सूती वस्त्र उद्योग क्या है?

भारत का सूती वस्त्र उद्योग देश का सबसे बड़ा संगठित उपभोक्ता उद्योग है, अत: संगठित उद्योगों में इसका प्रथम स्थान है। विश्व में सूत एवं कपड़े के उत्पादन में भारत का तीसरा स्थान है तथा कपास के उपभोग में द्वितीय स्थान है। 

प्रो. बुकानन के अनुसार - सूती वस्त्र उद्योग भारत के प्राचीन युग का गौरव, अतीत एवं वर्तमान कष्टों का, लेकिन भविष्य की आशा है। वर्तमान में सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा उद्योग है। देश के कुल उत्पादन में सूती वस्त्र उद्योग का योगदान 20 प्रतिशत है। इस उद्योग में लगभग 1करोड़ 80 लाख व्यक्ति लगे हुए तथा देश के कुल निर्यातों में सूती वस्त्र उद्योग का योगदान लगभग 30 प्रतिशत है।

भारत में सूती वस्त्र उद्योग का प्रादुर्भाव सन् 1818 में हुआ था, जबकि पहली सूती मिल कोलकाता में स्थापित की गयी, लेकिन इस उद्योग का वास्तविक शुभारम्भ सन् 1954 में हुआ जबकि मुम्बई में एक सूती मिल की स्थापना की गयी। यह उद्योग प्रारंभ से ही मुम्बई के आस-पास केन्द्रित रहा है। 

यद्यपि स्वतंत्रता के पश्चात् तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में कुछ मिलें स्थापित करके इस उद्योग का विकेन्द्रीकरण किया गया है। फिर भी उत्पादन की दृष्टि से आज भी सूती वस्त्र उद्योग मुम्बई एवं अहमदाबाद में केन्द्रित है।

सूती वस्त्र उद्योग के विकास में स्वदेशी आंदोलन तथा संरक्षण का प्रमुख योगदान रहा है। सन् 1905 में गाँधीजी द्वारा छेड़े गये स्वदेशी आंदोलन ने सूती वस्त्र की माँग बढ़ाकर इस उद्योग के विकास में भारी मदद पहुँचाई। सन् 1926 में सरकार ने इस उद्योग को संरक्षण प्रदान कर दिया। परिणामस्वरूप भारत में कपड़े के आयातों में कमी आयी और इस उद्योग को बढ़ावा मिला। 

स्वतंत्रता के पश्चात् भी यह संरक्षण चलता रहा, जिससे इस उद्योग के विकास में निरंतरता बनी रही।स्वदेशी आंदोलन एवं संरक्षण के परिणामस्वरूप वस्त्र मिलों की संख्या एवं क्षमता में निरंतर वृद्धि होती रही। 199899 में सूती वस्त्र उद्योग में 9.3 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ था। देश की सूती वस्त्र मिलों में तालिकाओं की संख्या सन् 1951 में 1.1 करोड़ थी। जो बढ़कर 1999-2000 में 3.7 करोड़ हो गयी, लेकिन करघों की संख्या जो सन् 1951 में 1.95 लाख थी। 

वह घटकर मार्च 1999 में 1.23 रह गयी। रोटरों की संख्या जो 1989 में 45 हजार थी, वह 1999-2000 में 450 हजार हो गयी। सूती वस्त्र मिलों की संख्या सन् 1951 में 383 थी, जो मार्च 1999 में बढ़कर 1,824 हो गयी। इन मिलों में 192 सार्वजनिक क्षेत्र में, 153 सरकारी क्षेत्र और 1,479 निजी क्षेत्रों में हैं। ये मिलें अधिकांशतः महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं गुजरात में हैं। 

सूती वस्त्र उद्योग

भारत में सूती वस्त्र उद्योग के अहमदाबाद एवं मुम्बई में केन्द्रीयकरण के प्रमुख कारण निम्नांकित हैं -

1. कच्चे माल की सुविधा - भारत में उत्पादित होने वाली कपास निर्यात हेतु मुम्बई एवं अहमदाबाद लायी जाती थी। अतः यहाँ कपास आसानी से उपलब्ध हो जाती थी। 

2. अनुकूल जलवायु - सूती वस्त्र उद्योग के लिए नम जलवायु आवश्यक है। ऐसी जलवायु में कताई एवं बुनाई की क्रियाओं में बाधा नहीं आती है और महीन से महीन सूत काता जा सकता है, अतः समुद्र से चलने वाली हवाओं के कारण इन क्षेत्रों में नमी बनी रहती है।

