व्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ

 व्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ

व्यष्टि अर्थशास्त्र की प्रमुख सीमाएँ, कमियाँ, दोष अथवा कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं -

1. केवल व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन – व्यष्टि अर्थशास्त्र में केवल व्यक्तिगत इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार, इस विश्लेषण में राष्ट्रीय अथवा विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था का सही-सही ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता। अतः व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन एकपक्षीय होता है।

2. अवास्तविक मान्यताएँ - व्यष्टि अर्थशास्त्र अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है, व्यष्टि अर्थशास्त्र केवल रोजगार वाली अर्थव्यवस्था में ही कार्य कर सकता है। जबकि पूर्ण रोजगार की धारणा काल्पनिक है। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन में पूर्ण प्रतियोगिता के स्थान पर अपूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है। व्यष्टि अर्थशास्त्र की दीर्घकाल की मान्यता भी व्यावहारिक नहीं लगती है।

3. व्यष्टि निष्कर्ष, समग्र अर्थव्यवस्था के लिए अनुपयुक्त – व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत इकाइयों के अध्ययन के आधार पर निर्णय लेता है। अनेक व्यक्तिगत निर्णयों को सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए सही मान लेता है, लेकिन व्यवहार में कुछ धारणाएँ ऐसी होती हैं।  

जिन्हें समूहों पर लागू करने से निष्कर्ष गलत निकलता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति के लिए बचत करना ठीक है। लेकिन यदि सभी व्यक्ति बचत करने लग जायें। तो इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगेगा।

4. संकुचित अध्ययन – कुछ आर्थिक समस्याएँ ऐसी होती हैं। जिनका अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए, मौद्रिक नीति, राष्ट्रीय आय, रोजगार, राजकोषीय नीति, आय एवं धन का वितरण, विदेशी विनिमय, औद्योगिक नीति इत्यादि। यही कारण है कि आजकल समष्टि अर्थशास्त्र का महत्व बढ़ता जा रहा है। 

5. अव्यावहारिक –  व्यष्टि अर्थशास्त्र के अधिकांश नियम एवं सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की मान्यता पर आधारित हैं। लेकिन जब पूर्ण रोजगार की मान्यता ही अवास्तविक है। तो इस पर बने समस्त नियम एवं सिद्धान्त भी अव्यावहारिक ही कहे जायेंगे।

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