अरस्तु के राज्य संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए

राज्य की उत्पत्ति और विकास - अरस्तू अपने गुरु प्लेटो की भाँति सोफिस्ट वर्ग के इस विचार का खण्डन करता है कि राज्य की उत्पत्ति समझौते से हुई है और उसका अपने नागरिकों की शक्ति पर कोई वास्तविक अधिकार नहीं है। अरस्तू के अनुसार व्यक्ति अपनी प्रकृति से ही राजनीतिक प्राणी है और राज्य व्यक्ति की इस प्रकृति का ही परिणाम है।

अरस्तू के अनुसार राज्य मनुष्य की सामाजिकता का परिणाम है। सामाजिक जीवन अन्य जीवधारियों में भी पाया जाता है, परन्तु व्यक्ति विचारशील और विवेकशील प्राणी है, इसलिए उसकी सामाजिक अन्य श्रेणी के जीवधारियों से भिन्न है। 

यह सामाजिक मनुष्य की मूलप्रवृत्तियों तथा कुछ विशेष उद्देश्यों पर आधारित है और इसने अनेक स्थितियों से गुजरकर अपना पूर्ण विकास प्राप्त किया है। सर्वप्रथम विवाह पद्धति के आधार पर उसने सबसे पहली सामाजिक संस्था कुटुम्ब की स्थापना की जिसमें पति-पत्नि, सन्तान और दास एक साथ रहते हैं। 

कौटुम्बिक व्यवस्था में हमें राज्य का बीज दिखायी देता है, क्योंकि कुटुम्ब का सवामी शासक के रूप में कार्य करता है। कुटुम्ब स्वाभाविक समुदाय है, क्योंकि वह सन्तानोत्पत्ति और सुरक्षा की आवश्यकताओं को पूरा करता है।

परन्तु व्यक्ति केवल सुरक्षा ही नहीं चाहता, उसकी अन्य अनेक भौतिक तथा आध्यात्मिक आवश्यकताएँ है। इसलिए कुछ कुटुम्ब मिलकर गाँव का निर्माण करते हैं। 

ग्राम के द्वारा व्यक्तियों के पारस्पारिक झगड़े निबटाने और उनके सामूहिक जीवन व्यतीत करने का प्रबन्ध किया जाता है। लेकिन ग्राम भी व्यक्ति की सभी भौतिक, बौद्धिक और नैतिक आवश्यकताएँ पूरी नहीं कर पाते । अतः ग्रामों के सम्मिलन से नगर राज्य का जन्म होता है। 

राज्य सुरक्षा और न्याय प्रदान करने की आवश्यकता ग्राम तुलना में अधिक अच्छे प्रकार से पूरी करता है और यह व्यक्ति की बौद्धिक एवं नैतिक शक्तियों को भी अधिक अच्छे प्रकार से विकसित कर सकता है अतः नगर राज्य व्यक्तियों का अन्तिम और पूर्ण एवं श्रेष्ठतम समुदाय है। 

इस प्रकार अरस्तू के अनुसार कुटुम्ब से ग्राम और ग्राम से राज्य अस्तित्व में आये । उसके द्वारा दी गयी राज्य की परिभाषा भी यही बताती है। उसके अनुसार, “राज्य कुलों और ग्रामों का एक ऐसा समुदाय है जिसका उद्देश्य पूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन की प्राप्ति है।” की

राज्य का स्वरूप और विशेषताएँ

राज्य का स्वरूप और उसकी विशेषताओं का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत सुगमता से किया जा सकता है

(1) राज्य स्वाभाविक समुदाय है- अरस्तू का विश्वास है कि मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है और राज्य एक स्वाभाविक समुदाय है। राज्य मानव के भावनात्मक जीवन की अभिव्यंजना है और इससे अलग रहकर व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्त नहीं कर सकता। 

राज्य परिवार का ही वृहत् रूप होने के कारण यह भी वैसे ही स्वाभाविक है जैसे कि परिवार । व्यक्ति विकास का जो कार्य परिवार में प्रारम्भ होता है, उसकी पूर्ण सिद्धि राज्य में ही की जा सकती है। 

इस प्रकार राज्य सामाजिक जीवन के विकास की अन्तिम व्यवस्था है। सेबाइन के अनुसार, "जिस प्रकार बजुफल के लिए बंजु  वृक्ष में विकसित होना स्वाभाविक है उसी प्रकार मानव प्रकृति की उच्चतम शक्तियों का विकास राज्य में होना स्वाभाविक है।"

राज्य स्वाभाविक होने के साथ-साथ मनुष्य के लिए आवश्यक भी है। व्यक्ति के लिए राज्य का अस्तित्व उतना ही आवश्यक है जितना कि परिवार में व्यक्ति की कुछ भावनात्मक और कुछ आर्थिक आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, ।

ग्राम इनके अतिरिक्त कुछ और आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, परन्तु मनुष्य का पूर्ण बौद्धिक और नैतिक विकास राज्य में ही सम्भव है। इस प्रकार अरस्तू अपने इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि “राज्य का उदय जीवन के लिए हुआ और सद्जीवन के लिए उसका अस्तित्व बना हुआ है।”

