भारत की प्रमुख नदियों के नाम बताइए

किसी भू-भाग की प्रवाह प्रणाली उस क्षेत्र के धरातलीय बनावट पर निर्भर करती है। हमारे देश के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत से अनेक नदियाँ निकलती है। भारत के भूमि के विकास तथा भारत की सभ्यता, संस्कृति और आर्थिक विकास में नदियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

सृष्टि के आरंभ में ही नदियाँ मानव जीवन और उसकी गतिविधियों का प्रमुख अंग रही है। विश्व की सभी महान सभ्यताओं का उदय नदियों की घाटियों में ही हुआ है।

भारत की प्रमुख नदियों के नाम बताइए

भारत की विश्व प्रसिद्ध सभ्यताएँ - मोहन जोदड़ो, हड़प्पा (सिंधुघाटी की सभ्यता) एवं वैदिक सभ्यता के विकास में गंगा, यमुना नदियों का महत्व सर्वविदित है। भारत के दक्षिण में हिन्द महासागर है। प्रायद्वीप भारत ने उत्तरी हिन्द महासागर को दो भागों में बाँटा है।

अरब सागरोन्मुख अपवाह तंत्र - इस तंत्र में सिन्धु एवं इसकी सहायक नदियाँ झेलम, चिनाव, व्यास, रावी, सतलज आदि हिमालय से निकलकर भारत पाकिस्तान में बहती हुई अरब सागर में गिरती है। 

बंगाल की खाड़ी की ओर उन्मुख अपवाह तंत्र - इस तंत्र में हिमालय से निकलने वाली वे नदियाँ हैं जो अरावली जल विभाजक के कारण दक्षिण-पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाडी में गिरती है।इन नदियों में गंगा और उसकी सहायक नदियाँ यमुना, चम्बल, सोन, घाघरा, गोमती, गंडक और कोसी है। उत्तर-पूर्व में ब्रम्हपुत्र नदी भी गंगा में मिल जाती है। दक्षिण-पूर्व भारत की अधिकतर नदियां दामोदर, महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी भी बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।

उत्पत्ति के आधार पर भारत के नदी तंत्र को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। 

2. दक्षिण भारत की नदियाँ। 1. उत्तरी भारत की नदियाँ। 

उत्तर भारत की नदियाँ

उत्तर भारत के प्रवाह तंत्र में हिमालय पर्वत श्रृंखला का सर्वाधिक महत्व है। यहाँ की सभी नदियों का उदगम स्थल हिमालय पर्वत है। तीव्र ढाल होने के कारण ये नदियाँ तीव्र गति से काँट-छाँट करती है और अपरदन से प्राप्त सामग्री को मैदान भाग में जमा करती जाती है। 

उत्तर भारत की अधिकांश नदियाँ पूर्व की ओर बहती है इसलिए इनको पूर्ववर्ती अपवाह तंत्र भी कहते हैं। इनकी एक मुख्य विशेषता यह है कि इन्होंने अपने समीपवर्ती कई नदियों के जल को आत्मसात कर लिया है। इन नदियों की एक विशेषता यह भी है कि यह सभी समुद्र में मिलने के पूर्व कई शाखाओं में विभक्त हो जाती है और डेल्टा बनाती है।

उत्तरी भारत की नदी तंत्र को तीन अपवाह तंत्रों में बाँटा गया है

1. सिन्धु नदी तंत्र, 2. गंगा नदी तंत्र, 3. ब्रम्हपुत्र नदी तंत्र।

1. सिन्धु अपवाह तंत्र

सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बत के पाँच हजार मीटर ऊँचे पठार में है। तिब्बत से निकलकर 3,880 कि.मी. की यात्रा करते हुए यह अरब सागर में जाकर मिलती है। इसकी प्रमुख नदियाँ है। 

1. सिन्धु नदी - यह नदी कैलाश पर्वत श्रेणी के सिंग्गी खाबाब झरने से निकलकर तिब्बत व लद्दाख से उत्तर-पश्चिम की दिशा में बहती है। इस नदी की कुल लंबाई 3,880 कि.मी. है। इसकी सहायक नदियाँ झेलम, चिनाव, रावी, सतलज एवं व्यास है।

