नवपाषाण युग किसे कहते हैं - Neolithic Age

नवपाषाण युग किसे कहते हैं

संक्रांति की अवस्था - मानव ने मध्यपाषाण युग में काफी उन्नति की। जो पूर्व पाषाण युग को नवपाषाण युग से अलग करती है। इस युग में जो क्षेत्र बर्फ से ढके हुए थे वहाँ धीरे-धीरे घने जंगल उग आए। मनुष्य ने कुत्ते को पालतू बना लिया। कुत्ता उसे शिकार में सहायता देने लगा। मध्यपाषाण युग की विशेषता छोटे औजारों का इस्तेमाल थी। इन छोटे औजारों को लघु अश्म कहते हैं। 

इनमें से कुछ का उपयोग भालों के अग्रभाग और कुछ तीरों के अग्रभाग के रुप में होने लगा मध्यपाषाण युग के मनुष्य बर्फ पर चलने के लिए बिना पहिए की (स्लेजनुमा) गाड़ी का उपयोग करते थे। कुछ क्षेत्रों में उगने वाली जंगली अनाज की फसल को वे काट लेते थे।

कृषि का आरंभ और पशुपालन - भोजन इकट्ठा करने से अनाज उत्पादन में परिवर्तन धीरे-धीरे मध्य पाषाण युग के लोगों के प्रयोगों से हुआ। मानव अपने चारों ओर पौधे को स्वाभाविक रूप से उगते हुए देखा। वे यह समझते थे कि ऐसा होना स्वभाविक है अतः प्रतिवर्ष पके हुए अनाज को काट लेते थे उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था कि अनाज को उगाया भी जा सकता है। 

जब एक स्थान पर भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाती अथवा वहाँ बहुत कम या नहीं के बराबर उत्पादन होता तब वह नए स्थान पर चला जाता जहाँ अनाज उगता था। जिस मनुष्य ने बीज से पहले-पहले पौधे उगाने की कोशिश की उसे पहला महान वैज्ञानिक माना जा सकता है। मानव ने भोजन के लिए अन्न प्राप्त करने का विश्वसनीय ढंग निकाल लिया।

इस बात को दिखलाने के प्रमाण है कि सबसे पहले कृषि कार्य थाइलैंड, अरब तथा ईरान मे मरुस्थलों की सीमाओं पर ऐसी घाटियों से प्रारंभ हुई, जहाँ पानी की कमी नहीं थी और उन्हें घनाकार उपजाऊ प्रदेश कहते हैं। 

घनाकार उपजाऊ प्रदेश भेड़ों, बकरियों, सुअरों तथा मवेशियों का मूल स्थान है। वहाँ गेहूँ और जौं जंगली घास की भांति उगते थे। पश्चिमी एशिया फिलिस्तीन में भी मानव ने मध्यपाषाण युग की संस्कृति का बहुत विकास किया था। फिलिस्तीन के जेरिको के स्तरीय उत्खनन में पुरापाषाण काल के अवशेषों के ऊपर तीन संस्कृतियों की परतें मिली हैं। वे बसे हुए ग्राम जीवन के बाद के विकास को दिखाती है। 

इन अवशेषों में अच्छे ढंग की बनी झोपड़ियाँ थी। गाँव के चारों ओर शत्रुओं से बचाव के लिए ईट और पत्थर की दीवार थी। यह बस्ती 7000 ई. पू. के आसपास विकसित हुई, जिसकी जनसंख्या लगभग 3000 थी। वहाँ अनेक पशुओं की जो हड्डियाँ मिली है उनसे अनुमान लगाया गया है कि वहाँ के लोग बहुत से पशुओं खासकर बकरियों को पालते थे लगता है कुत्ते के बाद बकरी ही पाली गई होगी। जेरिको के समान ही उस काल के अनेक खेतीहार गाँवों के खंडहर उत्तरी सीरिया ईरान में मिले हैं।

बस्तियों का विकास - विद्वानों का मत है कि जब मानव ने कृषि के अविष्कार को पूरी तरह अपना लिया तभी से नवापाषण युग का प्रारंभ हुआ। इस युग में जीवन इतना अधिक बदल गया कि इस युग को नवपाषाण में युगीन क्रांति” कहा जाता है। 

