छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थलों के नाम बताइए?

छत्तीसगढ़ मध्य भारत घने जंगलों वाला राज्य है जो अपने मंदिरों और झरनों के लिए जाना जाता है। राजधानी रायपुर के पास, महानदी नदी पर सिरपुर शहर लाल-ईंट से बना लक्ष्मण मंदिर का घर है, जिसे भारतीय नक्काशी से सजाया गया है। 

दक्षिण में, जगदलपुर शहर रविवार को संजय मार्केट की मेजबानी करता है। जो स्थानीय जनजातियों के लिए एक वस्तु विनिमय स्थान है। विशाल चित्रकूट जलप्रपात उत्तर पश्चिम में स्थित है।

राजिम

रायपुर जिला मुख्यालय से 47 कि.मी. दक्षिण पूर्व में राजिम एक धार्मिक स्थल है। यह शहर महानदी, पैरीनदी व सोदूर नदी के संगम पर स्थित है। इसलिए राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयोग कहा जाता है। इस शहर का अपना धार्मिक महत्व है। इस शहर को मन्दिरों का शहर भी कहते हैं। क्योंकि यहाँ पर नदियों के तट पर दोनों तरफ मन्दिर हैं। यहाँ के मन्दिरों में विष्णु की प्रतिमाएँ अत्यधिक स्थापित हैं।

मन्दिरों का एक सुन्दर समूह, जिसमें राजीव लोचन मन्दिर, कुलेश्वर महादेव, राजेश्वर मन्दिर तथा नवीनतम मन्दिर में 'राधाकृष्ण मन्दिर' सम्मिलित हैं। इन सभी मन्दिरों में सर्वाधिक प्रमुख कुलेश्वर महादेव मन्दिर महानदी व पैरी नदी के संगम पर एक प्रायद्वीप पर स्थित है। इस मन्दिर में लगे शिलालेख के अनुसार मन्दिर चौदहवीं शताब्दी का बना है।

वर्षा ऋतु में नदी के मध्य में स्थित होने के कारण पूरा मन्दिर जलमग्न हो जाता है। राजीव लोचन मन्दिर में विष्णु की चतुर्भुजी प्रतिमा स्थापित है। राजिम में प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा से शिवरात्रि तक लगभग 20 दिन विशाल मेला लगता है । राजिम के लिए रायपुर में प्रति दस मिनट पर महानगरीय बस सेवा के अन्तर्गत वसें चलती हैं।

जहाँ घंटियों का सरगम है, जहाँ वन्दना की वाणी।
महानदी की लहर लहर में, हँसती कविता कल्याणी।
अमर सभ्यता सोई है, महानदी की घाटी में।
तेरे ही पावन जन्मों का, पुण्योदय इस माटी में।।
कण-कण आतुर होता है, लेने पावन तेरा नाम।
अखिल विश्व के शान्ति प्रसाधक, राजिम लोचन तुम्हें प्रणाम।।

गिरौदपुरी धाम

जिला मुख्यालय है। प्रसिद्ध गिरौदपुरी धाम रायपुर जिले में स्थित है। रायपुर जिला लगभग 140 कि. मी. तथा शिवरीनारायण से लगभग 18 कि. मी. दूर गिरौदपुरी में मानव समाज के पंथ प्रदर्शक व सतनामी समाज के गुरु सन्त घासीदास जी का जन्म 18 दिसम्बर, 1756 में हुआ था।

गुरु घासीदास जी ने सत्य की प्राप्ति के लिए गिरौदपुरी के निकट छाता पहाड़ पर घोर तपस्या की थी। बाबा जी ने सम्पूर्ण मानव समाज को सत्य की राह पर चलने का मार्ग सिखाया। यहां प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। इस स्थान को देखने के लिए विदेशों से भी पर्यटक आते हैं।

यहां स्थित छाता पहाड़ पर चरण कुण्ड, पंचकुण्ड, अमृतकुण्ड, गुरु घासीदास मन्दिर, बाबा जी का जन्म गृह, औरा घौरा वृक्ष यहां के दर्शनीय और नयनाभिराम स्थल हैं। गिरौदपुरी धाम के दर्शन से व्यक्ति को सत्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।

