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लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्व - Importance of small and cottage industries

 लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योग का महत्वपूर्ण स्थान है। महात्मा गाँधी के शब्दों में, भारत का कल्याण उसके कुटीर उद्योग में निहित है। योजना आयोग के अनुसार - लघु एवं कुटीर उद्योग हमारी अर्थ व्यवस्था के महत्वपूर्ण अंग हैं जिनकी कभी भी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। श्री मोरारजी देसाई के अनुसार - ऐसे उद्योगों से देहाती लोगों को जो अधिकांश समय बेरोजगार रहते हैं, पूर्ण अथवा अंशकालिक रोजगार मिलता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योग के महत्व को निम्न बिन्दुओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है। 

1. बेरोजगारी एवं अर्द्ध बेरोजगारी में कमी - भारत में बेरोजगारी एवं अर्द्ध- बेरोजगारी पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। लघु एवं कुटीर उद्योग इस बेरोजगारी को कम कर सकते हैं, क्योंकि यह कम पूँजी से अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने में समर्थ होते हैं। 

संगठित उद्योगों में करोड़ों की पूँजी लगाने पर कुछ हजार व्यक्तियों को रोजगार मिलता है। जबकि लघु एवं कुटीर उद्योगों में कुछ लाख रुपये लगाकर हजारों व्यक्तियों को रोजगार दिया जा सकता है।

2. ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनुकूल - भारत की लगभग 67% कार्यशील जनसंख्या कृषि पर निर्भर रहती है, लेकिन कृषकों को पूरे वर्ष भर कार्य नहीं मिल पाता है। अतः कुटीर एवं लघु उद्योग उनके लिए महत्वपूर्ण हैं और हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अनुकूल हैं। वे अपने खाली समय में इस प्रकार के धंधे चलाकर अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। और देश की राष्ट्रीय आय में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। 

3. आय के समान वितरण में सहायक - लघु एवं कुटीर उद्योगों का स्वामित्व लाखों व्यक्तियों व परिवारों के हाथ में होता है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक शक्ति का केन्द्रीकरण नहीं हो पाता है तथा आय के समान वितरण में सहायता मिलती है। इन उद्योगों में श्रमिकों का भी शोषण नहीं हो पाता है। यह भी आय के समान वितरण में सहायक होता है।

4. व्यक्तित्व एवं कला का विकास - लघु एवं कुटीर उद्योग व्यक्तित्व एवं कला का विकास करने में सहायक होते हैं। यही कारण है कि आज भी बनारसी साड़ियाँ, मुरादावादी वर्तन, आगरा के जूते प्रसिद्ध हैं। इससे श्रमिकों को आनंद एवं संतोष मिलता है। विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है, इसके विपरीत बड़े उद्योगों में श्रमिक एक यंत्र की तरह कार्य करते हैं, जहाँ उनको अपना व्यक्तित्व एवं कला का प्रदर्शन करने का अवसर नहीं मिलता है।

5. कृषि पर जनसंख्या के भार में कमी - भारत में कृषि पर पहले से ही लगभग 67 प्रतिशत जनसंख्या आश्रित है और बढ़ती हुई जनसंख्या कृषि पर और दबाव डालती है। इससे व्यक्ति खेती पर आश्रित होने के लिए प्रतिवर्ष बढ़ जाते हैं जिससे भूमि में उप-विभाजन एवं अपखण्डन होता है। यदि ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास कर दिया जाय तो कृषि पर जनसंख्या का भार कम हो जायेगा है जो कि देशहित में होगा।

6. औद्योगिक विकेन्द्रीकरण - लघु एवं कुटीर उद्योगों से देश में उद्योगों के विकेन्द्रीकरण में सहायता मिलती है। बड़े उद्योग तो कुछ विशेष बातों के कारण एक ही स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं, लेकिन लघु एवं कुटीर उद्योग तो गाँवों व कस्बों में होते हैं। 

इससे लाभ होता है- 

  • लघु व कुटीर उद्योग स्थानीय कच्चे माल का क्रय कर स्थानीय व्यक्तियों को सुविधा प्रदान करते हैं।  
  • विदेशी आक्रमण के समय ये उद्योग सुरक्षित रहते हैं। 
  • लघु व कुटीर उद्योग से एक स्थान पर भीड़ नहीं होती है। 
  • लघु व कुटीर उद्योग प्रादेशिक असमानता कम करने में सहायक होते हैं।

7. कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता - लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना में कम पूँजी के साथ-साथ कम तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है तथा कर्मचारियों को कम मात्रा में प्रशिक्षण देकर भी काम चलाया जा सकता है। इस प्रकार यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सर्वोत्तम है।

8. शीघ्र उत्पादक उद्योग - लघु एवं कुटीर उद्योग ऐसे हैं, जिनकी स्थापना के कुछ समय बाद ही उत्पादन ज्ञात किया जा सकता है। इसीलिए उनको शीघ्र उत्पादक उद्योग कहते हैं। भारत में वस्तुओं की सामान्य कमी बनी रहती है। 

जिसको दूर करने में यह अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। वृहत् उद्योगों की स्थापना एवं उनके द्वारा उत्पादन करने के समयों में वर्षों का अन्तर होता है, लेकिन लघु एवं कुटीर उद्योगों में उत्पादन कुछ महीनों में और कहीं-कहीं तो कुछ दिनों में ही प्रारंभ किया जा सकता है।

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