2. झेलम नदी - इसका प्राचीन नाम वितस्ता नदी था । झेलम नदी कश्मीर में शेषनाग झील से निकलकर उत्तर-पश्चिम दिशा में बहकर 115 किमी दूर वूलर झील में मिलती है। इसकी संपूर्ण लंबाई 400 कि.मी. है। इस नदी से कश्मीर में परिवहन तथा व्यापार में बड़ी सहायता मिलती है। श्रीनगर में इस पर बजरे चलाए जाते हैं। नावों पर फल सब्जियों और फूलों की खेती की जाती है। 

3. चिनाव नदी - चिनाव नदी लाहूल में बरालाचा दर्रे के विपरीत दिशा में 4,900 मीटर ऊँचाई से चन्द्रा और भागा दो नदियों के रूप में हिमनद से निकलती है। यह नदी वृहद हिमालय और पीरपंजाल श्रेणियों के मध्य हिमाचल के चम्बा जिले में उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है। 

सिहून्ता के निकट एक तीव्र मोड़ लेकर यह गहरी घाटी बनाती हुई पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है भारत में इस नदी की कुल लंबाई 1,180 कि.मी. है।

4. रावी नदी - रावी नदी पंजाब की सबसे छोटी नदी है कुल लंबाई 725 कि.मी. और अपवाह क्षेत्र 5,957 वर्ग कि.मी. है, इस नदी का उद्गम स्थल बंगाल बेसिन में धौलाधर श्रेणी की उत्तरी ढाल है यह बंसोली के पास मैदान में प्रविष्ट होती है।

5. व्यास नदी - व्यास नदी हिमालय में स्थित रोहतांग दर्रे के निकट व्यास कुंड से निकलती है। इसकी लंबाई 470 कि.मी. एवं अपवाह क्षेत्र 25,900 वर्ग कि.मी. है। व्यास नदी अपने उद्गम स्थल से 9 किलोमीटर दूर कोटी और लार्जी दर्रे से प्रवाहित होती हुई धौलाधार श्रेणियों को काटते हुए हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, मण्डी और कांगड़ा जिलों में बहती हुई कपूरथाला के समीप सतलज नदी से मिल जाती है।

6. सतलज नदी - यह नदी कैलाश पर्वत के दक्षिणी ढाल पर स्थित मानसरोवर झील के समीप राक्षसताल से निकली है । जास्कर श्रेणी को शिपकी दर्रे को काटते हुए यह भारत के हिमाचल प्रदेश में प्रवेश कर सिप्ती नदी से मिलती है। रोपड़ के निकट यह शिवालिक श्रेणियों को पार कर आगे बढ़ती है यहीं पर सतलज नदी में भाखड़ा नांगल बाँध बनाया गया है।

2. गंगा नदी क्रम

गंगा नदी विश्व की सबसे पवित्र नदी है इसका उद्गम हिमालय पर्वत के गंगोत्री नामक हिमनद से हुआ है। यह हिन्दुओं की अति पवित्र पावनी धार्मिक नदी है जहाँ भारतीय संस्कृति और सभ्यता का जन्म हुआ। इसके प्रवाह क्षेत्र में पर्वतीय राज्य उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल आते हैं। 

मुख्य हिमालय गंगा नदी अलकनंदा और भागीरथी दो नदियों के सम्मिलन से विकसित हुई है। भागीरथी को ही वास्तविक गंगा माना जाता है। यह आरंभ में भागीरथी केदारनाथ की चोटी के उत्तर में गौमुख से निकलकर बहती है मुख्य हिमालय के उत्तर में जान्हवी नदी इससे मिल जाती है, और दोनों एक होकर में गहरी घाटी बनाकर पार करती है। 

गंगा नदी हरिद्वार से दक्षिण की ओर बहती हुई, दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। इसकी कुल लंबाई 2510 किलोमीटर है। भारत में इसकी लंबाई 2,071 किलोमीटर है इसका जल ग्रहण क्षेत्र 9.51 लाख वर्ग मीटर है। गंगा नदी का डेल्टा विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है जो हुगली और मेघना नदियों के मध्य है जिसे सुन्दरवन का डेल्टा कहते हैं।