डोंगरगढ

पहाड़ी के ऊपर चोटी पर माँ बम्लेश्वरी का भव्य मन्दिर तथा पहाड़ी के नीचे माँ बम्लेश्वरी का छोटा मन्दिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केन्द्र है । डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ के राजनान्दगाँव जिले में स्थित धार्मिक स्थल है। ग्रन्थों के अनुसार राजा विक्रमादित्य के समय डोंगरगढ़ के राजा कामसेन ने यह मन्दिर बनवाया।

क्वार माह के नवरात्रि तथा चैत मास के नवरात्रि में डोंगरगढ़ में मेला लगता। जहाँ दूर-दूर से अपार जनसमूह एकत्र होता है। डोंगरगढ़ में कई खण्डहर तालाब हैं जिनके किनारों पर पुरानी नींव के अवशेष हैं। जिससे पता चलता। 91 कि कभी यहाँ बड़ा नगर रहा होगा। इन्हीं तालाबों में से एक मोतियाबीर तालाब के पास पत्थर का दस फुट ऊँचा स्तम्भ नागपुर संग्रहालय में है।

डोंगरगढ़ हावड़ा-बम्बई मार्ग पर एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जहाँ पर प्रायः सभी एक्सप्रेस # पैसेंजर रेलगाड़ियाँ रुकती हैं। सड़क मार्ग द्वारा डोंगरगढ़ रायपुर से लगभग 110 कि.मी. तथा राजनान्दगाँव से लगभग 40 कि.मी. से जुड़ा है। जहाँ से यमित वस सेवा है।

चित्रकोट जलप्रपात

चित्रकोट में इन्द्रावती नदी 29 मीटर की ऊँचाई से गिरकर खूबसूरत प्रपात (झरना) बनाती है, जो देखते ही बनता है। यहाँ नौकाविहार, तैराकी की जा सकती है। चित्रकोट से 10 कि.मी. दूर दसवीं शताब्दी का नारायण पाल मन्दिर भी दर्शनीय है।

यहीं पास ही कुटुमसर गुफाएँ हैं। गुफा में प्रवेश हेतु टार्च, मोमबत्ती, माचिस रख लेना कारगर साबित होता है। यहाँ आदिवासी गाइड मिल जाते हैं जो वहाँ की विशेषता व वस्तुस्थिति से अवगत कराते हैं। चित्रकूट वस्तर जिले के जिला मुख्यालय जगदलपुर से 40 कि.मी. पूरब में है। जहाँ नियमित बस सेवा है।

शिवरीनारायण

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में स्थित शिवरीनारायण का धार्मिक महत्व है। ग्रन्थों के अनुसार भगवान राम ने वनवास के समय इसी स्थान पर शवरी के जूठे बेर खाये थे । यहाँ पर महानदी व जोंक नदी का संगम है।

शिवरीनारायण में देखने योग्य कई मन्दिर हैं। इनमें नारायण मन्दिर व चन्द्रचूड़ेश्वर मन्दिर प्रमुख हैं। शिवरीनारायण से 3 कि. मी. दूर खरौद नामक स्थान पर शंकर जी का अतिप्राचीन मन्दिर भी इतिहास की धरोहर है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान राम ने खर-दूषण नामक असुरों का यहाँ पर वध किया था। इसी कारण इस गाँव का नाम खरौद है। शिवरीनारायण में माघपूर्णिमा से शिवरात्रि तक लगभग बीस दिन विशाल मेला लगता है। शिवरीनारायण बिलासपुर से 65 कि.मी. दूर स्थित है। यहाँ के लिए बिलासपुर से नियमित बस सेवा है।

चम्पारण्य - चंपाझर

रायपुर जिले से लगभग 60 कि.मी. पूर्व में स्थित चम्पारण्य वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य की जन्मभूमि है। आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व वल्लभाचार्य के अनुयायियों ने उनकी स्मृति में एक मन्दिर का निर्माण किया है। जहाँ प्रतिवर्ष अप्रैल-मई में मेला लगता है।

