पादप जीवन में जल का महत्व - padap jeevan mein jal ka mahatva

जीवों की उत्पत्ति एवं विकास जलीय पर्यावरण में हुई है तथा विभिन्न प्रकार के जीव जल पर निर्भर होते है। चूँकि जल पौधों एवं जन्तुओं के जीवन के लिए अति आवश्यक होता है। अत: जल को जीवन का द्रव माना गया है। जल जीवद्रव्य का संरचनात्मक संघटक अवयव होता है। 

पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीवधारियों के शरीर का लगभग 60-90% भाग जल का बना होता है यह विभिन्न जैविक प्रक्रियाओं में एक अभिकर्मक के रूप में भाग लेता है अथवा अन्य उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। उसी प्रकार सभी जैविक अभिक्रियाएँ जल की उपस्थिति में ही होती हैं। 

पादप जीवन में जल का महत्व

जल जीवद्रव्य का 60 से 90% भाग बनाता है। जल की अनुपस्थिति में जीवद्रव्य अक्रियाशील होकर मृत हो जाती है। जल पोषक पदार्थों के लिए एक सार्वत्रिक विलायक की भाँति कार्य करता है। अतः यह विभिन्न प्रकार के पदार्थों के लिये वाहक का कार्य करता है। प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में जल, हाइड्रोजन के स्रोत के रूप में कार्य करता है। 

जल श्वसन का अन्तिम उत्पाद होता है तथा यह श्वसन की दर में वृद्धि करता है। जल-अपघटन एवं संघनन जैसी अभिक्रियाएँ जल पर निर्भर होती हैं। जल पादप कोशिकाओं के स्फीति दाब को बनाये रखता है। यह स्फीत दाब पादपों के जीवन की विभिन्न प्रक्रियाओं के सुचारू रूप से जारी रखने के लिए आवश्यक होता है। 

जल बीजाणुओं, फल एवं बीजों के प्रकीर्णन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जल युग्मकों की गतिशीलता के लिए आवश्यक होता है। जल उच्च ताप से पौधों की सुरक्षा करके उसके तापक्रम पर नियंत्रण रखता है। पौधों के बहुत से कार्बनिक संगठक पदार्थ जल की अनुपस्थिति में अपने भौतिक एवं रासायनिक गुणों को खो देते हैं।

पौधों के शरीर में जल मृदा से मूल तंत्र के माध्यम से प्रवेश करता है। पौधों के शरीर के अन्दर पहुँचने के पश्चात् विभिन्न कोशिकाओं एवं ऊतकों के द्वारा इसे पौधों के अन्य भागों तक पहुँचाया जाता है। पौधे जल को अपने बाह्य वातावरण से अवशोषित करते हैं और कुछ का उपयोग करके शेष जल को बाहर निकाल देते हैं। इस दौरान पौधों में कई भौतिक तथा जैविक क्रियाएँ होती हैं।

विसरण

जब किसी विलेय (Solute) को किसी विलायक (Solvent) में रखा जाता है, तो विलेय, विलायक में घुलने लगता है तथा इसके कण वितरित होकर सम्पूर्ण पात्र (Container) में समान रूप से फैल जाते हैं। यह क्रिया विसरण के कारण होती है। विसरित होने (To diffuse) का अर्थ सभी दिशाओं में समान रूप से फैल जाना होता है। 

इस प्रकार विसरण क्रिया का अर्थ पदार्थों का फैल जाना होता है। पदार्थ के अणुओं या कणों का प्रवाह सदैव अधिक सान्द्रता वाले विलयन से कम सान्द्रता वाले विलयन की ओर होता है। इस क्रिया को विसरण (Diffusion) कहते हैं। 

उदाहरण - जब किसी इत्र (Prefume) की शीशी को कमरे के एक कोने पर खोला जाता है तो कुछ समय पश्चात् कमरे के अन्य कोनों में इत्र की खुशबू आने लगती है। इसी प्रकार जब जल में विलेय किसी रंजक (Dye) जैसे - कॉपर सल्फेट, पोटैशियम परमैंगनेट आदि के रवों (Crystals) को जल से भरे बीकर में डाला जाता है, तो सर्वप्रथम रंजक के आस-पास गहरे रंग का क्षेत्र दिखाई देता है, जो कि धीरे धीरे सम्पूर्ण बीकर में फैलने लगता है और अन्त में वह सम्पूर्ण बीकर में समान रूप से वितरित हो जाता है।

कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें एक विशिष्ट प्रकार के द्रव में रखने पर वे उस द्रव को अवशोषित करके फूल जाते हैं। उदाहरण-सेल्युलोज (Cellulose), स्टार्च, प्रोटीन (जिलेटिन) सूखे बीज, आदि। इस क्रिया को अन्तः चूषण कहते हैं।

चूषण

चूषण (Imbibition) एक भौतिक प्रक्रम है, जिसके द्वारा ठोस या अर्द्ध-ठोस पदार्थ जल का अवशोषण करता है, अन्तः शोषण या अन्तः चूषण कहलाता है। यह क्रिया प्राय: उसी समय होती है, जब पदार्थ सूखा हो। इस क्रिया में जल का अवशोषण करने वाले अंग कोशिका भित्ति व कोशिकाद्रव्य के संघटक होते हैं। 

