एकांकी की विशेषताएं लिखिए

दस-हजार एकांकी उदयशंकर भटट जी का एक सामाजिक एकांकी है। इस एकांकी में कुल पाँच पात्रों की योजना की गयी है। तीन पुरुष पात्र हैं -बिसाखाराम, सुन्दरलाल और मुनीम तथा दो स्त्री पात्र हैं- राजो और उसकी माँ। 

बिसाखाराम सीमा प्रान्त के एक नगर का लखपती व्यापारी है। सुन्दरलाल उसका बेटा है, जिसका पठानों के द्वारा अपहरण कर लिया गया है और वे उससे उसके बदले में दस-हजार रुपये की माँग कर रहे हैं। राजो उसकी बेटी है जो सुन्दरलाल से छोटी है और कुवारी है। राजो की माँ उसकी धर्मपत्नी है। 

मुनीम उसके व्यापार का हिसाब-किताब करने वाला एक चतुर नौकर है। सेठ बिसाखाराम एक कंजूस प्रवृत्ति का व्यक्ति है। उसकी मनोवृत्ति धन-लोभ, धन-मोह और कृपणता से ग्रस्त है। इसीलिए आज उसके मन में एक क्षण के लिये पुत्र-प्रेम उत्पन्न होता है तो दूसरे ही क्षण धन-प्रेम एवं धन-मोह उसे अपने बन्धनों में जकड़ लेता है। 

इस प्रकार उसके पुत्र-प्रेम और धन-प्रेम के मध्य मानसिक अन्तर्द्वन्द्व चलता रहता है और वह अन्त तक किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पाता है। उसकी चारित्रिक विशेषताओं का निरूपण निम्नलिखित शीर्ष-बिन्दुओं के अन्तर्गत दृष्टव्य

(1) ईश्वर-पूजा के प्रति स्वार्थी दृष्टिकोण-सेठ बिसाखाराम हिन्दू धर्म का अनुयायी है, लेकिन उसकी ईश्वर-पूजा में सच्ची निष्ठा व आत्म-समर्पण का भाव दिखाई नहीं देता है। एकांकी के प्रारम्भ में ही वह पुत्र-अपहरण और उसकी फिरौती की 'दस-हजार रुपये की माँग से बेचैन दिखाई देता है। 

इस संकट की घड़ी में वह आँखें बन्द करके ठाकुर जी को हाथ जोड़कर संकट से मुक्ति दिलाने के लिये क्षणिक रूप से प्रार्थना करता है। वह व्याकुलता के कारण दूसरे ही क्षण आँखें खोलकर फिरौती की सूचना के पत्र को हाथ में लेकर पढ़ने लगता है और बेटी से मुनीम के आने के विषय में पूँछने लगता है। 

इससे स्पष्ट होता है कि सेठ का ईश्वर-पूजा के प्रति दृष्टिकोण स्वार्थ- -परक है, जिसमें न तो एकाग्रता है, न निष्ठा और न ध्यान-मग्न का भाव है। इसकी पुष्टि के लिये उसका निम्नलिखित कथन दृष्टव्य है

"हे राम जी ! उबारो महाराज। बड़ी विपदा आ पड़ी है। कोई-कोई उपाय सूझे नहीं है (आँखें मींचकर" जी को हाथ जोड़ने लगता है फिर आँखें खोलकर पत्र हाथ में लेकर पढ़ने लगता है।) क्या करूँ ? राजो, राजो री!"

(2) कृपणता- सेठ बिसाखाराम सीमा प्रान्त के एक नगर का लखपती व्यापारी है, लेकिन वह अत्यन्त कृपण (कंजूस) स्वभाव का है। उसमें ‘चमड़ी भले चली जाये, लेकिन दमड़ी न जाये' की प्रवृत्ति पूर्ण रूप से दिखाई देती है। 

एकांकीकार ने संवादों के माध्यम से उसकी' कृपणता' के यथार्थपरक चित्र को अभिचित्रित किया है। सेठ बिसाखाराम को फिरौती की रकम 'दस-हजार' बहुत अधिक प्रतीत हो रही है, ।

वह बनिया-वृत्ति से यह चाहता है कि थोड़े ही रुपयों से या फिर अन्य किसी उपाय से उसका पुत्र सुन्दरलाल पठानों के चंगुल से छूट जावे। वह अपने इन्हीं विचारों को मुनीम के प्रति प्रकट करता हुआ कहता है कि