चम्पारण्य के निकट जंगल में राजिम की तरह महादेव का एक पुराना मन्दिर है। मन्दिर में स्थित शिवलिंग के मध्य रेखाएँ हैं। जिससे शिवलिंग तीन भागों में बंट गया है। जो क्रमशः गणेश, पार्वती व शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं।

यहाँ के जंगलों में पेड़ काटना व पत्ते तोड़ना मना है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने पर प्राकृतिक आपदा आती है। इस दर्शनीय स्थल तक जाने के लिए रायपुर से राजिम होकर या रायपुर से आरंग होकर पहुँचा जा सकता है। नियमित बस सेवा उपलब्ध है।

रतनपुर

रतनपुर को छत्तीसगढ़ की पहली राजधानी का गौरव प्राप्त है। क्योंकि रतनपुर कल्चुरी राजाओं व मराठों की राजधानी रही है। रतनपुर के दर्शनीय स्थल में महामाया मन्दिर, किला व रामटेक प्रमुख हैं। कल्चुरी राजा रत्नसेन द्वारा महामाया मन्दिर बनवाया गया है।

मन्दिर के सामने तालाब है जिसके किनारों पर अन्य पुराने मन्दिरों के अवशेष हैं। मुख्य मन्दिर के आस-पास अन्य देवी-देवताओं के भी मन्दिर हैं । महामाया मन्दिर में प्रतिवर्ष नवरात्रि में मेला लगता है। जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु माँ का दर्शन करने आते हैं।

रतनपुर में मराठा शासक बिम्बा जी राव भोसले द्वारा बनवाया गया पहाड़ी पर राम मन्दिर है। पास ही किले के कुछ अवशेष भी हैं। जिसे बादल महल के नाम से जाना जाता है। रतनपुर में अत्यधिक मात्रा में तालाब हैं। इसलिए इस शहर को तालाबों का शहर भी कहा जाता है।

यहाँ पहाड़ियाँ व अन्य मनोरम प्राकृतिक दृश्य भी देखे जा सकते हैं। रतनपुर से 10 कि.मी. दूर घूटाघांट बांध है, जो पिकनिक के लिए अच्छा स्थान है । रतनपुर बिलासपुर से 26 कि.मी. दूर कोरबा रोड पर स्थित है। इसलिए प्रति आधे घण्टे पर बिलासपुर से बस सेवा हमेशा उपलब्ध रहती है।

बारसूर

बारसूर में प्राचीन मन्दिरों का समूह होने के कारण इस स्थान को मन्दिरों का शहर कह सकते हैं। यहाँ पर आज से लगभग 800 वर्ष पूर्व ग्यारहवीं-बारहवीं शती में निर्मित चन्द्रादित्य मन्दिर, बत्तीसा मन्दिर, मामा-भांजा मन्दिर, देवरली मन्दिर देखने योग्य हैं।

यहाँ पर गणेश भगवान की एक विशाल मूर्ति भी दर्शनीय है। बारसूर से 9 कि.मी. दूर इन्द्रावती नदी पर हाइड्रो बिजली परियोजना बोधघाट सात धारा पर स्थित है, जो अत्यन्त रमणीय जगह है।

यहाँ पर इन्द्रावती नदी का स्वच्छ जल व किनारों पर सघन वन तथा पहाड़ियाँ अद्भुत दृश्य उत्पन्न करती हैं। यहाँ नौका विहार भी कर सकते हैं। बारसूर जगदलपुर (बस्तर) से बस द्वारा जा सकते हैं ।

सिरपुर

आज से लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पहले पाँचवी शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी तक दक्षिण कोशल राज्य की राजधानी सिरपुर ही थी। इस मध्य यह शहर बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केन्द्र था। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहाँ आये थे।

सिरपुर का पुराना नाम 'श्रीपुर' था। सिरपुर में देखने योग्य स्थानों में लक्ष्मण मन्दिर व आनन्द प्रभु कुटी बिहार प्रमुख हैं। लक्ष्मण मन्दिर विष्णु को समर्पित सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की विधवा रानी वासटा द्वारा बनवाया गया था। पूरे छत्तीसगढ़ में अपने ढंग का यह अनोखा मन्दिर है।

