राजनीतिक प्रक्रिया में नारियों की भूमिका । - rajnitik prakriya me nari ki bhumika

भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी का अध्ययन किया जाए, तो यह स्पष्ट हो जाता है भारत के प्रसंग में तो स्थिति अधिक असंतोषजनक है। 

वर्तमान समय में 543 सदस्यों की लोकसभा में 48 (8.8 प्रतिशत) महिलाएँ हैं और 242 सदस्यों की राज्यसभा में 25 (10.4 प्रतिशत) महिलाएँ हैं तथा कुल मन्त्री पदों में से केवल 6.1 प्रतिशत पद ही महिलाओं को प्राप्त हैं। अतः समस्त राजव्यवस्था में महिला भागीदारी में वृद्धि हेतु निरन्तर और सघन प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता है। 

 'राजनीतिक प्रक्रिया में नारियों की भूमिका को समझाइए।

विभिन्न देशों की विधायी संस्थाओं में वर्तमान में जो महिला सदस्य हैं उनकी भूमिका के सम्बन्ध में सभी देशों के प्रसंग में तो कोई विधिवत् और विशद् अध्ययन सम्मुख नहीं है। 

 लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका, इन दो देशों के सम्बन्ध में पूरे विवरण सहित यह तथ्य सामने आया है कि महिलाओं ने विधायी संस्थाओं (ब्रिटिश संसद और अमेरिकी काँग्रेस) में अपने सहयोगी पुरुष सदस्यों की तुलना में अधिक रचनात्मक और अधिक शान्तिवादी नीति अपनाई है तथा अपना रही हैं। 

महिला सदस्यों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक बीमा, वृद्ध व्यक्तियों की देखभाल, बाल विकास, कर संग्रह में मानवीय पक्ष, पर्यावरण की रक्षा और बिजली-पानी की उचित व्यवस्था, आदि पर पुरुष सदस्यों की तुलना में अधिक प्रस्ताव रखे तथा अधिक चिन्ता व्यक्त की। इसी प्रकार महिला सदस्यों ने सामान्यतया युद्ध का और शांतिवादी नीति अपनाने तथा संयुक्त राष्ट्र संघ को अधिक प्रभावी संगठन बनाने पर बल दिया। 

ब्रिटिश संसद और अमेरिकी काँग्रेस में 2002 ई. के मध्य से 2003 ई. के प्रारम्भ तक लगभग निरन्तर इस बात पर विचार-विमर्श चला कि अमेरिका इराक के विरुद्ध बल प्रयोग करे या इस विवाद के प्रसंग में संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्देशन और

मध्यस्थता के मार्ग को अपनाये । इस विषय के प्रसंग में पुरुष सदस्यों की तुलना में महिला सदस्यों के बहुत ज्यादा बड़े प्रतिशत ने इस बात पर बल दिया कि इस मसले पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता और निर्देशन को पूरे मन के साथ और पूरी सीमा तक अपनाया जाना चाहिए। \

यह उदाहरण और अन्य सभी उपलब्ध तथ्य इस बात को स्पष्ट करते हैं कि महिलाएँ सामान्यतया रचनात्मक दृष्टिकोण के साथ शांतिप्रिय और शांतिवादी हैं और यह भविष्य के लिए शुभ संकेत भी है ।

राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी: बाधक तत्त्व

ब्रिटेन, अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड, चीन, भारत और अन्य देशों के सन्दर्भ में, राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी का जो अध्ययन किया गया, उससे यह स्पष्ट है कि इन देशों में और सामान्य रूप में विश्व के अन्य देशों में राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी की स्थिति संतोषजनक नहीं है। 

वस्तुतः राजनीतिक प्रक्रिया में महिला भागीदारी के मार्ग में बाधक तत्त्व विद्यमान हैं। ये बाधक तत्त्व एक नहीं, वरन् अनेक हैं तथा इनमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक सभी प्रकार के तत्त्व हैं। विभिन्न बाधक तत्त्वों की एक संक्षिप्त विवेचना इस प्रकार है

1. राजनीतिक तत्त्व - राजनीतिक क्षेत्र में अनेक ऐसे कारक हैं, जो महिलाओं की भागीदारी को बाधित करते हैं। लगभग सभी देशों की राजनीति 'पुरुष वाली और पुरुषों की कार्यशैली  पर है तथा उसमें महिलाओं की परिस्थितियों और सुविधाओं पर ध्यान नहीं दिया गया है। 

