भारत और चीन के संबंध कैसे हैं - India and China relations

भारत अपने पड़ोसी राष्ट्रों से अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए सदैव इच्छुक रहा है उसकी नीति परस्पर विश्वास, सौहार्द्र और सहयोग पर आधारित है। हमारे उत्तर में चीन, नेपाल, भूटान है। पूर्व में बांग्लादेश एवं बर्मा है पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान व दक्षिण में श्रीलंका है। 

चीन को छोड़कर सभी राष्ट्र हाल में स्वतंत्र हुए हैं। रुस व अमेरिका भी विश्व की एक शक्ति है तथा सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं। भारत की विदेश नीति सदैव शांति व सुरक्षा की रही है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को लेकर एवं सीमा संबंधी विवादों को छोड़कर भारत सदैव वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना पर चलता है। उसकी अपनी स्वतंत्र विदेश नीति है। 

मुख्य रूप से भारत का प्रयास सदैव बड़ी शक्तियों के प्रभाव से मुक्त रहकर तटस्थ रहने का रहा है वह शांति, स्थिरता व आर्थिक विकास के लिए सदैव अपने पड़ोसी एवं मित्र राष्ट्रों से मित्रता व सहयोग रखता है, इसी लक्ष्य को लेकर वह दक्षेश एवं संयुक्त राष्ट्र संघ का प्राथमिक सदस्य रहा है।

भारत और चीन के संबंध कैसे हैं

कई शताब्दियों तक चीन और भारत दोनों के मध्य मधुर संबंध रहे तथा हिन्दी - चीनी भाई-भाई के नारे लगाए जाते रहे। किन्तु अक्टूबर 1950 में तिब्बत के प्रश्न को लेकर दोनों देशों के मध्य कटुता पैदा हुई। चीन के प्रति भारत का दृष्टिकोण नेहरूजी के समय काफी मित्रतापूर्ण रहा। 

1949 में चीन में हुई साम्यवादी क्रांति का भारत ने स्वागत किया तथा सर्वप्रथम उसे राजनीतिक मान्यता प्रदान की। संयुक्त राष्ट्रसंघ की चीन को आक्रान्ता सिद्ध करने के प्रयास का विरोध उसने किया था कोरियाई युद्ध में चीन का पक्ष लिया।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में भी उसके प्रवेश हेतु भारत निरंतर प्रयत्नशील है। भारत चीन संबंधों में तब नया मोड़ आया जब 29 जून, 1954 को दोनों राष्ट्रों के मध्य एक 8 वर्षीय व्यापारिक समझौता हुआ जिसके अंतर्गत तिब्बत से चीन को आंतरिक क्षेत्रीय अधिकार मिले। 

इस व्यापारिक समझौते के प्रस्तावना में पंचशील के सिद्धांतों को अपनाया गया और भारत ने तिब्बत में चीन की सम्प्रभुता को स्वीकार किया तब मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना का आश्वासन दिया पंचशील के प्रतिपादक नेहरू जी तथा चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई थे।

दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने एक दूसरे के देश में राजनैतिक यात्राएँ की। बाडुंग सम्मेलन में पूर्ण सहयोग दर्शाया तथा स्वतंत्र भारत में उस समय हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे गूंजे। 1949 से 1957 के मध्य सिर्फ तिब्बत के प्रश्न पर दोनों में मतभेद हुआ किन्तु मित्रता में बाधक नहीं बने।

पंचशील के सिद्धांत 

पंचशील से तात्पर्य है आचरण के पाँच सिद्धांत 29 अप्रैल, 1954 को भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू तथा चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने विभिन्न राष्ट्रों के मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने एवं साम्राज्यवाद व सैनिकवाद शास्त्रीकरणं युद्ध व आतंकवाद को हतोत्साहित करने के लिए तिब्बत में हुए द्विदिवसीय सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों में निम्नलिखित पाँच सिद्धांतों को अपनाने का निर्णय लिया -

  1. एक दूसरे की प्रभुसत्ता व अखंडता का सम्मान। 
  2. अनाक्रमण अर्थात् एक दूसरे पर आक्रमण न करना।
  3. अहस्तक्षेप अर्थात्एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करना। 
  4. समानता का पारस्परिक लाभ के सिद्धांत के आधार पर मैत्रीपूर्ण आर्थिक संबंधों की स्थापना। 
  5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व अर्थात् विश्व के सभी देश में स्वतंत्रता पूर्वक संबंध बनाए रखना। 

पंचशील बाडुंग सम्मेलन कालान्तर में भारतीय कूटनीति की पराजय का कारण बना। भारतीय नेताओं की अति आदर्शवादिता व अदूरदर्शिता का उदाहरण बन गया। 

1956 में तिब्बत की खम्पा क्षेत्र में दलाई लामा के समर्थन में विद्रोह हुआ तथा 31 मार्च, 1959 दलाई लामा अपने कुछ समर्थकों के साथ भारत के राजनीतिक शरण में आए तो भारत सरकार ने उन्हें मसूरी के निकट शरण दी इसे चीन में शत्रुता पूर्ण असहयोग माना था यहीं से भारत एवं चीन के संबंधों में कटुता प्रारंभ हुआ।

1950-51 में साम्यवादी चीन ने भारत के एक बड़े भाग को चीन का अंग अपने मानचित्र में दर्शाया जिस पर भारत सरकार ने चीन का ध्यान आकर्षित किया। 

