आदिकाल का दूसरा नाम है - Hindi sahitya

आदिकाल को हिंदी साहित्य मे प्रारंभिक काल या वीरगाथा काल के नाम से भी जाना जाता है। आदिकाल जिसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी अनुपस्थित है। आदिकाल का काल विभाजन के बारे में विस्तार से चर्चा करने वाले है।

आदिकाल हिंदी साहित्य का प्रारम्भिक काल है जिस समय हिंदी साहित्य का विकाश हुआ था। इस काल में ऐसी रचनाएँ हुई। जिसमे राजा महाराज की वीरता के बारे मे बताया जाता था।

आदिकाल का दूसरा नाम है

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा आदिकाल को वीरगाथा काल के रूप में स्वीकार किया गया है। प्रारम्भ में दिया गया नाम यह सूचित करता है, की लोगों के द्वारा प्रारम्भिक काल का नाम आदिकाल कहना उचित है। लेकिन आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार इसे वीरगाथा काल कहना उचित होगा, क्योकि इस काल में वीरता से भरी घटनाएं हुई थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल परिस्थिति के आधार पर वीरगाथा काल के नामकरण को उचित मानते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के द्वारा किया गया हिंदी काव्य के इतिहास का विभाजन हमेशा से मान्यता प्राप्त रहा है। यहां पर आदिकाल के नामकरण पर क्या दृष्टिकोण थे। उस पर चर्चा करते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का इस संबंध में कथन है - राजा भोज की सभा में खड़े होकर राजा की दानशीलता का लम्बा-चौड़ा वर्णन करके लाखों रुपये पाने वाले कवियों का समय बित चूका था।

राज दरबारों में शास्त्रार्थियों की भी वह धूम नहीं रह गयी थी। पांडित्य के चमत्कार पर पुरस्कार का विभाजन भी ढीला पड़ गया था। इस समय जो भाट या चारण किसी राजा के पराक्रम विजय, शत्रु-कन्या-हरण आदि का आलाप करता था या रण-क्षेत्र में वीरों के हृदय में उत्साह की तरंगें भरा करता था, वहीं सम्मान पाता था।

हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन में लेखकों ने अलग अलग नाम रखा हैं। जिसके कारण हमेशा से इतिहास विभाजन के नामकरण में भ्रान्ति रही है।

आदिकाल का इतिहास

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के अनुसार हिंदी साहित्य का इतिहास मनुष्य की या जनता की चित्तवृत्ति का ही इतिहास है। जनता की चित्तवृत्ति में परिवर्तन के साथ ही साहित्य के स्वरूप में परिवर्तन देखने को हमें मिलता है।

आचार्य के अनुसार जनता की चित्तवृत्ति का निर्माण तत्कालीन परिस्थितियों से होता है। अतः उनका यह भी मानना है की साहित्य के इतिहास का अध्ययन तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ किया जाना चाहिये।

आचार्य शुक्ल ने यह स्वीकार किया है की जिस काल खंड में किसी विशेष प्रवृत्ति की प्र्धानता हो, उसे अलग कालखंड माना जाए। प्रवृत्ति का निर्धारण उस काल में पाई जाने वाली प्रसिद्ध पुस्तकों के आधार पर की जानी चाहिए।

इसी आधार पर उन्होंने प्रथम कालखंड में वीरगाथा की प्रवृत्ति प्रधान मानते हुए इस काल का नाम वीरगाथा काल रखा। इस प्रकार शुक्ल जी की काल विभाजन पध्दति के दो आधार हैं - 

  1. प्रधान प्रवृत्ति 
  2. ग्रंथों की प्रसिद्धि

शुक्ल के अनुसार जब हम किसी काल का नाम रखते हैं तब उस कालखंड में प्रधान प्रवृत्ति के साथ-साथ अन्य प्रवित्तियाँ भी मुख्य रूप से होते हैं। लेकिन हमें काल के नाम का निर्धारण प्रधान प्रवृत्ति के आधार पर किया जाना चाहिए। इसलिए आदिकाल को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का वीरगाथा काल का नाम दिया है।

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