भारत का जलवायु कैसा है

भारत आकार के हिसाब से दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश है और यह विविध संग्रह समेटे हुए है। जो क्रमशः बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिंद महासागर द्वारा पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी तट के किनारे स्थित हैं। भारत की सीमा बांग्लादेश, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार और पाकिस्तान के साथ अपनी सीमा साझा करता है। दक्षिणी तट से कुछ ही दूर कई द्वीपों के साथ श्रीलंका स्थित है।

भारत का जलवायु कैसा है

भारत की जलवायु काफी हद तक मानसूनी हवाओं पर निर्भर करती है। मानसून आमतौर पर भूमि और पानी के अलग-अलग ताप के कारण होता है। जमीन, पानी की तुलना में तेजी से गर्म होती है। इस बदलाव से दबाव में अंतर होता है।

दबाव की स्थिति भी मानसून को प्रभावित करता है। सामान्यत: उष्णकटिबंधीय पूर्वी-दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च दबाव और पूर्वी हिंद महासागर में निम्न दबाव होता है। लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते जाते हैं। दबाव की स्थिति में उलटफेर होता जाता हैं।

जलवायु की दृष्टि से भारत को अनेक क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। देश के अधिकांश भाग में उष्णकटिबंधीय जलवायु है। जो भारत के अधिकांश भाग को गीला और शुष्क बनाता है। जबकि भारत के उत्तरी भाग में आर्द्र उष्णकटिबंधीय जलवायु है।

भारत का पश्चिमी तट आर्द्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के अंतर्गत आता हैं। देश के केंद्र में अर्ध-शुष्क जलवायु है, जो उत्तर-पश्चिम तक फैली हुई है। देश के उत्तर क्षेत्र मे अत्यधिक ठंड पड़ती है। यह बड़े पैमाने पर उत्तरी पर्वतीय क्षेत्रों में होता है जिसमें ठंडे, शुष्क वाले हिमालय शामिल हैं।

जलवायु - भौगोलिक दशाओं में जलवायु एक महत्वपूर्ण कारक है। जलवायु शब्द से अभिप्राय किसी स्थान की दीर्घकालीक वायुमंडलीय दशाओं से है। वायुमंडलीय दशाएँ तापमान, वायुदाब, हवायें, आर्द्रता व मेघ संबंधी तत्व आते हैं। वायुमंडल की दशाएँ समय-समय पर बदलती रहती है। अल्पकालीन परिवर्तन की दशाएँ मौसम कहलाती है जो अस्थाई होती है और मौसम की दीर्घकालिक औसत दशाओं से जलवायु का निर्धारण होता है।

किसी भी स्थान की जलवायु वायुमण्डलीय तत्वों द्वारा निर्मित होती है यद्यपि यह तत्व प्रत्येक स्थानों पर पाए जाते हैं फिर भी स्थान - स्थान की जलवायु तथा मौसम में काफी अंतर होता है। किसी भी देश की जलवायु वहाँ के धरातल के भौतिक तथा जैविक तत्वों, वन, मिट्टी मानव के व्यवसाय व उसके सम्पूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों को प्रभावित करती है।

भारत में जलवायु परिवर्तन

भारत में जलवायु परिवर्तन का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है, जो 2015 में जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में चौथे स्थान पर है।

भारत हर साल लगभग 3 गीगाटन CO2 और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है। प्रति व्यक्ति लगभग ढाई टन, जो विश्व औसत से कम है। विश्व की आबादी का 17 प्रतिशत होने के बावजूद, देश वैश्विक उत्सर्जन का 7 प्रतिशत उत्सर्जन करता है।

तिब्बती पठार पर तापमान बढ़ने से हिमालय के ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं, जिससे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना और अन्य प्रमुख नदियों की प्रवाह दर को खतरा है। 2007 WWF की रिपोर्ट में कहा गया है कि सिंधु नदी इसी कारण से सूख सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में तापमान बढ़ रही है।

1901 और 2018 के बीच भारत में तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। कुछ वर्तमान अनुमानों के अनुसार, वर्तमान शताब्दी के अंत तक भारत में सूखे की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि होने का अनुमान हैं।