आनन्दप्रभु कुटी विहार बौद्धों के रहने व उपासना की जगह थी । विहार के स्तम्भ व भग्न दीवारें अभी एक भवन का आभास देती हैं। इसके अलावा यहाँ पर सोमवंशी राजाओं की वंशावली को प्रदर्शित करने वाले गंधेश्वर मन्दिर, राधाकृष्ण मन्दिर, चण्डी मन्दिर, स्वास्तिक विहार व खुदाई में निकली अन्य मूर्तियाँ, शिलालेख देखे जा सकते हैं।

जो सिरपुर में एक संग्रहालय में सुरक्षित रखे गये हैं। सिरपुर में प्रमुख बात यह है कि खुदाई में शैव धर्म, वैष्णव धर्म, बौद्ध धर्म व जैन धर्म की मूर्तियाँ साथ-साथ प्राप्त हुई हैं। ऐसा अद्वितीय संग्रह बहुत कम ऐतिहासिक स्थलों पर प्राप्त होता है।

सिरपुर में प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर बहुत बड़ा मेला लगता है। सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में है। यह स्थान महानदी के तट पर है । यहाँ पर महासमुंद से बस द्वारा जा सकते हैं।

मल्हार

मल्हार बिलासपुर जिले में है। यहाँ खुदाई से मिले डिण्डेश्वरी मन्दिर, पातालेश्वर मन्दिर, चतुर्भुज भगवान विष्णु की मूर्ति दर्शनीय हैं। इसके अलावा वैष्णव धर्म, शैवधर्म व जैन धर्म की प्रतिमाएँ देखने योग्य हैं। मल्हार में बिलासपुर जिले का नवोदय विद्यालय है। बिलासपुर से निजी कम्पनी की बस प्रति एक घण्टे पर मल्हार जाती है।

ताला यह स्थान बिलासपुर जिले में है। यहाँ पर खुदाई में भगवान शंकर की विशाल मूर्ति प्राप्त हुई है। जो देखने योग्य है।

भोरमदेव

भोरमदेव को छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है। भोरमदेव मन्दिर पर्वतश्रेणियों के बीच घाटी में बना है। जो भगवान विष्णु को समर्पित मन्दिर है। यहाँ शिवलिंग भी स्थापित है। मन्दिर की बाहरी दीवारों पर आकर्षक हाथी-घोड़े, नटराज, गणेश, स्त्री-पुरुष के अलावा मिथुन मूर्तियाँ निर्मित हैं।

भोरमदेव का यह मन्दिर भूतल से एक सा फुट ऊँचा है। मन्दिर के सभा मंडप में प्रवेश के तीन द्वार हैं। जिन पर अत्यन्त आकर्षक आकृतियाँ बनाई गयी हैं। भोरमदेव मन्दिर छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक पुराने मन्दिरों में से एक है। यह मन्दिर ग्यारहवीं शताब्दी का चन्देर शैली का निर्मित मन्दिर है।

भोरमदेव मन्दिर के पास ही आधा कि.मी. की दूरी पर पत्थरों से निर्मित एक शिवमन्दिर है। जिसे मडवा महल कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मन्दिर में विवाह सम्पन्न कराये जाते थे, अतः विवाह मंडप के रूप में प्रयुक्त होने के कारण इसे मडवा महल कहा जाता है।

मन्दिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियाँ बनी हैं। गर्भगृह का द्वार काले चमकदार पत्थरों का बना है। जिस पर आकर्षक प्रतिमाएँ बनी हैं। भोरमदेव कवर्धा जिले में है। यह कव से 18 कि.मी. पश्चिम दिशा में है। यहाँ कवर्धा से नियमित बस सेवा है।

भीमखोज (खलारी)

ऐतिहासिक पौराणिक महत्व के इस ग्राम में माँ खल्लारी का मन्दिर पहाड़ी पर स्थित है। महाभारत काल के प्रसंगों से जुड़ी कई कथाएँ भी इस ग्राम को महत्व प्रदान करती हैं। यहाँ की पहाड़ी पर भीम के पैर, हंडी व चूल्हा हैं।