यमुना नदी - यह गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। इसका उदगम स्थल यमुनोत्री नामक हिमनदी है। यमुना नदी लघु हिमालय श्रेणी को काटते हुए प्रयाग के पास गंगा से निकलकर पवित्र संगम का निर्माण करती है।

इसके तट पर दिल्ली, आगरा, मथुरा जैसे बड़े-बड़े नगर स्थित हैं। यमुना नदी की लंबाई 1,364 किमी है और अपवाह क्षेत्र 3.59 लाख कि.मी. है। चम्बल, काली सिंध, बेतवा व केन नदी हमीरपुर के पास यमुना नदी में मिलती हैं।

घाघरा नदी- इसे सम्पू नदी के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी पर्वतीय क्षेत्र कोरियाला के मैदानी क्षेत्र में बहती है और तकलाकोट के उत्तर-पश्चिम में मांपचा युगु हिमनद से निकलकर छपरा में गंगा से मिल जाती है।

रामगंगा नदी - यह नदी हिमाचल श्रेणी के दक्षिणी भाग में नैनीताल के समीप से निकलकर कालागढ़ के मैदान में उतरकर कन्नौज में गंगा से मिल जाती है इसका अपवाह क्षेत्र 32,800 कि.मी. और लंबाई 600 किलोमीटर है।

काली या सरयू नदी - यह कुमायू के उत्तरी - पूर्वी भाग में मिलान हिमनद से निकली है। पंचेश्वर, सरयू व रामगंगा नदियाँ इसमें मिलती हैं और यहाँ से यह सरयू या शारदा नदी के नाम से बहती हुई बहरामघाट में गंगा से मिल जाती है।

राप्ती नदी - राप्ती नदी नेपाल के पृष्ठ भाग से निकली है जहाँ से 640 कि.मी. की यात्रा करके यह बरहज के समीप घाघरा नदी से मिल जाती है यह नदी उत्तर प्रदेश के बहराइच, गोंडा, बस्ती और गोरखपुर जिलों में प्रवाहित होती है।

कोसी नदी- कोसी नदी का जन्म गोसाई धाम में अरुण नदी के रूप में हुआ है। यह शिवालिक श्रेणी को पार कर 720 कि.मी. बहकर गंगा से मिल जाती है। बहते समय यह बार-बार अपना मार्ग बदलती रहती है इसलिए इसके किनारे कृत्रिम तटबंध बनाए गए हैं। वर्षा ऋतु में इसका रूप विकराल हो जाता है जिससे आसपास के गाँव तहस-नहस हो जाते हैं इसलिए इसे बिहार का शोक भी कहते हैं।

चम्बल नदी - यह नदी मध्यप्रदेश के गऊ के पास 616 मीटर ऊँची जमाधन पहाड़ी से निकलकर उत्तर–पूर्व की ओर बहती हुई बूंदी, कोटा, धौलपुर जाती है । इटावीर से 38 कि.मी. दूर यह यमुना में मिल जाती है। 

इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ काली सिंध, सिप्ता, बनास और पार्वती हैं। चम्बल नदी में अपरदन के कारण गहरे खड्डे व बीहड़ बन गए हैं जो डाकुओं की शरणस्थली है। यह नदी कोटा में भैसरोगढ़ के पास 18 मीटर ऊँचा जल प्रपात बनाती है। नदी की कुल लंबाई 965 कि.मी. है।

काली सिंध नदी - यह नदी राजस्थान के टांक जिले से निकलती है और 416 कि.मी. की दूरी तय कर जगमनपुर से उत्तर की ओर यह यमुना में मिल जाती है।

बेतवा नदी- बेतवा नदी मध्यप्रदेश के भोपाल के दक्षिण-पश्चिम से निकलकर उत्तरर - पूर्वी दिशा में बहते हुए भोपाल, ग्वालियर, झाँसी, ओरछा, जालौन होते हुए हमीरपुर में यमुना में मिल जाती है। इसके किनारे साँची, विदिशा जैसे नगर स्थित हैं। झाँसी से 23 कि.मी. दूर पश्चिम में इससे बेतवा नहर निकाली गई है। नदी की लंबाई 480 किलोमीटर है।

