राष्ट्रीय आय की अवधारणाएँ
राष्ट्रीय आय की प्रमुख अवधारणाएँ निम्नांकित हैं -
1. सकल घरेलू उत्पाद
सकल घरेलू उत्पाद से अभिप्राय किसी देश में एक निश्चित समयावधि में देश के निवासी अथवा अनिवासी द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों के योग से होता है। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र, जैसे- प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में लगे हुए होते हैं। इनके द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। संक्षेप में प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं -
- सकल शब्द यह बताता है कि सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में मूल्य ह्रास अथवा घिसावट व्यय शामिल है।
- सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में दोहरी गणना से बचने के लिए केवल अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को ही जोड़ा जाता है।
- सकल घरेलू उत्पाद में पुरानी वस्तुओं की ब्रिकी से प्राप्त राशि नहीं जोड़ी जाती।
- सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में स्व-उपभोग के लिए किया गया उत्पादन तथा खुद - काबिज मकानों का आरोपित किराया शामिल होता है।
- सकल घरेलू उत्पाद देश की घरेलू सीमा से संबंधित अवधारणा है, अत: इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय शामिल नहीं होती।
- अंत में, सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में हस्तांतरण भुगतान अथवा आय, पूँजीगत लाभ तथा अवैधानिक क्रियाओं से प्राप्त आय को नहीं जोड़ा जाता।
सकल घरेलू उत्पाद की गणना
सकल घरेलू उत्पाद की गणना निम्नानुसार की जाती है -
1. बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद की गणना - बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद एक देश की घरेलू सीमा में एक लेखा- वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का सकल मूल्य होता है । इसकी गणना करने के लिए उत्पादित वस्तुओं की मात्रा को उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है।
2. साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद की गणना - यह सर्वविदित है कि उत्पादित वस्तुएँ एवं सेवाएँ उत्पादन के विभिन्न साधनों भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यम का सामूहिक परिणाम होती हैं। उत्पादन के साधनों को उनकी उत्पादक सेवाओं के बदले प्राप्त होने वाले पुरस्कार को साधन- आय कहते हैं। ये साधन आय लगान, मजदूरी, ब्याज व लाभ उत्पादकों या फर्मों के लिए लागत होती है।
अत: इन साधन- आयों का योग करके ही सकल घरेलू उत्पाद की गणना की जा सकती है। इस संबंध में ध्यान देने योग्य बातें यह है कि विभिन्न साधन के स्वामियों को शुद्ध साधन-आय ही प्राप्त होती है, अतः सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करने के लिए हमें शुद्ध साधन-आय में घिसावट-व्यय को जोड़ना होगा।
पारिभाषिक रूप से, बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद तथा साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य बराबर होने चाहिए, क्योंकि उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य उत्पादन के साधनों में लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ के रूप में बँट जाता है। लेकिन व्यवहार में ये मूल्य बराबर नहीं होते।
इन्हें समान बनाने हेतु हमें सरकार द्वारा विभिन्न उत्पादन इकाइयों पर लगाए गए अप्रत्यक्ष कर तथा उनको दी जाने वाली आर्थिक सहायता को ध्यान में रखना होगा। बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में से अप्रत्यक्ष कर घटाकर तथा सहायता राशि जोड़कर ही साधन पर सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य को प्राप्त किया जा सकता है।
2. सकल राष्ट्रीय उत्पाद
सकल राष्ट्रीय उत्पाद एक विस्तृत अवधारणा है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद का संबंध देश की घरेलू सीमा से न होकर उसके सामान्य निवासियों से होता है। देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में देश के अन्दर एवं बाहर सृजित आय का योग सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद में शुद्ध विदेशी साधन आय को जोड़ने से सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य प्राप्त हो जाता है।