जलवायु नियंत्रण

जलवायु नियंत्रण वे कारक होते हैं जो भारत की जलवायु में तापमान में भिन्नता को नियंत्रित करते हैं। छह प्रमुख जलवायु नियंत्रण निम्नलिखित हैं।

1. अक्षांश - पृथ्वी का आकार गोल होने के कारण सूर्य का प्रकाश हर जगह समान रूप से नहीं पहुंचता है। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ने पर तापमान कम हो जाता है।

2. ऊँचाई - जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊँचाई की ओर बढ़ते हैं, तापमान कम होता जाता है।

3. दबाव - किसी भी क्षेत्र का दबाव और पवन प्रणाली उस स्थान के अक्षांश और ऊंचाई पर निर्भर करती है। इस प्रकार, यह तदनुसार तापमान को प्रभावित करता है।

4. समुद्र से दूरी - तटीय क्षेत्र, आंतरिक क्षेत्रों की तुलना में ठंडे होते हैं। जैसे-जैसे समुद्र से दूरी बढ़ती है, इसका प्रभाव कम होता जाता है।

5. महासागरीय धाराएँ - किसी क्षेत्र में बहने वाली ठंडी महासागरीय धाराएँ उस क्षेत्र के तापमान को कम कर देती हैं, जबकि गर्म धाराएँ तापमान को बढ़ा देती हैं।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

देश के विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु दशाओं में बहुत अधिक विविधता है। यहाँ एक स्थान से दूसरे स्थान में एक ऋतु से दूसरे ऋतु में तापमान व वर्षा संबंधी दशाओं में बहुत अंतर मिलता है। जैसे कि ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी जस्थान के थार मरुस्थल में तापमान 55° सेल्सियस तक पहुँच जाता है वहीं इसके विपरीत लेह में तापमान इसी मौसम में 0° सेंटीग्रेड से भी नीचे रहता है। इतना ही नहीं दिन व रात के तापमान में भी पर्याप्त अंतर पाया जाता है।

केरल, अण्डमान तथा निकोबार द्वीप में दिन और रात के तापमान में 7° से 8° से.ग्रे. का अंतर रहता है वहीं थार के मरुस्थल में यदि दिन का तापमान 50° से.ग्रे. है तो रात में तापमान हिमांक बिन्दु तक गिर जाता है। वर्षा की मात्रा में भी भिन्नता रहती है। मासिनराम (मेघालय) में वार्षिक वर्षा 1,000 से.मी. से अधि ाक है तो पश्चिमी राजस्थान में मात्र 10 से 20 से.मी. तक वार्षिक वर्षा होती है। समुद्र तटीय क्षेत्रों की जलवायु सम होती है तो दूरस्थ क्षेत्रों की जलवायु विष्म होती है।

1. अक्षांश - हम जानते हैं कि कर्क रेखा, जो पृथ्वी के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों को अलग करती है। पश्चिम में कच्छ के रण के मध्य से पूर्व में मिजोरम तक जाती है। इसलिए, भारत की जलवायु में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएं पायी जाती हैं।

2. ऊंचाई - भारत में लगभग 6000 मीटर के बहुत ऊंचे पहाड़ पाए जाते हैं। हिमालय मध्य एशिया से आने वाली ठंडी हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकती है। यही कारण है कि भारत में मध्य एशिया की तुलना में हल्की सर्दी पड़ती है।

3. दबाव - भारत में अद्वितीय दबाव की स्थिति पायी जाती है। सर्दियों के दौरान, हिमालय के पास के उत्तरी क्षेत्र में उच्च दबाव होता है। इसलिए इस क्षेत्र से हवाएँ दक्षिण की ओर चलती हैं। जहाँ दबाव कम पाया जाता है। गर्मियों में, उत्तरी भाग में कम दबाव होता है। इसलिए हवा का रुख उलट होता है। अब दक्षिण से हवाएँ उत्तर की ओर चलती हैं। ये हवाएँ भारत की जलवायु को बहुत प्रभावित करती हैं।