इस प्रकार कृषि एवं पशुपालन के द्वारा व्यवस्थित जीवन का प्रारंभ हुआ। लोगों ने मिट्टी के घरों तथा लकड़ी के खंभे और घासफूस के छप्पर से बने मकानों में रहना आरंभ कर दिया। बस्तियाँ विकसित होकर गाँव बन गईं और उन्हीं में से कुछ ऐसे छोटे आरक्षित नगर बन गए। व्यवस्थित जीवन के फलस्वरूप संगठित सामाजिक जीवन का विकास हुआ।

मिश्रित कृषि का अविष्कार - कृषि के विकास के कारण विविध परिवर्तन हुए। यहाँ पर कुछ फसलों का उत्पादन मानव के लिए तथा कुछ का उत्पादन पशुओं के लिए किया जाता था। कृषि में धान के अलावा मक्का, ज्वार, दालों आदि फसलों एवं सब्जियों की कृषि की जाती थी। इस प्रकार कृषि कार्यों के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता था।

चिकने पत्थर के औजार - नवापाषाण काल के औजारों की अपेक्षाकृत अधिक उपयोगिता और कुशल बनावट ही उन्हें पुरापाषाण कालीन औजारों से अलग कर देती है। नवपाषाण काल का एक महत्वपूर्ण औजार पत्थर की एक चिकनी कुल्हाड़ी थी।

यह कुल्हाड़ी बढ़िया दानेदार पत्थर के टुकड़ों से बनी होती थी। उसके एक सिरे को गढ़ा जाता था और चिकना बनाया जाता था। जिससे काटने वाला किनारा तेज हो जाए। डंडे के एक सिरे में लगाकर उसको कुल्हाड़ी के रूप में काम में लाया जा सकता था।

नवपाषाण काल का दूसरा महत्वपूर्ण औजार हँसिया था। लकड़ी के हत्थे में पत्थर के पतले टुकड़ों के फलक लगाकर यह औजार बनाया जाता था। इसका इस्तेमाल फसल को काटने और इकट्ठा करने में किया जाता था। लड़ाई और शिकार के हथियारों में काफी उन्नति हुई। इस काल में धनुष और बाण काम में लाए जाते थे। 

किन्तु बाणों की नोक अब पहले की अपेक्षा अधिक पैनी बनाई जाने लगी। कुछ स्थानों पर मनुष्य गुलेल जैसे नए हथियार का उपयोग करने लगा। नवपाषाण कालीन मानव सुई तथा कांटेदार बछ जैसे औजार जानवरों की हड्डी तथा सींगों से बनाने लगा। 

मिट्टी के बर्तनों का अविष्कार - भोजन को रखने तथा पकाने के लिए बर्तनों की आवश्यकता हुई जिनमें अनाज तथा द्रव पदार्थ रखे जा सके और आग पर चढाये जा सके। नवपाषाण काल के प्रारंभ में सीकों और टहनियों से बनी टोकरियाँ फल तथा सूखी वस्तुओं को रखने के काम आती थी। द्रव पदार्थ रखने के लिए उन्हें मिट्टी से पोत दिया जाता था। 

नवपाषाण कालीन मानव ने गोल पट्टियों और रेशों की रस्सियाँ बनाना सरलता से सीख लिया। उन लोगों ने जल्दी ही अपने मिट्टी के बर्तनों को बहुत तेज आग में पकाना सीख लिया। इसके बाद बर्तन सख्त हो जाते थे। और उन पर पानी का कोई असर नहीं पड़ता था। मिट्टी के बर्तनों का आविष्कार नवपाषाण कालीन संस्कृतियों की विशेषता है।

कातने तथा बुनने की कला का प्रारंभ - पश्चिमी एशिया में नवपाषाण युग के सबसे प्राचीन गाँवों के जो अवशेष मिले हैं। उनसे हमें कपड़ा उद्योग के आरंभ की कहानी मालूम होती है। इस काल में खाल और पत्तों से बने वस्त्रों के स्थान पर सब रुई और ऊन के बने हुए कपड़ा पहनने लगे।  

