मुद्रा का महत्व बताइये

मुद्रा का महत्व

आधुनिक आर्थिक जीवन में हम मुद्रा से अधिक महत्वपूर्ण वस्तु की कल्पना नहीं कर सकते। प्रो. मार्शल के शब्दों में मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर अर्थ विज्ञान केन्द्रित है।

मुद्रा के महत्व या गुण या लाभ निम्नलिखित हैं -

 1. आधुनिक बाजार व्यवस्था का आधार - मुद्रा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके कारण बड़े पैमाने की अर्थव्यवस्था स्थापित हुई है। क्योंकि बड़े कारखानों में जितना माल उत्पन्न होता है, वह सारा मुद्रा के बदले तत्काल बिक जाता है और प्राप्त हुई मुद्रा से फिर कच्चा माल खरीदा जाता है। उससे नया माल बनाया जाता है। इस प्रकार मुद्रा के माध्यम से पूँजी का कई बार आवर्तन किया जा सकता है और अधिक लाभ कमाया जा सकता है तथा बाजार अर्थव्यवस्था का विस्तार किया जा सकता है। 

2. साख का निर्माण - आधुनिक व्यवसाय का सारा ढाँचा साख पर आधारित है। बैंकिंग संस्थाएँ व्यापार तथा उद्योग को पूँजी उधार देकर, आर्थिक तंत्र की जड़ों को हरा भरा रखने का प्रयत्न करती हैं। इस सारी साख का आधार मुद्रा है। मुद्रा के बिना साख-व्यवस्था का अन्त हो जाएगा, अतः मुद्रा वर्तमान अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक तेल तथा ईंधन का काम करती है।

3. स्वतंत्र समाज - मुद्रा ने मनुष्य को आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक स्वतंत्रता प्रदान की है। मुद्रा के कारण समाज में निम्न क्षेत्रों में क्रांति आयी है -

आर्थिक क्षेत्र में क्रांति - श्रमिक तथा उत्पादक को अपने श्रम का प्रतिफल मुद्रा में मिलता है। जिसके द्वारा वह समाज में उत्पन्न होने वाली किसी भी वस्तु को खरीद सकता है। वास्तव में, मुद्रा का मालिक, चाहे वह किसी वर्ग का क्यों न हो, बादशाह से कम नहीं है। क्योंकि वह मुद्रा के बदले मनचाही वस्तु ले सकता है। तथ्य यह है कि मुद्रा अपने गुणों के कारण मनुष्य की सामाजिक प्रतिष्ठा का मापदण्ड बन गई है। 

राजनीतिक क्षेत्र में क्रांति - वर्तमान प्रजातांत्रिक सरकारें जब कर लगाती हैं और नागरिक अपनी आय का एक भाग मुद्रा के माध्यम से कर के रूप 'चुकाता है तब उसमें अपने आप यह भावना पैदा होती है कि वह प्रजातंत्र को ठीक चलाने में कुछ योगदान दे रहा है। इसलिए उसे कुछ अधिकार मिलने चाहिए।

सामाजिक क्षेत्र में क्रांति - मुद्रा के माध्यम से ही सम्पत्ति का विनियोग किया जाता है। अनेक विश्वविद्यालय, अनुसंधान केन्द्र, चिकित्सालय तथा समाज कल्याण संस्थाएँ धनिकों तथा सरकार के अनुदानों से चल रही हैं। इनसे निकलने वाली शिक्षा, स्वास्थ्य एवं विकास की ज्योति- रश्मियाँ देश के भौतिक एवं मानसिक अंधकार को दूर करने में सहायक होती हैं। इन सबके लिए मुद्रा एक कल्पवृक्ष की भाँति सब साधन जुटा देती है।

4. पूँजी निर्माण - मुद्रा एक तरल सम्पत्ति है जिसे बैंक में सुरक्षित जमा रखा जा सकता है और ब्याज भी कमाया जा सकता है। मुद्रा में बचत करने के कारण लोगों का संबंध बैंक जैसी महत्वपूर्ण संस्था से हो जाता है जिसके माध्यम से वे किसी भी व्यक्ति को कहीं भी भुगतान कर सकते हैं। मुद्रा के माध्यम से ही उत्पादन कर पूँजी का निर्माण किया जा सकता है। अतः मुद्रा, पूँजी निर्माण का सर्वोत्तम साधन है।

5. प्रगति की सूचक - यदि किसी देश की मुद्रा की कीमत गिरती रहती है तो यह समझना सही होगा कि उस देश की आर्थिक स्थिति कमजोर है। इसके विपरीत, जिन देशों की मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी मानी जाती है। इस प्रकार, मुद्रा किसी देश की प्रगति का सूचक होती है।

6. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग - मुद्रा के प्रयोग से अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को भी बढ़ावा मिला है, क्योंकि मुद्रा के माध्यम से विभिन्न देशों में आपसी लेन-देन पहले से बहुत बढ़ गया है। बल्कि उनमें राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान की गति भी तीव्र हो गई है।

