भूमि संसाधन क्या है?

भूमि संसाधन: भूमि बहुमूल्य संसाधन है। यह भू मंडल का प्रमुख संघटन है और हवा,जल एवं पेड़-पौधों के अलावा प्राकृतिक वातावरण के प्रमुख घटको में से एक है। इसका स्वरूप समस्त भू-सतह का 1\5 भाग है, यह लगभग 13,393 मिलियन हेक्टेयर भाग में आच्छादित है। 

साथ ही प्रमुख और अन्य जीवों के लिए जरूरी पदार्थो का यह स्रोत है जिसे भूमि ही उपलब्ध कराती है। विविध उद्देश्य जिनके लिए भूमि का इस्तेमाल किया जाता है, कृषि और उधनकृषि (बागवानी) उत्पादन के लिए, ऊर्जा उत्पादन के लिए, मानव निवास और व्यवसायिक उद्देश्यों जंगल इत्यादि भू संसाधनों में शामिल हैं। 

भूमि संसाधन के रूप में: भूमि की धरातलीय परत मिट्टी कहलाती है। भू क्षेत्र का करीब 4\5 भाग मिट्टी से ढका है। जो विभिन्न समस्तरो में भिन्न-भिन्न है और वनस्पति जगत को समर्पित करने में सक्षम है। यह पृथ्वी के धरातल पर पिंडो का एक समूह है जिसमे सजीव और निर्जीव दोनो रहते है। 

साथ ही पेड़-पौधों को आधार देने में भी सहायक है। ऊपरी सिमा हवा है और इसका गहरा जल या चटटानो का बंजर क्षेत्र या हिम इसकी सबसे न्यूनतम सिमा को परिभाषित करना सबसे कठिन है। 

भू निम्नीकरण और इसके कारण: भू निम्नीकरण का तात्पर्य है मिट्टी की उर्वरता या उत्पादन क्षमता में कमी समस्त आधुनिक क्रियाकलापो के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव मिट्टी पर पड़ता है। भूमि निम्नीकरण चौकाने वाली एक वास्तविक वजह निश्चित रूप से है। क्योंकि मिट्टी एक तरह से मन्द प्रक्रिया है और औसतन वार्षिक अपरदन दर पुनः स्थापन डर से 20 से 100 गुनी से भी अधिक है। 

भूमि संसाधन बहुत हद तक ज्वालामुखी फटने, भूकंप इत्यादि जैसे आपदाओ है फिर भी भूमि निम्नीकरण की घटना मानव क्रियाकलापो का परिणाम है। क्योकि मानवीय क्रियाकलापों से ही मिट्टी प्रदूषित होती है। वे संघटक या तत्व जो भूमि निम्नीकरण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है निम्नलिखित है:-

1. भूमि अपरदन - मृदा अपरदन का मतलब है हवा,जल और मानव क्रियाकलापो द्वारा मृदा की ऊपरी परत की क्षति मृदा अपरदन का अर्थ है मिट्टी की उर्वरता में कमी क्योकि मिट्टी की ऊपरी परत में ही मिट्टी की उर्वरता की विशिष्टता के लक्षण होते है। 

2. लवणता - लवणता का मतलब है मृदा में घुलनशील लवण की उसके संकेन्द्रण की वृद्धि सिंचाई के कमजोर और दोषपूर्ण और बढ़ का जल घुलनशील लवण को मृदा की सतह पर फैला देता है और शुष्क क्षेत्रों में जहा कमजोर व्यवस्था और उच्च तापक्रम ही स्थिति है, जल का शीघ्र वाष्प उत्सर्जन होता है और मृदा की सतह पर सफेद रूप में लवण की परत बिछ जाती है। 

3. जल जमाव - किसान सामान्यतः अपनी फरमलैंड (कृषिभूमि) के लिए फसलो को अनुकूल नमी उपलब्ध कराने हेतु भारी सिंचाई की व्यवस्था करते है। साथ ही भूमि में गहराई तक घुले लवण को लीच करने हेतु भारी सिंचाई की व्यवस्था करते है। इसके बावजूद अपर्याप्त और सामान्य सिंचाई जल की व्यवस्था के कारण धीरे-धीरे यह निरंतर कॉलम (स्तम्भ) का निर्माण कर लेता है। 

4. मरुस्थलीकरण - मरुस्थलीकरण भूमि की मन्द प्रक्रिया है जो आगे चलकर मरुस्थल का निर्माण करती है। यह पृथ्वी ग्रह के ऊपर चर्म रोग जैसी स्थिति है जिसमे निम्नीकरण भूमि के धब्बे या टुकड़े पृथक रूप से प्रफुटित होती है फिर धीरे धीरे एकसाथ जुड़ते जाते है। 

5.शहरीकरण - मानव गतिविधियां वनों फसलो वाली और घास स्थलों की भूमि के निम्नीकरण के लिए जिम्मेदार है।उत्पादक क्षेत्र बड़ी तेजी से शहरीकरण के कारण सिमटते जा रहे हैं अर्थात उन्नतिशील,विकासात्मक क्रियाकलाप के कारण जैसे कि मानव-बसव और औधोगिकरण के कारण कृषिगत उत्पादक क्षेत्र तेजी से संकुचित हो रहे है।

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