लघु एवं कुटीर उद्योग की समस्या का समाधान क्या है?

लघु एवं कुटीर उद्योगों के सुधार के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं - 

1. उत्पादन तकनीक में सुधार - लघु एवं कुटीर उद्योगों को अपनी उत्पादन तकनीक में सुधार के लिए विशेष प्रयास करना चाहिए। उत्पादन की तकनीक में सुधार होने पर लागतों में कमी आयेगी, अच्छी किस्म की वस्तुओं का उत्पादन सम्भव हो सकेगा तथा ये उद्योग बड़े उद्योगों से प्रतियोगिता कर पाने में सक्षम हो सकेंगे। उत्पादन की तकनीक में सुधार लाने के लिए सरकार को इन उद्योगों द्वारा आधुनिकीकरण पर व्यय की जाने वाली राशि को कर मुक्त घोषित कर देना चाहिए।

2. कच्चे माल की आपूर्ति की सुनिश्चित व्यवस्था - लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए। कच्चे माल की आपूर्ति को सुनिश्चित करने का उत्तरदायित्व सम्बंधित राज्य की सरकार को सौंपा जा सकता है।

3. सहकारी समितियों का विकास - लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्याओं को हल करने के लिए अधिक से अधिक मात्रा में लघु उद्योग सहकारी समितियों का विकास किया जाना चाहिए तथा इन सहकारी समितियों द्वारा अपने सदस्यों को आवश्यकता के समय कच्चा माल, यंत्र एवं आवश्यक वित्त की व्यवस्था की जानी चाहिए।

4. सलाहकारी संस्थाओं का विस्तार - वर्तमान में लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना, उनके विकास एवं उनकी समस्याओं के संदर्भ में सलाह देने का कार्य मुख्य रूप से 'लघु उद्योग सेवा संस्थान' एवं 'राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम’ द्वारा किया जाता है, अतः ऐसी अन्य संस्थाओं की स्थापना पर बल दिया जाना चाहिए।

5. वित्तीय सुविधाओं का विस्तार - लघु एवं कुटीर उद्योगों को वित्त प्रदान करने वाली संस्थाओं की देश में कमी है, अतः इन संस्थाओं का विस्तार किया जाना चाहिए।

6. लघु उद्योग प्रदर्शनियाँ - लघु एवं कुटीर उद्योग प्रदर्शनियों का अधिक से अधिक मात्रा में देश-विदेश में आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि उपभोक्ता इन उद्योग के संबंध में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सके और इन उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तु के उपभोग के लिए प्रेरित हो ।

7. अनुसंधान पर बल - लघु एवं कुटीर उद्योगों की उत्पादकता में वृद्धि करने, उत्पादन क्षमता एवं उत्पादन की किस्म में सुधार करने से संबंधित अनुसंधान किये जाने चाहिए तथा इन अनुसंधानों के परिणामों को लघु एवं कुटीर उद्योगों के स्वामियों तक पहुँचाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

8. संरक्षण प्रदान करना - लघु एवं कुटीर उद्योगों को वृहत् उद्योगों की प्रतियोगिता से बचाने के लिये इनके संरक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिए विशेष अधिनियम बनाये जा सकते हैं।

लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए नीति

औद्योगिक नीति संबंधित घोषणाओं में लघु व कुटीर उद्योगों पर विशेष जोर दिया गया है। इसकी प्रमुख बातें निम्नांकित हैं -

1. सुरक्षित वस्तुओं की संख्या में वृद्धि - अभी तक 180 वस्तुओं का उत्पादन लघु उद्योगों के लिए सुरक्षित लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर 674 कर दी गयी है।

2. लघु उद्योगों की सुरक्षा के लिए विशेष कानूनलघु उद्योगों की सुरक्षा के लिए एक कानून बनाया जा रहा है, जिससे कि अधिक संख्या में लोगों को स्व-रोजगार एवं देश के औद्योगिक विकास में उचित स्थान मिल सके।

3. जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना - देश के प्रत्येक जिले में जिला उद्योग, केन्द्र स्थापित किये जायेंगे, जो लघु उद्योगों को प्रत्येक प्रकार की सहायता एवं सेवा प्रदान करेंगे, जिसमें कच्चे माल के लिए जिले में आर्थिक अनुसंधान, मशीनें एवं अन्य उपकरणों की पूर्ति, साख सुविधाएँ, विपणन के लिए गुणवत्ता नियंत्रण आदि शामिल हैं। 

