पत्र मुद्रा किसे कहते हैं?

मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिससे हम अन्य वस्तु का क्रय विक्रय करते हैं। मुद्रा आज के समय सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक लेनदन का जरिया है। आज के समय मुद्रा के बिना जीवन का गुजारा नहीं हो सकता हैं। यदि आपके पास मुद्रा है तो आप को आसानी से सभी सामान मिल सकते हैं।

पत्र मुद्रा किसे कहते हैं 

कागजी नोटों के रूप में निर्गमित मुद्रा को 'पत्र - मुद्रा' कहा जाता है। पत्र - मुद्रा पर किसी सरकारी अधिकारी अथवा केन्द्रीय बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं। अलग-अलग नाटों का आकार एवं रंग अलग-अलग निर्धारित किया जाता है तथा कागज के नोटों पर नम्बर भी अंकित रहता है। भारत में 1 रुपये का नोट भारत सरकार द्वारा निर्गमित किया जाता है -

जिस पर वित्त मंत्रालय के सचिव के हस्ताक्षर होते हैं तथा 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 एवं 1000 रुपये के नोटों का निर्गमन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है। इन नोटों पर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं।  को दो भागों में बाँटा जा सकता है -

  1. प्रतिनिधि पत्र मुद्रा 
  2. प्रादिष्ट पत्र मुद्रा

प्रतिनिधि पत्र मुद्रा – जब निर्गमित पत्र- मुद्रा के पीछे ठीक इसके मूल्य के बराबर सोना व चाँदी, आरक्षित निधि के रूप में रखे जाते हैं तब इस मुद्रा को प्रतिनिधि पत्र - मुद्रा कहा जाता है। निर्गमित पत्र- मुद्रा क्योंकि उस धातु कोष का प्रतिनिधित्व करती है, जिसके आधार पर पत्र- मुद्रा निर्गमित की जाती है इसलिए इसे प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं। 

प्रतिनिधि पत्र मुद्रा भी दो प्रकार की होती है -

1. परिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा - जब किसी देश में पत्र- मुद्रा इस प्रकार जारी की जाती है कि उसको जनता किसी भी समय सोने अथवा चाँदी में परिवर्तित कर सकती है, तब इस प्रकार की मुद्रा को परिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र-मुद्रा कहते हैं। इस प्रकार की गारण्टी दिये जाने पर जनता का विश्वास पत्र- मुद्रा में बना रहता है तथा केवल आवश्यकता पड़ने पर ही वह पत्र-मुद्रा को बहुमूल्य धातुओं में परिवर्तित करती है।

2. अपरिवर्तनशील प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा – जब किसी देश में पत्र- मुद्रा इस प्रकार जारी की जाती है कि सरकार उसे सोने या चाँदी में परिवर्तित करने की कोई गारण्टी नहीं देती है, तब इस प्रकार की मुद्रा को अपरिवर्तनशील पत्र- मुद्रा कहते हैं। दूसरे शब्दों में, नोटों को सिक्कों में परिवर्तित करने की कोई गारण्टी सरकार द्वारा नहीं दी जाती है। इस प्रकार मुद्रा पूर्णत: सरकार की साख पर आधारित होती है।

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रतिनिधि पत्र- मुद्रा में जनता का विश्वास होता है, लेकिन यह प्रणाली बेलोचदार एवं खर्चीली होती है, क्योंकि बहुमूल्य धातु कोष के अभाव में सरकार नोटों का निर्गमन नहीं कर सकती है। 

तथा देश में मुद्रा की अपर्याप्तता के कारण आर्थिक विकास की योजनाएँ क्रियान्वित नहीं हो पाती हैं। इसके अलावा स्वर्ण या रजत का एक विशाल भंडार व्यर्थ में रखना पड़ता है।

प्रादिष्ट पत्र मुद्रा – यह भी पत्र - मुद्रा का ही एक रूप है। प्रादिष्ट मुद्रा प्राय: संकटकालीन स्थिति में ही निर्गमित की जाती है। इसीलिए इसे कभी-कभी संकटकालीन मुद्रा भी कहा जाता है। प्रथम महायुद्ध के प्रारम्भ सन् 1914 में इसे अस्थायी आधार पर जारी किया जाता था।

किन्तु अब यह स्थायी रूप धारण कर चुकी है। प्रादिष्ट मुद्रा के पीछे किसी भी प्रकार का सुरक्षित कोष नहीं रखा जाता है और न ही सरकार पत्र मुद्रा को धातु में परिवर्तित करने की गारण्टी ही देती है। 

प्रादिष्ट मुद्रा का एक उदाहरण, अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान ग्रीनवैक्स नामक मुद्रा का जारी करना है इसी प्रकार, प्रथम महायुद्ध के पश्चात् जर्मनी में भी कागजी मार्क मुद्रा जारी की गयी थी जो एक प्रकार की प्रादिष्ट मुद्रा ही 1 थी।

प्रादिष्ट मुद्रा इसलिए अच्छी मानी जाती है क्योंकि इसमें संकटकालीन परिस्थिति में बहुमूल्य धातुओं का शोष रखने की आवश्यकता नहीं होती है, किन्तु जब सरकार इस प्रकार की पत्र- मुद्रा जारी करती है, तो इससे अत्यधिक मुद्रा प्रसार का भय बना रहता है, जिससे अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है।

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