राष्ट्रीय आय की अवधारणा को समझाइए ?

राष्ट्रीय आय की कुछ आधारभूत अवधारणाएँ निम्नांकित हैं -

  1. चालू और स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय
  2. देश की घरेलू आय
  3. देश के सामान्य निवासी
  4. स्टॉक एवं प्रवाह
  5. बन्द एवं खुली अर्थव्यवस्था
  6. राष्ट्रीय पूँजी
  7. राष्ट्रीय सम्पत्ति
  8. आय सृजन की प्रक्रिया

चालू और स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय

1. चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय - जब किसी देश में राष्ट्रीय आय की गणना उस वर्ष बाजार में प्रचलित कीमतों के आधार पर देश में उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों के योग के आधार पर की जाती है तो उसे चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है।

जैसे यदि भारत की राष्ट्रीय आय की गणना वर्ष 2021-22 में बाजार में प्रचलित कीमतों पर देश में उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के योग के आधार की जाती है तो यह वर्ष 2021-22 में भारत की चालू या प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहलायेगी।

2. स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय - जब किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत के अनुसार आँका जाता है। तो उसे स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं। अर्थव्यवस्था की वास्तविक आर्थिक वृद्धि को जानने के लिए अर्थव्यवस्था में उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत के आधार पर ज्ञात किया जाता है।

इससे राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित आँकड़ों की तुलना विश्वसनीय बन जाती है। इसीलिए दुनिया के समस्त देशों में एक आधार वर्ष का चुनाव किया जाता है। इसी आधार वर्ष के मूल्यों के आधार पर सभी वर्षों में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों की गणना करके राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है।

देश की घरेलू आय

राष्ट्रीय आय में देश की घरेलू सीमा का विशेष महत्व होता है। सामान्यतया एक देश की राजनैतिक सीमाओं में स्थित भौगोलिक क्षेत्र को घरेलू सीमा कहा जाता है। लेकिन राष्ट्रीय आय लेखांकन में इसका विस्तृत अर्थ होता है। एक देश की घरेलू सीमा में निम्नांकित तथ्यों को शामिल किया जाता है।

  • देश की राजनैतिक भौगोलिक और समुद्री क्षेत्र भी सम्मिलित होते है।
  • देश के निवासियों द्वारा अन्य देशों के बीच चलाये जाने वाले जलयान तथा वायुयान।
  • मछली पकड़ने वाली नौकाएँ, तेल एवं प्राकृतिक गैस यान या तैरते प्लेट फार्म।
  • देश के विदेशों में स्थित दूतावास, सैनिक तथा वाणिज्य दूतावास घरेलू सीमा में आते हैं।

देश के सामान्य निवासी

राष्ट्रीय आय के अन्तर्गत एक देश के सामान्य निवासी की अवधारणा भी महत्वपूर्ण है। एक देश के सामान्य निवासी वह व्यक्ति होता हैं जो सामान्यतः एक देश में निवास करता है तथा उसके हित उस देश से सम्बन्धित होते हैं।

सामान्य निवासी में ऐसे भी व्यक्ति शामिल होते हैं जिनके पास उस देश का पासपोर्ट है। चाहे उनके पास उस देश की नागरिकता न हो। इस प्रकार सामान्य निवासी में एक देश की घरेलू सीमाओं में रहने वाले नागरिकों एवं गैर-नागरिकों को शामिल किया जाता है। 

देश के सामान्य निवासी में निम्न व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जाता है -

  • विदेशी नागरिक जो एक देश में पर्यटन अथवा इलाज के लिए आते हैं।
  • विदेशी जहाजों के सदस्य, व्यावसायिक यात्री तथा मौसमी श्रमिक।
  • अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय आदि में कार्यरत विदेशी नागरिक।
  • विदेशी नागरिक जो कि गैर-निवासी उद्यमों में कार्यरत हैं। 
  • विदेशों के राजदूत प्रशासनिक अधिकारी सैन्य बल के सदस्य।