इसी पहाड़ी के नीचे 'लाक्षागृह' के अवशेष हैं। जहाँ दुर्योधन ने शकुनी के साथ मिलकर पाण्डवों को भेजकर मारने का षड्यंत्र रचा था । भीमखोज महासमुंद जिले में 15 कि.मी. पूरब में स्थित है। यहाँ पर रायपुर या महासमुंद से बस द्वारा जा सकते हैं।

मैनपाट

2 मैनपाट अम्बिकापुर से 75 कि.मी. दक्षिण-पूर्व में एक पठार है। छत्तीसगढ़ का शिमला या छत्तीसगढ़ का कश्मीर नाम से प्रसिद्ध यह दर्शनीय स्थल सतपुड़ा की श्रेणियों में 3500 फुट की ऊँचाई पर स्थित चारों ओर हरीतिमा से आच्छादित प्राकृतिक रूप से बहुत मनोरम है।

मैनपाट छत्तीसगढ़ का सबसे ठण्डा स्थान है। यह एक मात्र हिल स्टेशन छत्तीसगढ़ प्रान्त का है। 1962 में चीन के तिब्बत पर आक्रमण के परिणामस्वरूप दलाईलामा के साथ विस्थापित तिब्बती शरणार्थियों के एक बड़े समुदाय को यहाँ बसाया गया है।

इस समय 35 कि. मी. के विस्तार वाले इस क्षेत्र में सात कैम्प हैं। जिनमें लगभग 2200 (बाइस सौ) तिब्बती निवास करते हैं। मैनपाट में दो बहुत बड़े बौद्ध मठ देखने योग्य हैं। इन मठों में गौतमवुद्ध व दलाईलामा की मूर्तियाँ रखी हैं।

यहाँ के मुख्य त्यौहार गौतमबुद्ध और दलाईलामा से सम्बंधित महत्वपूर्ण दिवसों से जुड़े हैं। मैनपाट में ऊनी कपड़ों, कालीन और गलीचों के निर्माण का भी अच्छा काम होता है। इसके अतिरिक्त तिब्बती नस्ल के कुत्ते बेचने का भी अच्छा व्यवसाय यहाँ है। मैनपाट अम्बिकापुर से बस द्वारा जा सकते हैं।

भिलाई

भिलाई का इस्पात कारखाना शैक्षणिक व तकनीकी रूचि रखने वाले पर्यटकों के लिए अच्छा स्थान है। भिलाई इस्पात संयंत्र के अन्दर देखने योग्य कोक ओवर बैटरी ब्लास्ट फर्नेस, रेल एण्ड स्ट्रक्चर मिल, प्लेट मिल, वायर राड मिल. इत्यादि हैं।

संयंत्र के अन्दर घूमने के लिए जनसम्पर्क विभाग द्वारा पास जारी किये जाते हैं। भिलाई में दूसरा देखने योग्य स्थान मैत्री बाग चिड़ियाघर है। यह चिड़ियाघर व उद्यान 100 एकड़ में निर्मित है। जो भारत-रूस मैत्री संबंध की यादगार में बना है।

यहाँ पर अनेकों प्रकार के दुर्लभ विदेशी नस्ल के पशु-पक्षी देखने योग्य हैं। उद्यान में एक झील व झरना भी है। मैत्री बाग का एक बड़ा आकर्षण यहाँ संचालित छोटी रेलगाड़ी है, जो छोटे-छोटे बच्चों के आकर्षण का केन्द्र रहती है।

जैन तीर्थ - नगपुरा

दुर्ग से 14 कि.मी. दूर स्थित नगपुरा प्रमुख जैन तीर्थों में से एक है। यहाँ पर जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकर में से तेइसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का विशाल मन्दिर (जिनालय ) बना है।

फरवरी 1995 को प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अब तक पाँच लाख परिवार यहाँ आ चुके हैं। भारत के अलावा यहाँ अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड, कीनिया, सिंगापुर, मारीशस, तंजानिया, फीजी, आदि देशों के तीर्थयात्री भी आये हैं।

