जनसंख्या विस्फोट से आप क्या समझते हैं?

किसी भी देश की बढ़ती हुई जनसंख्या उस देश के आर्थिक विकास की प्रगति को धीमा कर देती है इसलिए एक अल्पविकसित देश की बढ़ती हुई जनसंख्या अभिशाप मानी जाती है । इसका कारण यह है कि जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि होती है उस गति से उत्पादन में वृद्धि नहीं होती। 

परिणाम यह होता है कि प्रति व्यक्ति औसत आय कम हो जाती है, लोगों का जीवन स्तर निम्न हो जाता है तथा उनकी कार्यकुशलता में कमी आ जाती है। यही कारण है कि एक विद्वान ने भारत के सन्दर्भ में कहा है कि “भारत में विवेकपूर्ण जनसंख्या नियोजन एक तत्कालीन आवश्यकता है, अन्यथा जनसंख्या वृद्धि आर्थिक प्रगति को पूरी तरह से निगल जायेगी।

जनसंख्या विस्फोट के परिणाम

जिस प्रकार घर में भूखे बच्चों से घिरा हुआ पिता कोई भी ठोस कार्य करने में असमर्थ रहता है, ठीक उसी तरह आज हमारा देश जनाधिक्य के जाल में उलझकर किसी भी प्रकार की उन्नति नहीं कर पा रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या ने हमारी प्रगति पर पूर्ण विराम लगा दिया है। भारत की जनसंख्या वृद्धि आर्थिक प्रगति में बाधक सिद्ध हो रही है, क्योंकि इसके द्वारा अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं जो इस प्रकार हैं।

1.प्रति व्यक्ति आय में गिरावट

जनसंख्या वृद्धि का प्रति व्यक्ति आय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हर सम्भव प्रयत्न के बाद भी योजनावधि में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में कोई महत्वपूर्ण वृद्धि न होने के कारण लोगों के जीवन स्तर में आशातीत वृद्धि नहीं हो पायी है। भारत में नियोजनकाल में 1960-61 से 1998-99 के दौरान 1980-81 की कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में औसत वार्षिक वृद्धि 4 प्रतिशत के लगभग रही है, जबकि प्रति व्यक्ति आय में औसत वृद्धि केवल 1.7 प्रतिशत के लगभग ही रही है । अतः प्रति व्यक्ति आय में अपेक्षाकृत कम वृद्धि का वास्तविक कारण तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या ही है।

2. पूँजी निर्माण की धीमी गति 

जनसंख्या विस्फोट की स्थिति में राष्ट्रीय आय का एक बड़ा भाग उपभोग कार्यों पर व्यय कर दिया जाता है। बचत के लिए बहुत कम धनराशि बचती है। कम बचत के कारण पूँजी निर्माण का स्तर निम्न हो जाता है। पूँजी निर्माण के अभाव में विनियोजन का स्तर भी गिर परिणामस्वरूप उत्पादकता का स्तर निम्न हो जाता है। यह निम्न उत्पादकता ही भारत जैसे सभी विकासशील देशों में व्याप्त निर्धनता की जड़ है। ।

(3) खाद्यान्न पूर्ति की समस्या

जनसंख्या में वृद्धि के कारण खाद्यान्नों एवं अन्य भोज्य पदार्थों की बढ़ती हुई माँग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। भारत में 1956 से 2000 के मध्य चाहे खाद्यान्नों का उत्पादन 627 लाख टन से बढ़कर लगभग 2000 लाख टन हो गया है परन्तु खाद्यान्नों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि में केवल नाममात्र की वृद्धि हुई है। आज भी खाद्यान्नों की पूर्ति करने के लिए अरबों रुपयों का खाद्यान्न आयात करना पड़ता है और इस प्रकार वह विदेशी मुद्रा जो पूँजीगत माल क्रय करने के काम में आनी चाहिए थी जिससे हजारों व्यक्तियों को रोजगार मिलता वह खाद्यान्न क्रय करने में लगानी पड़ती है।

(4) अनुत्पादक उपभोक्ताओं के भार में वृद्धि 

सामान्यतः बच्चे, बूढ़े और 15 से 19 वर्ष तक की आयु वर्ग के बेरोजगार व्यक्ति अनुत्पादक उपभोक्ताओं के वर्ग में आते हैं जिनका देश के उत्पादन में किसी प्रकार का अंशदान नहीं होता, अतः जनसंख्या वृद्धि का एक दुष्परिणाम यह है कि देश में आश्रितों की संख्या में काफी वृद्धि