तमसा- तमसा नदी कैमूर पहाड़ी से मैहर के पास तमसा कुण्ड से निकली है । यह 265 कि.मी. लंबी है। सिरसा के पास यह गंगा नदी में मिल जाती है। तमसा नदी कई जलप्रपात बनाती है जिसमें 180 मीटर चौड़ा और 100 मीटर ऊँचा बिहार का प्रपात प्रसिद्ध है।

सोन या स्वर्ण नदी - सोन नदी अमरकंटक की पहाड़ियों से नर्मदानदी के उद्गम स्थल के पास से निकली है। सोन नदी विन्ध्य पर्वतमाला से गुजरते हुए कई जल प्रपात बनाती है। यह 780 कि.मी. लंबी है दानापुर से 16 कि.मी. ऊपर यह गंगा नदी से मिल जाती है। बनास, गोपाद, रिहन्द इसकी सहायक नदियाँ है। इस पर डेरी आसनसोन नामक रेल्वे का लंबा पुल है।

3. ब्रम्हपुत्र नदी क्रम

ब्रम्हपुत्र भारत की सबसे बड़ी नदी है। यह तिब्बत में कैलाश पर्वत की मानसरोवर झील से निकलकर सांपू नदी के नाम से बहती है। असम हिमालय में यह नामचा बरुआ पर्वत के पास दक्षिण की तरफ मुड़कर अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। असम घाटी से होते हुए यह बंगला देश में प्रवेश करती है जहाँ सुरमा नदी से मिलकर यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

ब्रम्हपुत्र नदी के तट पर गुवाहाटी और डिब्रुगढ़ जैसे बड़े नगर स्थित हैं। इस नदी में बड़ी भयंकर बाढ़ आती है जिससे इसके तटों पर स्थित शहरों को भारी क्षति पहुँचती है। ब्रम्हपुत्र नदी 2,580 कि.मी. लम्बी है इसमें से 1,346 कि.मी. की लंबाई तय करने के बाद यह भारत में प्रवेश करती है इसकी सहायक नदियाँ स्वर्ण सीरी, भाद्री सकोस, मानस घारला और तिस्ता है इसमें बंगाल की खाड़ी में डिब्रगढ़ तक जहाज चलते हैं। 

दक्षिण भारत की नदियाँ

दक्षिण भारत की भूमि अत्यंत प्राचीन है। इसके उत्तरी भाग का ढाल पूर्व की ओर है इसलिए इसकी अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती है। अपनी वृद्धावस्था में पहुँचकर ये नदियाँ अपने आधार तल को प्राप्त कर चुकी हैं इसलिए इनकी घाटियाँ चौड़ी है। 

वर्षाऋतु मे बाढ़ आने पर यह बहुत जल्दी भर जाती हैं। और ग्रीष्म ऋतु में जल्दी ही सूखकर पतली हो जाती है। इन नदियों का अध्ययन दो भागों में विभक्त कर किया जा सकता है। 

1. पूर्व की ओर बहने वाली या बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ

महानदी - इसका प्राचीन नाम चित्रोत्पला था। इसका उद्गम छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में सिहावा पहाड़ी से हुआ है। महानदी अपने उद्गम स्थल से पूर्व की ओर 858 कि.मी. की लंबाई में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है और उपजाऊ डेल्टा का निर्माण करती है। इसकी सहायक नदियाँ शिवनाथ, जोंक, खारुन और हसदो नदी हैं। महानदी में ओड़िसा से सम्बलपुर के पास हीराकुंड बाँध बनाया गया है।

दामोदर नदी- दामोदर नदी छोटा नागपुर के पठार पर दोरी नामक स्थान से निकली है। गढ़ी, कोनार, बाराकर और जमुनियाँ इसकी सहायक नदी है। बाराकर से मिलने के बाद दामोदर नदी में एक विशाल रूप धारण कर 430 कि.मी. की दूरी तय कर हुगली नदी में मिलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरकर उपजाऊ डेल्टा बनाती है। इसकी विनाशकारी बाढ़ों के कारण इसे बंगाल का शोक भी कहते हैं किन्तु दामोदर घाटी परियोजना से इसके बाढ़ों पर अंकुश लगाया गया है।

