता है।
राजनीतिक समाजीकरण की परिभाषा
(1) आमण्ड व पावेल के अनुसार - राजनीतिक समाजीकरण एक विधि है, जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृति स्थिर रखी और बदली जाती है। इस कार्य की पूर्ति द्वारा व्यक्तियों को राजनीतिक संस्कृति में लाया जाता है और राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति उनके दृष्टिकोणों का निर्माण किया जाता है। राजनीतिक संस्कृति के नमूने में परिवर्तन भी राजनीतिक समाजीकरण द्वारा किए जाते हैं।
(2) रॉबर्ट सीजल के अनुसार - राजनीतिक समाजीकरण एक विधि है, जिसके द्वारा एक ओर एक व्यक्ति राजनीतिक तथ्यों के प्रति अभिवृत्ति सीखता है और दूसरी ओर इस विधि के द्वारा समाज राजनीतिक विश्वासों और स्तरों को एक पीढ़ी से आने वाली पीढ़ी को देता है।
(3) डेनिस काला नाग के अनुसार - राजनीतिक समाजीकरण के शब्दों को उस विधि का वर्णन करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिस विधि के द्वारा व्यक्ति राजनीति के प्रति अभिवृद्धि सीखता और विकसित करता है।
(4) ईस्टन के मतानुसार - वह विकास प्रक्रियाएँ जिनके द्वारा व्यक्ति राजनीतिक अनुपस्थिति ज्ञान तथा व्यवहार के प्रतिरूपों को प्राप्त करते हैं।
राजनीतिक समाजीकरण का विकास
राजनीतिक समाजीकरण कोई अचानक प्राप्त होने वाली क्रिया नहीं है, अपितु यह सतत् विकास का परिणाम है। यह व्यक्ति के जन्म लेने से लेकर मृत्यु होने तक चलती है जो समय, अवस्था, परिस्थिति अनुसार अलग-अलग होती है।
1. बाल्यावस्था और किशोरावस्था - प्रेषक व एलिजाबेथ इस्टवान ने अपनी पुस्तक 'दी चाइल्ड वर्ल्ड' में इस अवस्था का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया है। डेविड ईस्टन व हेज ने बताया कि सर्वेक्षण से पता चला कि अमेरिका में 3 वर्ष से 7 वर्ष तक के बच्चों को प्रारम्भिक राजनीतिक शिक्षा दी जाती है। इसमें बच्चों को यह हमारा स्कूल है, हम इस देश के वासी हैं आदि जानकारी होती है। इसमें यह भी देखा गया है कि 8-10 वर्ष के बच्चे किसी-न-किसी राजनीतिक दल को अपना समर्थन देने लगते हैं।
2. युवावस्था - युवावस्था में भी राजनीतिक समाजीकरण का काम होता रहता है। बाल्यावस्था की ही तरह वयस्क व्यक्ति का जीवन भी वातावरण से प्रभावित होता है। यह निश्चित है कि हर शासन प्रणाली अपनी स्थिरता कायम रखने के उद्देश्य से देश के नागरिकों का राजनीतिक व्यवहार अपने अनुरूप बनाने का प्रयास करती है।
3. पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचरण - राजनीतिक समाजीकरण की एक मुख्य विशेषता यह भी है कि वह राजनीतिक व्यवहारों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरण करता है। लेकिन यह विशेषता सिर्फ उन देशों में ही परिलक्षित होगी जहाँ राजनीतिक तन्त्रों में स्थायित्व है और जिसके विचारों को देश के बहुत लोग अपने विवेक के आधार पर उचित ठहराते हैं।
राजनीतिक समाजीकरण की विशेषताएं
समाजीकरण के स्रोत-व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार के निर्माण के लिये राजनीतिक समाजीकरण के निम्नलिखित स्रोत मुख्यतः प्रयुक्त होते हैं
1. परिवार - परिवार सामाजिक गुणों का एक भण्डार है जिसके द्वारा व्यक्ति बाह्य विश्व में पदार्पण करता है। बच्चे का अपना कोई राजनीतिक दृष्टिकोण नहीं होता, वरन् वह अपने माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों की अभिवृत्तियों की नकल करते करते-अपनी राजनीतिक संस्कृति को स्थापित करता है। बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है, वैसे-वैसे उसके राजनीतिक व्यवहार में सुदृढ़ता व विस्तार होता रहता है। राजनीतिक समाजीकरण का सर्वप्रथम व सर्वप्रमुख स्रोत परिवार के राजनीतिक विचारों के निर्माण में सदा प्रत्यक्ष रूप से संलग्न रहता है।
