रिजर्व बैंक की असफलताएँ क्या है?

भारतीय रिजर्व बैंक की प्रमुख असफलताएँ निम्नांकित हैं -

1. मुद्रा स्फीति को रोकने में असफल - रिजर्व बैंक अपनी नीतियों के माध्यम से मुद्रा स्फीति जैसी घातक बुराई पर अंकुश पूर्णतया नहीं लगा पायी है। उम्मीद है कि रिजर्व बैंक अपनी साख एवं मुद्रा की पूर्ति की व्यवस्थाओं के द्वारा मुद्रा-स्फीति जैसी बुराई पर काबू पा लेगा। लेकिन ऐसा होना असम्भव है। मुद्रा स्फीति की इस स्थिति के कारण जनता को बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं।

2. मुद्रा बाजार में सम्बन्ध का अभाव - रिजर्व बैंक संगठित मुद्रा बाजार एवं असंगठित मुद्रा बाजार के बीच समन्वय एवं एकीकरण स्थापित करने में असफल रहा है। स्वदेशी बैंकर, जो ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों एवं श्रमिकों को ऋण देते हैं, आज भी रिजर्व बैंक के नियंत्रण से बाहर हैं।

3. ब्याज की दरों में भिन्नता - मुद्रा बाजार में समन्वय एवं एकीकरण का अभाव होने के कारण देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग ब्याज की प्रचलित हैं। असंगठित मुद्रा बाजार में स्वेदशी बैंकों, साहूकार एवं महाजन लोग 36 प्रतिशत वार्षिक ब्याज ले रहे हैं। रिजर्व बैंक की बैंक दर में परिवर्तनों का इनकी ब्याज की दरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित ऊँची ब्याज की दरें रिजर्व बैंक की भारी असफलता है।

4. बिल बाजार के विकास में असफलता - सन् 1951-52 में रिजर्व बैंक ने बिल बाजार का विकास करने के लिए अपनी योजना को लागू किया था। इसके बावजूद भी आज भारत में बिल बाजार का समुचित विकास नहीं हो सका है। आज भी मुद्रा बाजार में अच्छे एवं कटौती योग्य बिलों का भारी अभाव पाया जाता है।

5. रुपये के बाह्य मूल्य में अस्थिरता - रिजर्व बैंक भारतीय रुपये के विदेशी मूल्यों को स्थिर रखने में असफल रहा है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय रुपये का कई बार अवमूल्यन किया जा चुका है।

6. बैंकिंग सुविधाओं की अपर्याप्तता – यद्यपि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद देश में बैंकिंग सुविधाओं का विस्तार हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की शाखाएँ खोली गयी हैं, फिर भी देश के आकार एवं जनसंख्या को देखते हुए बैंकिंग सुविधा अपर्याप्त है। आज भी ग्रामीण क्षेत्र के लोग बैंकिंग सुविधाओं से वंचित हैं।

7. साख नियंत्रण में कठिनाई - रिजर्व बैंक को साख मुद्रा के नियमन में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि रिजर्व बैंक ने समय-समय पर विनिमय नियंत्रण की विभिन्न नीतियों को अपनाया है। 

8. बैंकों को संकट से बचाने में असफल - बैकिंग संकटों के निवारण की दृष्टि से रिजर्व बैंक आंशिक रूप से ही सफल रहा है। सन् 1960 के बाद यद्यपि रिजर्व बैंक छोटे और कमजोर बैंकों के एकीकरण के माध्यम से उन्हें असफल होने से बचाने में सफल रहा है। 

लेकिन मई सन् 1992 में शेयर बाजार के एक प्रमुख दलाल हर्षद मेहता द्वारा अन्य दलालों के साथ मिलकर 40 अरब रुपयों से अधिक की राशि के लिये किये गये घोटाले ने देश की बैंकिंग व्यवस्था एवं उस पर रिजर्व बैंक की नियंत्रण क्षमता पर एक प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

उपयुक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने केन्द्रीय बैंक के रूप में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये हैं, फिर भी उसे मुद्रा बाजार को संगठित करने एवं बैंकिंग व्यवस्था को अधिकतम चुस्त दुरुस्त बनाने के लिए और साख सम्बन्धी समस्याओं को हल करने के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता है तभी रिजर्व बैंक को आशातीत सफलता मिल सकेगी।

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