“दस हजार ! न कम न थोड़ा। अरे और कोई इन्तजाम न हो सके है मुनीम जी ! पुलिस को खबर क्यों न कर दो।" ।

सेठ बिसाखाराम बहुत अधिक चिन्तित है, वह धनार्जन के लिये किये गये अपने कठोर श्रम को याद करता हुआ कहता है कि- “खून की कमाई है, खून की। आज चालीस साल से लगातार दिनरात एक करके रुपया कमाया है।"

उक्त कथन से स्पष्ट है कि उसने धन कमाने के लिए कठोर परिश्रम किया है, अतः धन खर्च करने में उसे बड़े कष्ट की अनुभूति होती है। इसीलिए वह स्वभाव से कृपण हो गया है।

(3) व्यापार के प्रति विशेष लगावव-सेठ बिसाखाराम को व्यापार के प्रति विशेष लगाव है और इस के कारण ही वह आज एक लखपती व्यापारी है। पठानों के द्वारा पुत्र सुन्दरलाल का अपहरण लिये जाने के बाद भी सेठ को पुत्र के प्रति उतनी चिन्ता नहीं है, जितनी कि उसे अपने व्यापार की है। 

उसे मुहम्मद बक्स को रुपया उधार देने, दस हजार के सरकारी बौंड खरीदने, खांड का गौक्षा करने और इबराहीम से उधार रुपयों का तकाजा करने की विशेष चिन्ता है, इसीलिए वह आयतापूर्वक मुनीम की प्रतीक्षा करता है और मनीम से व्यापार सम्बन्धी चर्चा करने के बाद ही उसे कुछ शान्ति मिलती है। 

मुनीम पठानों की चिट्ठी की बात करता है, जबकि सेठ बिसाखाराम व्यापार के हिसाब की बात करता हुआ कहता है कि- “रोकड़ में कितना बाकी हैं ? चौधरी के पास अभी आदमी जो और तकाजा करो।

(4) व्यावसायिक कुशलता-सेठ बिसाखाराम एक कुशल व्यापारी है। वह अपनी व्यावसायिक भालता के कारण ही लखपती बन गया है। वह मुनीम के द्वारा तेरह आने के हिसाब से खांड के सौ बोरे खरीदे जाने पर उससे कहता है कि खांड तो बारह आने चार पाई थी, फिर तेरह आने क्यों खरीदी? 

वह मुनीम से इबराहीम के भाग जाने की बुरी खबर को सुनकर बेचैन हो जाता है और कहने लगता है कि, “मनीम जी, चार हजार नकद हैं। कैसे छोड़े जा सकते हैं ?"

इस प्रकार हम देखते हैं कि सेठ के व्यापार का काम मुनीम देखता है, लेकिन सेट अपनी व्यावसायिक सूझ-बूझ से मुनीम को दिशा-निर्देश देता है और उसके कार्यों पर निगरानी रखता है, यहाँ तक कि स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी वह स्वयं तकाजा करने के लिये जाना चाहता है, उसकी यह सजगता व्यावसायिक कुशलता को दर्शाती है।

(5) सूद-खोरी- सेठ बिसाखाराम को मूलधन की अपेक्षा सूद अधिक प्यारा है। वह लोगों को ऊपया उधार देकर सूद कमाता है। वह सूद के लालच में ही दस हजार के सरकारी बौड खरीदना चाहता है और मुहम्मद बक्स से आने-रुपये का सूद लेकर दो हजार रुपया उधार देना चाहता है इबराहीन ने बार साल से सूद नहीं दिया है, यह सोचकर वह चिन्तित है। 

वह मुनीम से उसके सूट का हिसाब लगाने के लिये कहता है और मुकदमा लड़कर सारी रकम वसूल करने के लिये सोचने लगता है इन सम्बन्ध में उसका निम्नलिखित कथन दृष्टव्य है

"इबराहीम से रुपये का तकाजा किया या नहीं? आज चार साल होने को आये, अभी तक सूद भी नहीं आया। मुकदमा लड़ना पड़ेगा, तब कहीं जाकर वह बेईमान रुपया देगा। 