(5) जनोपयोगी सेवाओं के भार में वृद्धि

जब जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है तो इसका दबाव जनोपयोगी संस्थाओं, जैसे—अस्पताल, रेलें, परिवहन, संचार, शिक्षा, विद्युत, जल, मकान आदि पर पड़ता है तथा सरकार को कानून व व्यवस्था तथा सुरक्षा पर अधिक व्यय करना पड़ता है। इस प्रकार सरकारी आय का बहुत बड़ा अंश इन्हीं कार्यों में व्यय हो जाता है जिससे विकास कार्यों के लिए धन नहीं बचता है ।

6) कीमत स्तर में वृद्धि 

जनसंख्या बढ़ने से वस्तुओं की माँग बढ़ती है अर्थात् देश में प्रभावी माँग में उत्पादन में आशातीत वृद्धि नहीं होती। अतः परिणामस्वरूप कीमतों में वृद्धि हो जाती है।

(7) श्रम शक्ति में वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि कार्यशील जनसंख्या में भी वृद्धि करती है, लेकिन रोजगार के साधन उस गति से नहीं बढ़ पाते हैं और इस प्रकार देश में बेरोजगारी की समस्या जो पहले से ही होती है और जटिल हो जाती है। यही कारण है कि भारत में बेरोजगारी की समस्या दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही है । 1956 में भारत में 70 लाख व्यक्ति बेरोजगार थे जो वर्तमान में बढ़कर 6 करोड़ से अधिक हो गये हैं। 

(8) कृषि एवं उद्योग के विकास में बाधा 

बढ़ती हुई जनसंख्या कृषि का तीव्र गति से विकास नहीं होने देती है,क्योंकि परिवार के सदस्य बढ़ने से भूमि का उप-विभाजन एवं अपखण्डन होने लगता है तथा प्रति व्यक्ति कृषि भूमि का औसत कम होने लगता है। इसी प्रकार बढ़ती जनसंख्या से आय, बचत व विनियोग की दर गिर जाती है। इससे पूँजी निर्माण नहीं होता है तथा उद्योगों के विकास में पूँजी की कमी बाधक बन जाती है।

(9) भुगतान सन्तुलन की समस्या  

तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या भुगतान सन्तुलन की समस्या को अधिक गम्भीर बना देती है। अधिक जनसंख्या के कारण निर्यात योग्य आधिक्य कम रहता है लेकिन आयात की आवश्यकता बढ़ जाती है । इस दशा का आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

अतः उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि “वर्तमान परिस्थितियों में जनसंख्या वृद्धि अर्थव्यवस्था को मजबूत न करके कमजोर करती है। "

भारत में जनसंख्या नीति

जनसंख्या नीति से आशय सरकारी मान्यता से है जिसके अनुसार वह जनसंख्या वृद्धि को निरुत्साहित करती है। चूँकि हमारे यहाँ अतिशय जनसंख्या की समस्या है, अतः यहाँ जनसंख्या नीति का स्पष्ट आधार जन्म दर नियन्त्रण सम्बन्धी उपाय काम में लाना है। भारत सरकार की जनसंख्या नीति के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं

(1) विवाह की न्यूनतम आयु 

नवीन जनसंख्या नीति में वैवाहिक आयु की सीमा बढ़ाकर लड़कियों के लिए 18 वर्ष तथा लड़कों के लिए 21 वर्ष कर दी गयी है।

(2) केन्द्रीय सहायता  

भविष्य में राज्यों को 1971 की जनसंख्या के आधार पर ही केन्द्रीय सहायता दी जायेगी। राज्य नियोजन को प्राप्त होने वाली केन्द्रीय सहायता का 8 प्रतिशत परिवार नियोजन उपलब्धियों के अनुसार प्रदान किया जायेगा।

(3) जनसंख्या सम्बन्धी शिक्षा

स्कूली पाठ्यक्रम में जनसंख्या सम्बन्धी शिक्षा को शामिल किया जायेगा जिससे बच्चे प्रारम्भ से ही छोटे परिवार के महत्व को समझ सकें ।

