देसी बैंक किसे कहते हैं?

 देसी बैंक किसे कहते हैं

भारत का बैंकिंग व्यवसाय अति प्राचीन है। हालांकि बैंकिंग का स्वरूप आधुनिक बैंकों के समान नहीं था, तथापि अति प्राचीनकाल में यह अत्यन्त संगठीत एवं पूर्ण व्यवसाय के रूप में था। भारत में बैंकिंग व्यवसाय पारिवारिक अथवा व्यक्तिगत व्यवसाय के रूप में किया जाता रहा है। देश के विभिन्न भागों में देशी बैंकिंग व्यवसाय करने वाले अलग-अलग नामों से जाने जाते थे।  

जैसे - पंजाब में महाजन, उत्तर प्रदेश में साहूकार, मारवाड़ में सेठ, महाराष्ट्र में सर्राफ तथा चेन्नई में चेट्टी आदि। प्राचीन काल में ग्रामीण ऋण की 98 प्रतिशत आवश्यकताएँ देशी बैंक ही पूरी करते थे और आज भी ग्रामीण ऋण की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति देशी बैंकों के द्वारा ही की जाती है। सर्राफ समिति के अनुसार, “भारत के आंतरिक व्यापार की 70% से 90% तक की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति देशी बैंकों के द्वारा ही की जाती है।

देशी बैंक का अर्थ एवं परिभाषा

देशी बैंक का आशय, उस सेठ, साहूकार, महाजन अथवा अन्य किसी ऐसे व्यक्ति से होता है, जो अपने ग्राहकों को आवश्यकता के समय ऋण देते हैं, जनता से जमाएँ स्वीकार करते हैं और हुण्डियों के लेन-देन का कार्य करते हैं। दूसरे शब्दों में, देशी बैंक से आशय उन लोगों से है जो दूसरों के रुपये जमा करते हैं, हुण्डियों का लेन-देन करते हैं तथा धन भी उधार देते हैं। देशी बैंक की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं -

1. केन्द्रीय बैंकिंग जाँच समिति के अनुसार - देशी बैंक उस व्यक्ति अथवा फर्म को कहते हैं। जो जमा स्वीकार करते हैं। हुण्डयों का व्यवसाय करते हैं एवं ऋण प्रदान करते हैं।

2. डॉ. एल. सी. जैन के अनुसार - वे समस्त व्यक्ति देशी बैंक कहलाते हैं। जो ऋण देने के साथ-साथ रुपयों को भी जमा करते हैं या हुण्डियों का व्यवसाय करते हैं अथवा दोनों प्रकार के कार्य करते हैं।” 

3. बंगाल प्रांतीय बैंकिंग जाँच समिति के अनुसार - देशी बैंक वे व्यक्ति या फर्में हैं जो हुण्डी का व्यवसाय करते हैं, चाहे वे जमा स्वीकार करते हों या न करते हों। 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि देशी बैंक वे व्यक्ति या फर्म हैं जो अपने प्रमुख व्यवसाय के रूप में ऋण देने और हुण्डियों के लेन-देन का व्यवसाय करते हैं और जमा भी स्वीकार करते हैं, लेकिन अनिवार्य रूप से नहीं। 

देशी बैंक के कार्य

देशी बैंकों के कार्यों को प्रमुख रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है(अ) बैंकिंग संबंधी कार्य, एवं (ब) गैर-बैंकिंग कार्य।

1.  बैंकिंग संबंधी कार्य 

देशी बैंकों के द्वारा निम्नांकित बैंकिंग कार्य किये जाते हैं -

1. ऋण देना - देशी बैंकों का पहला कार्य रुपया उधार देना है। वे अधिकतर कृषि, उद्योग के लिए ऋण देते हैं, लेकिन कभी-कभी अन्य उपयोग के लिए ऋण देते हैं। वे जमानत पर तथा बिना जमानत के भी ऋण देते हैं। इनकी ब्याज की दर अधिक होती है। नकद ऋण के अतिरिक्त ऋण में अनाज, बीज आदि भी देते हैं। वस्तुओं के ऋण की वसूली फसल पकने पर इसके बदले में उसके अतिरिक्त चुकाया जाता है।

2. जमा प्राप्त करना - देशी बैंक जनता से दो प्रकार जमा प्राप्त करते हैं- (i) माँग पर देय और (ii) निश्चित अवधि के बाद देय। देशी बैंक व्यापारिक बैंकों की तुलना में जमा पर ब्याज अधिक देते हैं, लेकिन धनादेश से राशि निकालने की सुविधा नहीं देते हैं।

3. हुण्डियों का व्यवसाय - देशी बैंक हुण्डियाँ अथवा प्रतिभूतियाँ खरीदने, बेचने, लिखने तथा भुनाने का कार्य करते हैं। प्राय: जिन देशी बैंकों की बाजार में साख ऊँची होती है। उनकी लिखी हुई हुण्डियाँ बाजार में अधिक बिकती हैं।

