भारत में नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप सन् 1967-68 में हरित क्रांति का प्रारंभ हुआ। हरित क्रांति को अपना कर कुछ चुने हुए कृषि क्षेत्रों में जल एवं उर्वरकों की सहायता से अधिक उपज देने वाले बीज की किस्मों का उपयोग कर खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि करना है।
हरित क्रांति क्या है
इस प्रौद्योगिकी में कुछ चुने हुए कृषि क्षेत्रों में अच्छे, विकसित, अधिक उपज देने वाले बीजों तथा पर्याप्त मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग सिंचाई की सहायता से किया गया, फलस्वरूप खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ गया।
इसे देखकर अन्य क्षेत्रों में भी हरित क्रांति को अपनाया गया जिससे खाद्यान्न उत्पादन में एकाएक क्रान्ति आ गई फलस्वरूप एक पैकेज टेक्नोलॉजी को 'हरित क्रान्ति' का नाम मिल गया।
हरित क्रान्ति' का प्रभाव पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं आंध्र प्रदेश में अधिक पड़ा तथा गेहूँ, धान (चावल) के उत्पादन में आशाजनक वृद्धि भी हुई। इससे खाद्यान्नों में जो सफलता मिली वह दालों, तिलहनों में नहीं देखी गयी।
हरित क्रान्ति के दुष्प्रभाव
इसका मुख्य कारण हरित क्रान्ति केवल 'अधिक उपजाऊ किस्म' के बीजों, विशेषकर गेहूँ, मक्का एवं ज्वार, चावल आदि तक ही सीमित थी। इसे जौ, रागी एवं अन्य निकृष्ट अनाजों पर लागू नहीं किया गया।
हरित क्रान्ति के कारण ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की आय के स्तर में वृद्धि हुई है। लेकिन हरित क्रान्ति के दो दुष्प्रभाव भी हुए हैं -
- हरित क्रान्ति से गाँवों में व्यक्तिगत असमानता को बढ़ावा मिला है।
- हरित क्रान्ति द्वारा क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि हुई है।
हरित क्रान्ति की प्रभावशीलता - हरित क्रान्ति से किसान जड़ता के भँवर से बाहर निकल आया है। दूसरी बात है कि हरित क्रान्ति के परिवर्तनों से सभी किसान (विशेषकर छोटे किसान) समान मात्रा में लाभ प्राप्त नहीं कर सके हैं, लेकिन जिन किसानों को इस क्रान्ति से लाभ प्राप्त नहीं हो सका।
वे भी इसकी बुराई नहीं करते हैं बल्कि अवसर मिलने पर इसे अपनाने को तैयार रहते हैं। इसी से हरित क्रान्ति की प्रभावशीलता एवं महत्व का आभास होता है।
हरित क्रान्ति के उद्देश्य -
- अल्प काल में कृषि उत्पादन में सुधार।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि।
- प्रति हेक्टेयर औसत उपज में वृद्धि।
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