इन केन्द्रों पर घरेलू उद्योगों के लिए अलग से विभाग होते हैं, जो उनकी आवश्यकताओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सहायता प्रदान करते हैं। अब तक 422 जिला उद्योग केन्द्र स्थापित किये जा चुके हैं।

4. विकास खण्ड एवं विशिष्ट संस्थाओं में सह संबंध - विकास खण्ड एवं विशिष्ट संस्थाओं, जैसे- लघु उद्योग सेवा संस्थान आदि में उचित सह-संबंध बनाया जा रहा है, जिससे कि लघु उद्योग के विकास में कोई बाधा उपस्थित न हो तथा लघु उद्योगपतियों को अधिक दूर जाना न पड़े।

5. बैंकों एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं में विशेष विभाग - लघु उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताओं के लिए सभी वित्तीय संस्थाओं एवं राष्ट्रीयकृत बैंकों में विशेष विभाग खोले जा रहे हैं, जिससे कि इस क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताओं को दो अनदेखा न किया जा सके।

6. लघु उद्योग की वस्तुओं के विपणन के प्रबंध - लघु एवं कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन के लिए सर्वेक्षण किये जा रहे हैं, गुणवत्ता नियंत्रण की व्यवस्था की जा रही है एवं वस्तुओं का प्रमापीकरण किया जा रहा है। इस क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं को सरकारी विभाग एवं राजकीय उद्योगों द्वारा क्रय करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं। 

7. खादी एवं ग्राम उद्योग आयोग के कार्यों का विस्तार - आयोग का राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर पुनर्गठन किया जा रहा है। जिससे कि यह अपने उत्तरदायित्व को प्रभावी ढंग से निभा सके। खादी का विकास किया जा रहा है तथा खादी एवं ग्राम उद्योग अधिनियम में परिवर्तन किया जा रहा है। खादी कार्यक्रम के विपणन एवं आर्थिक विकास के लिए सरकार द्वारा अधिकतम सहायता प्रदान की जा रही है।

8. हाथकरघा उद्योग का विकास - हाथकरघा उद्योग का विकास किया जा रहा है और उनको उचित मात्रा में सूत देने की व्यवस्था की जा रही है। हाथकरघा उद्योग की मिल या पावरलूम उद्योग से अनुचित प्रतियोगिता न हो, इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। हाथकरघा उद्योग के लिए कुछ प्रकार के कपड़ों का उत्पादन सुरक्षित कर दिया गया है। उसकी समीक्षा करके उसमें वृद्धि की जायेगी और कुछ नयी वस्तुएँ इसमें जोड़ दी जायेंगी।

सरकारी प्रयत्न

सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास हेतु किये गये प्रयत्नों को निम्न बिन्दुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है -

1. बोर्डों एवं निगमों की स्थापना - लघु एवं कुटीर उद्योगों के विकास हेतु सरकार ने समय-समय पर विभिन्न बोर्डों एवं निगमों की स्थापना की है, जैसे- 1948 में अखिल भारतीय कुटीर उद्योग बोर्ड, 1952 में अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग मण्डल, 1952 में ही अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड, 1957 में अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड, 1954 में लघु उद्योग बोर्ड, 1954 में ही नारियल जटा बोर्ड, 1955 में ही राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, 1958 में भारतीय दस्तकारी विकास निगम आदि।

2. भारतीय लघु उद्योग परिषद् की स्थापना - नवम्बर 1979 में भारतीय लघु उद्योग परिषद् की स्थापना की गयी है जिसका मुख्यालय पुणे में बनाया गया है। यह संस्था भारतीय लघु उद्योग संस्था के विकल्प के रूप में बनायी गयी है। इस परिषद् में लघु उद्योग विकास निगम, राष्ट्रीयकृत बैंकें, प्रांतीय वित्त निगम एवं अन्य वाणिज्य बैंकें सदस्य हैं। इसके दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता व चेन्नई में क्षेत्रीय कार्यालय हैं। 

3. वित्तीय सहायता - लघु एवं कुटीर उद्योगों को वित्तीय सहायता देने में सरकार ने सराहनीय कार्य किया है।

