पाषाण युग किसे कहते हैं - stone age

पाषाण युग किसे कहते हैं

पाषाण युग के मानक औजार - मानव सांस्कृतिक विकास की प्रक्रिया उस समय प्रारंभ हुई जब हमारे - पूर्वजों में पाषाण के खुरदुरे औजार बनाने का कौशल आ गया। ये औजार पत्थरों के ऐसे टुकड़ों से मिलते जुलते थे जो प्राकृतिक क्रियाओं से औजार जैसे शक्ल के (नोकदार या धारदार) बन जाते हैं। पुरापाषाण युग का मानव खुरदुरे औजार काम में लाता था और अपनी भोजन इधर-उधर से इकट्ठा करता था। 

पुरापाषाण युग के औजार तीन मुख्य भागों में आते हैं- कुठार, गंडासा और शल्कल औजार। लगता है कि कुठार मुट्ठी में पकड़ा जाता था। इससे किसी वस्तु को काटा जाता था या इसे किसी वस्तु को कुचलने के लिए काम में लाया जाता था।

पुरापाषाण युग के औजार यूरोप, अफ्रीका और एशिया आदि अनेक स्थानों पर पाए गए हैं। उनका आकार सभी जगह एक–सा था और वे एक ही ढंग से बनाए गए थे। बाद में ओजार हड्डी और हाथी दाँत से भी बनाए गए। औजार बनाने के लिए भी कुछ औजार बनाए गए। ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ यांत्रिक युक्तियों का अविष्कार हुआ। 

जैसे हथियारों के रूप में धनुष तथा भाला फेंकने का अस्त्र। अब पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली कटार/गदा की तरह के शस्त्रों से लड़ना और धनुष फेंकने वाले अस्त्रों से दूर की वस्तु पर निशाना लगाना संभव हो गया।

सामुदायिक जीवन का प्रारंभ - उत्तर पुरापाषाण युग में मनुष्य का मुख्य व्यवसाय शिकार करना और फल इकट्ठा करना था। इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि इस काल में मानव ने खेती करना प्रारंभ कर दिया था या वह पशु भी पालने लगा था। सामाजिक संगठन अर्थात् मनुष्यों के पारस्परिक संबंधों के बारे में भी हमें विस्तार से कुछ मालूम नहीं है। परन्तु यह विश्वास है कि इस युग में मानव ने भोजन सामग्री ढूँढ़ने के कार्य में साथी मानवों के साथ सहयोग करना सीख लिया था।

शारीरिक दृष्टि से मनुष्य अनेक वन्यपशुओं की अपेक्षा कम शक्तिशाली है। अतः बहुत पहले ही उसे ज्ञात हो गया था कि जब तक वह एक-दूसरे से मिलजुलकर नहीं रहेगा वह जिन्दा नहीं रह सकता। वह समूह रहता था और सारा समूह भोजन प्राप्त करने और अपनी रक्षा के लिए मिलजुलकर काम करता था। 

ये समुदाय या कुल किसी एक जगह बहुत दिनों तक नहीं बसते थे। उद्देश्य प्राप्ति के बदलने पर पशुओं के साथ ही उसे अपने रहने का स्थान भी बदलना पड़ता था। कभी-कभी किसी स्थान पर शिकार के लिए पशु काफी संख्या में मिलते, तो वे लोग वहीं खाली के तंबुओं में या गुफाओं में लंबे समय तक रह जाते। शायद उस समय पुरुषों और स्त्रियों का दर्जा समान था और सामाजिक असमानताओं का जन्म नहीं हुआ था।

पुरापाषाण कालीन कला - मानव ने पहले अपनी गुफाओं की दीवारों पर रेखाएँ खींचकर भद्दे चित्र बनाए फिर कुछ हजार वर्षों में वह एक सफल कलाकार हो गया। उसने चित्रकारी, नक्काशी और मूर्तिकला में बहुत उन्नति की। फ्राँस, स्पेन और इटली में इस प्रकार की कला से सुसज्जित बहुत-सी गुफाएँ मिलती है। कुछ गुफाओं की भीतरी छतों पर बहुरंगी चित्र है। 

इन चित्रों और नक्काशियों में भागते हुए जंगली साँड, घोड़े, रीछ, बारहसिंगे और अफ्रीकन मेमनों के झुंड तथा शिकार के बड़े दिलचस्प दृश्य दिखलाए गए हैं। मनुष्य और पशुओं की आकृतियाँ हड्डियों और हाथी दाँत पर भी खुदी मिली है। इस प्रकार पुरापाषाण कालीन कला में बहुत उन्नति हुई और आज भी लोग इसकी बहुत प्रशंसा करते हैं। 

भारत के अनेक स्थानों पर पहाड़ियों की गुफाओं में अनेक चित्र मिले हैं। इसमें से अनेक चित्रों की तिथियाँ निश्चित करना कठिन है। मध्यप्रदेश के भीमबेटका के चित्र पाषाण युग के समझे जाते हैं।

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