2. साथियों का प्रभाव - व्यक्ति के संगी-साथियों का क्षेत्र सीमित नहीं होता है, वह शुरू से अन्त तक अपने साथियों के व्यवहारों से प्रभावित होता है। व्यक्ति अपने साथियों के साथ रहकर उनकी राजनीतिक संस्कृतियों को ग्रहण करता है और उन्हें अन्तर्निहित कर अपने राजनीतिक व्यवहार के द्वारा उसे अभिव्यक्त करता है।
3. आस-पड़ोस का प्रभाव - परिवार की दहलीज पार करते ही बच्चा अपने आस-पड़ोस के वातावरण से परिचित होता है। बच्चा अपने पारिवारिक सदस्यों की सीमा पार करके घर की चारदीवारी से बाहर पड़ोस के सम्पर्क में आता है। इस सम्पर्क में वह बहुत-सी बातें सीखता है जो आगे चलकर उसके राजनीतिक व्यवहार को निर्मित करने में सहायक होती हैं।
4. स्कूल द्वारा समाजीकरण - राजनीतिक समाजीकरण का काम शैक्षणिक संस्थाएँ भी प्रत्यक्ष रूप से करती हैं और अप्रत्यक्ष रूप से भी। शैक्षणिक पुस्तकों में कुछ निश्चित पाठ्यक्रम ऐसे होते हैं जिनके अध्ययन से विद्यार्थियों के मन में एक विशेष प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं। स्कूलों द्वारा किये जाने वाले राजनीतिक समाजीकरण का यह प्रत्यक्ष रूप है।
इस प्रकार का समाजीकरण प्रायः साम्यवादी देशों में देखा जाता है जहाँ विद्यार्थियों को साम्यवादी विचारों में ढालने के उद्देश्य से स्कूली पाठ्यक्रम निश्चित किये जाते हैं। इसके विपरीत, हर देश में देखा गया है कि विद्यार्थी अपने अध्यापकों के विचार तथा अपने साथियों ..से प्रभावित होकर अपने राजनीतिक संस्कृति को अभिव्यक्त करता है। इस प्रकार स्कूलों में अप्रत्यक्ष रूप से भी राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया होती है।
5. राजनीतिक दल - राजनीतिक दल, राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये निर्मित होते हैं और इसका स्वरूप स्पष्टतः राजनीतिक होता है। हर राजनीतिक दल की अपनी नीतियाँ होती हैं तथा अपने विचार व कार्यक्रम होते हैं फलस्वरूप लोगों के राजनीतिक दल के द्वारा राजनीतिक समाजीकरण की भूमिका अभिनीत की जाती है।
6. प्रेस व संचार - राजनीतिक समाजीकरण के लिये प्रेस और संचार के साधन भी सहायक व महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। समाचार-पत्रों में छपने वाले विद्वानों व अनुभवियों के लेख व टिप्पणियाँ व्यक्तियों के राजनीतिक संस्कृतियों के निर्माण में सहायक होते हैं। इस तरह प्रेस, पत्र-पत्रिकाएँ, आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि अनेक संचार के माध्यम हैं जो राजनीति के सहायक साधन माने जाते हैं।
7. सरकार की गतिविधियाँ - सरकार या शासन सत्ता देश के लिये विभिन्न प्रकार के कार्य करती रहती हैं। इसका लोगों पर उनके विचारों का अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ता है, सरकार की गतिविधियाँ यदि घनत्व के विचारों के अनुकूल होती हैं तो वे सरकार का समर्थन करते हैं और यदि सरकार लोगों की इच्छा के विरुद्ध कार्य करती है तो वही जनता अपनी सरकार का विरोध करने लगती है। इस प्रकार लोगों के राजनीतिक विचारों को सरकार की गतिविधियाँ भी निर्धारित करती हैं।
8. वर्ग और समाजीकरण - वर्ग एक खुली व्यवस्था है। व्यक्ति वर्ग की सदस्यता में परिवर्तन कर सकता है, अर्थात् वह अपनी इच्छानुसार एक वर्ग के छोड़कर दूसरे वर्ग में जा सकता है। हर वर्ग के अपने कुछ विशेष ढंग के नियम व विचार होते हैं जिसका व्यक्ति के राजनीतिक समाजीकरण पर प्रभाव पड़ता है।
राजनीतिक समाजीकरण कीसमस्याएं
किसी व्यक्ति के राजनीतिक समाजीकरण के मार्ग में आने वाली बाधाओं को असामाजिक कारक और सामाजिक कारक में बाँटा गया है। ये कारक इस प्रकार हैं