चीन ने भी इसे संशोधित करने का आश्वासन दिया किन्तु 17 जुलाई, 1954 को चीन ने भारत सरकार पर यह आरोप लगाया कि भारत सरकार ने बूजे नामक स्थान पर कब्जा कर लिया है। जबकि वह भारतीय क्षेत्र था। 1959 में चीन ने भारत के सीमा क्षेत्रों में अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भेजी।

उस क्षेत्र पर आधिपत्य का प्रयास किया जिसका भारत ने विरोध किया तथा देशों के मध्य कटुता की परिणिति 1962 में चीनी आक्रमण के रूप में हुई। 8 सितम्बर, 1962 को चीनी सेनाओं ने मैकमोहन रेखा पारकर भारत की सीमा में प्रवेश कर आक्रमण किया। यह युद्ध भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल हुआ। इस आक्रमण के प्रमुख कारण ये माने गए - 

  1. चीन की साम्राज्यवादी नीति, 
  2. दलाई लामा के शरणार्थी होने का प्रतिरोध, 
  3. एशिया में सर्वोच्च शक्ति बनने की चाहत, 
  4. भारत व चीन के मध्य सीमा निर्धारण का अभाव। 

1962 के युद्ध में उत्तरर - पूर्वी सीमा लद्दाख पर चीन ने भीषण आक्रमण किया पर दो माह के बाद 21 नवम्बर, 1962 को चीन ने एकपक्षीय युद्ध विराम की घोषणा कर अपने वर्णित क्षेत्रों को भारत से खाली किया।

भारत व चीन के सीमा विवाद के समाधान हेतु श्रीमती भंडारनायके की अध्यक्षता में प्रस्ताव पास किया गया। चीन ने इन प्रस्तावों को मानने से इंकार कर दिया। सन् 1965, 1971 के भारत पाक युद्ध में चीन का भारत विरोधी रूख रहा। 

भारत ने जनता शासन काल में पुनः चीन व भारत के मध्य संबंध सुधारने के उद्देश्य राजनीतिक व कूटनीतिक एवं व्यापारिक संबंधों को बनाने का प्रयास किया। 1978 में नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय चीनी प्रतिनिधि मंडल भेजा गया। 

12 फरवरी, 1979 को अटल बिहारी बाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में चीन का दौरा किया। श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री काल में, बेलग्रेड में चीन के प्रधान झुओ फेग ने भारत से संबंध सुधारने के संकेत दिया तथा 1981 में डी फांग ने भारत की यात्रा की। 

संबंधों के सामान्यीकरण की दिशा में दोनों देश सहमत हुए चीन सरकार ने भारतीय यात्रियों को मानसरोवर और कैलाश पर्वत जाने की अनुमति दी। मई 1982 की कुहाओं के नेतृत्व में सीमा विवाद पर वार्ता हेतु एक चीनी प्रतिनिधि मंडल नई दिल्ली आया। 

सन् 1987 तक भारत और चीन संबंधी वार्ता के आठ दौर चले । 1984 में प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने चीन के साथ संबंधों के सामान्यीकरण की प्रक्रिया जारी रखी।

अक्टूबर सन् 1985 में श्री राजीव गाँधी ने न्यूयार्क में चीन के विदेश मंत्री से तथा 1987 में भारत के मंत्री नारायणदत्त तिवारी ने बीजिंग में सीमा संबंधी चर्चा की क्योंकि जून 1986 को चीन के सेनाओं ने भारत के अरुणाचल प्रदेश में 6–7 किलोमीटर भारतीय सीमा में सैनिक चौकी स्थापित की और हेलीपैड बनाए, किन्तु चीन ने इसे कोई अतिक्रमण नहीं माना अतः समस्या यथावत रही। सन् 1988 में व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों में सुधार हेतु राजीव गाँधी ने चीनी यात्रा की।

राष्ट्रीय मोर्चा सरकार ने भी चीन के साथ संबंध सुधार की प्रक्रिया को जारी रखी किन्तु सीमा समस्या ज्यों की त्यों रही। प्रधानमंत्री श्री नरसिम्हा राव के शासनकाल में चीन के प्रधानमंत्री ली पांग के नेतृत्व में संयुक्त विज्ञप्ति में दोनों देशों ने सीमा विवाद हल करने का आव्हान किया तथा दोनों देशों के मध्य तीन समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। 

पहला व्यापारिक समझौता, दूसरा शंघाई में बम्बई में वाणिज्य दूतावास खोलना और तीसरा आंतरिक क्षेत्र में सहयोग का निर्णय लिया गया तथा 1992 में चीनी प्रधानमंत्री और नरसिम्हा राव ने भारत चीन सीमा पर सेना को कम करने समझौते पर हस्ताक्षर किए।

18 जून, 1994 को चीन की विदेशमंत्री शी शेन भारत और चीन के मध्य दोहरे कराधान को समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए। श्री देवगौड़ा, श्री गुजराल व श्री बाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में द्विपक्षीय व्यापार के प्रयास तीव्र हुए चीनी वस्तुओं के लिए भारतीय बाजार खुल गए।

भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने तथा भारत के विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह जी ने दक्षिण एशिया में शांति सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए तथा पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों के प्रोत्साहन करने के विरोध का निर्णय लिया तथा आतंकवाद के उन्मूलन पर चर्चा की गई।

दिल्ली और बीजिंग के बीच सीधी विमान सेवा भी प्रारंभ की गई। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री काल में चीन के साथ मित्रतापूर्ण संबंध लिए प्रयास जारी है। वर्तमान भारत शांति और समृद्धि के नए युग के स्वागत करने के लिए निरंतर प्रयासरत है।

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