7. पूँजी की गतिशीलता - मुद्रा बहुत हल्की होने के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से भेजी जा सकती है। आजकल तो बैंकों के माध्यम से पूँजी का सरलता से स्थानांतरण किया जा सकता है, उसे मुद्रा के रूप में भेजने की आवश्यकता नहीं है। अन्य वस्तुएँ, जैसे - मकान, भूमि या अन्य स्थाई सम्पत्ति को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना असंभव है।

8. पूँजीवाद का आधार - मुद्रा वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था का आधार है। क्योंकि पूँजीवादी व्यवस्था में बहुत बड़े पैमाने पर पूँजी एकत्रित करनी पड़ती है तथा अत्यधिक बड़े पैमाने पर उत्पादन एवं विक्रय किया जाता है जो मुद्रा के बिना संभव नहीं है।

9. वस्तु-विनिमय के दोषों से मुक्ति - आधुनिक मुद्रा ने विनिमय के माध्यम तथा मूल्य के मापक होने के कारण सभी प्रकार की सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय को सरल बना दिया है। मुद्रा ने विभाजन की समस्या का भी अन्त कर दिया है। मुद्रा ने मनुष्य को वस्तु-विनिमय की कठिनाइयों से सर्वथा मुक्त कर दिया है। 

10. सामाजिक कल्याण का प्रतीक - मुद्रा के माध्यम से ही किसी देश की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय का माप होता है। यदि प्रति व्यक्ति वास्तविक आय बढ़ती रहती है तो देश आर्थिक कल्याण की ओर अग्रसर होता है, अन्यथा नहीं। मुद्रा के द्वारा ही व्यक्ति अधिकतम संतुष्टि प्राप्त कर सकता है। जो उसके सामाजिक कल्याण का प्रतीक है।

अर्थशास्त्र के विभिन्न विभागों में मुद्रा का महत्व

अर्थशास्त्र के विभिन्न विभागों में मुद्रा का महत्व निम्नांकित हैं -

1. उपभोग क्षेत्र - आर्थिक क्रियाओं में उपभोग का सबसे पहला स्थान है। मनुष्य जिस वस्तु का उपभोग करना चाहता है। उसकी खरीद की मात्रा वस्तु की कीमत पर निर्भर करती है और कीमत के निर्धारण में मुद्रा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के उपभोग की मात्रा आय पर निर्भर करती है और आय का अनुमान मुद्रा से होता है। अर्थशास्त्र के विभिन्न

2. उत्पादन क्षेत्र - आधुनिक युग में उत्पादन अनेक तत्वों के सहयोग का परिणाम है, जिनमें भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं साहस का समावेश होता है। इन सभी तत्वों के मूल्य का सामूहिक योग लागत होती है, जो मुद्रा में निर्धारित की जाती है। इसी प्रकार उत्पादन के लिए जितनी वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदी जाती हैं। वे भी मुद्रा के बदले प्राप्त की जाती हैं। अतः उत्पादन की कोई भी क्रिया मुद्रा के बिना संभव नहीं है।

3. विनिमय क्षेत्र - वस्तुओं के उत्पादन के बाद उसका विक्रय करना होता है। मुद्रा प्रत्येक वस्तु की लागत का अनुमान लगाने में सहायक होती है और लागत के आधार पर ही वस्तु का मूल्य निर्धारित किया जाता है। वास्तव में सम्पूर्ण विक्रय व्यवस्था ही मुद्रा पर आधारित है। अत: मुद्रा सम्पूर्ण विनिमय तंत्र का आधार है। 

4. वितरण क्षेत्र - वस्तुओं का उत्पादन कर लेने के पश्चात् भूमि का लगान, पूँजी का ब्याज, श्रमिक की मजदूरी, संगठक का वेतन तथा साहसी के लाभ का निर्धारण तथा वितरण करना आवश्यक होता है। इन सब का प्रतिफल मुद्रा में ही निर्धारित होता है। अतः वितरण की क्रियाओं का आधार भी मुद्रा ही है।

5. राजस्व क्षेत्र - कल्याणकारी राज्यों की स्थापना के साथ ही राज्य का आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप बढ़ गया है। सरकार उचित कर निर्धारण, व्यय तथा ऋण की नीति के द्वारा आर्थिक क्रियाओं को प्रभावित कर सकती है। किन्तु मुद्रा के अभाव में सार्वजनिक व्यय और आय की क्रियाएँ संचालित नहीं की जा सकतीं।

उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि आधुनिक युग में मनुष्य की सभी आर्थिक क्रियाएँ मुद्रा के बिना संभव नहीं हैं। इस दृष्टि से मार्शल का कथन सत्य ही प्रतीत होता है कि मुद्रा वह धुरी है। जिसके चारों ओर अर्थविज्ञान चक्कर लगात है।

Related Posts