गोदावरी नदी - यह दक्षिण भारत की सबसे लंबी और पवित्र नदी है। यह महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्रयम्बक नामक पहाड़ी से पश्चिमी घाट पर 1,067 मीटर की ऊँचाई से निकलती है। पूर्वी घाट को पार कर यह विस्तृत डेल्टा बनाते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी लंबाई 1,465 किमी है इसकी सहायक नदियाँ वैनगंगा, पेनगंगा, वर्धा, इन्द्रावती, माजरा आदि है।

कृष्णा नदी - कृष्णा नदी महाबलेश्वर के पास पश्चिमी घाट निकलकर मध्य पठारी क्षेत्र को पार करते हुए पूर्वीघाट के पास दो धाराओं में बँटकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह 1,400 किमी लंबी है। इसकी सहायक नदियाँ तुंगभद्रा, कोयना, वर्ना, पंचगंगा, दूधगंगा, मालप्रभा और घाटप्रभा हैं।

कावेरी नदी - यह कुर्ग जिले की ब्रम्हगिरी पहाड़ी से निकलकर तमिलनाडु राज्य से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी सहायक नदियाँ हेमावती, लोक, पावनी, शियसा, सुवर्षवती और अमरावती नदी है।

स्वर्ण रेखा नदी- यह छोटा नागपुर के पठार में स्थित राँची से निकलकर 133 किमी की दूरी तयकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

ब्राम्हणी नदी- इस नदी का उद्गम राँची के पठार के दक्षिण में कोइल और सोख नदियों के संगम से हुआ है। 418 कि.मी. बहकर यह वैतरनी नदी से मिल जाती है।

उत्तरी पेन्नार नदी- यह कर्नाटक के नन्दी दुर्ग पहाड़ी से निकली है और 590 किमी बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी सहायक नदियाँ चित्रावती और पापाधानी है।

दक्षिण पेन्नार नदी- यह चेन्ना केशव पहाड़ी से निकलकर 400 किमी बहते हुए तमिलनाडु में सेण्टडेविड के पास बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

2. पश्चिम की ओर बहने वाली या अरब सागर की गिरने वाली नदियाँ

नर्मदा नदी - मध्यप्रदेश की जीवन रेखा के नाम से प्रसिद्ध यह नदी मैकाल पर्वत की चोटी अमरकंटक में नर्मदा कुण्ड से निकलती है। जबलपुर के पश्चिम में विन्ध्याचल और सतपुड़ा श्रेणियों के बीच 160 कि. मी तट तंग गहरी और सीधी घाटी में बहती है। 

अरब सागर में एश्चुअरी बनाती हुई गिरती है। इसकी लंबाई 1,382 किमी है। उद्गम स्थल से 612 कि.मी. की दूरी पर यह कपिलधारा और फिर 112 कि.मी. दूग्धधारा जल प्रपात बनाती है। विशेषता यह है कि इसकी कोई सहायक नदी नहीं है।

ताप्ती नदी - ताप्ती नदी का उद्गम सतपुड़ा श्रेणी के पास बैतूल जिले में मुल्ताई नगर के समीप से हुई है। इसकी लंबाई 724 किमी है। इसकी सहायक नदी पूर्णा नदी है।

लूनी नदी - यह पश्चिमी राजस्थान की सबसे बड़ी और मुख्य नदी है इसका उद्गम अरावली पहाड़ियों के पास अजमेर में है इसकी लंबाई 320 किमी है यह कच्छ की खाड़ी में गिरती है । 

माही नदी - यह विंध्याचल के पश्चिमी भाग में मेहरझील से निकलकर 560 कि.मी. में बहकर खम्भात की खाड़ी में गिरती है ।

साबरमती नदी - मेवाड़ की पहाड़ियों से निकलकर 320 कि.मी. खम्भात की खाड़ी में गिरती है। 

भारत की प्रमुख झीलें

भारत में प्राकृतिक एवं कृत्रिम दोनों प्रकार की झीलें पाई जाती हैं। ये झीलें धरातलीय हलचल, ज्वालामुखी उदगार, हिमानी, अपरदन, भूमि के खिसकाव तथा वायु से बनती हैं। भारत में सबसे अधिक झीलें कुमायु हिमालय में है। जहाँ सात बड़ी झीले नैनीताल, भीमताल, समताल, पूनाताल, मालवाताल, खुरपाताल, नौका दियाताल है। जिनमें भीमताल और सबसे छोटी नौका-दियाताल है। 

