लघु एवं कुटीर उद्योग क्या है?

जिन उद्योगों में एक करोड़ रुपये तक की लगत आती है। वे लघु उद्योग की श्रेणी में रखे जाते हैं। इससे अधिक विनियोग वाले उद्योग को वृहत् उद्योग कहा जाता है। इस अध्याय में हम लघु एवं कुटीर उद्योगों का अध्ययन करेंगे।

लघु उद्योग का अर्थ - भारत में अभी तक वे सभी औद्यौगिक इकाइयाँ लघु उद्योग के अन्तर्गत आती थीं, जिनके संयंत्र एवं मशीनरी में विनियोजित पूँजी की अधिकतम मात्रा 60 लाख रुपये हो तथा सहायक इकाइयों अर्थात् बड़ी इकाइयों को आवश्यक पुर्जे, उपकरण आदि विक्रय करने वाली इकाइयों की दशा में अधिकतम पूँजी की सीमा 75 लाख रुपये हों। 

लेकिन अब लघु उद्योग में उन सभी इकाइयों को रखा गया है, जिनमें विनियोजित पूँजी की सीमा 25 लाख रुपये से 5 करोड़ रुपये तक है।

कुटीर उद्योग का अर्थ एवं परिभाषा - कुटीर उद्योग से अभिप्राय, उन उद्योगों से है, जो पूर्णतया अथवा मुख्य रूप से परिवार के सदस्यों द्वारा ही संचालित किये जाते हैं। इन उद्योगों में पूँजी का विनियोजन बहुत कम होता है तथा उत्पादन कार्य के लिए शक्तिचालित यंत्रों का प्रयोग बहुत कम किया जाता है अर्थात् इन उद्योगों में अधिकांश उत्पादन कार्य हाथ से ही किया जाता है।

1. प्रशुल्क आयोग के अनुसार - कुटीर उद्योग-धंधे, वे धंधे हैं। जो पूर्णतया अथवा मुख्यतः परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्णकालिक अथवा अंशकालिक धंधों के रूप में चलाये जाते हैं।

2. धर एवं लिडाल के अनुसार - कुटीर उद्योग लगभग पूर्णतः घरेलू उद्योग होते हैं जिनमें किराये के मजदूर बहुत कम या बिल्कुल नहीं लगाये जाते हैं। ऐसे अधिकांश उद्योग स्थानीय स्रोतों से कच्चा माल प्राप्त करते हैं और अपना अधिकांश उत्पादन स्थानीय बाजारों में बेचते हैं। ये लघु आकार के ग्रामीण, स्थानीय और पिछड़ी तकनीकी वाले उद्योग होते हैं।

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