1. असामाजिक कारक - वे कारक असामाजिक कारक होते हैं जो समाज के नियन्त्रण के आधार पर नहीं, वरन् एक व अधिक व्यकित के राजनीतिक समाजीकरण में बाधक होते हैं। -
(A) वंशानुक्रमण- कुछ रोगों का संक्रमण वंशानुगत होता है। माता-पिता का रोग बच्चों में लग जाता है और रोगावस्था में होने के कारण बच्चा समूह व राज्यों के नियमों के प्रति अपनी कोई रुचि नहीं दिखाता ।
(B) प्राकृतिक पर्यावरण- प्राकृतिक पर्यावरण को कोई भी व्यक्ति, समाज या देश • नियन्त्रित नहीं कर सकता, अपितु समाज प्राकृतिक पर्यावरण से प्रभावित होता है। प्राकृतिक पर्यावरण के दोषी होने से उत्पन्न होने वाली विभिन्न समस्याएँ राजनीतिक समाजीकरण के मार्ग में बाधक बनती हैं।
2. सामाजिक कारण - सामाजिक कारणों में समाज का जनक व समाज की उपज माने जाने वाले मानसिक कारक और सांस्कृतिक कारक का विशेष महत्त्व है। व्यक्ति के राजनीतिक समाजीकरण में बाधा डालने वाली सामाजिक परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं
(A) प्रारम्भिक अवस्था - व्यक्ति में राजनीतिक समाजीकरण का संचार सर्वप्रथम उसके बचपन में होता है। वह अपनी प्रारम्भिक अवस्था में माता-पिता व परिवार के अन्य सदस्यों से प्रभावित होकर अपने अन्तःविचारों के निर्माण का प्रयास करता है परन्तु यह बात खण्डित अव्यवस्थित परिवार में असम्भव होती है।
(B) किशोरावस्था की परिस्थितियाँ-व्यक्ति किशोरावस्था में जिस प्रकार की परिस्थिति में रहता है उससे उसका राजनीतिक समाजीकरण भी प्रभावित होता है। यदि किसी का राजनीतिक समाजीकरण अच्छा है तो स्पष्ट है कि वह प्रारम्भ से ही अच्छी व अनुकूल परिस्थिति में रहता रहा है। इसके विपरीत, कभी-कभी व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियाँ मिलने के कारण वह समाज व देशद्रोही कार्य करने लगता है।
राजनीतिक समाजीकरण का महत्व
राजनीतिक समाजीकरण के रास्ते में अनेक बाधाओं के आने के बावजूद उसका महत्त्व है, जिसे निम्नलिखित शीर्षकों में व्यक्त किया जा सकता है
1. आधुनिक युग में महत्त्व - आज के युग में व्यक्ति के जीवन के हर क्षेत्र में नित्य नये बदलाव देखे जाते हैं। वैज्ञानिक व यांत्रिक विकास ने सामाजिक जीवन के मूल आधारों को ही परिवर्तित कर दिया है जिससे मानव के विचारों में भी परिवर्तन आया है। ऐसे क्रान्तिकारी परिवर्तना का प्रभाव राजनीतिक तन्त्रों, विचारधाराओं पर पड़ता है। इस स्थिति में राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्व और बढ़ गया है।
2. सचेत नागरिकता का विकास - नागरिकों की सुचेतना पर ही किसी राजनीतिक तन्त्र की सफलता निर्भर करती है। राजनीतिक तन्त्र की सफलता के लिये यह बात आवश्यक है कि उसके उद्देश्य स्पष्ट हों, जिसे लोगों द्वारा पूर्णतः समझा गया हो और समर्थन प्राप्त हो। यह तभी सम्भव है जब लोगों में राजनीतिक मूल्यों, विश्वासों, दृष्टिकोणों को विकसित करने के लिये राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया को अपनाया जाए।
3. राजनीतिक प्रणाली का स्थायित्व - इस सम्बन्ध में रॉबर्ट सीजल का कहना है कि, “राजनीतिक समाजीकरण का उद्देश्य व्यक्तियों को ऐसा प्रशिक्षण देना है जिससे वे राजनीतिक समाज के अच्छे क्रियाशील सदस्य बन सकें।" जब तक राजनीतिक प्रणाली को कार्य करने में और अपनी स्थिरता बनाने में कठिनाई पेश आयेगी तब तक राजनीतिक समाज प्रचलित मूल्यों के अनुकूल नहीं होगा।
उपर्युक्त अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है। कि चाहे राजनीतिक समाजीकरण के कार्य में कितनी ही कठिनाई क्यों न आये परन्तु हर राजनीतिक प्रणाली, राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया को अपनाती है। यह आधुनिक युग के लिये अति आवश्यक व महत्त्वपूर्ण है।
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