(6) घन-मोह-सेठ बिसाखाराम धन-मोह के रोग से ग्रस्त है। उसे धन के प्रति इसन मोह हो गया है कि वह एक लखपती व्यापारी होने के बाद भी अपने पुत्र को पठानों के चुंगल से छुड़ा लेने के लिये फिरौती की दस हजार रुपये की रकम देने के लिये किसी भी प्रकार से तैयार नहीं है जद वह दस हजार रुपये का आने-रुपये का सूद जोड़ता है तो व्याकुल हो उठता है। 

मुनीम के द्वारा फिरौती की रकम देकर पुत्र सुन्दर को छुड़ाने का परामर्श दिये जाने पर वह कह उठता है- “आजेरुपये का सूद है नुनीम जी ! (डपट कर) अपने घर से निकालो तो मालूम हो । गाढ़े पसीने की कमाई है दस हजारों हो जायेंगे। हे भगवान! कंगाल कर दिया।"

राजो की माँ (उसकी पत्नी) भी अपने पति सेठ के धन-मोह को देखकर अत्यन्न चिन्चित है। उसे घबराहट हो रही है कि कहीं इनके धन- -मोह के कारण मैं अपना लड़का न खो बैं वह अपने विचारों से मुनीम को अवगत कराती हुयी कहती है

इनकी (पति की तरफ इशारा करके) हालत देखकर तो मेरे जी में ऐसा हो रहा है कि मैं लड़का जो बैलूंगी। कहते हैं, जो होना था सो हो गया और लड़का हाय ? न मालूम इनसे यह कैसे ऐसा कहा गया है।"

(7)अपहरण के लिये पुत्र को दोषी मानना और उसके प्रति क्रोध का भाव-सेठ बिसाखाराम बालों के द्वारा पुत्र का अपहरण किये जाने के सम्बन्ध में पुत्र को दोषी मानता है और उसके प्रति अपना क्रोध प्रकट करता है। 

वह मुनीम के आगे लड़के के प्रति क्रोध प्रकट करते हुये कहता है कि अलका कपूत निकला, जो उनके साथ नई बहू की तरह चला गया और मेरा घर बरबाद कर डाला।

इस सम्बन्ध में उसका निम्नलिखित कथन दृष्टव्य

"कैसा दुष्ट है लड़का। जरा भी लड़ाई नहीं करी। डोली में नई बहू की तरह उनके साथ चला गया मेरी छाती पै मूंग दलने ? कहाँ से लाऊँ दस हजार ? दस हजार ?"

(8) पुत्र-प्रेम-सेठ बिसाखाराम सुन्दरलाल का पिता है। उसका एक ही पुत्र हैं, जिसका पठाना के द्वारा अपहरण कर लिया गया है और उसकी फिरौती के लिये उससे दस हजार रुपये की मांग की जा रही है। उसके धन-मोह ने उसकी पुत्र-प्रेम की भावना को कम कर दिया है,। 

क्योंकि वह लखपती व्यापारी होकर भी अत्यन्त कंजूस प्रवृत्ति का है और वह अपनी खून की कमाई को यों ही बरबाद नहीं करना चाहता है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि उसमें पुत्र के प्रेम की भावना नहीं है। उसकी पत्ती (राजो की माँ) के द्वारा उसे खरी-खोटी सुनाने पर उसका पुत्र-प्रेम जाग उठता है और वह अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त करने लगता है 

'भला मुनीम जी ! मैं क्या कहूँ हूँ कि सुन्दर न आवे ? मैं तो खुद चाहूँ कि लड़का किसी तरह आ जावे। मैं क्या सुन्दर का बाप नहीं हूँ ? तुम्ही बताओ। लड़के के बिना तो घर सूना-सूना सा लगे है। पर दस हजार।"

उक्त कथन से उसका मानसिक अन्तर्द्वन्द्व प्रकट होता है। ऐसा लगता है कि एक क्षण के लिये पुत्र का प्रेम उसके कंजूस हृदय को अपनी ओर आकर्षित करता है तो दूसरे ही क्षण धन का मोह उसे जकड़ लेता है। इस प्रकार के अन्तर्द्वन्द्व के कारण उसकी मानसिक स्थिति एकांकी के प्रारम्भ से लेकर अन्त तक दोलायमान बनी रहती है। 

