व्यावसायिक पत्र का महत्व - vyavsayik patra ka mahatva

व्यापारिक पत्रों से आशय ऐसे पत्रों से है, जो व्यापारियों के मध्य, व्यापारी एवं ग्राहकों के मध्य और कभी-कभी सुविधा की प्राप्ति या शिकायत करने के संदर्भ में व्यापारियों द्वारा सरकारी एवं अर्द्धसरकारी संस्थाओं को लिखे पत्र को व्यापारिक पत्र कहा जाता है। 

व्यावसायिक पत्र के महत्व की विवेचना कीजिए। 

इसके संबंध में हरबर्ट ए. केसन ने लिखा है प्रत्येक निर्गमित पत्र आपकी संस्था का यात्री है । यह विक्रेता है। यह संदेश ले जाता है । यह शान्त होता है. परन्तु गूँगा नहीं। यह ग्राहकों को आकर्षित करता है या भगा देता है। यह संस्था की ख्याति निर्माण में सहायता पहुँचाता है।

व्यापारिक पत्र के उद्देश्य 

व्यापारिक पत्र लिखने के तीन प्रमुख उद्देश्य होते हैं

(i) व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क किये बिना सम्प्रेषण का सुविधाजनक माध्यम प्रदान करना । (ii) कोई सूचना प्राप्त करना या प्रदान करना।

(iii) किये गये व्यवहारों का लेखा रखना।

व्यापारिक पत्र-व्यवहार की आवश्यकता  

वर्तमान युग प्रगतिशील व्यापारिक युग है। आज व्यापार का मूल आधार पत्र-व्यवहार ही है। प्रभावी एवं कुशल पत्र-व्यवहार द्वारा व्यापार को विकसित किया जा सकता है। व्यापारिक पत्र का महत्व ( आवश्यकता) निम्नांकित बातों से भी स्पष्ट होता है

(1) व्यापारिक क्षेत्र के विस्तार में सहायक - इस पत्र की आवश्यकता उस समय नहीं थी जब व्यापार का क्षेत्र सीमित था, किन्तु आज इसका क्षेत्र दूर-दूर तक हो गया है। आज व्यापार क्षेत्रीय या प्रान्तीय न होकर अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है। बैंक, बीमा तथा संदेश एवं मालवाहक संस्थाओं के अत्यधिक सहयोग की आवश्यकता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु व्यापारिक पत्र ही वर्तमान समय में ज्यादा कारगर सिद्ध जान पड़ते हैं।

(2) रचनात्मक शक्ति के रूप में- प्रतिस्पर्धा के इस युग में एक कुशल व्यापारी के लिए यह आवश्यक है कि वह संबंधित लोगों या फर्मों से व्यापारिक संबंध स्थापित करें ताकि व्यापार में वांछित सफलता प्राप्त हो सके।

(3) प्रतियोगिता का सामना करने के लिए - व्यापारिक प्रतियोगिता के इस दौर में एक व्यापारी के लिए यह आवश्यक है कि वह कुशल पत्र लेखन की व्यवस्था करे। पत्रों का प्रभाव गहरा एवं स्थायी होता है। जो कार्य व्यक्तिगत मुलाकात में नहीं बनते वे व्यापारिक पत्रों से होते देखे गए हैं।

(4) व्यक्तिगत भेंट से भी अधिक प्रभावी- कहा जाता है कि पत्र में व्यक्ति हृदय खोलकर लिखता है अर्थात् जो लिखना होता है। वह पत्र में सहजता के साथ बिना किसी संकोच एवं डर के लिखा जाता है, जबकि व्यक्तिगत भेंट में संकोच एवं आवेश के कारण अनर्गल बातें सामने आ जाती हैं। अतः व्यापारिक पत्र व्यक्तिगत मुलाकात से ज्यादा प्रभावी होता है।

(5) मितव्ययिता - व्यक्तिगत सम्पर्क करने में रुपये-पैसे ( रेल किराया) का ज्यादा खर्च होता है एवं समय भी ज्यादा लगता है और अपना व्यापार छोड़कर भी जाना पड़ सकता है। जबकि पत्र में पैसा एवं समय दोनों की बचत होती है।

(6) शिकायतों का समायोजन - व्यापार के दौरान व्यापारी एवं ग्राहकों एवं व्यापारी एवं व्यापारी के बीच ऐसे भी अवसर आ जाते हैं, जब उन्हें शिकायत करने की जरूरत होती है। ऐसी स्थिति में शिकायत प्रत्यक्ष करने के बजाय पत्र के माध्यम से करते हैं जिनमें व्यक्तिगत भेंट की अपेक्षा ज्यादा विनम्र शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