देश के निवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय में से विदेशी निवासियों द्वारा देश में अर्जित आय घटाकर विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय प्राप्त हो जाती है। यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय धनात्मक है तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद अधिक होगी सकल घरेलू उत्पाद से। इसके विपरीत, यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक है तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद कम होगी सकल घरेलू उत्पाद से।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद की विशेषताएँ
सकल राष्ट्रीय उत्पाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं -
- सकल राष्ट्रीय उत्पाद में 'सकल' शब्द महत्वपूर्ण है। सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करते समय घिसावट व्यय या मूल्य ह्रास को नहीं घटाया जाता।
- सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करते समय केवल चालू वर्ष के उत्पाद को ही शामिल किया जाता है। पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय, कम्पनियों के अंशों एवं बाण्ड्स का क्रय-विक्रय, बेरोजगारी भत्ता, वृद्धावस्था में पेंशन आदि के लेन-देन को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता।
- सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करते समय केवल अंतिम उत्पादन के मूल्य की गणना की जाती है।
- सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मुद्रा में मापा जाता है, लेकिन मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन से सकल राष्ट्रीय उत्पाद में कमी या वृद्धि हो सकती है, अतः किसी सामान्य वर्ष को आधार वर्ष मानकर सकल राष्ट्रीय उत्पाद को उसी वर्ष के अनुसार समायोजित किया जाता है तथा उसकी गणना उस वर्ष की कीमतों के आधार पर की जाती है ।
- जिन वस्तुओं एवं सेवाओं को निःशुल्क प्रदान किया जाता है, जैसे- शिक्षक द्वारा अपने बच्चों को पढ़ाना, डॉक्टर द्वारा अपने परिवार का इलाज करना, इन्हें सकल राष्ट्रीय उत्पाद से अलग कर दिया जाता है, क्योंकि ऐसी सेवाओं का मौद्रिक मूल्याँकन करना सम्भव नहीं होता।
- एक वर्ष की समयावधि में बाजार मूल्य में उच्चावचन के कारण पूँजीगत सम्पत्ति में परिवर्तन होता है, जिससे एकाएक लाभ या हानि होती है, लेकिन इसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता है, यदि चालू उत्पादन से इनका संबंध न हो।
- जिन वस्तुओं का क्रय-विक्रय गैर-कानूनी ढंग से किया जाता है, उन्हें सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता।
सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना
सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना दो तरीके से की जा सकती है - यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद के मूल्य की गणना बाजार में प्रचलित कीमतों के आधार पर की जाती है, तो इसे बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। इसके विपरीत, यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य आधार वर्ष की कीमतों के आधार पर मापा जाता है तो यह स्थिर कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है।
3. शुद्ध घरेलू उत्पाद
शुद्ध घरेलू उत्पाद से अभिप्राय, एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में निवासी एवं गैर-निवासियों द्वारा उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के शुद्ध मौद्रिक के मूल्य से होता है अर्थात् एक देश के सकल घरेलू उत्पाद के मूल्य में से स्थिर पूँजी के उपभोग अथवा मशीनों एवं कल-पुर्जों के घिसावट व्यय को घटाने से जो शेष राशि बचती है, उसे ही शुद्ध घरेलू उत्पाद कहते हैं।
शुद्ध घरेलू उत्पाद की गणना
शुद्ध घरेलू उत्पाद की गणना निम्नानुसार की जा सकती है -
1. बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद - बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद से अभिप्राय, एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा वर्ष के अन्तर्गत उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्य से है। इस संबंध में ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसका संबंध भी देश की घरेलू सीमा से है। इसमें देश की घरेलू सीमा में रहने वाले विदेशियों के सहयोग को भी शामिल किया जाता है। लेकिन विदेशों में रहने वाले देश के नागरिकों के सहयोग को शामिल नहीं किया जाता है।
2. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद - एक देश में एक लेखा वर्ष में उत्पादन के विभिन्न साधनों को देश की घरेलू सीमाओं के अन्तर्गत जो सकल आय प्राप्त होती है, उसे ही साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद कहा जाता है। उत्पादन के साधनों को यह आय मजदूरी, वेतन, किराया, ब्याज, लाभ एवं स्व-नियोजितों की मिश्रित आय के रूप में प्राप्त होती है।
इसके अन्तर्गत देश की घरेलू सीमा के अन्तर्गत कार्य कर रही विदेशी संस्थाओं एवं फर्मों के द्वारा उत्पादन के साधनों को किये गये भुगतानों को शामिल किया जाता है, लेकिन विदेशों में स्थित संस्थाओं एवं फर्मों के द्वारा किये गये भुगतानों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
4. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
सकल राष्ट्रीय उत्पाद की भाँति राष्ट्रीय उत्पाद भी एक राष्ट्रीय अवधारणा है। वस्तुओं के उत्पादन में लगी हुई मशीनों एवं संयंत्रों को एक निश्चित समयावधि के बाद बदलना पड़ता है। क्योंकि उत्पादन कार्य में इनका लगातार प्रयोग करने से ये मशीन घिस-पिट कर बेकार हो जाती हैं।
अतः उत्पादन कार्य को लगातार जारी रखने के लिए इन मशीनों को बदलना आवश्यक होता है। इसके लिए उत्पादक एक कोष बनाता है। जिसे घिसावट व्यय कोष कहते हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद का एक निश्चित भाग इसमें प्रतिवर्ष जमा किया जाता है।
इसका उत्पादन के साधनों के बीच वितरण नहीं किया जाता है। अतः सकल राष्ट्रीय उत्पाद के मूल्य में से मशीनों के घिसावट व्यय की राशि को घटाने के बाद जो शेष बचता है, उसे ही शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद की गणना - शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद की गणना निम्नानुसार की जा सकती है -
1. बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद - बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात करने के लिए सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की बाजार कीमतों पर गणना की जाती है जो कि बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद के द्वारा अभिव्यक्त होती है। बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद में अप्रत्यक्ष कर तथा अनुदानों का समावेश किया जाता है। बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद में से घिसावट व्यय (मूल्य ह्रास) घटाने पर बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय आय ज्ञात हो जायेगी।
2. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद - साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद से अभिप्राय एक लेखा वर्ष में उत्पादन प्रक्रिया के दौरान उत्पादित अंतिम वस्तुओं व सेवाओं का शुद्ध मूल्य, साधनों द्वारा अर्जित आय के योग के बराबर होता है।
अतः साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को साधनों द्वारा उपार्जित आय के योग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को घरेलू साधन आय और विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग के रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं।
5. राष्ट्रीय आय
एक देश की एक वर्ष की अवधि में साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद का जो मूल्य होता है। इसे ही उस देश की राष्ट्रीय आय कहा जाता है। इसके अन्तर्गत एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में उत्पादन के साधनों के द्वारा लगान, मजदूरी, वेतन, ब्याज एवं लाभ के रूप में उपार्जित आय के साथ इन साधनों के द्वारा विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को भी जोड़ा जाता है।
