नगरीय अधिवास के प्रकार - type of urban settlement

नगरीय अधिवास की जनसंख्या द्वितीयक तथा तृतीयक व्यवसायों में लगी होती है। जनसंख्या भी अधिक होती है। नगरीय अधिवास के मकान पक्के तथा सुन्दर होते हैं। अधिकांश लोग शिक्षित होते हैं।  

नगरीय अधिवास के प्रकार 

नगरीय अधिवासों को निम्नलिखित सात भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

1. पल्ली – किसी नगर के सन्निकट सड़क मार्ग के सहारे कुछ उप- बस्तियाँ बस जाती हैं। इस छोटी नगरीय बस्ती की जनसंख्या 20 से 150 तक होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में इस प्रकार की नगरीय बस्तियाँ पायी जाती हैं।

2. नगरीय गाँव – वे बस्तियाँ जिनकी जनसंख्या 150 से 500 तक होती है, उसे नगरीय गाँव कहते हैं। ऐसे गाँवों में नगरों की कुछ विशेषताएँ पायी जाती हैं, जैसे- दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं की दुकानें, स्कूल, डाकघर, चिकित्सालय आदि । इस प्रकार के गाँव संयुक्त राज्य अमेरिका में पाये जाते हैं।

3. कस्बा – कस्बों की जनसंख्या 500 से 10,000 तक होती है, परन्तु कुछ विद्वान 50,000 से कम जनसंख्या वाले नगरीय अधिवासों को कस्बों की श्रेणी में रखते हैं। कस्बा निकटवर्ती गाँवों का मुख्य केन्द्र होता है और अधिकांश प्राथमिक सेवाओं से युक्त होता है। 

यहाँ बैंक, स्कूल, पोस्ट ऑफिस, पुलिस चौकी, चिकित्सालय, पुस्तकालय, प्रशासनिक कार्यालय, संचार एवं मनोरंजन के साधन आदि होते हैं।

4. नगर – सामान्यतः 50 हजार से 10 लाख तक की जनसंख्या को नगरों के अन्तर्गत रखा जाता है। भारत में एक लाख से अधिक जनसंख्या अधिवास को नगर कहा जाता है। कस्बों एवं नगरों में उनके कार्यों के आधार पर अन्तर परिलक्षित होता है। 

नगर अपने समीपवर्ती क्षेत्र के लिए शिक्षा, उद्योग, व्यापार, परिवहन, प्रशासन, चिकित्सा, मनोरंजन आदि सुविधाएँ प्रदान करता है। जबकि कस्बा का कार्य क्षेत्र स्पष्ट नहीं होता। 

5. महानगर  – 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर महानगर कहलाते हैं। ऐसे नगर प्रदेश की राजधानियाँ, औद्योगिक नगर या व्यापारिक मण्डी होते हैं ।

6. सन्नगर – जब कोई नगर या महानगर फैलकर अपने समीपवर्ती कस्बों या नगरों से मिल जाती है, तो सन्नगर का निर्माण होता है। जैसे- कोलकाता सन्नगर में अलीपुर, हावड़ा, दमदम, बराह नगर, रघुनाल, श्रीरामपुर, हुगली, नैहाटी आदि उपनगर सम्मिलित किये गये हैं।

7. विराट नगर  – जब किसी नगर की जनसंख्या 50 लाख से अधिक होती है, तो उसे विराट नगर या मेगालोपोलिस कहा जाता है । टोकियो, न्यूयार्क, मैक्सिको सिटी, लन्दन, पेरिस, मास्को, मुम्बई, दिल्ली, ब्यूनस आयर्स आदि इसी प्रकार के नगर हैं ।

कार्य के आधार पर नगरीय अधिवास के प्रकार

1. औद्योगिक नगर  - कुछ नगरों का विकास किसी उद्योग के विकास के साथ-साथ हो जाता है, जैसेलौह-इस्पात उद्योग के साथ-साथ भिलाई एक नगर बन गया, इसी प्रकार से जमशेदपुर लौह-इस्पात उद्योग के लिए, सूती वस्त्र उद्योग के लिए अहमदाबाद आदि ।

2. व्यापारिक नगर - व्यापारिक केन्द्र बन जाने से अनेक नगरों का विकास होता है, जैसे- हाँगकाँग, सिंगापुर, कोलकाता, सहारनपुर आदि ।

3. प्रशासनिक नगर  - प्रशासनिक केन्द्र बनने पर ऐसे नगरों का विकास होता है, जैसेभोपाल, चण्डीगढ़ आदि ।

4. पत्तन या बन्दरगाह - सागर तट पर आयात-निर्यात व्यापार के फलस्वरूप ऐसे नगरों का विकास होता है, जैसे- विशाखापट्टनम् आदि।

5. प्रतिरक्षा नगर – सैनिक छावनियाँ नगरों के रूप में विकसित हो जाती हैं, जैसे- मेरठ, बरेली आदि ।

6. शिक्षा नगर  - कई नगर अनेक प्रकार की शिक्षा देने के केन्द्र के रूप में प्रसिद्धि पाकर बड़े नगर बन जाते हैं। प्राचीन काल में नालन्दा तथा तक्षशिला ऐसे ही नगर थे। आजकल अलीगढ़, वाराणसी, इलाहाबाद आदि हैं।

7. स्वास्थ्य केन्द्र - अपनी उत्तम जलवायु, प्राकृतिक दृश्यों आदि के कारण अनेक स्थान स्वास्थ्य केन्द्र के रूप में विकसित हो जाते हैं, जैसे- दार्जिलिंग, देहरादून, शिमला, माउण्ट आबू आदि। 

8. धार्मिक नगर  - धार्मिक दृष्टि से अनेक पवित्र नगरों का विकास हुआ है, जैसे - वाराणसी, प्रयाग, मक्का, मदीना, वेटिकन सिटी, रोम, हरिद्वार आदि ।

9. खनन केन्द्र  - खनिज पदार्थों के खनन क्षेत्रों में नगरों का विकास होता है, जैसे- कालगुर्डी, कूलगार्ली, रानीगंज, झरिया आदि ।

10. मत्स्य ग्रहण केन्द्र  - सागर तट पर मत्स्य केन्द्र नगरों के रूप में विकसित हो जाते हैं, जैसे- बैन्कूवर, कोपेनहेगन आदि ।

11. निवास नगर – महानगरों के आस-पास अनेक निवास नगरों का विकास हो जाता है, जैसे- दिल्ली के आस-पास गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गाँव आदि ।

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