4. मुद्रा का हस्तांतरण - देशी बैंक अपने ग्राहकों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपये भेजने का कार्य भी करते हैं। देशी बैंक सभी प्रकार की सुविधाएँ उसी प्रकार देते हैं, जैसे व्यापारिक बैंक देते हैं। सेठ- साहूकार अपने-अपने कारोबार के आधार पर अलग-अलग स्थानों पर अपनी शाखाएँ खोल लेते हैं।

2. गैर-बैंकिंग कार्य

देशी बैंकों के द्वारा निम्नांकित गैर-बैंकिंग कार्य किये जाते हैं -

1. व्यापार करना - देशी बैंक बैंकिंग कार्यों के अतिरिक्त अन्य छोटे-छोटे कार्य भी करते हैं, जैसे- अनाज, तेल, सोना- चाँदी तथा कपड़ा आदि ।

2. आयात नियात कार्य में सहायता करना - देशी बैंक आयात किये हुए माल को सुविधाजनक बन्दरगाहों से उठाकर देश के प्रत्येक भाग में पहुँचाने का कार्य भी करते हैं तथा निर्यात कार्य में देश के प्रत्येक भाग से माल को एकत्रित करके बन्दरगाहों तक ले जाने में हमारी मदद करते हैं।

3. व्यापारिक एजेण्ट के रूप में कार्य करना - देशी बैंकों को अलग-अलग कार्य करने की रुचि होती है। उनमें से कुछ एजेण्ट के रूप में भी कार्य करते हैं तथा कमीशन लेते हैं। 

4. सट्टा व्यवसाय के रूप में कार्य करना - देशी बैंक सोना-चाँदी, हीरा, जवाहरात एवं सरसों, दालें, गुड़, रूई - आदि का सट्टा कार्य भी करते हैं। 

देशी बैंकों की ऋण प्रदान करने की रीतियाँ

देशी बैंकों की ऋण प्रदान करने की प्रमुख रीतियाँ निम्नांकित हैं -

1. गिरवी रखना - प्रायः देशी बैंक आभूषण, बर्तन एवं अन्य वस्तुओं को गिरवी रखकर ऋण प्रदान करते हैं। इन बैंकरों द्वारा ऋण के रूप में प्रदान की जाने वाली राशि गिरवी रखी गई वस्तु के बाजार मूल्य की दर से प्रतिशत के बराबर होती है। यदि निर्धारित अवधि में गिरवी रखी गई वस्तु को छुड़ाया न जाए, तो वह वस्तु देशी बैंकर की हो जाती है।

2. बंधक रखना - जब अचल सम्पत्ति मकान, दुकान, जमीन, आदि को बंधक बनाकर ऋण प्रदान किया जाता है, तो इसे बंधक कहते हैं। ऐसा ऋण बंधकनामा लिखकर ही प्रदान किया जाता है। बंधकनामे में सम्पत्ति का विवरण, ऋण की राशि, ब्याज की दर तथा भुगतान की अवधि आदि का पूर्ण विवरण होता है।

3. प्रतिज्ञा पत्र - देशी बैंक प्रतिज्ञा-पत्रों के आधार पर भी ऋण प्रदान करते हैं। प्रतिज्ञा पत्र में ऋण की राशि, ब्याज की दर, भुगतान का ढंग तथा ऋण की अवधि का विवरण लिखा होता है। प्रतिज्ञा-पत्र में ऋणी के हस्ताक्षर के अतिरिक्त एक-दो गवाहों अथवा जमानतदारों के हस्ताक्षर भी होते हैं। 

4. किस्त पर ऋण - देशी बैंक किस्त पर भी ऋण प्रदान करते हैं। ऐसे ऋणों का भुगतान ऋणी द्वारा किस्तों में किया जाता है। किस्तों में ब्याज की राशि भी सम्मिलित रहती है। किस्त का निर्धारण ऋण की राशि, ब्याज की दर तथा किस्तों की संख्या के आधार पर किया जाता है।

5. बाड़ी अथवा जिन्स के रूप में ऋण - जब खेती की वस्तुओं को ऋण के रूप में उधार दिया जाता है, तो इसे बाड़ी अथवा जिन्स के रूप में ऋण कहा जाता है। इस प्रकार के ऋणों में नई फसल आने पर उसका डेढ़ गुना अथवा दोगुना तक वसूल कर दिया जाता है।

6. दस्तावेज पर ऋण - जब प्रतिज्ञा पत्र पर लिखी बातों को ऋणी से स्टाम्प पेपर पर लिखवा लिया जाता है। तो यह दस्तावेज बन जाता है । यह दस्तावेज कानूनी रूप से बहुत ठोस होता है।