एकांकीकार ने उक्त मानसिक अन्तर्द्वन्द्व की सृष्टि करके उसके चरित्र के मूल भावों की सुन्दर अभिव्यंजना की है। इसी सन्दर्भ में उसका निम्नलिखित कथन अधिक सटीक जान पड़ता है, जिसमें उसका पुत्र-प्रेम और धन-प्रेम एक साथ साकार हो उठा है। 

सेठ बिसाखाराम मुनीम की बात से सहमति प्रकट करता हुआ कहता है कि- “हाँ, सो तो है ही। मैं भी कब सोया हूँ रात में ? दिन-रात चिन्ता लगी रहती है। सुन्दर मेरी आँखों के सामने झूमता रहे है। उसके बचपन की दात याद आया करे है। इधर इबराहीम रुपया देने में ही नहीं आवे। क्या तुमने उसके सूद का हिसाब लगाया मुनीम जी, कितना बने है उसके ऊपर ?"

(9) पारिवारिक प्रेम की कमी-सेठ बिसाखाराम में परिवार के सदस्यों के प्रति किसी प्रकार का विशेष प्रेम दिखाई नहीं देता है। एकांकी के प्रारम्भ से अन्त तक धन की चिन्ता, धन-प्रेम, धन-मोह और व्यापार में तल्लीनता का भाव उसमें विशेष रूप से दिखाई देता है। 

उसकी लड़की राजो चौदह साल की है, जो अपने भाई के वियोग में छटपटा रही है और बार-बार पिता से भाई को बुलाने का आग्रह करती है, किन्तु सेठ उसकी इच्छापूर्ति के लिये 'हाँ' भी नहीं कहता है। 

पत्नी का करुण क्रन्दन भी उसके हृदय को दया नहीं बना पाता है। उसका अपनी पत्नी के प्रति भी प्रेम दिखाई नहीं देता है। राजो की माँ अर्थात् उसकी पत्नी उससे स्पष्ट रूप से कह देती है कि--

“मैं तो तुम्हारा पैसा जानती ही नहीं । चार कोठियाँ हैं और हम इसी गली में पड़े सड़ रहे हैं।" इस प्रकार हम देखते हैं कि उसका परिवार के प्रति विशेष लगाव या प्रेम नहीं है और परिवार भी उसकी धन-लिप्सा से बहुत दुःखी है।

(10) धार्मिक कार्यों के प्रति उदासीनता-सेठ बिसाखाराम हिन्दू धर्म का अनुयायी है और श्री राम का भक्त है लेकिन उसकी भक्ति स्वार्थपूर्ण है। वह धन के लालच व धन-मोह से इतना ग्रसित है कि धार्मिक कार्यों के प्रति उसकी प्रवृत्ति नगण्य है। उसने लखपती व्यापारी होने के बाद भी कभी तीर्य, जप-तप, धर्म- f-दान आदि के कार्यों को करने की बात ही नहीं सोची है। उसकी पत्नी (राजो की माँ) उसकी इस प्रवृत्ति से बहुत दुःखी है। वह कहती है

'कमाया है तो फायदा ! न तीरथ, न जप-तप, न धर्म । कभी हरिद्वार भी न ले गये।....... आज तीन-चार लाख रुपये के मालिक हो। एक पैसा भी कभी दान नहीं किया। ऐसा रुपया किस काम का?

“सेठ की पत्नी के उक्त कथन से उसकी धार्मिक कार्यों के प्रति उदासीनता का भाव प्रकट होता है।

सेत विसाखाराम की उपर्युक्त चारित्रिक विशेषताओं के विश्लेषण से स्पष्ट है कि बिसानाराम पहले एक कुशल सेठ है और उसके बाद वह पिता व पति है। वह संसार की भौतिकता से भली प्रकार परिचित है और यह जानता है कि सांसारिक जीवन को सुखमय बनाने के लिये धन महत्वपूर्ण है। 

अतः उसका ध्यान हमेशा धन पर केन्द्रित रहता है, उसके धन के प्रति अतिवादी दृष्टिकोण को अभिव्यंजित करना तथा उससे विरत रहने की प्रेरणा देना ही प्रस्तुत एकांकी का मुख्य उद्देश्य रहा है और जिसकी प्राप्ति में एकांकीकार को पूर्ण रूप से सफलता प्राप्त हुई है।

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