मुद्रा प्रसार |
मुद्रा संकुचन |
मुद्रा प्रसार की स्थिति में मुद्रा की क्रयशक्ति घट जाती है अर्थात् मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है। |
मुद्रा संकुचन की स्थिति में मुद्रा की क्रयशक्ति बढ़ जाती है अर्थात् मुद्रा का मूल्य बढ़ जाता है। |
मुद्रा प्रसार में मुद्रा की पूर्ति आवश्यकता से अधिक बढ़ जाती है। |
मुद्रा संकुचन में मुद्रा की पूर्ति आवश्यकता से कम रह जाती है। |
मुद्रा प्रसार में आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि के कारण रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है। |
मुद्रा संकुचन में आर्थिक क्रियाएँ हतोत्साहित होने के कारण रोजगार के अवसरों में कमी आती है। |
मुद्रा प्रसार में वस्तुओं के मूल्य बढ़ने के कारण उपभोक्ता को वस्तुओं का पहले की तुलना में अधिक मूल्य चुकाना पड़ता है। |
मुद्रा संकुचन में वस्तुओं के मूल्य घटने के कारण उपभोक्ताओं को वस्तुएँ पहले की तुलना में सस्ती प्राप्त होने लगती है। |
मुद्रा प्रसार में मूल्यों में वृद्धि के कारण उत्पादकों के लाभ बढ़ते हैं, जिससे आर्थिक क्रियाएँ प्रोत्साहित होती हैं। अतः देश का आर्थिक विकास तेजी से होने लगता है। |
मुद्रा संकुचन में संकुचन में मूल्यों में कमी के कारण उत्पादकों के लाभ कम होते हैं। फलस्वरूप विनियोग हतोत्साहित होते हैं और आर्थिक विकास का मार्ग बाधित हो जाता है। |
मुद्रा प्रसार में उत्पादकों के लाभ बढ़ने के कारण वे पहले से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं। परिणामस्वरूप देश में उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है। |
मुद्रा संकुचन में उत्पादकों के लाभ कम हो जाने के कारण वे पहले से कम मात्रा में उत्पादन करते हैं। परिणामस्वरूप देश में उत्पादन की मात्रा में कमी आ जाती है। |