3000 ई.पू. के कुछ ही समय बाद सिंधु घाटी में कपास उगाई जाने लगी इसी समय के आसपास इराक में ऊन का इस्तेमाल होता था। परन्तु कपड़ा तैयार करने के पहले कातने और बुनने की दो प्रक्रियाओं का अविष्कार तथा दोनों का एक समान प्रयोग करना आवश्यक था। कातने के लिए तकली, तकुआ और बुनने के लिए करघे जैसी मशीन के अविष्कार मानव वृद्धि की महान सफलताएँ है। 

सामुदायिक जीवन में सुधार व्यवस्थित जीवन और खेती बाड़ी ने मनुष्य को अवकाश का समय दिया। अब उसे हर समय भोजन प्राप्ति की चिन्ता नहीं लगी रहती थी। खाली समय में वह पत्थर के औजार कुदाल या बर्तन बना सकता था। कुछ लोग जिन्हें अपने भोजन उत्पन्न करने की जरुरत नहीं थी वे अपने को अन्य दूसरे कार्य में लगा सकते थे। 

इसके फलस्वरूप श्रम विभाजन हुआ श्रम विभाजन के कारण विभिन्न समूहों के लिए विशेषीकरण करना संभव हो सका। दूसरे शब्दों में वे एक काम में लगकर उस काम को करने की तकनीक को दूसरों की अपेक्षा अधिक अच्छी तरह समझ सकें।

व्यवस्थित सामुदायिक जीवन के लिए नियमों की आवश्यकता थी। जिनसे समुदाय के सदस्यों के आचरण को नियमित किया जा सके। यह जानना संभव नहीं है कि ये नियम किस प्रकार लागू किए गए। यह लगता है कि समुदाय संबंधी निर्णय लोगों द्वारा सामूहिक रूप से या वयोवृद्ध लोगों की परिषद द्वारा लिए गए। यह चलन जनजातियों में है। 

उस समय संभवतः कोई राजा नहीं थे और न ही कोई सरकार थी। बहुत संभव है कि नेतृत्व गुण के आधार पर सरदारों का चुनाव होता रहा होगा। सरदार अपना पद अपने पुत्रों को नहीं दे सकते थे। उन सरदारों को कोई विशेषाधिकार नहीं था। संभवतः तब खेती की जमीन सारे समुदाय की संपत्ति समझी जाती थी। 

समुदाय अलग-अलग परिवारों को जमीन के टुकड़े खेती करने के लिए दे देता था। या सारा समुदाय सम्मिलत खेतों पर काम करता था। यह संभव है कि धीरे-धीरे अलग-अलग परिवार अलग-अलग भूमि खण्डों के स्वामी हो गए और जमीन सारे समुदाय की संपत्ति नहीं रही। जमीन की ही भांति मकान बर्तन और आभूषण भी अलग-अलग परिवारों की संपत्ति रहे होंगे।

नवपाषाण कालीन लोगों के धार्मिक विश्वास - मृत व्यक्तियों को दफनाने के ढंग से नवपाषाण कालीन लोगों के धार्मिक विश्वासों के विषय में कुछ जानकारी मिलती है। मृत व्यक्तियों को हथियार, मिट्टी के बर्तन तथा खाने पीने की चीजों के साथ कब्रों में दफनाया जाता था।

विश्वास किया जाता था कि मरने के बाद भी व्यक्तियों को इन वस्तुओं की जरुरत पड़ेगी। पुरापाषाण काल की भी ऐसी कब्रें मिली है संभवतः नवपाषाण काल में कब्रों का महत्व पहले की अपेक्षा कुछ अधिक हो गया। धरती से अब सारे समुदाय को भोजन मिलता था। उस काल के लोगों की धारणा थी कि जिन मृत पूर्वजों के शव जमीन के नीचे गड़े हैं उनकी आशाएँ फसलों के बढ़ने में सहायक है।

इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि इन लोगों का 'कुल-चिन्हों ( टोटम्स) में विश्वास था। कोई जाति या साथ-साथ रहने वाले परिवारों को कोई समूह यदि किसी पशु या पौधे की आकृति को अपनी जाति या समूह का चिन्ह मान लेता है तो उसे उस जाति या समूह का कुल चिन्ह कहा जाता था। प्राचीन काल में लोगों का विश्वास था कि पशुओं और मनुष्यों के पूर्वज एक ही थे और पशु भी मनुष्यों के मित्र या रिश्तेदार थे। 

