भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई थी?

आरंभिक काल (1600-1650 ई.) सर टॉमस रो 1619 ई. में अपने देश वापस लौट गया, इस समय तक सूरत, भड़ौंच, आगरा एवं अहमदाबाद में अंग्रेजों की व्यापारिक कोठिया स्थापित हो चुकी थी। अपनी इस सफलता से उत्साहित होकर कंपनी ने अपने व्यापार को और अधिक विस्तृत करने का निर्णय लिया। 

उन्होंने मछलीपट्टम से 230 मील दूर एक छोटे भू-भाग पर एक फैक्टरी बना ली। जिसका नाम फोर्ट सेंट जार्ज रखा गया था। जो बाद में मद्रास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1642 ई. में यही कंपनी का केन्द्र बन गया। 1650 ई. में हुगली में भी व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिए गए।

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का विस्तार

17वीं शताब्दी में कंपनी का विस्तार (1651 - 1700 ई. तक )- अपनी स्थापना के 50 वर्ष पश्चात् कंपनी की स्थिति में अभूतपूर्व सुधार हुआ। 1651 में बंगाल के सूबेदार शाहशुजा ने कंपनी को 3000 रूपये वार्षिक कर के बदले में व्यापार की आज्ञा दे दी। 

17वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में भारत की राजनैतिक व्यवस्था में गिरावट आई जिससे कंपनी की राजनैतिक महत्वकांक्षा और अधिक प्रज्जवलित हो गई। वे अपने शुद्ध व्यापारिक हितों के स्थान पर प्रदेशों में हस्तगत करने का विचार करने लगे। 

बम्बई के गवर्नर ने अपने ब्रिटिश निदेशकों को लिखा- "इस विचार का स्वागत करते हुए निर्देशकों ने मद्रास के गवर्नर को दिसम्बर, 1687 ई. में लिखा -"पड़ोसी असैनिक शक्ति का निर्माण करें और इतने विशाल राजस्व की सृष्टि और रक्षा के लिए जो भारत मे आगामी भविष्य में सदैव के लिए एक सुरक्षित ब्रिटिश राज्य का आधार बन सके।” 

बम्बई के गवर्नर ने इस नीति पर कार्य करते हुए 1688 ई. में पश्चिमी तट के मुगल बन्दरगाहों की नाके बन्दी की। उन्होंने कई जहाज अधिगृहित कर लिए तथा मक्का जाने वाले यात्रियों को परेशान करने हेतु लाल सागर तथा फारस की खाड़ी में भेज दिया। 

औरंगजेब ने कठोरता से अंग्रेजों को दमन करते हुए पटना, कासिम, मछली पट्टम और विशाखापट्टम पर अधिकार कर लिया। अँग्रेजों को बंगाल से निकाल दिया, तब सर जॉन चाइल्ड ने मुगल सम्राट से क्षमा माँगी एवं डेढ लाख रूपये जुर्माने के रूप में दिए। 

औरंगजेब ने पुनः अँग्रेजों को बंगाल में व्यापार की अनुमति दे दी। 1690 ई. में औरंगजेब ने कलकत्ता में कारखाना खोलने की अनुमति भी प्रदान कर दी। 1696 ई. में अँग्रेजों ने बंगाल में फोर्ट विलियम का निर्माण किया। सुतानाती, कालीकता और गोविन्दपुर के गाँव खरीद लिए। यही भविष्य में कलकत्ता शहर बना।

18वीं सदी के पूर्वाद्ध में कंपनी का विस्तार (1700-1744 ई. तक ) 18वीं सदी के पूर्वाद्धह्य में मुगल साम्राज्य का तीव्र गति से विघटन हुआ जिससे कंपनी को अपने प्रभाव का विस्तार करने में सहायता मिली। 

सन् 1717 ई. मुगल सम्राट फरुह्य खसियर ने बंगाल, हैदराबाद और गुजरात के अधिकारियों के नाम फरमान जारी कर इन्हें बहुमूल्य विशेषाधिकार प्रदान किए। कंपनी को अपना सिक्का ढालने की आज्ञा दे दी गई जिससे भारत में कंपनी की प्रतिष्ठा में और अधिक वृद्धि हुई।

इन फरमानों के जारी होने के पश्चात् कंपनी ने बम्बई की किलेबन्दी कर ली एवं मराठों तथा पुर्तगालियों के आक्रमण से रक्षा के लिए दीवार बना ली और जहाजों की संख्या में वृद्धि कर ली। इस काल में कंपनी की आय भी 16 लाख रूपये तक हो गई थी। 

मद्रास में भी कंपनी का व्यापार शान्तिपूर्ण ढंग से चल रहा था तथा नवाब के साथ भी मधुर संबंध थे। बंगाल में सूबेदार मुर्शिद कुली खाँ ने कंपनी के कार्य-कलाप को नियमित करने एवं उनके साथ भी अन्य व्यापारियों के समान व्यवहार करने का प्रयास किया।

इस समय कंपनी के एकाधिकार में फ्रांसीसी बाधा बने हुए थे, जिनका भारतीय व्यापार तथा राजनीति में भी अच्छा प्रभाव था। 1744 ई. में अँग्रेज, फ्राँसीसियों के साथ उत्तराधिकार के प्रश्न पर संघर्षरत हो गए।

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