संसदीय बहसों के लम्बे घण्टे तथा उसके उपरान्त संसदीय समितियों में कार्य, दलीय कार्य और निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े विभिन्न कार्य तथा इन कार्यों से जुड़ी विभिन्न यात्राएँ यह सब कुछ इतना अधिक हो जाता है कि महिलाएँ पत्नी, माँ, बहन और दादी की भूमिका निभाने या गृहस्थी से जुड़े समस्त कार्यों के साथ इनका तालमेल नहीं बिठा पातीं। 

महिला को राजनीति में प्रवेश करने के पूर्व अपने पारिवारिक सदस्यों से अनुमति लेनी होती है, जो सामान्यतया एक सरल कार्य नहीं है। इसके अतिरिक्त आज की स्थिति में निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ पाना तो सम्भव नहीं है और महिलाओं के लिए राजनीतिक दल का टिकिट प्राप्त कर पाना और भी कठिन है। 

विश्व के विभिन्न देशों में जो राजनीतिक नेता हैं, उनमें कुछ मिलाकर लगभग 11 प्रतिशत महिलाएँ हैं और 89 प्रतिशत पुरुष। इन नेताओं में से अधिकांश पुरुषवादी सोच और यथास्थितिवाद से जुड़े हैं। स्वाभाविक रूप से जब कोई महिला राजनीति में प्रवेश करना चाहती है तो वे पग-पग पर बाधा पहुँचाते हैं तथा महिला के लिए दल का प्रत्याशी बन पाना बहुत कठिन हो जाता है। नडिघा श्वेदोवा ने अपने एक लेख में इन कठिनाइयों का उल्लेख इस प्रकार किया है। 

किसी महिला के लिए राजनीति में प्रवेश करने का विचार बना पाना बहुत कठिन है। एक बार वह अपना विचार बना ले, तब उसे इस सम्बन्ध में अपने पति, बच्चों और परिवार को तैयार करना होता है। जब वह इन सब कठिनाइयों को पार कर दल के टिकिट के लिए आवेदन करे। 

तब पुरुष प्रतियोगी जिसके विरुद्ध उसे चुनाव लड़ना है। उसके सम्बन्ध में कई तरह की कहानियाँ प्रचारित-प्रसारित करता है। इस सबके बाद जब उसका नाम दलीय नेताओं के सामने जाता है, तब वे उसे इस कारण उम्मीदवारी से वंचित कर देते हैं कि उन्हें सीट खो देने का डर रहता है। 

अधिकांश देशों में हम आज भी पुरुष प्रधान समाज में रह रहे हैं और पुरुष प्रधान समाज के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी कम हो, यह नितान्त स्वाभाविक है।

2. सामाजिक-आर्थिक तत्त्व - 'राजनीति महिलाओं का कार्य क्षेत्र नहीं है सदियों से चला आ रहा यह विचार अब भी अनेक देशों में बना हुआ है, परिणामतः महिलाएँ राजनीति की ओर उन्मुख नहीं होतीं और जो इस ओर उन्मुख होती हैं, उन्हें विविध प्रकार से हतोत्साहित किया जाता है। 

इसके अतिरिक्त विश्व के अधिकांश देशों की राजनीति में धन की शक्ति बहुत अधिक बढ़ गई है, उम्मीदवारों को दल की ओर से बहुत थोड़े ही वित्तीय साधन दिए जाते हैं, शेष वित्तीय साधन तो उम्मीदवारों को खुद ही जुटाने होते हैं। विविध क्षेत्रों से वित्तीय साधन जुटा लेने का कार्य पुरुषों की तुलना में महिलाएँ ठीक प्रकार से नहीं कर पातीं। यह बात उन्हें नुकसान की स्थिति में पहुँचा देती है। 

इन सबके अतिरिक्त अधिकांश देशों में राजनीति बहुत भद्दा और विभिन्न दुष्टताओं से भरा खेल बन गया है व्यक्तिगत लांछन, दुष्प्रचार, छलयोजित चुनाव प्रचार, राजनीतिक जोड़-तोड़, बल प्रयोग और फर्जी मतदान चुनाव में विजय प्राप्त करने के गुर बन गए हैं। पुरुष इन सभी कार्यों में महिलाओं की तुलना में अधिक प्रवीण देखे गए हैं। महिलाओं की शालीनता उन्हें इन कार्यों से विमुख करती है और वे नुकसान में रहती हैं। ।

