निर्देशांक क्या है?

निर्देशांक का अर्थ एवं परिभाषाएँ निर्देशांक आर्थिक जगत में होने वाले परिवर्तनों की माप है। ये परिवर्तन विभिन्न तथ्यों के समय, स्थान एवं अन्य विशेषताओं के आधार पर होते हैं। जैसे- सामान्य मूल्य स्तर बढ़ गया, व्यापार में तेजी, औद्योगिक उत्पादन में शिथिलता आदि इस प्रकार के परिवर्तनों को निर्देशांक द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।

इसके लिए किसी वर्ष विशेष को आधार वर्ष चुन लिया जाता है जिस वर्ष का निर्देशांक 100 मान लिया जाता है। इसके बाद चालू वर्ष का प्रतिशत निकाला जाता है। प्रतिशतों का यह माध्य ही सांख्यिकी में निर्देशांक या सूचकांक कहलाता है। संक्षेप में निर्देशांक दो समयावधियों में होने वाले परिवर्तनों की माप है।

निर्देशांक या सूचकांक की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं -

क्राक्सटन एवं कॉउडेन के अनुसार - निर्देशांक सम्बन्धित चर मूल्यों के परिमाण में होने वाले अन्तरों को मापने की युक्तियाँ हैं।

ब्लेयर के अनुसार - निर्देशांक एक विशेष प्रकार के माध्य होते हैं। 

होरेस सिक्राइस्ट के अनुसार - निर्देशांक अंकों की एक ऐसी श्रेणी है, जिसके द्वारा समय, स्थान या अन्य विशेषताओं के आधार पर किसी चर मूल्य या सम्बन्धित चर मूल्यों के समूह में होने वाले परिवर्तनों को मापा जाता है।  

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि निर्देशांक विभिन्न समयावधियों अथवा स्थानों में चर मूल्यों में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तनों का गणितीय माप है।

निर्देशांक की रचना एवं सावधानियाँ

निर्देशांकों की रचना करते समय निम्नांकित बातों को ध्यान रखना आवश्यक होता है -

1. निर्देशांकों का उद्देश्य - निर्देशांकों को बनाने के पहले सर्वप्रथम उसके उद्देश्य निश्चित होना चाहिए, क्योंकि आगे के सभी कार्य इसी बात पर निर्भर करते हैं, क्योंकि प्रत्येक निर्देशांक का क्षेत्र सीमित और विशेष उद्देश्य के लिए बनाया जाता है। जैसे श्रमिकों से सम्बन्धित जीवन निर्वाह निर्देशांक बना रहे हैं तो केवल ऐसी वस्तुओं को सम्मिलित किया जायेगा जिनका उपभोग श्रमिकों द्वारा किया जाता है।

2. आधार वर्ष का चुनाव - निर्देशांक बनाने के लिए आधार वर्ष का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि इसी पर सारा परिणाम आधारित होता है। आधार वर्ष वह वर्ष होता है, जिसकी औसत कीमत की तुलना में चालू वर्ष के औसत कीमत में हुए परिवर्तन को दिखाते हैं। आधार वर्ष का निर्देशांक 100 मान लिया जाता है। परन्तु आधार वर्ष का चुनाव निर्देशांकों के उद्देश्यों के अनुसार किया जाता है। इसलिए इसका चुनाव सावधानी पूर्वक करना चाहिए।

3. वस्तुओं का चुनाव- निर्देशांक बनाने के लिए वस्तुओं का चुनाव करना भी महत्वपूर्ण है। निर्देशांक बनाने में हम सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों का प्रयोग नहीं कर सकते, इसलिए ऐसी वस्तुओं एवं सेवाओं का चुनाव करना होता है जो अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रतिनिधित्व कर सकें। निर्देशांक को महत्वपूर्ण बनाने की दृष्टि से इसमें अधिक से अधिक वस्तुओं का चुनाव किया जाना चाहिए।

4. वस्तुओं की कीमतों का चुनाव - वस्तुओं की कीमतें आधार वर्ष या चालू वर्ष दोनों के लिए ज्ञात की जाती हैं, लेकिन इनमें समस्या यह है कि इसमें कौन-सी कीमतें ली जायें। थोक कीमतें या फुटकर कीमतें या सरकार द्वारा नियंत्रित कीमतें। 

निर्देशांक के लिए कीमतें चुनते समय हमें निर्देशांक का उद्देश्य ध्यान में रखना आवश्यक है। यदि हमें साधारण मूल्य-स्तर में होने वाले परिवर्तनों को निर्देशांक द्वारा प्रदर्शित करना है तो हमें थोक कीमतों को लेना होगा। 