7. हाथ उधार - जब बिना किसी उचित लिखा-पढ़ी के ऋण प्रदान किया जाता है, तो इसे हाथ - उधार कहा जाता है। देशी बैंकों द्वारा इस प्रकार के ऋण भी प्रदान किये जाते हैं, लेकिन ऐसे ऋण बहुत विश्वसनीय एवं ऊँची साख वाले व्यक्तियों को ही प्राप्त हो पाते हैं।

देशी बैंकों के गुण

देशी बैंकों के प्रमुख गुण निम्नांकित हैं -

1. ऋण प्रदान करने का सरल तरीका - देशी बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने का तरीका बहुत सरल होता है। इन बैंकों से ऋण प्राप्त करने के संदर्भ में व्यापारिक बैंकों की भाँति अधिक लिखा-पढ़ी करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके साथ ही देशी बैंकों का एक गुण यह भी है कि इनसे किसी भी समय ऋण प्राप्त किया जा सकता है। 

2. धरोहर पर अधिक बल नहीं - देशी बैंक ऋण प्रदान करते समय सदैव जमानत पर अधिक बल नहीं देते। अनेक स्थितियों में देशी बैंक व्यक्तिगत जमानत पर अथवा बिना किसी जमानत के भी ऋण प्रदान कर देते हैं, जबकि व्यापारिक बैंक बिना पर्याप्त जमानत के प्रायः ऋण प्रदान नहीं करते हैं।

3. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण की व्यवस्था - देशी बैंकों द्वारा उत्पादक कार्यों के साथ अनुत्पादक कार्यों शादी-विवाह, जन्म, मृत्यु एवं भोज आदि के लिए भी ऋण प्रदान नहीं करते हैं।

4. फसल की बिक्री में सहायक - देशी बैंक फसल की बिक्री में भी सहायक होते हैं। कभी-कभी देशी बैंक किसान की खड़ी फसल को ही खरीद लेते हैं तथा कभीकभी अड़तिया के रूप में किसान फसल की बिक्री करवाने में सहायता करते हैं।

5. गुप्त लेन-देन - देशी बैंकों से किये गये लेन-देन एक सीमा तक गुप्त बने रहते हैं जिससे ऋणी की प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आती, अतः जो व्यक्ति ऋण लेना अपमानजनक समझते हैं, वे आवश्यकता के समय प्राय: देशी बैंकों से ऋण लेना ही उचित समझते हैं।

6. दस्तकारों की सहायता - देशी बैंक दस्तकारों अथवा शिल्पकारों को आर्थिक संरक्षण प्रदान करते है। इसके साथ ही देशी बैंक कुटीर उद्योगों में कार्यरत व्यक्तियों के तैयार माल को खरीद लेते हैं तथा संकट के समय ऋण के रूप में उसकी सहायता करते हैं।

7. ऋण की वापसी किस्तों में - देशी बैंक ऋण की राशि का भुगतान किस्तों में भी स्वीकार कर लेते हैं। इस कारण से ऋणी को अपना ऋण चुकाने में बहुत सरलता रहती है तथा वह अपनी सुविधानुसार ऋणों का भुगतान कर देता है। 

8. घव्यारेलू पार में सहायक - देशी बैंक देश के घरेलू व्यापार में ऋण प्रदान करके उसे सहायता प्रदान करते हैं। तथा कभी-कभी देशी बैंक व्यापार में सम्मिलित होकर देश घरेलू व्यापार के विकास में सहायक होते हैं।

देशी बैंकों के दोष

देशी बैंकों के प्रमुख दोष निम्नांकित हैं -

1. ऊँची एवं अन्यायपूर्ण ब्याज दरें - देशी बैंक का सबसे बड़ा दोष यह है कि उनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दरें बहुत ऊँची तथा अन्यायपूर्ण होती हैं। सामान्यतया देशी बैंक ऋणी से ब्याज वसूल करते हैं। कुछ परिस्थितियों में तो इनके द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दरें अत्यधिक पहुँच जाती हैं। 

2. अग्रिम ब्याज - अधिकांश परिस्थितियों में देशी बैंक ऋण प्रदान करते समय ऋण की राशि का ब्याज अग्रिम रूप से काटकर शेष राशि ही ऋणी को प्रदान करते हैं। इससे ऋणी को वास्तविक रूप से कम ऋण प्राप्त हो पाता है।

3. अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण - देशी बैंक केवल उत्पादक कार्यों के लिए ही ऋण प्रदान नहीं करते, बल्कि इनके द्वारा प्रदान किये गये ऋणों की एक बड़ी मात्रा अनुत्पादक ऋणों की होती है। अनुत्पादक ऋण फिजूलखर्ची को बढ़ावा देते हैं।