(4) व्यापक प्रचार

परिवार कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा सभी प्रचार माध्यमों को पूरी तरह से प्रयोग किया जायेगा ।

(5) स्वयंसेवी संगठनों का प्रयोग

परिवार कल्याण कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं और संगठन क्षेत्र का अधिक अच्छे रूप में प्रयोग किया जायेगा ।

(6) आयकर में छूट 

यदि कोई व्यक्ति, संस्था या कम्पनी किसी सार्वजनिक संस्था, केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार तथा स्वायत्त संस्थाओं इत्यादि को परिवार कल्याण कार्यक्रमों के लिए दान देते हैं तो उन्हें इस सम्बन्ध में आयकर की गणना में छूट दी जायेगी।

(7) शिशु मृत्यु दर में कमी 

शिशु मृत्यु दर जो 1990 तथा 1991 में 80 प्रति हजार जन्म थी, उसे 2001 तक घटाकर 70 प्रति हजार जन्म करने का लक्ष्य रखा गया है।

(8) महिला साक्षरता पर बल 

परिवार कल्याण कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक लागू करने में महिला साक्षरता एक महत्वपूर्ण घटक है। अतः सरकार ने महिला साक्षरता पर विशेष बल दिया है। 

(9) मौद्रिक प्रोत्साहन 

जनसंख्या नीति की घोषणा के बाद नसबन्दी कराने वाले व्यक्तियों को उपलब्ध कराई जाने वाली प्रोत्साहन राशि में वृद्धि कर दी गई है।

भारत की जनसंख्या नीति की उपलब्धियाँ

(1) जन्म एवं मृत्यु दर में कमी–परिवार कल्याण कार्यक्रम जनसंख्या की वृद्धि नियन्त्रण करने में सफल रहा है। प्रतिदर्श पंजीकरण प्रणाली के अनुमानों के अनुसार कुल प्रजनन दर वर्ष 1981 में 4.5 से घटकर 1993 में 3.5 रह गयी। प्रतिदर्श पंजीकरण प्रणाली के अन्तिम अनुमानों के अनुसार अशोधित जन्म दर 1981 में 33.9 प्रति हजार जनसंख्या से घटकर 1998 में 27.4 प्रति हजार हो गयी है। इसी अवधि में अशोधित मृत्यु दर भी 12.5 प्रति हजार से घटकर 8.9 प्रति हजार है।

(2) मानव और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रमों को उच्च प्राथमिकता – ऊँची जन्म दर व ऊँची शिशु मृत्यु दरों के बीच घनिष्ठ सम्बन्धों को देखते हुए 1985 से मातृत्व और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम को उच्च प्राथमिकता दी गई । मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य के मुख्य लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 1985 से विश्वव्यापी प्रशिक्षण कार्यक्रम (यू. आई. पी) प्रारम्भ किया गया । है

(3) लक्ष्यमुक्त दृष्टिकोण- वर्ष 1996 से परिवार कल्याण कार्यक्रम 'लक्ष्यमुक्त दृष्टिकोण' के आधार पर कार्यान्वित किया जा रहा है। इस दृष्टिकोण में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्तर पर विकेन्द्रीकृत भागीदारी योजना की व्यवस्था द्वारा शीर्ष से गर्भ निरोधक लक्ष्यों को स्थापित करने की प्रणाली को स्थापित करना है।

(4) व्यापक क्षेत्र - भारत संसार में ऐसा पहला देश है जिसने जनसंख्या नियन्त्रण के लिए एक नियोजनात्मक नीति को अपनाया है। इसके क्षेत्र का व्यापक विस्तार किया है। इसके अनुसार जन्म नियन्त्रण, मातृत्व तथा बाल कल्याण, स्वास्थ्य, पौष्टिकता सम्बन्धी कार्यक्रमों को भी शामिल किया गया है । इस प्रकार जनसंख्या नीति का क्षेत्र काफी व्यापक हो गया है।

(5) व्यापक जागरूकता – जनसंख्या नीति के फलस्वरूप कई राज्यों तथा शहरों में परिवार नियोजन की आवश्यकता के लिए काफी सीमा तक जागर कता बढ़ी है। शिक्षित जनसंख्या में परिवार नियोजन के महत्व को अच्छी तरह समझने लगी है ।