स्टॉक एवं प्रवाह

राष्ट्रीय आय में स्टॉक एवं प्रवाह का भी महत्वपूर्ण स्थान है। स्टॉक वह मात्रा है, जिसे किसी समय विशेष पर मापा जाता है, लेकिन दोनों धारणाओं के अन्तर्गत मापी गयी मात्रा में समय अलग-अलग होता है। किसी निश्चित तिथि पर व्यक्ति के पास जो कुछ है अथवा किसी स्थान पर किसी एक व्यक्ति के पास जो कुछ है, वह स्टॉक कहलाता है।

स्टॉक का कोई समयकाल नहीं होता है। स्टॉक के उदाहरण हैं - व्यक्ति की सम्पत्ति, जनसंख्या, पूँजी, देश में मुद्रा-पूर्ति, तालाब का पानी, मशीनों की संख्या, राष्ट्रीय सम्पत्ति, कारों की संख्या, मुद्रा की मात्रा इत्यादि।

लेकिन जब हम प्रवाह की बात करते हैं तो उसका सम्बन्ध एक समय काल से होता है। प्रवाह के उदाहरण हैं - व्यक्ति की आय, प्रतिवर्ष जन्मे बच्चों की संख्या, पूँजी निर्माण, देश में मुद्रा पूर्ति में परिवर्तन, ब्याज, फल, नदी का पानी, घिसावट, गति, राष्ट्रीय आय, कारों का उत्पादन, मुद्रा का व्यय इत्यादि।

बन्द एवं खुली अर्थव्यवस्था

1. बन्द अर्थव्यवस्था - जब किसी देश का अन्य दूसरे देशों से कोई आर्थिक सम्बन्ध नहीं होता है, तो उसे बन्द अर्थव्यवस्था कहते हैं। ऐसी अर्थव्यवस्था का विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं से कोई सम्बन्ध नहीं रहता है।

ऐसी स्थिति में बन्द अर्थव्यवस्था वाले देश के सामने न तो आयातों के भुगतान की समस्या होती है और न ही निर्यातों से प्राप्त होने वाली आय की समस्या होती है। ऐसी अवस्था में विदेशों से ऋण न तो लिया जाता है और न ही दिया जाता है। बन्द अर्थव्यवस्था में उपभोग तथा उत्पादन दोनों ही घरेलू सीमाओं के भीतर होता है। एक वर्ष की अवधि में जितनी मात्रा में उपभोग वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है।

2. खुली अर्थव्यवस्था - जब किसी भी देश का अन्य देशों से आर्थिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, तो उसे खुली अर्थव्यवस्था कहा जाता है। खुली अर्थव्यवस्था वाले देशों में दूसरे देशों से वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात किया जाता है। इसी प्रकार दूसरे देशों के वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात किया जाता है। 

किसी भी देश के उपभोग, उत्पादन तथा पूँजीनिर्माण पर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्धों का गहरा प्रभाव पड़ता है। खुली अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत सकल घरेलू उत्पाद एवं सकल राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तर होता है। यदि किसी देश का निर्यात उसके आयातों से अधिक है, तो उसकी राष्ट्रीय आय उसके घरेलू उत्पाद से अधिक होगी।

राष्ट्रीय पूँजी

राष्ट्रीय पूँजी से अभिप्राय उन सभी वस्तुओं से है। जो किसी देश की स्थपना से लेकर औद्योगिक निर्माण तक हैं।  लेकिन जो न तो उपभोग की गयी हो और न ही नष्ट हुई हो उसे राष्ट्रीय पूँजी कहा जाता है। जिसमें व्यक्तिगत पूँजी, सार्वजनिक पूँजी तथा स्टॉक शामिल हैं। व्यक्तिगत पूँजी से तात्पर्य उस पूँजी से है जो विभिन्न फर्मों, नागरिकों के पास है जिनका प्रयोग उत्पादन के कार्यों में किया जाता है। जैसे - भवन, मशीन, उपकरण, कच्चामाल आदि।

राष्ट्रीय पूँजी के प्रमुख घटक निम्नांकित हैं -

  1. भवन तथा इमारतें
  2. उपकरण
  3. स्वर्ण एवं चाँदी के भण्डार
  4. सभी प्रकार की वस्तुएँ
  5. शुद्ध विदेशी सम्पत्तियाँ

