विज्ञापन की भाषा- vigyapan ki bhasha

 विज्ञापन की भाषा' पर एक टिप्पणी लिखिए।

आज के युग में विज्ञापनों का अत्यधिक महत्व है। जूते-चप्पल से लेकर टाई- रूमाल तक विज्ञापित हो रही है। लिपिस्टिक, पावडर, नेल पॉलिश, माथे की बिंदी विज्ञापनों का विषय है। नमक जैसी आम इस्तेमाल की वस्तुएँ भी विज्ञापनों से अछूती नहीं रह पायी हैं। 

विज्ञापन तैयार करने से पहले उद्यमी के दिमाग में यह बात स्पष्ट होती है कि उसका उपभोक्ता कौन है ? और अपने विज्ञापनों में उद्यमी विज्ञापन एजेंसी उसी उपभोक्ता समूह को संबोधित करती है। उस समूह की रुचि, आदतों, महत्वाकांक्षाओं को लक्ष्य करके ही विज्ञापन की भाषा का चुनाव किया जाता है। 

भाषा के साथ विज्ञापनों का चित्रांकन भी अत्यंत प्रभावी ढंग से किया जाता है। विज्ञापन की भाषा अत्यंत प्रतीकात्मक होती है। विज्ञापन की भाषा में हास्य, लय, भय आदि का समावेश न कर लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है। विज्ञापन की प्रभावी भाषा उसे ही माना जा सकता है जो मानवीय इच्छाओं, भावनाओं एवं कामनाओं को स्पर्श करें।

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