(6) व्यापक - संगठन जनसंख्या नीति के परिणामस्वरूप देश में व्यापक संगठन तथा संरचना का निर्माण सम्भव हो सका है। इस नीति के फलस्वरूप देश के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन केन्द्रों, प्रशिक्षण संस्थाओं, अनुसंधान प्रयोगशालाओं, मूल्यांकन एजेन्सियों की स्थापना की गई। यह जनसंख्या नीति की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

भारत की जनसंख्या नीति की कमियाँ

(1) अधिक सैद्धान्तिक जनसंख्या नीति व्यावहारिक कम और सैद्धान्तिक अधिक है जिसके कारण इस नीति को सभी धर्मों तथा वर्गों में समान रूप से लागू करने में कठिनाई होती है।

(2) दोषपूर्ण व अपर्याप्त मौद्रिक प्रलोभन - जनसंख्या नियन्त्रण के लिए जिन मौद्रिक प्रलोभनों की घोषणा की गई है, वे अपर्याप्त तथा दोषपूर्ण हैं ।

(3) राज्य सरकारों की उपेक्षापूर्ण नीति-जनसंख्या नीति के निर्माण का दायित्व केन्द्र सरकार का है किन्तु इसके कार्यकरण का दायित्व राज्य सरकारों का है। राज्य सरकारें अपने इस दायित्व को निभाने में असमर्थ रही हैं।

(4) सीमित खोजा–जनसंख्या नियन्त्रण के सम्बन्ध में की गई खोज सीमित है। गर्भ निरोध के सस्ते, सरल एवं हानिरहित उपायों की खोज के लिये किये जाने वाले प्रयत्न पर्याप्त नहीं हैं।

(5) वर्तमान साधनों का सीमित प्रयोग - भारत में जनसंख्या नियन्त्रण के वर्तमान साधनों का पूर्ण प्रयोग नहीं हो पा रहा है। इसके लिए कई तत्व जिम्मेदार हैं। जैसे- प्रशिक्षित स्टॉफ की कमी, स्टॉफ के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन की कमी, जन संख्या नियन्त्रण के लिए आवश्यक यन्त्रों का सीमित व अनुचित प्रयोग आदि ।

(6) सीमित प्रचार – जनसंख्या नीति का राष्ट्रव्यापी प्रचार नहीं हो सका है। यह बात ग्रामीण क्षेत्रों तथा पिछड़े वर्गों के लिए विशेष रूप से लागू होती है। जनसंख्या नियन्त्रण के लिए जनसहयोग प्राप्त करने में यह नीति असफल रही है ।

जनसंख्या समस्या का समाधान

भारत में जनसंख्या नीति को अधिक सफलता नहीं मिली है । सरकारी आँकड़े यह बताते हैं कि यहाँ 44 प्रतिशत पुनरुत्पादन आयु के दम्पत्ति ही इस परिवार कल्याण या नियोजन के कार्य को अपना रहे हैं। इस प्रकार जनसंख्या नीति का क्रियान्वयन ठीक प्रकार से नहीं हो रहा है। अतः जनसंख्या नीति को प्रभावी बनाने के लिए निम्नांकित सुझाव दिये जा सकते हैं

(1) शिक्षा सुविधाओं का विस्तार किया जाय। जब भारत में शिक्षित व्यक्तियों की संख्या बढ़ेगी तो वे स्वतः ही अपने परिवार को सीमित रखेंगे और इस प्रकार जनसंख्या समस्या के रूप में नहीं रहेगी ।

(2) जनसंख्या नीति के अन्तर्गत बनाये गये नियमों का कठोरता से पालन किया जाय। नियमों का उल्लंघन करने पर उचित सजा दी जाय तथा इसका प्रचार किया जाय ताकि जनमत इसके पक्ष में बन सके। 

(3) परिवार कल्याण कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसका अधिकाधिक प्रचार किया जाय, चल चिकित्सालयों में वृद्धि की जाय, गर्भ निरोध के सस्ते साधनों का मुफ्त वितरण किया जाय।

(4) ग्रामीण विकास योजनाओं के साथ परिवार कल्याण योजनाओं को भी जोड़ देना चाहिए और नियम बना देना चाहिए कि उस विकास खण्ड को अधिक आर्थिक सहायता मिलेगी जो परिवार कल्याण में सहयोग देगा।

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