3. राजनीतिक शिक्षा और सम्पर्क सुविधाओं में महिलाओं का पिछड़ापन - शिक्षा राजनीति के संरचनात्मक तत्त्व का कार्य करती है और लगभग सभी देशों में महिलाएँ शिक्षा के सम्बन्ध में पुरुषों से पीछे हैं, राजनीतिक शिक्षण-प्रशिक्षण में तो वे पुरुषों से बहुत पीछे हैं। परिणामतया वे चुनाव लड़ने का विचार नहीं कर पातीं, यदि विचार कर पाती हैं तो सफल नहीं हो पातीं। 

मजदूर संघों, व्यावसायिक संघों और अन्य दबाव समूहों से महिलाएँ कम जुड़ी रहती हैं, परिणामतया वे दबाव समूह चुनावी राजनीति में महिलाओं के नाम को आगे बढ़ाने की ओर प्रवृत्त नहीं होते। एक शोचनीय तथ्य यह है कि महिला संगठन भी सामान्यतया इस बात में रुचि नहीं लेते कि चुनावों में महिलाओं की उम्मीदवारी अधिक हो और जो महिला उम्मीदवार हैं, वे चुनाव में विजयी हों।

4. मनोवैज्ञानिक तत्त्व - राजनीति में महिलाओं की कम भागीदारी में मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का भी योग है। राजनीति उनका कार्य क्षेत्र हो सकता है और वे चुनाव में विजयी हो सकती हैं, इस बात के सम्बन्ध में सामान्यतया उनमें आत्मविश्वास का अभाव देखा गया है, अतः वे राजनीति की ओर उन्मुख नहीं होतीं। 

राजनीति एक गन्दा खेल है’ यह बात बहुप्रचारित है और बहुत कुछ अंशों में सत्य भी है, स्वाभाविक रूप से महिलाएँ राजनीति में भाग लेने की बात सरलता से नहीं सोच पातीं।

5. जन संचार साधनों की भूमिका- महिलाओं की कम भागीदारी के लिए समाचार-पत्र और टेलीविजन, आदि जनसंचार के साधन भी कम उत्तरदायी नहीं हैं जनसंचार के साधन अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और अपने व्यावसायिक हितों के कारण नारी की देह, उसके सौन्दर्य और आकर्षण को ही केन्द्र बिन्दु बनाए हुए हैं। 

इस बात को भुला दिया गया है कि नारी न केवल आकर्षक शरीर, वरन् ज्ञान और समझ से परिपूर्ण मस्तिष्क और भारी रचनात्मकता की भी धनी है। Weaker Sex' की धारणा को जनसंचार माध्यमों ने बलवती बनाया और इस धारणा ने राजनीति में नारी की भूमिका में बाधाएँ खड़ी की हैं।

कुछ अन्य तत्त्व भी हैं, साधारण बहुमत की पद्धति भी राजनीति में नारी की कम भागीदारी के लिए उत्तरदायी बताई जाती है। सर्वप्रमुख कारण तो स्वयं पुरुष और समाज के एक वर्ग की पुरुषवादी सोच और निहित स्वार्थ ही है। विडम्बना यह है कि स्वयं नारी जाति का एक वर्ग पुरुषवादी सोच से ग्रस्त है। 

राजनीति में महिला भागीदारी को बढ़ाने के लिए सुझाव

यह तथ्य है कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी आज भी कम है। प्रतिनिधि संस्थाओं (व्यवस्थापिकाओं) में उनकी भागीदारी 15 प्रतिशत है और निर्णयकारी संस्थाओं (कार्यपालिका संस्थाओं) में उनकी भागीदारी केवल 6 और 7 प्रतिशत के बीच है। राजनीति में महिला भागीदारी अधिक हो, इसके लिए कुछ प्रमुख सुझाव निम्न प्रकार हैं

1. महिलाओं का राजनीतिकरण- महिलाओं का राजनीतिकरण महिला भागीदारी को बढ़ाने का निश्चित उपाय है। महिलाओं का राजनीतिकरण एक व्यापक धारणा है और इसके अन्तर्गत अनेक बातें आती हैं- प्रथम, सूचना- विचार और ज्ञान राजनीति का संरचनात्मक ढाँचा है। 