- उत्पादन के साधनों को प्राप्त होने वाली यह आय भूमि के लिए लगान, श्रमिक के लिए मजदूरी, प्रबंधक का वेतन, पूँजी के लिए ब्याज तथा साहसी को लाभ के रूप में होती है।
- विदेशों से उत्पादन के साधनों को प्राप्त शुद्ध आय का अर्थ देश के साधनों को विदेशों से प्राप्त आय एवं विदेशी साधनों को अपने देश में प्राप्त होने वाली आय के अन्तर से है। इसलिए यह धनात्मक अथवा ऋणात्मक भी हो सकती है।
- राष्ट्रीय आय का ही उत्पादन के साधनों के बीच वितरण किया जाता है।
6. निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय
प्रत्येक अर्थव्यवस्था में घरेलू साधन-आय का सृजन उसके निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में होता है। निजी क्षेत्र के अन्तर्गत उन समस्त संगठित उत्पादन इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है जिनका स्वामित्व निजी लोगों के हाथों में होता है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत सरकार के समस्त प्रशासनिक विभाग, विभागीय उद्यम तथा गैर-विभागीय उद्यम शामिल होते हैं।
किसी अर्थव्यस्था के घरेलू उत्पाद का वह भाग, जो निजी क्षेत्र को प्राप्त होता है, उसे निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय कहते हैं। दूसरे शब्दों में, श्रमिकों के पारिश्रमिक, प्रचालन अधिशेष तथा मिश्रित आय के रूप में अर्जित शुद्ध घरेलू साधन- आय का वह भाग, जो निजी क्षेत्र को प्राप्त होता है, निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय कहलाता है।
7. सार्वजनिक क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय
प्रत्येक अर्थव्यवस्था में घरेलू साधन आय का सृजन उसके निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में होता है। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत उन समस्त उत्पादन इकाइयों को सम्मिलित किया जाता है जिनका स्वामित्व सरकार के हाथ में होता है। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत सरकार के समस्त प्रशासनिक विभाग, विभागीय उद्यम तथा गैर-विभागीय उद्यम शामिल होते हैं।
दूसरे शब्दों में, किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित समस्त आय में निजी क्षेत्र में उपार्जित घरेलू उत्पाद से आय को घटाने पर जो शेष बचता है, वह सार्वजनिक क्षेत्र की आय होती है। सार्वजनिक क्षेत्र में प्रशासनिक विभागों को सम्पत्ति एवं उद्यमशीलता से उपार्जित आय तथा गैर-विभागीय उद्यमों की बचतों को शामिल किया जाता है।
8. निजी आय
निजी आय से अभिप्राय, एक लेखा वर्ष में निजी क्षेत्र को सभी स्रोतों से प्राप्त होने वाली आय से है। निजी क्षेत्र को साधन-आय (लगान, मजदूरी, ब्याज, लाभ) तथा हस्तांतरण आय के रूप में आय प्राप्त होती है, अतः 'निजी आय साधन आय तथा सरकार और शेष विश्व से प्राप्त समस्त वर्तमान हस्तांतरण का योग है।
केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन के अनुसार - निजी आय वह आय है जो निजी क्षेत्र के सभी स्रोतों से प्राप्त साधन-आय तथा सरकार से प्राप्त वर्तमान हस्तांतरण और शेष विश्व से प्राप्त वर्तमान हस्तांतरण का योग है। स्पष्ट है निजी आय से अभिप्राय निजी क्षेत्र की कुल आय से है चाहे वह अर्जित आय है अथवा अनार्जित आय अर्थात् हस्तांतरण आय है। निजी क्षेत्र में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन-आय भी शामिल होती है। निजी क्षेत्र के प्रमुख घटक निम्नांकित हैं -
- निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय (अर्थात् समस्त आय भुगतान )।
- विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन-आय।
- चालू या वर्तमान हस्तांतरण – निजी क्षेत्र को हस्तांतरण आय भी प्राप्त होती है। यह दो प्रकार की होती है।
सरकार से प्राप्त चालू हस्तांतरण - इससे अभिप्राय सरकार की चालू आय में परिवारों एवं उद्यमों को स्वउपभोग हेतु प्राप्त होने वाली चालू आय से होता है। वृद्धावस्था में पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, छात्रवृत्ति, उपहार आदि जो सरकार से परिवार को प्राप्त होती है।