क्योंकि वे उसे भोजन देते थे। जब मनुष्यों ने खेती करना आरंभ कर दिया तब भी उनका जीवन पूरी तरह सुरक्षित नहीं था उन्हें हमेशा इस बात का डर लगा रहता था कि कोई बड़ी विपत्ति फसलों, पालतू पशुओं या शिकार के पशुओं को नष्ट न कर दे। 

असुरक्षा की इन स्थितियों और प्रकृति की प्रक्रिया को समझने में मानव की असमर्थता के कारण इस धारणा का जन्म हुआ कि समुदाय का कल्याण किसी पशु विशेष के कल्याण के साथ बँधा हुआ है या उसके ऊपर पूर्णतया निर्भर है। इस प्रकार की धारणाएँ पेड़ों और पौधों के बारे में भी बन गई। मनुष्यों ने अपने पूर्वजों और रक्षकों के प्रतीक के रूप में कुछ पशुओं को अपना कुल चिन्ह बना लिया।

संसार के अनेक भागों में कई नवपाषाण कालीन बस्तियों में स्त्रियों की मिट्टी से बनी छोटी मूर्तियाँ मिली है। जिन्हें मातृदेवी कहा जाता था। जब मनुष्य जमीन पर खेती करने लगा तब पृथ्वी माता हो गई और छोटी मूर्तियों की वह इस विश्वास से पूजा करने लगा कि इससे जमीन की उर्वरता में वृद्धि होगी। पुरापाषाण कालीन गुफाओं पर अंकित चित्रकला की तरह नवपाषाण कालीन संगीत और नृत्यकला भी मानव की आशाओं और आशंकाओं से संबंद्ध थी।

पहिए का आविष्कार - शायद इसी काल के आसपास मनुष्य ने पहिए का अविष्कार किया जिसके परिणाम स्वरूप एक प्राविधिक (तकनीक) क्रांति हो गई। आज हम इस बात की कल्पना नहीं कर सकते कि पहिए के बिना हमारा काम कैसे चल सकता है। इस आविष्कार के उपयोगी बनने से पहले इसके विकास के अनेक चरण रहे होंगे। अंतिम परिणाम उन्नत बढ़ईगिरी का फल रहा होगा। यह धातुओं की खोज और प्रयोग द्वारा ही संभव हो पाया।

ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य ने सबसे पहले पहिए का प्रयोग मिट्टी के बर्तन बनाने में किया। कुम्हार के चाक ने मिट्टी के बर्तन बनाने की कला को एक शिल्प का रूप दे दिया।

पहिए की स्लेज गाड़ियों का प्रयोग तो मानव पहले से ही जानता था। पहिए वाली गाड़ी के द्वारा सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना बहुत सरल हो गया। जल्द ही ऐसी गाड़ी को खींचने के लिए पशु काम में लाए जाने लगे। फसलों की कटाई एवं परिवहन में पहिए का उपयोग बहुत पहले से ही होने लगा था। 

पुरातत्व क्या है - चिर अतीत में रहने वाले हमारे पूर्वजों के दैनिक जीवन और उनके व्यवसायों पर रोशनी डालने के लिए टीलों और खंडहरों के रुप में पुराने स्थानों की खुदाई को और पुरातन वस्तुओं के अध्ययन को विद्वानों ने एक विज्ञान का रूप दिया है उन्हें पुरातत्व विज्ञान कहा जाता है। यह आधुनिक पुरातत्व पुरातत्वविदों की देन है। इसने हमें लाखों वर्षों की मानव प्रगति से परिचित कराया है। 

उत्खनन से अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई है। इनमें औजार, हथियार, स्मारक और अवशेष प्राचीन जनगणों की कलाकृतियाँ और उनके जीवनयापन की व्यवस्था शामिल है। संक्षेप में पुरातत्वविदों ने इतिहासकारों को एक संपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास को जानने के लिए पर्याप्त सामग्री दी है।