राजस्थान की अधिकतर झीलें खारी होती है। इनसे नमक प्राप्त होता है। यहाँ की प्रमुख सांभर, डीडवाना, लूनकरनसर तथा पंचगद्रा है। जिनका निर्माण वायु से हुआ है। उदयपुर में कई मीठे जल की कृत्रिम झीलें हैं जिनका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है जिनमें राजसमन्द, उदयसागर और फतह सागर प्रमुख झीलें हैं ।

कश्मीर राज्य में दो प्रसिद्ध झीले बूलर और डल झील हैं। उड़ीसा के तटीय भाग में नाशपत्ती के आकार की चिल्का झील पुरी जिले में है जिसका जल वर्षा ऋतु में बहुत मीठा रहता है। तमिलनाडु में पुलीकट झील है। आन्ध्रप्रदेश में कृष्णा और गोदावरी नदियों के मुहानों के मध्य कोलार झील है जिसकी आकृति अण्डाकार है यह अनूप झील है।

झीलों का आर्थिक महत्व

1. पेयजल औद्योगिक जल एवं सिंचाई के लिए जल प्राप्त होता है।

2. झीलों के निकटवर्ती क्षेत्रों की जलवायु स्वास्थ्यवर्धक होती है।

3. जल विद्युत का उत्पादन किया जाता है। 

4. मत्स्य पालन किया जाता है।

5. परिवहन का सस्ता साधन है।

6. झील सूखने पर कृषि कार्य हेतु उर्वर भूमि प्राप्त होती है।

7. झीलों से अनेक प्रकार के उपयोगी लवण और रसायन पाए जाते हैं।

8. नदियों के प्रवाह मार्ग में पड़ने वाली झीलें बाढ़ों को नियंत्रित करती है। 

9. झीलें सुन्दर दृश्य, नौका रोहण एवं मनोविनोद का साधन होने के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र होती है।

भारतीय तट की खाड़ियाँ एवं समुद्र - भारत देश तीन ओर समुद्र से घिरा हुआ है। इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्दमहासागर फैला हुआ है। कच्छ की खाड़ी,

भारतीय तट की महत्वपूर्ण खाड़ियाँ पश्चिम तट पर पाई जाती है। पश्चिमी तट पर कच्छ का रन, खम्भात की खाडी व कोचीन तथा मलाबार तट है जिनमें कच्छ का रन सबसे बड़ा है।

भारत के दक्षिण में मन्नार की खाडी तथा पाकजलडमरुमध्य स्थित है जो श्रीलंका द्वीप को भारत से जोड़ता है। पूर्वी तट की ओर पुलीकट, कोलार तथा चिल्का झील है जो मूलतः आन्तरिक झीलें है और सकरे जलमार्गो द्वारा समुद्र से जुड़े हुए हैं।

अर्थव्यवस्था में नदियों का योगदान- भारत में इतनी अधिक नदियाँ प्रवाहित होती है कि इसे नदियों का देश भी कहा जाता है। भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में नदियों का अपना विशेष योगदान है। इन नदियों का देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक रुपरेखा निश्चित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। प्राचीन काल से ही नदियाँ देश के आर्थिक विकास और समृद्धि में योगदान देती रही है।

हमारी प्राचीनतम सभ्यता सिंधुघाटी की सभ्यता का विकास नदियों के किनारे ही हुआ था, ये भारत के निवासियों को मातृत्व प्रदान करती है। नदियों से पीने के लिए तथा औद्योगिक क्रिया-कलापों हेतु स्वच्छ जल की प्राप्ति होती है। नदियाँ सिर्फ सिचाई ही नहीं करती, किन्तु अपने मार्ग में आने वाले जलप्रपातों द्वारा विद्युत शक्ति भी प्रदान करती है। 

उत्तरप्रदेश में गंगा नदी तथा कर्नाटक में कावेरी, छत्तीसगढ़ व ओडिसा में महानदी इसके अच्छे उदाहरण हैं। नदियाँ आवागमन का भी एक प्रमुख साधन है। प्राचीनकाल में तो यह आंतरिक व्यापार का प्रमुख साधन थी किंतु वर्तमान में इनका महत्व कम हो गया है।

