व्यापारिक बैंकों के दोष बताइए

व्यापारिक बैंकों के दोष

व्यापारिक बैंकों के प्रमुख दोष निम्नांकित हैं -

1. अपर्याप्त जमाएँ - पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीय बैंकों में पूँजी जमाएँ बहुत कम हैं। अमेरिका में प्रतिव्यक्ति जमाएँ 2923 रुपये है, जबकि भारत में केवल 321 रुपये है। इसका प्रमुख कारण पश्चिमी देशों में प्रतिव्यक्ति औसत आय की तुलना में भारत में प्रतिव्यक्ति औसत आय बहुत कम है।

2. बैंकिंग आदत की कमी - भारत में सामान्य जनता में बैंकिंग की आदत काफी कम है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपनी बचत जमा को बैंक में जमा कराने की अपेक्षा गाड़कर रखना अधिक अच्छा मानते हैं। - 

3. बैंकों का असंतुलित विकास - देश में व्यापारिक बैंकों का असंतुलित विकास हुआ है। जहाँ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल में इनके विकास की गति बहुत धीमी है।

4. विनियोग की गलत नीतियाँ - व्यापारिक बैंकों ने अपने अधिकांश अतिरिक्त धन का विनियोग सरकारी प्रतिभूतियों में किया है। यह सुरक्षित तो है, लेकिन लाभ कम मिलता है। विनिमय और हुण्डियों में कम धन लगाने से देश का बिल बाजार विकसित नहीं हो पाया है।

5. विदेशी विनिमय बैंकों से प्रतियोगिता - भारतीय व्यापारिक बैंकों को विदेशी विनिमय बैंकों से कठोर प्रतियोगिता करनी पड़ती है। विगत वर्षों में विनिमय बैंकों ने देश के अन्दर भी अपनी शाखाओं का विस्तार कर लिया है। चूँकि विदेशी बैंकों के वित्तीय साधन भारतीय बैंकों की तुलना में अधिक हैं, इसलिए भारतीय बैंक प्रतियोगिता में पिछड़ जाते हैं। 

6. कानूनी तरलता अनुपात एवं नकद कोष अनुपात की समस्या - व्यापारिक बैंक को रिजर्व बैंक के पास एवं स्वयं के पास अपनी नकद जमाओं का एक निश्चित प्रतिशत रखना पड़ता है। यह उनकी एक समस्या है। इन नकद कोषों की दरें ऊँची होने पर बैंक के पास ऋण देने के लिए बहुत थोड़े साधन बचते हैं।

7. सरकार की उपेक्षापूर्ण नीति - भारतीय व्यापारिक बैंकों के विकास में केन्द्रीय एवं राज्य सरकारें किसी भी प्रकार का अनुदान नहीं करती हैं। इन बैंकों को सरकारी एवं अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं द्वारा जमा राशि समय पर प्राप्त नहीं होती है। सरकार की इस उपेक्षापूर्ण नीति के कारण इनका विकास नहीं हो पा रहा है ।

8. बैंकों के लाभों में कमी - सरकारी नीति के कारण व्यापारिक बैंकों को भारी मात्रा में ऋण माफ करने पड़े हैं । इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे व्यक्तियों एवं बीमार इकाइयों को ऋण देने पड़े, जिनकी वापसी की संभावना नहीं है ।

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