(7) पारस्परिक निर्णयों का लिखित प्रमाण-आपसी मतभेद या विवादास्पद विषयों के संबंध में पत्रव्यवहार करके शीघ्र निर्णय लिया जा सकता है और असंतुष्ट होने पर कानून या न्यायालय की शरण ली जा सकती है।

(8) सेवाओं एवं वस्तुओं की विक्रय वृद्धि - जिस प्रकार प्रत्यक्ष भेंट वार्ता द्वारा विक्रय प्रतिनिधि सेवाओं एवं वस्तुओं के विक्रय में वृद्धि कर सकता है। उसी प्रकार पत्र-व्यवहार के द्वारा वस्तुओं या सेवाओं के विक्रय को बढ़ाया जा सकता है।

(9) पत्र-व्यवहार व्यापारिक भवन की सुदृढ़ नींव की स्थापना में सहायक होती है। 

(10) पत्र व्यवहार से ख्याति या प्रसिद्धि प्राप्त होती है।

(11) अशोध्य ऋणों की वसूली-उधार को व्यापार की आत्मा कहा गया है। बिना उधार माल मँगाये तथा बेचे व्यापार का काम नहीं चलता। किन्तु इसे वसूलने में काफी कठिनाइयाँ आती हैं। ऐसी स्थिति में बारबार तकादा करना भी उचित नहीं लगता, तब पत्र-व्यवहार ही ऋण वसूली में हमारी सहायता करता है। 

व्यापारिक पत्र के कार्य  

आरंभिक अवस्थाओं में पत्र-व्यवहार को केवल सूचना के आदान-प्रदान का माध्यम भर समझा जाता था। लेकिन वर्तमान व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के युग में पत्र-व्यवहार वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री में प्रभावशाली एवं निश्चित् माध्यम के रूप में जाना जाता है। किसी सूचना को प्रेषित करने के साथ-साथ व्यापारिक पत्र-व्यवहार तीन प्रमुख कार्य करता है -

(i) लिखित ब्यौरा रखना।

(ii) व्यापार को प्रोत्साहित करना।

(iii) साख का निर्माण करना।

(i) लिखित ब्यौरा रखना - यह बात निर्विवादतः सत्य है कि मनुष्य की स्मरणशक्ति चाहे कितनी भी तीव्र क्यों न हो, वह जीवन की जटिलताओं के कारण प्रत्येक बात या घटना को याद नहीं रख सकता। केवल स्मरण शक्ति पर निर्भर होकर, व्यापारिक क्षेत्र से प्राप्त होने वाले पत्रों पर उचित कार्य नहीं कर सकता। 

जबकि पत्रों को सँभाल कर रख लिया जाता है। क्रय-विक्रय, ऋण, साख सूचना आदि को लिखित रूप में मनुष्य पत्र के माध्यम से रख लेता है।

(ii) व्यापार को प्रोत्साहित करना - उद्योगों एवं कल-कारखानों एवं वैज्ञानिक तकनीकी के कारण वस्तुओं के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। उत्पादों की खपत घर बैठे आज संभव नहीं है क्योंकि कड़ी प्रतिस्पर्धा है। व्यक्तिगत सम्पर्क भी कुछ ही लोगों से हो पाता है। 

अतः वस्तुओं की तेजी से बिक्री या व्यापार के फैलाव के लिए पत्र काफी महत्वपूर्ण बन गया है। व्यक्ति पत्र के माध्यम से बैंक बीमा एवं अन्य व्यापारिक संस्थाओं से एक साथ संबंध स्थापित कर सकता है और इस प्रकार व्यापार को प्रोत्साहन प्राप्त होता है।

(iii) साख या ख्याति का निर्माण करना - व्यापार में साख ऋण की वसूली, शिकायत आदि कुछ ऐसी बातें होती हैं, जो बहुत नाजुक हैं और बातों के लिए यह आवश्यक है कि पत्र की भाषा शिष्ट एवं विनम्र हो जिससे व्यक्ति या फर्म की साख बढ़ती है। पत्र के द्वारा तात्कालिक उद्देश्यों की पूर्ति एवं भावी समय में उपयोगी होने का आश्वासन रहता है।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यापारिक पत्र के माध्यम से सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री में काफी मदद मिलती है। 

अत: मनुष्य एवं व्यापार जगत के लिए व्यापारिक पत्र का अत्यधिक महत्व है। व्यावसायिक पत्र की भाषा नम्र एवं सरल तथा आकर्षक एवं प्रभावशाली होने के कारण यह चिरस्थायी एवं प्रभावी होता है।

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