4.भौगोलिक स्थिति - भारत 8.4° उत्तरी अक्षांश से 37.6° उत्तरी अक्षांश तक विस्तृत है इसका दक्षिणी भाग विषुवत वृत के पास है कर्क वृत इसके लगभग मध्य भाग से गुजरता है। उत्तरी भाग विषुवत रेखा से पर्याप्त दूर है फलतः कर्क रेखा से दक्षिण भारत में उष्ण मानसूनी और उत्तरी भारत में महाद्वीप जलवायु पाई जाती है इसलिए विभिन्न स्थान के तापमानों में बहुत अंतर पाया जाता है।

5. पर्वतों की स्थिति व उनकी दिशा- भारत में पर्वतों की स्थिति तथा उनके विस्तार की दिशा यहाँ वर्षा के वितरण को बहुत अधिक प्रभावित करती है। उत्तर भारत में स्थित हिमालय पर्वत मानसूनी हवाओं है को रोककर उत्तर-पूर्वी भारत में व्यापक वर्षा कराता है साथ ही उत्तरी ध्रुव व तिब्बत से आने वाली बर्फीली हवाओं से देश की रक्षा करता है।

उत्तर-पश्चिमी भारत में अरावली पहाड़ियाँ मानसून हवाओं के समानान्तर है जिनके कारण अरब सागर में मानसून पवन दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर जाती है जो शिवालिक की ऊँची श्रेणियों से टकराकर वहाँ वर्षा कराती है।

6. जल स्थल का वितरण एवं हिन्द महासागर की स्थिति - भारत तीन ओर से सागरों से घिरा हुआ है। पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में उत्तरी हिन्द महासागर प्रायद्वीपीय भारत के आकार के कारण मानसूनी पवने दो शाखाओं में विभक्त हो जाती हैं।

  • मानसून की अरब सागरीय शाखा- यह भारत में उत्तर-पूर्वी, उत्तरी तथा मध्यवर्ती भारत में वर्षा कराते हैं।
  • बंगाल की खाड़ी वाली मानसूनी शाखा- इनसे पूर्वी उत्तर पूर्वी उत्तरी एवं कुछ मध्यवर्ती भारत में वर्षा होती है।

7. तापमान और वायुदाब का वितरण- उत्तरी मैदानों तथा भारत व प्रायद्वीपीय भारत का उत्तरी भाग शेष भारत की अपेक्षा ग्रीष्म काल में बहुत गर्म हो जाता है। ऊँचे तापमान के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में शक्तिशाली न्यून वायुदाब क्षेत्र हो जाता है इसी तरह न्यून वायुदाब के क्षेत्र नागपुर के आसपास तथा पूर्व में अराम और मेघालय में विकसित हो जाते हैं जिनमें मानसूनी पवने आकर्षित होकर वर्षा करती है। शीत ऋतु में यही भाग अपेक्षाकृत ठंडे हो जाने के कारण यहाँ उच्च वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है और थल से जल की ओर शुष्क पवने चलने लगती हैं।

8. जेट पवनों का प्रवाह - धरातलीय पवनों के अतिरिक्त ऊपरी क्षोभ मण्डल में वायु धाराएँ प्रवाहित होती है। भारत की जलवायु पर पछुआ तथा पूर्वी वायु का व्यापक प्रभाव पड़ता है जिनके प्रभाव से मानसूनी हवाएँ चलती और चक्रवातीय वर्षा होती है।

9. समुद्र तल से ऊँचाई तथा समुद्र तट से दूरी- जलवायु की विभिन्नता का एक कारक कुछ स्थानों का समुद्र तल से काफी ऊँचाई में स्थित होना है। ज्यों-ज्यों हम समुद्र तल से ऊँचाई की ओर जाते हैं, तापनमान कम होने लगता है। ऊटी दार्जिलिंग, नैनीताल, माउंटआबू, शिमला आदि स्थान 5,000 मीटर से अधिक ऊँचाई पर हैं जहाँ ग्रीष्म ऋतु में भी तापमान 8° से ग्रे होता है, वहीं जो स्थान समुद्र तट से दूर होते हैं वहाँ भीषण लू चलती है।

10. मानसूनी पवनें - यद्यपि भारत व्यापारिक पवनों के प्रवाह क्षेत्र में आता है जिनके कारण भारत की जलवायु मानूसनी पवनों द्वारा नियंत्रित होती है।

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