समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ
समष्टि अर्थशास्त्र की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं -
1. समूह की संरचना को महत्व न देना – सामान्यतया, समष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत समूह के आकार-प्रकार का ही अध्ययन किया जाता है न कि समूह की संरचना का।
समूह की संरचना के लिए समूह की बनावट और उसके समस्त अंगों की सम्पूर्ण जानकारी आवश्यक है। अन्यथा इसके अभाव में इस सम्बन्ध में की जाने वाली भविष्यवाणियाँ गलत होंगी। इसके अतिरिक्त इस सम्बन्ध में जो भी सुझाव दिये जायेंगे, वे सुझाव भी निरर्थक होंगे।
अत: इस सम्बन्ध में यह कहना उपयुक्त होगा कि समूह के आधार पर भविष्यवाणी करना अथवा सुझाव देना, तब तक सही नहीं है, जब तक समूह की बनावट एवं उसके अंगों के स्वभाव तथा परस्पर सम्बन्ध की समस्त जानकारी हासिल न कर ली जाये।
2. व्यक्तिगत इकाई महत्वहीन – समष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत, व्यक्तिगत इकाइयों की तुलना में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है।
लेकिन ऐसा करने से एक दोष उत्पन्न हो जाता है कि जिन छोटी-छोटी आर्थिक इकाइयों के योग से, सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की दीवार खड़ी की गयी है तथा जो इकाइयाँ इस दीवार में नींव का कार्य कर रही हैं, उनके महत्व एवं अस्तित्व की उपेक्षा कर दी जाती है।
3. निष्कर्षों का व्यावहारिक न होना–समष्टि अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण मात्राओं का अध्ययन किया जाता है किन्तु समूह के आर्थिक विश्लेषण के आधार पर निर्मित नीतियाँ कभी-कभी गलत परिणाम दे देती हैं।
जैसे - यदि सामान्य कीमत निर्देशांक को स्थिर देखकर हम यह कहने लगें कि वस्तुओं की कीमत स्थिर है।तो हमारा अनुमान गलत होगा, क्योंकि कुछ वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होने तथा कुछ की कीमतों में कमी होने पर सामान्य कीमत स्तर तो स्थिर रहेगा। लेकिन व्यक्तिगत वस्तुओं की कीमतों में उच्चावचन होगा।
4. समूह की इकाइयाँ, व्यक्तिगत इकाइयों का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती हैं – समष्टि अर्थशास्त्र की अन्तिम सीमा यह है कि समूह की इकाइयाँ व्यक्तिगत इकाइयों का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती हैं।
उदाहरण के लिए, आय-स्तर के बढ़ने से कुछ वस्तुओं का उपभोग बढ़ता है, तो कुछ का उपभोग घट या कम भी हो सकता है। इस प्रकार की अनेक असमानताओं के कारण समूह व्यक्तिगत मात्रा का सही-सही निष्कर्ष प्रस्तुत करने में असमर्थ है।