बाजार किसे कहते हैं?

 बाजार का अर्थ एवं परिभाषा

सामान्य बोलचाल की भाषा में, बाजार शब्द का अर्थ उस स्थान विशेष से लगाया जाता है। जहाँ पर किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता एकत्रित होकर वस्तुओं के क्रय-विक्रय का कार्य करते हैं। इस प्रकार सामान्य अर्थ में बाजार के लिए निश्चित स्थान तथा खरीदने एवं बेचने वालों की उपस्थिति जरूरी है। 

परन्तु अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया जाता है। इस व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण के अनुसार बाजार के लिए किसी स्थान विशेष का होना आवश्यक नहीं है। बल्कि अर्थशास्त्र में जिस क्षेत्र तक वस्तुओं की माँग और पूर्ति होती है। वह समस्त क्षेत्र उन वस्तुओं का बाजार कहलाता है। 

दूसरे शब्दों में आर्थिक दृष्टि से सामान्यतया बाजार का अर्थ उस सम्पूर्ण क्षेत्र से लिया जाता है। जिसमें उस वस्तु के क्रेता तथा विक्रेता फैले हुए हों और उनमें प्रतिस्पर्द्धात्मक सम्पर्क हो। बाजार शब्द की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न हैं

1. कुर्नों के अनुसार - अर्थशास्त्री बाजार शब्द का अर्थ, किसी स्थान विशेष से नहीं लेते, जहाँ पर वस्तुएँ खरीदी एवं बेची जाती हैं। बल्कि बाजार का अर्थ उस समस्त क्षेत्र से लेते हैं जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं के बीच इस प्रकार का स्वतंत्र सम्पर्क होता है कि एक वस्तु की कीमत की प्रवृत्ति सरलता तथा शीघ्रता से समान होने की पायी जाती है।

प्रो. चैपमेन के अनुसार - बाजार शब्द आवश्यक रूप से सदैव किसी स्थान की ओर संकेत नहीं करता, बल्कि यह सदैव किसी वस्तु या वस्तुओं तथा क्रेताओं और विक्रेताओं की ओर संकेत करता है। जो कि प्रत्यक्ष रूप से प्रतियोगिता करते हैं।

3. बेन्हम के अनुसार - बाजार कोई भी वह क्षेत्र होता है, जिसमें क्रेता एवं विक्रेता प्रत्यक्ष अथवा व्यापारियों द्वारा एक-दूसरे के इतने निकट सम्पर्क में होते हैं कि बाजार के एक भाग में प्रचलित मूल्य दूसरे भाग में प्रचलित मूल्य को प्रभावित करते हैं। 

4. केयर्नक्रास के अनुसार - बाजार का अर्थ क्रेताओ तथा विक्रेताओं के बीच किसी साधन या वस्तु के लेन-देन का जालसूत्र है। 

5. जेवेन्स के अनुसार - बाजार शब्द का अर्थ व्यक्तियों के किसी भी ऐसे समूह के लिए होता है, जिसमें आपस में व्यापारिक संबंध हों तथा जो किसी वस्तु का विस्तृत सौदा करते हैं।

6. प्रो. जे. के. मेहता के शब्दों में बाजार शब्द एक ऐसी दशा को बताता है, जिसमें किसी वस्तु की माँग उस स्थान पर की जाती है। जहाँ पर वह बेचने के लिए प्रस्तुत की जाती है। 

उपर्युक्त परिभाषाओं में कूर्नो की परिभाषा सबसे अच्छी है, क्योंकि इसमें बाजार के समस्त तत्व उपस्थित हैं। 

बाजार की विशेषताएँ अथवा प्रमुख तत्त्व 

बाजार की प्रमुख विशेषताएँ अथवा तत्व निम्नलिखित हैं

1. एक क्षेत्र - अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का प्रयोग किसी क्षेत्र विशेष के लिए नहीं किया जाता है। बल्कि उस क्षेत्र से है जहाँ क्रेता और विक्रेता फैले हुए होते हैं तथा उनमें आपस में प्रतियोगिता होती है। कूर्नो ने बाजार को क्षेत्र, प्रो. केयर्नक्रास ने 'लेन-देन का जालसूत्र, स्टोनियर व हेग ने 'संगठन' बताया है।

2. एक वस्तु – अर्थशास्त्र में जब हम बाजार शब्द का प्रयोग करते हैं तो एक ही प्रकार की वस्तुएँ होनी चाहिए, जैसे- कपड़े का बाजार, चूड़ी का बाजार, सब्जी का बाजार, अनाज का बाजार आदि।

3. क्रेता एवं विक्रेता – क्रेताओं एवं विक्रेताओं की उपस्थिति, बाजार के लिए आवश्यक है, क्योंकि क्रेता एवं विक्रेता दोनों ही बाजार के अभिन्न अंग होते हैं, चाहे उनकी संख्या कितनी ही क्यों न हो। अतः क्रेता एवं विक्रेता में से किसी एक की अनुपस्थिति में बाजार की कल्पना नहीं की जा सकती है।

4. स्वतंत्र प्रतियोगिता - बाजार के लिए यह आवश्यक है कि क्रेताओं एवं विक्रेताओं के बीच स्वतंत्र प्रतियोगिता हो। दूसरे शब्दों में, सौदा करते समय किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।

5. एक मूल्य – बाजार में जब क्रेताओं एवं विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता होती है। तब वस्तुओं के मूल्यों में समान होने की प्रवृत्ति होती है। कीमतों में भिन्नता होने से माँग और पूर्ति की शक्तियाँ पुनः क्रियाशील होने लगती हैं और कीमत में फिर से समानता आती है।

6. बाजार का पूर्ण ज्ञान - बाजार में वस्तु का एक ही मूल्य हों, इसके लिए क्रेता-विक्रेता दोनों को ही बाजार का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। बाजार का अपूर्ण ज्ञान होने के कारण उसको वस्तुएँ उचित मूल्य पर प्राप्त होने में कठिनाई होती है। 

Related Posts