आजकल इनको निम्न संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है -

  • रिजर्व बैंक - 1 जुलाई 1990 से रिजर्व बैंक द्वारा गारंटी योजना लागू की गयी है।
  • स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया - यह कच्चे माल या निर्मित माल की जमानत पर अल्पकालीन ऋण प्रदान करती है तथा विकास या सुधार के लिए मध्यकालीन ऋण भी देती है।
  • राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम - यह लघु उद्योगों की मशीनें किस्तों पर प्रदान करता है।
  • राज्य वित्त निगम - यह निगम भी लघु उद्योगों को ऋण प्रदान करते हैं। -
  • सहकारी बैंकें व व्यापारिक बैंकें - इन बैंकों के द्वारा भी लघु उद्योगों को ऋण सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • राज्य सरकारें - राज्य सरकारें भी सरकारी सहायता उद्योग अधिनियम के अन्तर्गत अपने-अपने क्षेत्रों में दीर्घकालीन ऋण प्रदान करती हैं।
  • राष्ट्रीय लघु उद्योग विकास बैंक - इसकी स्थापना की गयी है, जो भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की सहायक है, जिसका कार्य लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

4. तकनीकी सहायता - लघु एवं कुटीर उद्योगों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए लघु उद्योग विकास संगठन की स्थापना की गयी है, जिसके अन्तर्गत 30 लघु उद्योग सेवा संस्थान, 28 शाखा संस्थान एवं क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं। इन सेवाओं के अन्तर्गत भारतीयों को विदेशों में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भेजा जाता है तथा विदेशी विशेषज्ञों को भी भारत में प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

5. करों में छूट - लघु एवं कुटीर उद्योगों को करों में छूट दी जाती है। इनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं पर उत्पादन कर या इसी प्रकार के अन्य कर नहीं लगाये जाते हैं और यदि कहीं उन करों को लगाना आवश्यक होता है, तो केवल नाममात्र के लिए ही लगाये जाते हैं। करों में छूट देने के अतिरिक्त परिवहन व्ययों में भी इनको रियायत दी जाती है।

6. विपणन सुविधाएँ - लघु एवं कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं के विपणन में भारी सहायता दी जाती है। केन्द्रीय व प्रांतीय सरकारों तथा विशिष्ट निगमों द्वारा लघु उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं की बिक्री के लिए स्थान-स्थान पर एम्पोरियम या शो रूम खोले जाते हैं।  

जहाँ इनकी वस्तुओं का विक्रय होता है। इसके साथ की प्रांतीय सरकारों की सहायता से बड़ी-बड़ी विपणन समितियाँ व संघ भी बनाये गये हैं, जो लघु उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं का विक्रय करते हैं। इस प्रकार ये संस्थाएँ विपणन में सहायता प्रदान करती हैं ।

7. लाइसेंसिंग में छूट - लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ वस्तुओं का उत्पादन केवल इस क्षेत्र के लिए सुरक्षित कर दिया गया है। पहले इसमें 180 वस्तुएँ थीं, लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर 674 कर दी गयी है।

8. सरकारी खरीद में प्राथमिकता - सरकार द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों की वस्तुओं को अपने विभागों के उपयोग के लिए क्रय करने में प्राथमिकता दी जाती है तथा कुछ वस्तुओं का क्रय तो पूर्ण रूप से लघु उद्योगों से ही किया जाता है। सन् 1956 में इस प्रकार की वस्तुओं की संख्या केवल 16 थी, जो अब बढ़कर 400 हो गयी है।

9. प्रदर्शनियों का आयोजन - जनता को लघु उद्योगों की वस्तुओं के बारे में जानकारी देने के लिए स्वयं सरकार द्वारा स्थान-स्थान एवं समय-समय पर प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त ऐसी प्रदर्शनियों को आयोजित करने वाले जनता के प्रतिनिधियों को भी सहायता प्रदान की जाती है। इससे जनता में इन लघु एवं कुटीर उद्योगों की वस्तुओं के प्रति रुचि उत्पन्न होती है और बिक्री बढ़ाने में सहायता मिलती है।

10. अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना - लघु एवं कुटीर उद्योगों से संबंधित वस्तुओं के लिए कई अनुसंधान केन्द्र स्थापित किये गये हैं, जिनसे उन वस्तुओं के संबंध में अनुसंधान होता है।

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