सर्वनाम की परिभाषा - जो शब्द संज्ञा के स्थान पर प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें सर्वनाम कहते हैं। जैसे— मैं, वह, आप, तुम, कौन, हम, वे आदि । सर्वनाम की आवश्यकता सामान्यतः इसलिए होती है कि संज्ञा का बार-बार प्रयोग न करना पड़े।
संज्ञा की अपेक्षा सर्वनाम इसलिए विलक्षण है कि संज्ञा से जहाँ उसी वस्तु का बोध होता है जिसका वह नाम है, वहीं सर्वनाम में पूर्वापर सम्बन्ध के अनुसार किसी भी वस्तु का बोध होता है। जैसे घोड़ा कहने से केवल ‘घोड़े’ का होता है किन्तु 'वह' कहने से पूर्वापर सम्बन्ध के अनुसार ही किसी वस्तु का बोध होता है।
सर्वनाम के प्रकार
हिन्दी में सर्वनाम के मुख्यतः पाँच प्रकार या भेद माने गए हैं
(1) पुरुष वाचक सर्वनाम - पुरुष वाचक सर्वनाम उसे कहते हैं जो किसी व्यक्ति (स्त्री अथवा पुरुष ) के नाम के बदले में आते हैं। इसके तीन भाग हैं, उत्तम पुरुष में स्वयं लेखक या वक्ता आता है, मध्यम पुरुष में पाठक या श्रोता आता है तथा अन्य पुरुष में लेखक और श्रोता के अलावा कोई अन्य आता है।
जैसे
- उत्तम पुरुष - मैं, हम, हमारा।
- मध्यम पुरुष – तू, तुम्हारा, आप, तुम ।
- अन्य पुरुष - वह, वे, यह, ये आदि ।
(2) निश्चय वाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम से बोलने वाले व्यक्ति के पास या दूर की किसी वस्तु की निश्चितता का बोध होता है उसे निश्चय वाचक सर्वनाम कहते हैं ।
उदाहरण -
- यह शीला की बहन है।
- वह श्याम का घर है।
(3) अनिश्चय वाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम के द्वारा किसी निश्चित वस्तु का बोध नहीं हो पाता उसे अनिश्चित वाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे- कोई, कुछ ।
उदाहरण -
- यहाँ कोई आया था ।
- इसमें कुछ सामग्री है।
(4) सम्बन्ध वाचक सर्वनाम - ऐसे सर्वनाम जिससे वाक्य में किसी दूसरे सर्वनाम से संबंध का बोध होता है उसे संबंध वाचक सर्वनाम कहा जाता है। जैसे- जो, सो, जैसा, वैसा आदि ।
उदाहरण -
- जो परिश्रम करेगा वह सफल होगा।
- जो जैसा बोयेगा वह वैसा ही काटेगा।
(5) प्रश्नवाचक सर्वनाम - जिस सर्वनाम से प्रश्न का बोध होता है उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं। - जैसे- कौन, क्या।
उदाहरण –
- कौन आया है ?
- तुम्हें क्या हो गया है ?