लाभ का आधुनिक सिद्धांत क्या है?

लाभ का आधुनिक सिद्धांत क्या है

अन्य साधनों की कीमत अथवा पुरस्कार का निर्धारण उसकी माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा होता है, ठीक उसी प्रकार साहसी के लाभ का निर्धारण भी उसकी माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों के द्वारा होता है। 

साहसी की माँग - साहसी की माँग उसकी उत्पादकता पर निर्भर करती है। साहसी की सीमांत उत्पादकता जितनी अधिक होगी, उसकी माँग भी उतनी ही अधिक होगी। साहसी की माँग पर उसकी सीमांत उत्पादकता के अलावा निम्न बातों का भी प्रभाव पड़ता है।

(i) देश का आर्थिक विकास, (ii) देश की सामाजिक दशा, (iii) देश में विकास की दर, (iv) विनियोग की संभावना आदि। सामान्यतया एक साहसी की सीमांत उत्पादकता जितनी अधिक होगी, उसकी माँग भी उतनी ही अधिक होगी तथा साहसी की सीमांत उत्पादकता जितनी कम होगी, उसकी माँग भी उतनी ही कम होगी। इस प्रकार, साहसी की माँग का वक्र हमेशा दायीं तरफ नीचे की ओर झुकता है।

साहसी की पूर्ति - साहसी की पूर्ति भी अनेक तत्वों पर निर्भर करती है, जैसे- (i) जनसंख्या का आकार, (ii) जनसंख्या में वृद्धि की दर, (iii) पूँजी की उपलब्धता, (iv) व्यवसाय में जोखिम की मात्रा, (v) देश की सामाजिक एवं राजनीतिक दशाएँ, (vi) देश में आय एवं धन का वितरण, (vii) व्यवसाय में लाभ की संभावना।

यदि अन्य बातें यथास्थिर रहें, तो देश में प्रशिक्षण प्राप्त प्रबंधक एवं तकनीकी विशेषज्ञों की संख्या अधिक है तो साहसियों की पूर्ति बढ़ जाती है। इसी प्रकार से पूँजी की पूर्ति, व्यवसाय में जोखिम की मात्रा, राजनैतिक-सामाजिक दशाएँ, आय एवं धन का समान वितरण, व्यवसाय में लाभ की संभावना अधिक होने पर साहसियों की पूर्ति बढ़ जाती है। संभावना अधिक होने पर साहसियों की पूर्ति बढ़ जाती है। 

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था में लाभ की है। इसके विपरीत, अर्थव्यवस्था में कम लाभ मिलने पर साहसियों की पूर्ति घट जाती है। इस प्रकार, लाभ की दर एवं साहसियों की पूर्ति में सीधा सम्बन्ध होता है। अतः साहसी का पूर्ति वक्र नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता हुआ वक्र होता है। 

लाभ का निर्धारण - लाभ के आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार, लाभ का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ साहसियों का माँग वक्र (DD), पूर्ति वक्र (SS) एक-दूसरे के बराबर होते हैं। इसी साम्य बिन्दु पर लाभ का निर्धारण होता है।

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