वह चालू हस्तांतरण ही है। इसी प्रकार सरकार परिवार व उद्यमों को औद्योगिक विकास हेतु आर्थिक सहायता देती है, वह भी चालू हस्तांतरण है। चालू हस्तांतरण सांधन आय से इस बात में भिन्न है कि इसके भुगतान हेतु परिवारों द्वारा सरकार को कोई सेवा प्रदान नहीं करनी पड़ती है।
शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तांतरण - इससे अभिप्राय एक देश को अन्य देशों से दान, उपहार, सहायता के रूप में खाद्यान्न, दवाइयाँ, कपड़े आदि के रूप में प्राप्त चालू हस्तांतरण मूल्य तथा एक देश से दूसरे देशों को इसी प्रकार के दिये गये चालू हस्तांतरण मूल्य का अन्तर होता है। उपहार, दान आदि प्राप्त करने वाले देश को इन वस्तुओं के मूल्य का भुगतान नहीं करना होता है।
9. वैयक्तिक आय
वैयक्तिक आय किसी देश के व्यक्तियों व परिवारों को एक लेखा वर्ष में सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त साधन आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का योग है। पीटरसन के अनुसार - वैयक्तिक आय व्यक्तियों द्वारा सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त साधन आय तथा वर्तमान हस्तांतरण भुगतान का योग है।
वैयक्तिक आय के अन्तर्गत व्यक्तियों अथवा परिवारों को सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त होने वाली आय को शामिल किया जाता है। जैसे-फर्मों या निगमों को जो लाभ प्राप्त होते हैं, उसमें से कुछ भाग व्यक्तियों में नहीं बाँटा जाता, बल्कि अवितरित लाभ के रूप में फर्मों के पास रह जाता है। इस प्रकार अवितरित लाभ के दो अंग हैं- 1. निगम कर एवं 2. निगम बचत, अतः निगम कर एवं निगम बचत को वैयक्तिक आय में शामिल नहीं किया जाता है।
10. वैयक्तिक व्यय योग्य आय
वैयक्तिक व्यय योग्य आय का अर्थ उस वास्तविक आय से है, जो व्यक्तियों अथवा परिवारों के द्वारा उपभोग पर वास्तव में व्यय की जाती है। सम्पूर्ण वैयक्तिक आय को उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता है, क्योंकि लोगों को अपनी आय पर 'आयकर' जैसे प्रत्यक्ष कर का भुगतान करना पड़ता है।
अतः वैयक्तिक आय में से प्रत्यक्ष कर को घटा देने पर जो शेष आय होती है, वही वैयक्तिक आय योग्य आय होती है। लेकिन ध्यान रहे, पूरी वैयक्तिक व्यय योग्य आय उपभोग पर खर्च नहीं की जाती, बल्कि इसका कुछ भाग बचत के रूप में रख लिया जाता है।
यदि हम वैयक्तिक व्यय योग्य आय को राष्ट्रीय आय में से प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें राष्ट्रीय आय में से व्यावसायिक बचत, अप्रत्यक्ष कर, वैयक्तिक आय तथा व्यावसायिक आय पर प्रत्यक्ष करों की राशि को घटाना होता है तथा हस्तांतरण आय को जोड़ना होता है। इस प्रकार,
11. प्रति व्यक्ति आय
एक वर्ष विशेष में एक देश के लोगों की औसत आय को हा प्रति व्यक्ति आय कहा जाता है। प्रति व्यक्ति आय को ज्ञात करने के लिए एक देश की राष्ट्रीय आय को वहाँ की जनसंख्य से भाग दिया जाता है।
12. मौद्रिक आय
जब राष्ट्रीय आय (सकल घरेलू उत्पाद अथवा शुद्ध घरेलू उत्पाद) व गणना चालू कीमतों पर की जाती है तो उसे मौद्रिक आय अथवा चालू कीमतों पर मौद्रिक आय कहते हैं।
मौद्रिक आय की प्रमुख विशेषताएँ
- मौद्रिक आय एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का वर्तमान कीमत पर मुद्रा में व्यक्त मूल्य होता है।
- मौद्रिक मूल्य में वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखा जाता है।
- मौद्रिक आय में वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा स्थिर रहने पर और मूल्य बढ़ने पर राष्ट्रीय आय बढ़ जाती है, जबकि मूल्य कम होने पर राष्ट्रीय आय कम हो जाती है।
चूँकि मौद्रिक आय में राष्ट्रीय आय की गणना चालू कीमतों पर मुद्रा में की जाती है, अतः आर्थिक वृद्धि एवं अर्थव्यवस्था की वास्तविक दशा का सही-सही अनुमान लगाना कठिन होता है।
13. वास्तविक आय
जब राष्ट्रीय आय को एक आधार वर्ष की कीमतों के सामान्य स्तर पर व्यक्त किया जाता है तो उसे वास्तविक आय कहते हैं। वास्तविक राष्ट्रीय आय ज्ञात करने के लिए एक ऐसे वर्ष को जिसमें सामान्य कीमत स्तर में बड़े परिवर्तन नहीं हुए हों को आधार वर्ष मानकर कीमत स्तर को 100 मान लिया जाता है। अब जिस वर्ष की वास्तविक राष्ट्रीय आय ज्ञात करनी हो, उस वर्ष की कीमतों का सामान्य स्तर के आधार वर्ष की कीमतों पर मूल्याँकन किया जाता है।