4. भूमि के उप-विभाजन को बढ़ावा - देशी बैंकों की कार्यप्रणाली से भूमि के उप-विभाजन को बढ़ावा मिलता है। सामान्यतया, जमीन को गिरवी रखकर ऋण प्राप्त करने एवं ऋण को न चुका पाने की स्थिति में ऋण को चुकाने के लिए ऋणी को अपनी जमीन का एक भाग बेचना पड़ता है। इससे भूमि के उपविभाजन को बढ़ावा मिलता है।

5. हिसाब-किताब में गड़बड़ी - ग्रामीण क्षेत्रों में यह बहुतायत में देखा जाता है कि देशी बैंक हिसाब-किताब में गड़बड़ी करते हैं। देशी बैंक संबंधी झूठा बहीखाता तैयार कर लेते हैं तथा झूठी गवाहियों के माध्यम से भोले-भाले ग्रामीणों का शोषण करते हैं।

6. अधिक राशि का प्रतिज्ञा पत्र - सामान्यतया, देशी बैंक केवल ऋण देने का कार्य ही करते हैं और जनता की जमाएँ स्वीकार करने का कार्य नहीं करते। इसलिए यह कहा जाता है कि देशी बैंक मितव्ययिता को प्रोत्साहन देने में असमर्थ रहते हैं तथा फिजूलखर्ची को प्रोत्साहन देते हैं।

7. मितव्ययता को प्रोत्साहन नहीं - प्रायः अधिकांश देशी बैंक केवल ऋण देने का कार्य ही करते हैं और जनता की जमाएँ स्वीकार करने का कार्य नहीं करते। इसलिए यह कहा जाता है कि देशी बैंक मितव्ययिता को प्रोत्साहन देने में असमर्थ रहते हैं तथा फिजूलखर्ची को प्रोत्साहन देते हैं । 

8. बेगार लेना - ग्रामीण क्षेत्रों में ऋणी को देशी बैंकों की बेगार भी करनी पड़ती है। देशी बैंक ऋणी के जानवरों एवं बैलगाड़ी, आदि का निःशुल्क उपयोग भी करते हैं।

देशी बैंकों के दोषों को दूर करने के सुझाव

देशी बैंकों के दोषों को दूर करने के लिए निम्नांकित सुझाव दिये जा सकते हैं1. ब्याज दर पर नियंत्रण- देशी बैंकों द्वारा वसूल की जाने वाली ब्याज की दरों में कमी लायी जानी चाहिए तथा इनकी ब्याज की दर पर पर्याप्त नियंत्रण लगाया जाना चाहिए। साथ ही देशी बैंकों द्वारा वसूल की जा सकने वाली अधिकतम ब्याज दर का भी निर्धारण किया जाना चाहिए। 

2. लाइसेंस लेना अनिवार्य - देशी बैंकों के दोषों को दूर करने के लिए सभी देशी बैंकों को बैंकिंग व्यवसाय करने के लिए लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य बना देना चाहिए तथा इनके हिसाब-किताब की जाँच की नियमित व्यवस्था की जानी चाहिए।

3. उत्पादक कार्यों के लिए ऋण - देशी बैंकों द्वारा केवल उत्पादक कार्यों के लिए ही ऋण प्रदान किये जाने चाहिए। केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में इन्हें अनुत्पादक ऋण प्रदान करने की छूट होनी चाहिए। 

4. बेगार पर रोक - देशी बैंकों द्वारा ऋणी से ली जाने वाली बेगार पर रोक लगायी जानी चाहिए। 

5. जमा खातों पर बल - देशी बैंकों को अपने यहाँ खाता खोलने पर बल देना चाहिए। इससे न केवल उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी, बल्कि उनकी कार्यशील पूँजी में भी वृद्धि होगी तथा नीची ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करना भी संभव हो सकेगा। 

6. व्यापारिक बैंक से सम्पर्क - देशी बैंकों का आधुनिक व्यापारिक बैंकों से सम्पर्क स्थापित किया जाना चाहिए। इससे मुद्रा बाजार के संगठन में सहायता प्राप्त होगी तथा ब्याज की दरों में एकरूपता स्थापित हो सकेगी। साथ ही देशी बैंक जनता की अधिक अच्छे ढंग से सेवा करने में सफल हो सकेंगे।

7. कानूनी सुविधा - देशी बैंकों को बहीखाता साक्षी कानून की सुविधा मिलनी चाहिए। 

8. देशी बैंक का संघ - देशी बैंकों की पारस्परिक प्रतियोगिता को समाप्त करने एवं उनके कार्यों में एकरूपता एवं समन्वय लाने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर देशी बैंकों का एक संघ बना दिया जाना चाहिए तथा प्रत्येक देशी बैंकों को इसका सदस्य बनना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।

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