भारत के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी नदियों के तट पर स्थित हैं तथा व्यवसायिक केन्द्र भी तटों पर हैं। नदियों से हमें खाद्य पदार्थो, मछली आदि की भी प्राप्ति होती है। ये भारतीय कृषि का मुख्य आधार हैं। 

वर्षा ऋतु के चार महीने के अतिरिक्त शुष्क मौसम में कृषि कार्य नदियों के जल द्वारा ही संभव है। सम्पूर्ण देश में नहरों के जाल बिछे हुए हैं। उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु तथा असम की कुछ नदियों में स्वर्ण कण भी पाए जाते हैं। 

उत्तर भारत में सतलज, गंगा, यमुना, ब्रम्हपुत्र तथा उसकी नदियों द्वारा प्रायद्वीपीय भारत में महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के जमाव से विशाल उपजाऊ मैदान की रचना हुई है जहाँ भारत की अधिकांश जनता निवास करती है। 

भारत में प्रमुख नदियों पर बाँध बनाकर बहुउददेशीय नदी घाटी परियोजनाएँ चलाई जा रही है जिनसे भारत के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान मिला है प्रमुख बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ हैं। 

1. भाखड़ा नांगल परियोजना - सतलज नदी पर भाखड़ा एवं नांगल नामक स्थान पर बाँध बनाया गया है। यह देश की सबसे बड़ी परियोजना है।

2. रिहन्द परियोजना - यह उत्तरप्रदेश के सोनभद्र जिले में सोननदी की सहायक रिहन्द नदी पर पिंपरी नामक स्थान में बनाया गया है।

 3. चम्बल घाटी परियोजना - मध्यप्रदेश तथा राजस्थान सरकारों के सहयोग से यह परियोजना मध्यप्रदेश में चम्बल नदी पर बनाई गई है। 

4. दामोदर घाटी- यह केन्द्रीय सरकार तथा पश्चिमी बंगाल और बिहार राज्य के सरकारों के सहयोग से झारखंड में दामोदर नदी और उसकी सहायक नदियों पर आरंभ की गई है।

5. हीराकुण्ड परियोजना- ओडिशा राज्य में महानदी पर यह बाँध परियोजना स्थित है। बहुउद्देशीय योजना में नदियों पर बाँध बनाकर सिंचाई नहरों का निर्माण, पीने के लिए पानी, मत्स्य पालन, जल विद्युत उत्पादन, नौकारोहण एवं पर्यटक केन्द्रों के रूप में इनका उपयोग कर आर्थिक विकास में देश का तीर्थ भी कहा जाता है।

इनका उपयोग किया जाता है इसलिए इन परियोजनाओं को नदियों के प्रदूषण तथा निवारण के उपाय - हमारे देश में लगातार नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। मानव अपनी सभी गंदगियों को नदियों के जल मे डालने का आदि हो गया है। शहर के नालों के द्वारा नदियों का जल गंदा होता जा रहा है।

कल-कारखानों से निकलने वाला गंदा एवं अपशिष्ट पदार्थ भी नदियों में प्रदूषण को बढ़ा रहा है। डॉ. बी.डी. त्रिपाठी के अनुसार गंगा तथा वाराणसी के घाटों पर प्रतिवर्ष अधजले शव बहाये जाते हैं और टनों राख उसमें डाली जाती है।

नदियाँ पीने के जल का एक प्रमुख स्रोत है। इनके प्रदूषित जल के उपयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जैसे पीलिया, टाईफाइड, चर्म रोग, पेट के रोग आदि फैलते हैं, जिनका मनुष्य के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ता है। जल में रहने वाले जीवों पर भी इस प्रदूषित जल का प्रभाव पड़ता है। 

अतः हम सभी का यह कर्त्तव्य है कि हम अपने देश की जीवनदायिनी नदियों को प्रदूषित होने से बचाएँ और गन्देपानी, कूड़ा, कचरा कारखानों के कचरों को नदियों या झीलों में न छोड़ें। गंदे पानी को साफकर उनका पुनः उपयोग करें, समाज में जागरूकता उत्पन्न करें तभी हम नदियों को स्वच्छ तथा निर्मल बना सकते हैं।

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