3. सस्ते श्रम की उपलब्धता - मुम्बई एवं अहमदाबाद की विशाल जनसंख्या उद्योगों को सस्ते एवं पर्याप्त मजदूर प्रदान करती है। रोजगार के लिए ही सुदूर स्थानों से लोग आकर यहाँ बस गये हैं।

4. शक्ति साधन - मुम्बई एवं अहमदाबाद दोनों ही नगरों को पर्याप्त शक्ति मिलती है। पहले कोयला उपलब्ध होता था और अब ताप एवं जल विद्युत आसानी से मिलती है। 

5. व्यवसायियों की विशेष योग्यता - प्रारंभिक अवस्था में सूती वस्त्र उद्योग को मुम्बई एवं अहमदाबाद में स्थापित करने वाले पारसी एवं भाटिया जाति के व्यक्ति थे, जो वहीं निवास करते थे। ये व्यक्ति कपास के आयात व निर्यात में काफी अनुभव रखते थे। अतः इन व्यक्तियों ने विदेशी व्यापारियों की सहायता से मुम्बई व उसके आस-पास के क्षेत्रों में सूती मिलों की स्थापना की।

6. बन्दरगाह की सुविधा - तत्कालीन समय में सूती वस्त्र उद्योग के लिए मशीनें, उपकरण रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता आयातों द्वारा पूरी होती थी। अतः बन्दरगाहों के निकट का स्थान सूती वस्त्र उद्योग के लिए उपयुक्त था। 

7. जल आपूर्ति - सूती वस्त्र उद्योग की उत्पादन प्रक्रिया, जैसे- धुलाई, रंगाई, छपाई आदि में शुद्ध जल की आवश्यकता होती है। इन क्षेत्रों में जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के कारण उत्पादन करना सुविधाजनक होता है।

8. अनुकूल रेल भाड़ा - अंग्रेजों ने भाड़ा नीति अपने लाभ हेतु बनायी थी कि बन्दरगाह की ओर जाने वाले कच्चे माल एवं बन्दरगाह से देश के अन्य भागों की ओर जाने वाले तैयार माल पर भाड़ा कम वसूल किया जाता था। इस नीति का लाभ मुम्बई एवं अहमदाबाद के सूती वस्त्र उद्योग को भी प्राप्त हुआ।

सूती वस्त्र उद्योग की समस्याएँ

सूती वस्त्र उद्योग की प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित हैं -

1. कच्चे माल का अभाव - सूती वस्त्र उद्योग में रूई या कपास कच्चे माल के रूप में काम में लायी जाती है, जिसका उत्पादन उसकी माँग से कम होता है, अतः इस उद्योग के समक्ष सदा ही कच्चे माल का अभाव बना रहता है। इसके अतिरिक्त, अच्छे किस्म की कपास का उत्पादन हमारे यहाँ बहुत ही कम होता है।

2. ऊँची लागत एवं कम लाभ - भारत में सूती वस्त्र उद्योग की दूसरी समस्या बढ़ती हुई ऊँची लागत है, जबकि वस्त्रों के मूल्यों में उतनी वृद्धि नहीं हो पाती है। इससे सूती वस्त्र उद्योग की लाभदायकता में कमी हो रही है और बीमार मिलों की संख्या बढ़ रही है।

3. बीमार मिलों की संख्या में वृद्धि - सूती वस्त्र उद्योग की बढ़ती हुई लागत, दोषपूर्ण एवं वित्तीय कठिनाई के कारण ऐसे बीमार मिलों की संख्या में बराबर वृद्धि हो रही है, जिन्हें मालिकों द्वारा भावी हानि से बचने के लिए बन्द कर दिया जाता है। इससे श्रमिकों में बेरोजगारी एवं भुखमरी फैल जाती है।

4. कृत्रिम रेशा वस्त्र उद्योगों से प्रतियोगिता - सूती वस्त्र उद्योगों को आजकल कृत्रिम रेशा उद्योग द्वारा उत्पादित कपड़े, जैसे - टेरीकॉट, टेरीलीन, नाइलोन, पोलिस्टर आदि से प्रतियोगिता लेनी है । इसका कारण यह है कि इनकी खपत एवं माँग में बराबर वृद्धि हो रही है।

5. आधुनिकीकरण की समस्या - सूती वस्त्र उद्योग की सबसे महत्वपूर्ण एवं आवश्यक समस्या उद्योग की वस्तुओं के प्रति उपभोक्ता की प्रवृत्ति बदल रही है। इससे निर्यात कम हो रहे हैं। कृत्रिम रेशे के कपड़े की माँग बढ़ रही है। उद्योग में प्रति मीटर लागत में भी वृद्धि हो रही है।