मुस्लिम तीर्थ-लुतराशरीफ

लुतराशरीफ में बाबा हजरत सैयद इंसान अली की दरगाह है। 1962 में बाबा के इन्तकाल के बाद उनकी दरगाह यहाँ बनवाई गयी। उसके बाद जब लोगों की मुरादें पूरी होने लगीं तो बड़ी संख्या में लोग यहाँ पहुंचने लगे। पुनः अस्सी के दशक में इस दरगाह को विशाल स्वरूप दिया गया।

लुतराशरीफ बिलासपुर, कोरबा तथा जांजगीर के मध्य में है। अतः आने जाने का अच्छा साधन है। इसी प्रकार से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर शहर के मध्य में बंजारी वाले बाबा की दरगाह है। जहाँ की विशेषता सालाना उर्स में उभरती है। इस उर्स पर बड़ी संख्या में हर धर्म के लोग जुटकर बाबा से मन्नत मांगते हैं।

कबीरतीर्थ-दामाखेड़ा

कबीर परम्परा का प्रतीक दामाखेड़ा असंख्य कबीरपंथियों के लिए सम्पूर्ण तीर्थ का महत्व रखता है। दामाखेड़ा में धर्मदास साहेब के समाधि लेने के बाद संवत् 1570 से यहाँ गुरु गद्दी की परम्परा निरन्तर चल रही है।

यहाँ अब तक पन्द्रह वंश आचार्य हो चुके हैं। दामाखेड़ा में बसन्त पंचमी से माघपूर्णिमा तक चलने वाले विश्व सन्त समागम में भारत के अलावा दूसरे देशों से भी कबीर पंथी आते हैं। दामाखेड़ा रायपुर तथा बिलासपुर से बस द्वारा जा सकते हैं। यह धर्मनगरी रायपुर से 58 कि.मी. की दूरी पर है।

चन्द्रपुर

छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर-चांपा जिले में स्थित चन्द्रपुर एक दर्शनीय स्थल। चन्द्रपुर महानदी व माण्ड नदी के संगम पर स्थित शहर है। यहाँ पर महानदी के तट पर पहाड़ी के शिखर पर माँ चन्द्रहासिनी देवी का भव्य मन्दिर है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहता है।

इसी मन्दिर के पास ही भगवान शंकर की अर्धनागेश्वर मूर्ति है जो कि 20 फीट ऊँची विशाल मूर्ति है। जिसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। पास ही हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है जिसकी ऊँचाई लगभग 25 फीट होगी।

सम्भवतः इतनी ऊँची हनुमान जी कि मूर्ति पूरे छत्तीसगढ़ में शायद ही कहीं हो। चन्द्रपुर में महानदी पर जो पुल बना है, वह छत्तीसगढ़ का सबसे लम्बा पुल है। जिसकी लम्बाई 904 मीटर (लगभग एक कि. मी.) है।

श्री दूधाधारी मठ (रायपुर )

श्री दूधाधारी मठ, रायपुर की स्थापना श्री स्वामी बलभद्र दूधाधारी महाराज के द्वारा सन् 1553 में हुई। यहाँ एक भव्य मन्दिर में श्री बालाजी भगवान श्री लक्ष्मण जी सहित विराजमान हैं। इसी मन्दिर के पास ही एक दूसरे मन्दिर में श्री सीताराम जी सहित श्री भरत, श्री लक्ष्मण एवं श्री शत्रुघ्न की मूर्ति विराजित हैं।

यहाँ संकटमोचन हनुमान जी तथा दक्षिणमुखी श्री हनुमान जी की भी प्रतिमा देखने योग्य हैं। श्री दूधाधारी मठ (रायपुर ) छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन् सम्पूर्ण भारतवर्ष में अपना आदर्श प्रस्तुत कर रहा है।

इस मठ के वातावरण में अपूर्व सात्विकता का अनुभव होता है । इस मठ की महिमा चमत्कारों व सिद्धियों से ओतप्रोत है।

मसीही तीर्थकुनकुरी

के छत्तीसगढ़ में कैथोलिक ईसाईयों का पवित्र गिरजाघर (चर्च) जशपुर जिले कुनकुरी में स्थित है। यह भारत का ही नहीं बल्कि पूरे एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा चर्च (गिरजाघर) है। यहाँ जाने के लिए जशपुर तथा रायगढ़ से नियमित बस सेवा है।

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