(2) राज्य व्यक्ति से पूर्व का संगठन है – अरस्तू ने राजय के प्रश्न पर विचार करते हुए कहा है कि “राज्य व्यक्ति से पूर्व का संगठन है । " ऐसा कहने में अरस्तू का तात्पर्य यह नहीं था कि ऐतिहासिक दृष्टि से राज्य का जन्म पहले हुआ, वरन् उसके कहने का अभिप्राय यह था कि मानसिक या मनोवैज्ञानिक दृष्टि से राज्य का जन्म पहले ही हो चुका था । 

यह कैसे हुआ, इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि राज्य एक पूर्ण समुदाय है, व्यक्ति केवल एक तत्व | पूर्णता पहले आती है, उसके बाद में अंग, इसलिए राज्य व्यक्ति से पूर्ववर्ती है। 

मनुष्य के बौद्धिक विकास की पूर्ण कल्पना के रूप में राज्य का जन्म व्यक्ति, परिवार और ग्राम के अस्तित्व में आने से पूर्व ही हो चुका था। अरस्तू का कथन है कि "समय की दृष्टि से परिवार पहले है, परन्तु प्रकृति की दृष्टि से राज्य पहले है । " 

(3) राज्य सर्वोच्च समुदाय है- परिवार, ग्राम और राज्य ये सभी विभिन्न प्रकार के समुदाय हैं। प्रत्येक समुदाय की स्थापना किसी प्रकार की अच्छाई या श्रेष्ठता की प्राप्ति के लिए की जाती है। 

परिवार व ग्राम आदि प्रत्येक अन्य समुदाय का उद्देश्य किसी विशिष्ट तथा हीनतर अच्छाई की प्राप्ति करना है, परन्तु राज्य का उद्देश्य 'सर्वोच्य अच्छाई' की प्राप्ति करना है, अतः स्वाभाविक रूप से राज्य समुदायों का समुदाया मात्र ही नहीं है, वरन् वह सर्वोच्य समुदाय है। 

राज्य मनुष्य की सामाजिक प्रवृत्ति के विकास की चरम सीमा है और व्यक्ति के भौतिक, बौद्धिक एवं नैतिक व्यक्तित्व का पूर्ण विकास राज्य के अन्तर्गत ही सम्भव है। इस प्रकार राजय सर्वोच्च समुदाय है और अन्य सभी समुदाय इसके अंग में लिपटे हुए हैं ।

(4) राज्य का स्वरूप जैविक है- अरस्तू ने राज्य के स्वरूप की जैविक धारणा को माना है और उसके अनुसार राज्य विभिन्न प्रकार के अंगों से मिलकर बना हुआ एक

'सम्पूर्ण सावयव' है, व्यक्ति और समुदाय इसके अंग प्रकार शरीर के अंगों का समस्त महत्व मानव जीवन पर निर्भर करता है, उसी ट्रिक व्यक्तियों और समुदायों का जो कुछ महत्व है, 

वह सब राज्य की जीवन देने वाली शक्ति के कारण है। राज्य के अभाव में वे सब जड़ हो जायेंगे और इनका विनाश हो जायेगा। 

व्यक्ति राज्य के सदस्य के रूप में अर्थात् राज्य में रहकर ही अपना विकास कर सकता है । इबन्सटीन के अनुसार "अरस्तू ने अपने इस विचार के आधार पर राज्य की जैविक धारणा की नींव रखी है। "

(5) राज्य एक आत्म निर्भर संगठन है- अरस्तू का विचार है कि राज्य सभी वस्तुओं के विषय में आत्म-निर्भरता की पराकाष्ठा तक पहुँचा हुआ संगठन है। आत्म-निर्भरता का तात्पर्य सामान्यतया

अपनी सभी आवश्यकताएँ स्वयमेव पूरा करने से लिया जाता है। 

परिवार तथा ग्राम के द्वारा व्यक्ति की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति आंशिक रूप में ही की जाती है। राज्य की एकमात्र ऐसा संगठन है, जो इन आवश्यकताओं की पूर्ण रूप से पूर्ति कर सकता है। 

इसके साथ ही राज्य व्यक्ति की प्रकृति की उच्चतम आवश्यकताएँ, उसकी बौद्धिक तथा नैतिक आवश्यकताएँ भी पूरी करता है। अतः राज्य में वयक्ति को किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता और इसी कारण इसे आतम-निर्भर संगठन कहा गया है ।

(6) नगर राज्य सर्वाधिक श्रेष्ठ राजनीतिक संगठन है- अरस्तू के लिए प्लेटो की ही भाँति नगर राज्य सर्वाधिक श्रेष्ठ राजनीतिक संगठन था । यद्यपि उसके जीवनकाल में ही फिलिप ने यूनान के नगर राज्यों का अन्त कर अपने साम्राज्य की स्थापना की थी, लेकिन अरस्तू ने इन साम्राज्यों के सम्बन्ध में बिल्कुल भी विचार नहीं किया।

उसने भविष्य में निर्मित राष्ट्रीय राज्यों की भी कल्पना नहीं की है, जो कि नितान्त स्वाभाविक था। उसने तो अपने आदर्श राज्य का चित्रण एक नगर राज्य के रूप में ही किया है। अरस्तू का यह नगर राज्य समस्त विज्ञान, कला, गुणों और पूर्णता में एक साझेदार है।

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