6. निर्यात की समस्या - सूती वस्त्र उद्योग की एक समस्या निर्यात की भी है। इस उद्योग के निर्यात प्रतियोगिता के कारण घटते-बढ़ते रहते हैं। भारत अपने कुल उत्पादन का 6 प्रतिशत से लेकर 12 प्रतिशत तक ही निर्यात करता है। 

जबकि पाकिस्तान अपने उत्पादन का 60 प्रतिशत एवं हांगकांग 51 प्रतिशत निर्यात करता है। भारत का निर्यात कम होने के कारण हैं - 

  • मशीनें पुरानी होने के कारण माल की गुणवत्ता का संतोषजनक न होना। 
  • अच्छी किस्म की कपास न मिलना। 
  • उत्पादन लागत अधिक होने से विक्रय मूल्य अधिक न होना आदि।

7. शक्ति के साधनों की समस्या - सूती वस्त्र उद्योग की समस्या शक्ति की भी है। इसको शक्ति पर्याप्त मात्रा में लगातार नहीं मिल पाती है। बिजली घर की कमी के कारण समय-समय पर मिलों के द्वारा उपयोग की जाने वाली शक्ति में कटौती कर देते हैं । वस्त्र उद्योग को कोयला भी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाता है । इन सभी बातों से शक्ति इस उद्योग के लिए एक समस्या ही बनी रहती है ।

8. श्रमिक समस्या - सूती वस्त्र उद्योग में श्रमिक समस्या भी है। मजदूरों द्वारा मजदूरी वृद्धि एवं बोनस अदायगी जैसी माँगों को लेकर हड़ताल कर दी जाती हैं, जो महीनों चलती रहती हैं ।

सूती वस्त्र उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव

सूती वस्त्र उद्योग की समस्याओं के समाधान के लिए निम्नांकित सुझाव दिये जा सकते हैं -

1. अधिक कपास उत्पादन की प्रेरणा - कपास की पूर्ति पर्याप्त मात्रा में करने के लिए किसानों को अधिक कपास उत्पादन की प्रेरणा देनी चाहिए। इसके लिए समर्थन मूल्यों में वृद्धि की जानी चाहिए। कपास की कमी को समय पूर्व आयात करके, भण्डारण के रूप में रखने की व्यवस्था भारतीय कपास निगम के द्वारा प्रभावी ढंग से की जानी चाहिए, ताकि मिलों को कपास निरंतर अपनी आवश्यकता के अनुसार मिलती रहे।

2. आधुनिकीकरण के लिए सुविधाएँ - सूती वस्त्र उद्योगों की ऊँची लागत को कम करने एवं उद्योग की लाभदायकता बढ़ाने के लिए आधुनिकीकरण करने की सभी आवश्यक सुवधाएँ जैसेमशीनरी के आयात, विदेशी मुद्रा, वित्तीय प्रबंध की सुविधाएँ दी जानी चाहिए।

3. बीमार मिलों को मिलाने की सुविधा - बीमार मिलों को स्वस्थ मिलों में मिलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि वे भी मिलों के साथ अपना कार्य चलाती रहें।

4. आधुनिकीकरण की योजना - प्रत्येक स्वस्थ मिल के लिए कानूनी रूप से यह आवश्यक कर दिया जाना चाहिए कि वह अगले दस वर्षों में अपना आधुनिकीकरण करने की योजना बनाये तथा सरकार से स्वीकृत करा कर उचित कदम उठाये। इसके लिए केन्द्र एवं राज्यों में आवश्यक सरकारी मशीनरी की व्यवस्था की जानी चाहिए।

5. ऊँची दर से विनियोग एवं विकास की छूट - जो मिलें आधुनिकीकरण करने में जितना धन लगाये उस पर उनको आय कर अधिनियम के अन्तर्गत ऊँची दर से विनियोग छूट या विकास छूट दी जानी चाहिए।

6. पर्याप्त मात्रा में शक्ति - मिलों को सुचारू रूप से चलाने के पर्याप्त मात्रा में शक्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए।

7. उत्पादन करों में कमी - उत्पादन करों में भी छूट दी जानी चाहिए, जिससे कि सूती वस्त्र कुछ सस्ता हो सके और माँग में वृद्धि होने से उद्योग भी अपना उत्पादकता एवं लाभदायकता बढ़ा सके। 

8. निर्यात को प्रोत्साहन - निर्यात में वृद्धि के लिए निर्यात प्रोत्साहन कार्यक्रम अपनाया जाना चाहिए। विदेशों में सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए, ताकि माँग के अनुरूप उत्पादन को समायोजित किया जा सके। 

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