द्वितीयक वृद्धि किसे कहते हैं - dwitIyak vriddhi kise kahate hain

शिशु पौधे में सभी ऊतक प्राथमिक विभज्योतक (Primary meristems) द्वारा बनाये जाते हैं इस कारण इनके द्वारा निर्मित ऊतकों को प्राथमिक ऊतक (Primary tissue) कहते हैं। 

एकबीजपत्री तथा टेरिडोफाइट्स पादपों में चाहे वह कितना भी प्रौढ़ हो जाए सभी ऊतक प्राथमिक स्वभाव के ही रहते हैं। इन पौधों की जड़ों एवं तनों में जो भी मोटाई में वृद्धि होती है, वह प्राथमिक ऊतकों की कोशिकाओं के आकार में वृद्धि के फलस्वरूप ही होती है।

कोशिकाएँ जुड़ती जाती द्विवीजपत्री पादपों में जैसे-जैसे इनकी उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उनमें नयी हैं। इस प्रकार नयी कोशिकाओं का बनना नए विभज्योतक के बनने के कारण सम्भव हो पाता है जो द्वितीयक रूप से स्थायी पैरेनकाइमा ऊतकों द्वारा उत्पन्न किए जाते हैं, ऐसे सभी ऊतक जो प्राथमिक रचना से बाद में उत्पन्न होते हैं। 

द्वितीयक ऊतक कहलाते हैं तथा ऐसे विभज्योतक जो प्राथमिक स्थायी ऊतकों में विभाजन क्षमता आ जाने के कारण बनते हैं, द्वितीयक विभज्योतक कहलाते हैं। 

द्वितीयक विभज्योतकों की क्रियाशीलता से उत्पन्न ऊतक ही द्वितीयक ऊतक हैं जबकि द्वितीयक ऊतकों के कारण पौधों के अंगों की मोटाई में हुई वृद्धि द्वितीयक वृद्धि (Secondary growth) कहलाती है। 

इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया जाता है - कैम्बियम तथा कार्क कैम्बियम की क्रियाशीलता के फलस्वरूप क्रमश: स्टील के अन्दर तथा स्टील के बाहर द्वितीयक ऊतकों के बनने के कारण जड़ तथा तने में मोटाई में हुई वृद्धि द्वितीयक वृद्धि कहलाती है।

आवृत्तबीजी और द्विवीजपत्री पौधे वृक्ष जैसी रचना बना पाते हैं। द्वितीयक अपवादों को द्वितीयक वृद्धि वृद्धि के अभाव के कारण ही एकबीजपत्री पादपों में सामान्यत: वृक्ष का अभाव रहता है। अत: कुछ छोड़कर एकबीजपत्री पादपों में द्वितीयक वृद्धि का पूर्णतः अभाव होता है।

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