राष्ट्रीय सम्पत्ति

देश में सभी भौतिक वस्तुओं का योग उस राष्ट्र की सम्पत्ति कहलाती है। इस प्रकार एक देश की भूमि तथा उसकी उर्वरता, खनिज संसाधन, फैक्ट्रियाँ, मशीनें, वस्तुओं का स्टॉक, भवन, निवासियों की व्यक्तिगत प्रतिभाएँ आदि सभी राष्ट्रीय सम्पत्ति में शामिल होते हैं।

राष्ट्रीय सम्पत्ति की गणना करते समय देश की कम्पनियों के बॉण्ड तथा बाह्य ऋणों को घटा दिया जाता है तथा देशवासियों के पास विदेशी कम्पनियों के अंश या बॉण्ड की राशि को जोड़ दिया जाता है। देश में कम्पनियों के अंश या ऋणपत्र आदि राष्ट्रीय सम्पत्ति में शामिल नहीं होते हैं। बल्कि यह व्यक्तिगत सम्पत्ति होती है।

किसी वस्तु को सम्पत्ति कहलाने के लिए उसमे निम्नांकित विशेषताएँ होनी चाहिए -

  • वस्तु में मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की क्षमता होनी चाहिए।
  • वस्तु की पूर्ति, वस्तु की माँग से कम होनी चाहिए।
  • वस्तु को एक निश्चित कीमत पर सुगमता से विनिमय किया जा सके।
  • वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर हस्तांतरित किया जा सके।

राष्ट्रीय सम्पत्ति के प्रमुख अंग निम्नलिखित हैं -

  1. प्राकृतिक संसाधन
  2. श्रम शक्ति
  3. सार्वजनिक भौतिक परिसम्पत्ति
  4. स्थिर पूँजी
  5. स्टॉक

आय सृजन की प्रक्रिया

किसी भी देश में आय का सृजन उत्पादन प्रक्रिया के दौरान ही होता है। उत्पादन वास्तव में उत्पत्ति के साधनों का सामूहिक परिणाम होता है। उत्पादित वस्तु के मौद्रिक मूल्य को विभिन्न साधनों में वितरित कर दिया जाता है।

जैसे भूस्वामी को लगान, श्रमिक को मजदूरी, पूँजीपति को ब्याज, साहसी को लाभ तथा संगठनकर्ता को वेतन के रूप में पारिश्रमिक प्राप्त होता है। मुद्रा के अभाव में यही पुरस्कार वस्तुओं एवं सेवाओं के रूप में दिया जाता था।

चूँकि आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रादुर्भाव हो चुका है। अतः उत्पादन कार्य बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण लागू हो गया है। इससे उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के बीच पारिश्रमिक का वितरण करना सरल हो गया है। मुद्रा के आविष्कार से प्रत्येक साधन को उनकी सेवाओं की आय उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के बीच बाँट दी जाती है।

इस प्रकार, जब एक उत्पादनकर्ता अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं के बदले मुद्रा प्राप्त करता है, तो उस उत्पादनकर्ता के द्वारा आय का सृजन होता है। इस प्रकार, अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत मुद्रा का यह प्रवाह निरंतर चलता रहता है। इस प्रवाह में परिवार एवं सरकार भी शामिल होते हैं। प्रो. लिट्से के अनुसार का चक्रीय प्रवाह घरेलू फर्मों एवं घरेलू परिवारों के बीच भुगतानों और प्राप्तियों का प्रवाह होता है।

चूँकि आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रादुर्भाव हो चुका है, अतः उत्पादन कार्य बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण लागू हो गया है। इससे उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के बीच पारिश्रमिक का वितरण करना सरल हो गया है।

मुद्रा के आविष्कार से प्रत्येक साधन को उनकी सेवाओं की आय उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के बीच बाँट दी जाती है। इस प्रकार, जब एक उत्पादनकर्ता अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं के बदले मुद्रा प्राप्त करता है, तो उस उत्पादनकर्ता के द्वारा आय का सृजन होता है।

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