लकड़ी के टुकड़ों, रेशे (Fibres), स्पंज, स्टार्च आदि सभी पदार्थ जल का अन्तः चूषण द्रव्य रूप में करते हैं। इसी कारण बरसात में लकड़ी के दरवाजे फूल जाते हैं व ठीक से बन्द नहीं होते। अन्त:शोषण होने के लिए जल एवं ठोस पदार्थ के बीच आसक्ति (Affinity) का होना आवश्यक है। 

उदाहरण - सूखे बीजों द्वारा जल का अन्त:शोषण किया जा सकता है, परन्तु रबर के द्वारा नहीं। सभी पादप कोशिकाओं की कोशिका भित्ति पैक्टिक व सेल्युलोज पदार्थों की बनी होती है, चूँकि ये जलस्नेही कोलॉइड (Hydrophobic colloids) होती हैं इसलिए इनके द्वारा जल का अन्तःचूषण होता है। अन्तःचूषण के कारण उत्पन्न दाव, अन्तःचूषण दाब (Imbibitional pressure) कहलाता है। इसी प्रकार वे पदार्थ, जो अन्त:चूषण करते हैं, उन्हें अन्तःचूषक (Imbibant) कहते हैं। अन्तःचूषण दाब परासरण दाब (Osmotic pressure) के लगभग समान होता है।

परासरण

परासरण एक विशिष्ट प्रकार का विसरण है, जो कि एक झिल्ली से होता है। "जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले विलयनों को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली के द्वारा पृथक् किया जाात है, तो जल या विलयक के अणुओं का विसरण विलेय की कम सान्द्रता वाले विलयन से विलेय की अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर दाब तक होता है जब तक कि दोनों विलयनों के मध्य एक साम्यावस्था (Equilibrium) उत्पन्न नहीं हो जाती है”, प्रक्रिया को परासरण (Osmosis) कहते हैं।

जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले घोलों को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अलग कर दिया जाता है, तो कम सान्द्रता वाले घोल से जल का अन्य घोलक अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर झिल्ली से होकर विसरण करने लगते हैं, यह क्रिया ही परासरण कहलाती है। परासरण वह क्रिया है, जिसमें जल या दूसरे विलायकों के अणु अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर विसरण करते हैं।

परासरण दाब - जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले विलयनों को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली के द्वारा अलग किया जाता है, तब उस विलयन में घुलनशील जिलेय पदार्थों की उपस्थिति के कारण एक दाब (Pressure) उत्पन्न होता है, जिसे परासरण दाब (Osmotic pressure) कहते हैं। परासरण दाब का मापन वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric pressure) के रूप में किया जाता है।

पारगम्यता

हमारे आस-पास पाये जाने वाले किसी भी ठोस पदार्थ या द्रव पदार्थ की बाहरी पतली परत को झिल्ली कहते हैं। कोशिकाओं के चारों तरफ भी एक झिल्ली पायी जाती है, जिसे कोशिका झिल्ली कहते हैं । पारगम्यता कोशिका की झिल्लियों (Membrane) का प्रमुख गुण है।

झिल्लियों द्वारा अपने में से होकर अन्दर आने वाले पदार्थों व बाहर जाने वाले पदार्थों पर नियंत्रण रखने की क्षमता पारगम्यता कहलाती है ।

पारगम्यता के आधार पर झिल्लियाँ तीन प्रकार की होती हैं-

1. पारगम्य झिल्ली 
2. अर्द्धपारगम्य झिल्ली
3. अपारगम्य झिल्ली

1. पारगम्य झिल्ली – वह झिल्ली जिसमें से जल तथा अन्य घुलित पदार्थ आसानी से आ जा सकते हैं, पारगम्य झिल्ली कहलाती है। उदाहरणपादप कोशिका की सेल्युलोज एवं पैक्टिक यौगिकों से बनी कोशिकाभित्ति जल और घुलित पदार्थों के लिए पारगम्य होती है।

2. अर्द्धपारगम्य झिल्ली - वह झिल्ली जिसके द्वारा विलायक के अणु आर पार जा सकते हैं, किन्तु विलेय के अणु आर-पार नहीं जा पाते, अर्द्धपारगम्य झिल्ली कहलाती है। उदाहरण- दो विभिन्न सान्द्रता वाले घोलों, जल व चीनी के को अलग करने पर जल तेजी से अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर बहने लगता है।

3. अपारगम्य झिल्ली – वह झिल्ली जिनके द्वारा कोई भी पदार्थ नहीं आ जा सकता है, अपारगम्य झिल्ली कहलाती है। उद गबाद कोशिका की सुबेरिन युक्त तथा क्यूटिन युक्त भित्तियाँ जल एवं घुलनशील पदार्थों के लिए अपारगम्य हैं।

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