अतः महिलाओं को सार्वजनिक जीवन और राजनीति के सम्बन्ध में अधिकाधिक जानकारी देने, उनके विचार और ज्ञान को आगे बढ़ाने और राजनीति के प्रति उनमें अधिक-से-अधिक रुचि पैदा करने की प्रत्येक सम्भव चेष्टा की जानी चाहिए। द्वितीय, महिलाओं को अपनी समस्याओं, सामाजिक समस्याओं, जीवन और प्रश्नों पर बातचीत के लिए अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

महिलाओं में आत्मविश्वास जाग्रत किया जाना चाहिए तथा उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए कि 'यदि राजनीति एक गन्दा खेल है' तो उन्हें इस खेल की गन्दगी को कम करने और इसमें ताजगी लाने के लिए इसमें प्रवेश करना चाहिए ।

2. महिलाएँ संगठित हों, विशेषतया राजनीतिक रूप से संगठित हों- राजनीतिक दलों के अन्दर और बाहर महिलाओं को संगठित होना चाहिए। महिलाएँ अधिक-से-अधिक संख्या में अपनी पसन्द के राजनीतिक दल की सदस्यता प्राप्त करें और दल में स्वयं को प्रभावी बनायें । अधिकांश राजनीतिक दलों के नेतृत्व पद पर पुरुष आसीन हैं, उम्मीदवारों के चयन में उनके अपने लिंग आधारित पूर्वाग्रह होते हैं।

इन पूर्वाग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए महिलाओं को इस बात पर जोर देना चाहिए कि उम्मीदवारों के चयन के लिए स्पष्ट नियम हों तथा नेतृत्व के प्रति निष्ठा के बजाय दल के प्रति निष्ठा को अधिक महत्त्व दिया जाए। जब राजनीतिक खेल के नियम स्पष्ट होंगे, तो अपने प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए महिलाएँ रणनीति विकसित कर सकती हैं। 

प्रत्येक राजनीतिक दल की महिला शाखा को अधिक सशक्त बनाने के लिए प्रयत्न किए जाने चाहिए, महिला शाखा सशक्त हो और अपने लिए अधिक प्रतिनिधित्व की माँग करे |

3. गैर-सरकारी संगठनों, विशेषतया महिला संगठनों की भूमिका- राजनीति अपेक्षाकृत विशुद्धता और रचनात्मकता की दिशा में आगे बढ़े, इस दृष्टि से गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा राजनीति में महिलाओं की अधिक भागीदारी पर बल दिया जाना चाहिए। इस प्रसंग में सभी महिला संगठनों की जागरूकता अधिक आवश्यक है। 

महिला संगठनों द्वारा महिलाओं की जागरूकता और सक्रियता को बढ़ाते हुए राजनीतिक दलों पर इस बात के लिए दबाव डाला जाना चाहिए कि वे अपने संगठनात्मक ढाँचे में महिलाओं को प्रभावशाली भागीदारी दें और अधिक संख्या में उन्हें उम्मीदवार बनायें। 

महिला का वोट महिला के लिए' यह स्थिति तो सम्भव और उचित नहीं है, लेकिन जब कभी चुनाव मैदान में समान योग्यता वाले उम्मीदवार हों, तब महिला उम्मीदवार के पक्ष को पूरी शक्ति के साथ मजबूत किया जाना चाहिए।

4. महिलाओं को मजदूर संघों और अन्य सभी दबाव समूहों में अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए। दबाव समूहों को 'महिला उन्मुख' करने की चेष्टा की जानी चाहिए। 

5. जीवन के सभी क्षेत्रों में संचार माध्यमों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है तथा अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होती जा रही है। राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं और महिला संगठनों के द्वारा जनसंचार माध्यमों के साथ मित्रता की स्थिति बनाई जानी चाहिए । 'मीडिया' नारी सौन्दर्य को सामने लाने के साथ-साथ उसकी तेजस्विता, ऊर्जा शक्ति और रचनात्मकता को भी पूरी कलात्मकता के साथ सामने लाए।

जो महिलाएँ राजनीति में हैं, वे अपना कार्य उचित रूप में कर सकें और अन्य महिलाएँ राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित हों, इसके लिए आवश्यक है कि पुरुष वर्ग की समस्त सोच में परिवर्तन हो और गृहस्थी के काम में पुरुष महिलाओं के साथ भागीदारी करें।

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