पुरातत्व की कार्य प्रणाली - समय बीतने के साथ ही वे अनेक वस्तुएँ अब खराब या नष्ट हो गई है।  जिनसे हमें प्राचीन मानव की संस्कृतियों को समझने में सहायता मिलती। मगर कतिपय कारक इन चीजों को सुरक्षित रखने में सहायता देते हैं अन्यथा ये थोड़े समय में नष्ट हो जाती। उदाहरण के लिए मिट्टी की शुष्क जलवायु में विशाल पिरामिडों के अंदर लकड़ी के फर्नीचर और यहाँ तक कि घास की चटाईयाँ तथा बारीक कपड़े भी पूरी तरह ठीक-ठीक मिले हैं। 

मरुभूमि के एक अनाज के गोदाम में गेहूँ और जौ के दाने के ऊपर छिलके और बालियों सहित सर्वथा अच्छी हालत में मिले हैं। ज्वालामुखी फूटने के कारण रोम का प्राचीन नगर पापेई नीचे दब गया मगर एक नानबाई की दुकान में रोटी सुरक्षित रही। पुरातत्वविद अपनी गैती और कुदाल की सहायता से बड़ी सावधानी से खुदाई करता है जब उसे कोई चीज मिलती है तो वह उसे तुरंत नहीं उठाता। 

कोई वस्तु जो सैकड़ों वर्षों से धरती के नीचे दबी रहती है थोड़ी भी असावधानी से छूने से टुकड़े-टुकड़े हो सकती है और उसकी कहानी सदा के लिए खत्म हो सकती है। पुरातत्वविद् बिना उस वस्तु को हिलाए चाकू और कैची से उसके ऊपर की तथा इर्द-गिर्द से मिट्टी हटाता है।

पुरातत्व सामग्रियों का काल - निर्धारण- पुरातत्वविद जिन वस्तुओं को ढूंढ़ निकालते हैं उनकी तिथि निर्धारित करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाते हैं। अगर ऐसे सिक्के या अभिलेख मिलते हैं जिन पर किसी राजा का नाम होता है तो उनके साथ मिलने वाली अन्य सामग्रियों की तिथि मोटे तौर पर निर्धारित की जा सकती है। 

भौतिकी ने यह मालूम करने में मदद दी है कि कोई वस्तु कितनी पुरानी है सभी सजीव वस्तुओं में एक प्रकार का रेडियोधर्मी कार्बन होता है जिसे कार्बन - 14 कहते हैं। रेडियोधर्मी पदार्थ वे होते हैं जिनमें से एक निश्चित दर से बहुत छोटे-छोटे कण निकलते हैं। जब मनुष्य पशु और पौधे जिन्दा होते हैं तब से वे जिस मात्रा में वायुमंडल से कार्बन - 14 लेते हैं उसी मात्रा में रेडियोधर्मिकता के कारण उसे खो देते हैं। 

जब कोई जीवित मर जाती है। तब वह वायुमंडल से नया कार्बन 14 नहीं लेती यद्यपि वह उसे एक निश्चित दर से खोती रहती है। किसी भी वस्तु में निहित कार्बन 14 की मात्रा का पता लगाकर भौतिक शास्त्री हमें यह बतला सकते हैं कि मोटे तौर पर वस्तु कितनी पुरानी है। किसी वस्तु की तिथि को निर्धारित करने की इस प्रणाली को कार्बन 14 तिथि निर्धारण कहते हैं। 

अतीत को समझने में पुरातत्वविदों को मानव विज्ञान की शारीरिक विशेषताओं उसकी संस्कृति उसके रीति-रिवाज, व्यवहार करने के ढंग और दूसरे मानवों के साथ उसके संबंधों का अध्ययन है। पुरातत्वविद वस्तुओं को खोद निकालता है। इन वस्तुओं का विश्लेषण करना और इन्हें समझना होता है। 

जिससे लोगों के जीवन का चित्र तैयार हो सके। यहाँ पर मानव विज्ञान सहायक होता है मानव विज्ञान के द्वारा अस्ति पंजरों की सहायता से प्रारंभिक मानव की शारीरिक विशेषताओं को समझने और किसी समाज की संस्कृति को शिल्प-उपकरणों, रहने के मकानों, स्मारकों और चित्रों के आधार पर समझने में सहायता करता है।बर्फ

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