इसके विपरीत, यदि हमें जीवन निर्वाह लागत निर्देशांक बनाने हैं। तो प्रतिनिधि वस्तुओं के फुटकर मूल्यों को लेना होगा। कीमतों का चुनाव करते समय हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि ये कीमतें प्रतिनिधि बाजारों की हों।

5. भारों का निर्धारण - प्रत्येक वस्तु का उसके महत्व के अनुसार निर्देशांक पर प्रभाव डालने के लिए भारांकन विधि को प्रयोग में लाया जाता है। इसमें विभिन्न वस्तुओं को उनके भार के अनुसार भारांकित करने की आवश्यकता होती है। भारांकन ऐच्छिक तथा तर्कसंगत आधार पर किया जाता है।

6. माध्य का चुनाव - यद्यपि निर्देशांक में सभी प्रकार के माध्य का प्रयोग किया जाता है, लेकिन व्यवहार में अंकगणितीय माध्य का ही प्रयोग किया जाता है।

निर्देशांक बनाने की कठिनाइयाँ

निर्देशांकों को बनाने में निम्न कठिनाइयाँ आती हैं -

1. आधार वर्ष के चुनाव में कठिनाई - निर्देशांक बनाते समय पहली समस्या आधार वर्ष को चुनने की होती है, क्योंकि कोई भी वर्ष पूर्णतः सामान्य वर्ष नहीं कहा जा सकता है, प्रत्येक वर्ष में कुछ न कुछ असामान्य घटनाएँ अवश्य ही हो जाती है। 

अत: इस बात को निश्चित करना कठिन हो जाता है कि कौन-से वर्ष को आधार वर्ष माना जाये। इसके अतिरिक्त यदि किसी वर्ष को आधार वर्ष मान भी लिया जाये, तो वह सदा के लिए आधार वर्ष नहीं बन जाता है, बल्कि उसे समय-समय पर परिवर्तित करना पड़ता है। अतः आधार वर्ष के चुनाव की समस्या बार-बार उत्पन्न होती है।

2. प्रतिनिधि वस्तुओं के चुनाव में कठिनाई - निर्देशांकों का निर्माण करते समय एक समस्या यह आती है कि इसमें किन प्रतिनिधि वस्तुओं को सम्मिलित किया जाये। इसके अतिरिक्त आधार वर्ष तथा चालू वर्ष की समयावधि के बीच में वस्तुओं की किस्म में भी परिवर्तन हो सकता है। ऐसी स्थिति में निर्देशांकों की तुलना करना व्यर्थ हो जाता है। 

कभी कभी यह समस्या भी आती है कि व्यक्तियों की उपभोग आदत में परिवर्तन हो जाता है। जैसे - स्वतंत्रता से पूर्व साधारण जनता के उपभोग में वनस्पति घी का इतना महत्व नहीं था, जितना कि आज है। अतः इन सब कारणों से प्रतिनिधि वस्तुओं के चुनाव में कठिनाई आती है।

3. वस्तुओं की कीमतों की जानकारी प्राप्त करने की कठिनाई - निर्देशांक बनाते समय तीसरी प्रमुख समस्या यह आती है कि प्रतिनिधि वस्तुओं की फुटकर कीमतों को लिया जाये या थोक कीमतों को। थोक कीमतें अपेक्षाकृत आसानी से प्राप्त की जा सकती है, जबकि फुटकर कीमतों की जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई आती है, क्योंकि विभिन्न स्थानों पर फुटकर मूल्यों में बहुत भिन्नता पायी जाती हैं।

4. वस्तुओं के भार में कठिनाई - निर्देशांकों की रचना करते समय वस्तुओं को भार देने में कठिनाई आती है, क्योंकि सभी वस्तुएँ सभी व्यक्तियों के लिए समान महत्व की नहीं होतीं। एक ही वस्तु अलग-अलग व्यक्तियों एवं वर्गों के लिए भिन्न-भिन्न महत्व रखती हैं। समय एवं रुचियों में परिवर्तन के अनुसार वस्तुओं का महत्व भी बदलता रहता है। इसलिए वस्तुओं को दिए गए भार भी प्रायः अनुमानित ही होते हैं और अनुमान के आधार पर ज्ञात किए गए निष्कर्ष भ्रमात्मक हो सकते हैं।

5. औसत निकालने में कठिनाई - निर्देशांक के निर्माण में एक समस्या यह आती है कि कौन-सी विधि से औसत निकाला जाए। औसत निकालने के लिए विभिन्न रीतियाँ अपनायी जा सकती है, लेकिन कभी-कभी एक ही सांख्यिकी सामग्री से विभिन्न औसत रीतियों का प्रयोग करने पर विभिन्न परिणाम प्राप्त होते हैं, अतः निर्देशांक बनाते समय औसत निकालने के लिए कौन-सी रीति को अपनाया जाय, इसका निर्णय बड़ी सावधानी से करना चाहिए।

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